भिंड। कहावत है कि बड़े-बड़े आपराधिक मामलों में वजह जर, जोरु या जमीन होती है. प्रदेश का चम्बल इलाका तो पहले ही बंदूकों के लिए आज भी बदनाम है. जहां जमीनी विवादों में ना जाने कितने डकैत पैदा कर दिए थे. समय के साथ-साथ डकैत खत्म हो गए, लेकिन बन्दूकों का मोह आज तक ग्वालियर चम्बल अंचल के लोगों से दूर नहीं हुआ. आज भी छोटी सी बात पर लोगों का खून खौल जाता है. अगर हाथ में बंदूक हो तो चलाने में कोई हिचकिचाता नहीं. आज अंचल के मुरैना में जमीन की पुरानी रंजिश में सरेआम 6 लोगों को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया. ये पहली घटना नहीं थी जब चम्बल में जमीन और दबंगई के लिए किसी को भून दिया गया हो. इससे पहले भी जमीनी और पुरानी रंजिशों के विवादों में अंचल के भिंड जिले में भी बड़े-बड़े हत्याकांड हुए. कुछ पुराने तो कुछ ताजा घटनाएं हैं.
चम्बल अंचल में के भिंड जिले में आज भी ग्रामीण अंचलों में दबंगई लोगों के सिर चढ़ कर बोलती है. ज्यादातर विवाद जमीनों को लेकर शुरू होते है और ये रंजिश एक के बाद एक कई जाने लेती जाती है.
गितौर हत्याकांड मेहगांव (1987): मेहगांव क्षेत्र के गितौर गांव 1987 में 5 लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई थी. ये विवाद दो पक्षों में हुआ था. जिसकी शुरुआत 1986 में हुई जमीनी विवाद में गांव के रामनारायण सिंह के खेत पर खड़े ट्रेक्टर में विरोधी सरनाम सिंह और उसके परिवार के लोगों ने आग लगा दी. विवाद हुआ दोनों और से फायरिंग हुई, जिसमें रामनारायण सिंह के पक्ष की गोली से सरनाम सिंह की मौत हो गई. यहीं से मौत का खेल शुरू हुआ. रामनारायण सिंह के परिवार के सदस्य गितौर के पूर्व सरपंच जय सिंह गुर्जर ने बताया कि सरनाम सिंह की मौत का बदला लेने के लिए 28 जुलाई 1987 को जब परिवार के लोग कहीं जा रहे थे तो धनौली के पेढ़ा के पास पहले से घात लगाए बैठे विरोधियों ने ट्रैक्टर में बैठे पांचों सदस्यों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. जिसमें रामनारायण सिंह, उनका बेटा सुरेश सिंह, परिवार के सदस्य प्रहलाद सिंह, वीरेंद्र सिंह और पुरंदर सिंह मारे गए थे, लेकिन अब ये बदले की आग और भी जाने लील रही थी. 5 हत्याएं करने के बाद भी हत्यारे शांत नहीं रहे, एक बार फिर 1996 में दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर गोलियां बरसायीं. जिसमें ट्रेक्टर पर मारे गए प्रह्लाद का भाई उदयभान सिंह और साथी शिवराती मारा गया. साथ ही शहजाद गोली लगने से घायल हुआ. 1998 और 2003 में भी दोनों पक्षों में गांव में फायरिंग हुई. 2004 में विरोधियों ने गांव के बाबू सिंह नाम के एक शख्स की हत्या कर पूर्व सरपंच जय सिंह गुर्जर को हत्या के आरोप में फंसा दिया था. करीब एक दशक पहले पुलिस की पहल से दोनों पक्षों के बीच राजीनामा हुआ, लेकिन तब इस रंजिश में 8 लोगों की हत्या हो चुकी थी.
