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कभी भीख मांगने वाले हाथों में भी आज है कलम, इस अनोखी पाठशाला ने बनाई बच्चों की जिंदगी

भिंड में एक ऐसी अनोखी पाठशाला लगती है जिसने गरीब बच्चों की जिंदगी संवार दी है. हर रविवार लगने वाली इस पाठशाला में बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ जीवन जीन के सलीखे भी सिखाए जाते हैं.

भिंड में बच्चों के लिए लगती है अनोखी पाठशाला
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Published : May 27, 2019, 3:21 PM IST

भिंड। राष्ट्र गान से होती है इस अनोखी क्लास की शुरुआत. एक ऐसी क्लास जहां बच्चे भी टीचर हैं, जहां समाज के कुछ जिम्मेदार लोग उन गरीब बच्चों के हाथों में कलम थमा रहे हैं, जो हाथ कभी भीख मांगते थे, जो हाथ कभी कबाड़ बीनते थे.

भिंड में बच्चों के लिए लगती है अनोखी पाठशाला

इन लोगों के पास बिल्डिंग नहीं है, लेकिन बस स्टैण्ड के पास बनी झुग्गी की जमीन ही इनकी पाठशाला है. एक ऐसी पाठशाला जहां न केवल बच्चों को एबीसीडी और पहाड़े पढ़ाए जाते हैं बल्कि साफ-सफाई का पाठ भी पढ़ाया जाता है. टीचर उन्हें किताबी ज्ञान के साथ-साथ जीवन जीने का सलीका भी सिखाते हैं.

इस अनोखी पाठशाला के पीछे सोच है समाजसेवी बबलू सिंधी की, जो कहते हैं कि बच्चों को देश का भविष्य कहना काफी नहीं है, उनके लिए कुछ करना भी जरूरी है.

बबलू ने बच्चों के हाथ से कबाड़ छीनकर कलम थमा दी है. हर रविवार को बच्चों को कभी एबीसीडी पढ़ाई, तो कभी पहाड़े, कभी जोड़-भाग सिखाया तो कभी महान शख्सियतों से रू-ब-रू कराया. देखते ही देखते इस मुहिम से लोग जुड़ते गए. यहां एक 4 साल की बच्ची है, उसे भी पढ़ने-पढ़ाने का इतना शौक है कि वो अभी से ही खुद भी बच्चों को पढ़ाने लग जाती है. वहीं इस अनोखी पाठशाला में पेशे से शिक्षिका रचना भी इसमें योगदान देती है.

आज इस पाठशाला में करीब 40-50 बच्चे पढ़ते हैं. यहां पढ़ने वाली स्वाति बताती हैं कि वो पहले कचरा बीना करती थी, लेकिन अब उसे पढ़ने में मजा आने लगा है. उसे अपनी अनोखी पाठशाला पसंद है. स्वाति कहती है कि उसके टीचर्स जैसा कोई नहीं पढ़ा सकता.

हर रविवार को कुछ समाजसेवी, लोग और शिक्षक अपने दो घंटे इन बच्चों के नाम कर देते हैं. होली-दिवाली जैसे त्योहार भी वो इन्हीं के साथ मनाते है. बबलू कहते हैं कि वो बच्चों को नैतिक शिक्षा देकर एक काबिल इंसान बनाने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं. ऐसे समाजसेवियों के योगदान की हम सराहना करते हैं.

भिंड। राष्ट्र गान से होती है इस अनोखी क्लास की शुरुआत. एक ऐसी क्लास जहां बच्चे भी टीचर हैं, जहां समाज के कुछ जिम्मेदार लोग उन गरीब बच्चों के हाथों में कलम थमा रहे हैं, जो हाथ कभी भीख मांगते थे, जो हाथ कभी कबाड़ बीनते थे.

भिंड में बच्चों के लिए लगती है अनोखी पाठशाला

इन लोगों के पास बिल्डिंग नहीं है, लेकिन बस स्टैण्ड के पास बनी झुग्गी की जमीन ही इनकी पाठशाला है. एक ऐसी पाठशाला जहां न केवल बच्चों को एबीसीडी और पहाड़े पढ़ाए जाते हैं बल्कि साफ-सफाई का पाठ भी पढ़ाया जाता है. टीचर उन्हें किताबी ज्ञान के साथ-साथ जीवन जीने का सलीका भी सिखाते हैं.

इस अनोखी पाठशाला के पीछे सोच है समाजसेवी बबलू सिंधी की, जो कहते हैं कि बच्चों को देश का भविष्य कहना काफी नहीं है, उनके लिए कुछ करना भी जरूरी है.

बबलू ने बच्चों के हाथ से कबाड़ छीनकर कलम थमा दी है. हर रविवार को बच्चों को कभी एबीसीडी पढ़ाई, तो कभी पहाड़े, कभी जोड़-भाग सिखाया तो कभी महान शख्सियतों से रू-ब-रू कराया. देखते ही देखते इस मुहिम से लोग जुड़ते गए. यहां एक 4 साल की बच्ची है, उसे भी पढ़ने-पढ़ाने का इतना शौक है कि वो अभी से ही खुद भी बच्चों को पढ़ाने लग जाती है. वहीं इस अनोखी पाठशाला में पेशे से शिक्षिका रचना भी इसमें योगदान देती है.

