भिंड। राष्ट्र गान से होती है इस अनोखी क्लास की शुरुआत. एक ऐसी क्लास जहां बच्चे भी टीचर हैं, जहां समाज के कुछ जिम्मेदार लोग उन गरीब बच्चों के हाथों में कलम थमा रहे हैं, जो हाथ कभी भीख मांगते थे, जो हाथ कभी कबाड़ बीनते थे.
इन लोगों के पास बिल्डिंग नहीं है, लेकिन बस स्टैण्ड के पास बनी झुग्गी की जमीन ही इनकी पाठशाला है. एक ऐसी पाठशाला जहां न केवल बच्चों को एबीसीडी और पहाड़े पढ़ाए जाते हैं बल्कि साफ-सफाई का पाठ भी पढ़ाया जाता है. टीचर उन्हें किताबी ज्ञान के साथ-साथ जीवन जीने का सलीका भी सिखाते हैं.
इस अनोखी पाठशाला के पीछे सोच है समाजसेवी बबलू सिंधी की, जो कहते हैं कि बच्चों को देश का भविष्य कहना काफी नहीं है, उनके लिए कुछ करना भी जरूरी है.
बबलू ने बच्चों के हाथ से कबाड़ छीनकर कलम थमा दी है. हर रविवार को बच्चों को कभी एबीसीडी पढ़ाई, तो कभी पहाड़े, कभी जोड़-भाग सिखाया तो कभी महान शख्सियतों से रू-ब-रू कराया. देखते ही देखते इस मुहिम से लोग जुड़ते गए. यहां एक 4 साल की बच्ची है, उसे भी पढ़ने-पढ़ाने का इतना शौक है कि वो अभी से ही खुद भी बच्चों को पढ़ाने लग जाती है. वहीं इस अनोखी पाठशाला में पेशे से शिक्षिका रचना भी इसमें योगदान देती है.
आज इस पाठशाला में करीब 40-50 बच्चे पढ़ते हैं. यहां पढ़ने वाली स्वाति बताती हैं कि वो पहले कचरा बीना करती थी, लेकिन अब उसे पढ़ने में मजा आने लगा है. उसे अपनी अनोखी पाठशाला पसंद है. स्वाति कहती है कि उसके टीचर्स जैसा कोई नहीं पढ़ा सकता.
हर रविवार को कुछ समाजसेवी, लोग और शिक्षक अपने दो घंटे इन बच्चों के नाम कर देते हैं. होली-दिवाली जैसे त्योहार भी वो इन्हीं के साथ मनाते है. बबलू कहते हैं कि वो बच्चों को नैतिक शिक्षा देकर एक काबिल इंसान बनाने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं. ऐसे समाजसेवियों के योगदान की हम सराहना करते हैं.