भिंड। मध्य प्रदेश सरकार लगातार आवारा मवेशी खासकर गोवंश पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है. गौशालाओं में गोवंश को रखने की व्यवस्था बनाई जा रही है. यहां तक की राज्य सरकार कैबिनेट बना चुकी है. इसके बावजूद प्रदेश में गौशाला ठीक से संचालित नहीं हो पा रही है. साथ ही गोवंश सड़कों पर आवारा घूम रहे हैं, हादसों का शिकार हो रहे हैं लेकिन भिंड शहर में एक ऐसी गौशाला है जिसमें इन मवेशियों का ध्यान सरकारी गौशालाओं से बेहतर रखा जा रहा है. यहां तक कि घायल मवेशियों का भी यहां सरकारी अस्पताल से ज्यादा अच्छे से इलाज किया जाता है क्योंकि जिस के संचालक 'आप और हम हैं.
2011 में हुई थी गौ चिकित्सालय की शुरुआत
भिंड शहर के श्रीमंशापूर्ण हनुमान मंदिर के पास संचालित श्रीमंशापूर्ण गोकुलधाम गौशाला की शुरुआत साल 2011 में हुई थी. उस दौरान यह गौशाला एक गौ चिकित्सालय और गहन पशु चिकित्सा इकाई के रूप में शुरू की गई थी. उस दौरान इस गौशाला को बेहतर बनाने का काम तत्कालीन कलेक्टर इलैया राजा टी ने किया था. आज यह गौशाला भिंड जिले की तमाम गौशालाओं में सबसे आधुनिक और बेहतर है. लेकिन आम गौशालाओं से हटके यहां गौ सेवा भाव से इसका संचालन होता है. यहां आने वाली ज्यादातर गोवंश घायल या बीमार होती हैं. जिन की सूचना आमजन द्वारा पहुंचाई जाती है. मंशापूर्ण गोकुल धाम गौशाला की जिम्मेदारी संभाल रहे लोग उन्हें लेने पहुंच जाते हैं और गौशाला में ले जाकर उनका इलाज और उनकी सेवा करते हैं.
कॉलेज छात्रों की पहल से रखी थी नींव
इस गौशाला की शुरुआत भी बड़े ही रोचक तरीके से हुई थी. श्री मंशापूर्ण गोकुल धाम गौशाला में व्यवस्थाएं संभाल रहे विपिन चतुर्वेदी के मुताबिक जब 2011 में वह कॉलेज की पढ़ाई कर रहे थे उस दौरान एक रोज अपने दोस्तों के साथ कॉलेज से लौटते समय उन्होंने सड़क किनारे हादसे का शिकार हुई एक गाय को तड़पता देखा लेकिन वह उसके कष्ट को देखा ना गया तो 100 रुपये में ऑटो कर दोस्तों के साथ उसे लेकर पशु चिकित्सालय पहुंचे और डॉक्टर से उसे इलाज देने के लिए कहा. मरहम पट्टी करने के बाद डॉक्टर ने गाय को साथ वापस ले जाने के लिए कहा लेकिन छात्रों के पास गाय रखने की कोई व्यवस्था नहीं थी. वहीं डॉक्टर ने कह दिया कि उनके पास ना तो गाय को भर्ती करने के लिए व्यवस्थाएं हैं और नहीं उन्हें खिलाने पिलाने के लिए कोई प्रावधान और फंड है.
पशु चिकित्सालय के कर्मचारियों ने उस बेचारे असहाय मवेशी को पशु चिकित्सालय के बाहर रोड पर छोड़ दिया. विपिन चतुर्वेदी ने बताया कि अगले दिन जब उस गाय मिलने पहुंचे तो वह दृश्य बहुत ही विचलित करने वाला था. आवारा कुत्तों ने उस गाय को अपना शिकार बना लिया था और तड़प तड़प कर उसने अपना दम तोड़ दिया. उन दृश्यों ने युवाओं के मन को झकझोंर दिया. जिसके बाद डॉक्टर से बहसबाजी हुई लेकिन उसका कोई फायदा नहीं था. सब ने फैसला किया कि ऐसे गोवंश का वह खुद इलाज कराएंगे उनकी देखरेख करेंगे लेकिन जगह की व्यवस्था नहीं थी तो अस्पताल के पास ही बने एक पुराने टीन शेड में गोवंश को रखने की व्यवस्था कर ली और घायल गोवंश को वहां लाने लगे.
गौ सेवकों को अतिक्रमणकरी बताकर कर दी थी शिकायत
दो- चार महीने के बाद अस्पताल कर्मचारियों ने इन गो सेवकों को अतिक्रमणकारी बताते हुए शिकायत तत्कालीन कलेक्टर इलैया राजा टी से शिकायत की. जिसके बाद कलेक्टर खुद अतिक्रमण हटवाने पहुंच गए लेकिन जब उन्होंने देखा के शहर के कुछ युवा गौ सेवा में लगे हुए थे तो उन्होंने सब को बुलाया. इस पर एक आम सहमति बनाकर सब को राजी कर लिया. इसके साथ ही कहा कि इस अच्छे काम को आगे बढ़ाया जाए. बीमार, घायल और आवारा गौ वंश सड़कों पर न दिखे इसकी जिम्मेदारी इन युवाओं को तत्कालीन कलेक्टर ने सौंपी.