आज इस पाठशाला में करीब 40-50 बच्चे पढ़ते हैं. यहां पढ़ने वाली स्वाति बताती हैं कि वो पहले कचरा बीना करती थी, लेकिन अब उसे पढ़ने में मजा आने लगा है. उसे अपनी अनोखी पाठशाला पसंद है. स्वाति कहती है कि उसके टीचर्स जैसा कोई नहीं पढ़ा सकता.

हर रविवार को कुछ समाजसेवी, लोग और शिक्षक अपने दो घंटे इन बच्चों के नाम कर देते हैं. होली-दिवाली जैसे त्योहार भी वो इन्हीं के साथ मनाते है. बबलू कहते हैं कि वो बच्चों को नैतिक शिक्षा देकर एक काबिल इंसान बनाने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं. ऐसे समाजसेवियों के योगदान की हम सराहना करते हैं.

Intro:नोट- इस खबर को पैकेज फॉर्मेट में लिया जा सकता है इस खबर के लिए पर्याप्त शॉर्ट्स अटैच किए हैं

पढ़ना पढ़ाना हर किसी की इच्छा होती है, लेकिन यही चाह अगर मिसाल बन जाए तो क्या बात है। कुछ ऐसी ही कहानी है भिंड के कुछ युवाओं की , जो इन दिनों भिंड के बस स्टैंड स्थित गरीब बस्ती के बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना समय दे रहे हैं,और उनकी इस पहल से करीब 40 से 50 बच्चे जिनके पास पढ़ने का कोई साधन नहीं था। ऐसे बच्चे जो कभी भीख मांगते थे, तो कोई कबाड़ा बीनने का काम करता था, आज इन सभी बच्चों की जिंदगी में बदलाव आया है और उनमें पढ़ाई के लिए एक चाहत दिख रही है।


Body:भिंड के कुछ लोग जो समाज के लिए कुछ कर गुजरने की भावना अपने दिल में रखते हैं, शहर के उन गरीब बच्चों के हाथों में कलम थमा रहे हैं जो हाथ कभी भीख मांगते थे तो कभी कबाड़ा बिनते थे । भले ही इन लोगों के पास बच्चों को पढ़ाने के लिए चारदीवारी और बैठाने के लिए जगह उपलब्ध नहीं थी ,लेकिन इनकी पढ़ाने की ललक और प्रतिबद्धता सबके लिए मिसाल बनती जा रही है । एक ओर जहां शहरों में कोचिंग और हाई-फाई ट्यूशन सेंटर खुल रहे हैं , वही शहर के कुछ लोगों का एक ग्रुप बस स्टैंड के पास ही एक झुग्गी बस्ती में जमीन पर बैठकर बच्चों को पढ़ाते हैं। इस मुहिम को शुरू करने वाले बबलू सिंधी पेशे से तो व्यापारी हैं लेकिन समाज में कुछ अच्छा करने की चाह में उन्होंने गरीब बच्चों को शिक्षा देने की ठानी और वे हर रविवार अपने समय में से 2 घंटे का समय निकालकर इन गरीब बच्चों को पढ़ाने लगे ।

बाइट- स्वाती, कबाड़ा बीनने वाली बच्ची
बाइट- बबलू सिंधी, समाजसेवी

करीब 8 महीने पहले शुरू की गई बबलू की इस पहल से धीरे धीरे कई लोग जुड़े जिन्होंने रविवार की छुट्टी में अपना समय इस नेक काम के लिए देना शुरू किया, जिसमें हर वर्ग और हर उम्र के लोग शामिल हैं। शिक्षक से लेकर गृहणियां बच्चे भी इन गरीब बच्चों को पढ़ाने आते हैं आज करीब 40 से 50 बच्चे हर रविवार इनसे पढ़ने इकट्ठा होते हैं। इन बच्चों की छोटी टीचर जो अभी खुद फोर्थ क्लास में पढ़ती है अपने पापा के साथ इन बच्चों को पढ़ाने आती है ।

साक्षी पाठक, चौथी कक्षा की छात्रा (छोटी टीचर)

यह लोग व्यवस्थाओं के लिए भी किसी पर निर्भर नहीं है, चाहे बच्चों की पढ़ाई के लिए लगने वाला जरूरी सामान जैसे किताबें बसते हों या यूनिफॉर्म और बैठने के लिए चटाई जैसी चीजें, वे खुद ही आपस में पैसे जोड़कर इकट्ठा कर लेते हैं । इस मुहिम से जुड़ी एक शिक्षिका भी बताती हैं कि वे पेशे से अध्यापक हैं जब उन्हें इस अभियान का पता चला तो वे भी यहां बच्चों को पढ़ाने आई और इन बच्चों की पढ़ाई के प्रति ललक देख कर अपने आप को न रोक सकी और अब हर रविवार वे यहां 2 घंटे बच्चों को पढ़ाने के लिए आती हैं और इन बच्चों में पहले से कहीं ज्यादा बदलाव देख रही है।

बाइट- रचना, शिक्षिका




Conclusion:हमारे देश में या फिर कहीं पूरी दुनिया में लोग अलग-अलग मुद्दे और फायदे देखते हुए मुहिम चलाते हैं उन्हें आगे बढ़ाते हैं और निजी स्तर पर प्रसिद्धि कमाते हैं ।लेकिन इन निजी प्रसिद्धियों के बीच बबलू, साक्षी, रचना जैसे लोग भी हैं जो इस समाज को एक अच्छा भविष्य देने की कोशिश कर रहे हैं।
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