पचेरा हत्याकांड (1990): जिले में दूसरी बड़ी घटना दो दशक पहली की मेहगांव के ही ग्राम पचेरा की है. बात 1990 की है, गांव में रहने वाले नरेंद्र त्यागी और लक्ष्मीनारायण बोहरे के बीच जमीन की खरीद फरोख्त को लेकर ठन गई थी. इसी टशन में लक्ष्मी नारायण बोहरे की और से उसके साथी रामजी बोहरे ने नरेंद्र त्यागी के भाई विद्यासागर की गोली मार कर हत्या कर दी थी. घटना के दौरान ही नरेंद्र त्यागी और उसके परिवार के लोगों ने उसे पकड़कर मौत के घाट उतार दिया और लाश को सेंवडा में सिंध के पुल से नदी में फेंक दिया था. कुछ दिन बाद उसका शव पुलिस ने बरामद किया, लेकिन बदले की आग शांत नहीं हुई. लगभग दो साल बाद 20 अक्टूबर 1992 को नरेंद्र, शिवनारायण, प्रेम सागर और सुभाष त्यागी मेहगांव के बाजार में स्थित अस्पताल के सामने लक्ष्मीनारायण बरे के घर के बाहर पहुंचे और ताबड़तोड़ फ़ायरिंग शुरू कर दी. इस फायरिंग में लक्ष्मीनारायण बोहरे का भाई मूर्तराम, उसकी बेटी स्नेहलता और ड्राइवर इकबाल खान मारे गये. वहीं रमावतार बोहरे गोली लगने से घायल हुए. मामले में पुलिस ने नरेंद्र एंड कंपनी की गिरफ़्तारी की. परिवार के ज्यादातर सदस्यों को जेल जाना पड़ा. लेकिन एक जनवरी 2023 को जेल से बाहर आने के 15 दिनों बाद ही नरेंद्र और उनके परिवार ने जिसमें उनसे परिवार से पूर्व सरपंच निशांत त्यागी भी शामिल है. उन्होंने चुनावी रंजिश में 15 जनवरी को गांव के हाकिम, गोलू और पिंकु त्यागी को गोलियों से भून कर मौत के घाट उतार दिया.
पावई हत्याकांड (2021): साल 2021 में पावई क्षेत्र के ग्राम डिडौना में भी जमीन विवाद ने कमलेश सैंथिया और उनके बेटे प्रदीप की हत्या करा दी थी, लेकिन सनसनी इस बात पर फैली थी कि उन्हें मारने वाला भी कोई और नहीं बल्कि उनका अपना भतीजा भजनलाल शर्मा था. जिसने गोली मारकर हुआ, यह डबल मर्डर जमीन के बंटवारे को लेकर हुआ था. हालांकि इस दोहरे हत्याकांड के आरोपी को कोर्ट ने आजीवन कारावास के लिए भेज दिया है.
जमीनी विवादों ने बनाए थे बागी-डकैत: इसके अलावा चम्बल वह क्षेत्र है, जहां जमीनी विवादों की वजह से कई डकैत और बागी अस्तित्व में आये, इनमें डकैत मोहर सिंह और डाकू मलखान सिंह वे नाम थे. जिन्होंने पूरे देश में अपना खौफ बरपाया. बताया जाता है कि डकैत मोहर सिंह गोहद क्षेत्र के ग्राम जटपुरा के रहने वाले थे. उनके परिवार में ही जमीन को लेकर आपसी विवाद था. साल 1955 में पारिवारिक विवाद पुलिस तक पहुंचा, जब पुलिस ने भी साथ नहीं दिया तो मजबूरन मोहर सिंह को बंदूक उठानी पड़ी और दुश्मनों से बदला लेने के लिए उन्होंने फायरिंग भी की. इसके बाद वो बीहड़ों में चले गए. साल 1972 में उन्होंने सरेंडर किया, उस दौरान उनके ऊपर हत्या के 400 केस थे और ढाई लाख का इनाम लेकिन वे सरेंडर कर आखिर में जेल चले गये.
ग्वालियर चंबल अंचल में हथियारों की स्थिति: वैसे तो सरकार आत्मरक्षा के लिए बंदूकों के लाइसेंस कड़ी प्रक्रिया के बाद जारी करती है, फिर भी ग्वालियर चम्बल अंचल में हथियारों के लाइसेंस की संख्या कम नहीं है. जिनमें ग्वालियर जिला टॉप पर, दूसरे पर मुरैना तो भिंड तीसरे स्थान पर आता है. आंकड़ों की बात करें तो वर्तमान में ग्वालियर जिले में अब तक कुल जारी लाइसेंस की संख्या 34934 है. इनमें 2023 के शुरुआती चार महीनों में ही नये 380 लाइसेंस बन चुके हैं. दूसरे नंबर पर मुरैना जिला है. जहां आर्म्स डिपार्टमेंट द्वारा जारी लाइसेंस की संख्या करीब 30 हजार से अधिक है, जो दिन बढ़ रही है. वहीं तीसरे नंबर पर भिंड जिला है जहां आज तक करीब 24 हजार आर्म लायसेंस जारी हो चुके हैं. लेकिन ये चम्बल की रीति लगने लगी है कि हथियार माफ़िया की बदौलत अंचल में लाइसेंसी हथियारों के मुक़ाबले चार गुना अवैध हथियार हर क्षेत्र में फ़ैले हुए हैं. शायद ही ऐसा कोई गांव हो जहां इन हथियारों की गूंज सुनाई ना देती हो. सरकार भले ही ये लाइसेंस हथियारों से आत्मरक्षा के लिए देती हो लेकिन मुरैना में जिस तरह रायफल से सरेराह लोगों को मौत के घाट उतर दिया गया. ऐसे में इनका उपयोग अब आत्मरक्षा के लिए तो कहीं से नजर नही आ रहा है.