तत्कालीन कलेक्टर ने आगे आकर किया गौसेवा का विस्तार
अब एक बड़ी समस्या गौवंश को रखने के लिए हो रही थी. जिसके लिए पहल करते हुए तत्कालीन कलेक्टर इलैया राजा टी ने पशु चिकित्सालय की खाली पड़ी जमीन पर व्यवस्था जमाई. उन्होंने खुद अपनी सैलरी से एक वार्ड बनवाया. एयर जान सहयोग से भी सके अन्य वार्ड बनाया गया, एक इमरजेंसी वार्ड और ऑफिस के साथ मेडिकल स्टोरी का निर्माण कराया गया. साथ ही जन सहयोग के लिए भी अपील की. पशु चिकित्सालय डॉक्टर्स की व्यवस्था की गोवंश उठाने के लिए नगर पालिका कर्मचारियों को नियुक्त किया. सभी व्यवस्थाएं एकदम दुरुस्त चलने लगी. तो इसका नाम श्रीमंशापूर्ण गोकुलधाम गौ चिकित्सालय सुझाया गया. लेकिन गो सेवक गहन पशु चिकित्सा इकाई रखना चाहते थे. अंत में युवा गो सेवकों और कलेक्टर ने मिलकर इसका नाम श्रीमंशापूर्ण गोकुल धाम गौर चिकित्सालय एवं गहन पशु चिकित्सा इकाई रख दिया गया.
कलेक्टर के तबादले के बाद प्रशासन ने खींचे हाथ
विपिन चतुर्वेदी ने बताया कि तत्कालीन भिंड कलेक्टर इलैया राजा टी का कुछ समय बाद ट्रांसफर हो गया. उनका तबादला होने के साथ ही सरकारी तंत्र ने हाथ खींच लिए. पहले नगरपालिका ने साथ छोड़ा और फिर सरकारी डॉक्टरों ने भी बैठना बंद कर दिया. यहां तक कि जिस स्टोर से सरकारी दवाइयां इन गोवंश के इलाज के लिए मिलती थी उन्होंने भी दवा देने से मना कर दिया. ऐसे में परेशानियां बढ़ने लगी तो गौशाला बंद होने की कगार पर आ गई.
समाजसेवियों ने उठाया बीड़ा
विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए विपिन चतुर्वेदी ने शहर के वरिष्ठ समाजसेवियों से संपर्क किया. इसके लिए राजेश गुप्ता, उन्मेद सिंह, राज पुरोहित, डॉक्टर नेहा जोशी जैसे समाजसेवी आगे आये और उन्होंने इसका बीड़ा उठाया तो आज यह गौशाला सरकारी और प्राइवेट गौशालाओं से बेहतर है. आज भी यह समाजसेवी लोग नियमित रूप से गौसेवा करते हैं. कोई दवाओं का खर्च उठता है तो कोई डॉक्टर की सैलरी देता है. समय के साथ साथ कई लोग जुड़ते गए और आज लोग नियमित यहां गौसेवा के लिए आते हैं. हर महीने के समाजसेवी और आस्थावान लोग दान पर्चियां कटाते हैं. उस पैसे का उपयोग भी इस गौशाला संचालन और गौवंश की देखभाल चारे और मेडिकल व्यवस्थाओं में होता है. चूंकि इस गौशाला का संचालन सभी के जन सहयोग से है. इसलिए इसके संचालक का नाम भी 'आप और हम' रखा गया है.
सरकारी अस्पताल और गौशाला से अच्छा इलाज, रिकवरी रेट
आज गौशाला में करीब 30 से ज्यादा गाय रहती है. जिनमें घायल अवस्था में तो कई बीमार हालात में लायी गयी थी लेकिन यहां की मेडिकल व्यवस्थाओं की बदौलत उन्हें अच्छा इलाज मिल रहा है. जिसके चलते रिकवरी रेट भी 80 से 85 फीसदी है. विपिन चतुर्वेदी ने बताया कि वे हर जगह नहीं पहुंच सकते हैऔर न ही हर मवेशी को यह ला सकते हैं. इसलिए छोटी मोटी परेशानी होने पर सूचना देने वाले शख्स को इलाज बताते हैं या गौशाला के परमानेंट डॉक्टर श्रीवास्तव को मौके पर पहुंचते हैं. अगर वाकई परिस्थिति गंभीर होती है तो उन्हें तुरंत गाड़ी में रखकर यहां लाकर इलाज किया जाता है. कई बार इलाज में परेशानी होती है मेजर सर्जरी की भी बात आती है, तो फीस देकर ग्वालियर से डॉक्टर बुलाते हैं, क्योंकि स्थानीय सरकारी डॉक्टर यहां आने से कतराते हैं. समय-समय पर मवेशियों के सर्जरी के लिए कैंप भी लगाए जाते हैं. जिसमें बाहरी और अन्य मवेशियों का भी मुफ्त में इलाज और सर्जरी कराई जाती है. इसके अलावा गौ सेवा की इच्छा रखने वाले लोगों को उनका इलाज करना ड्रेसिंग जैसी बेसिक व्यवस्था किस तरह की जा सकती हैं, इसकी ट्रेनिंग भी देते हैं जिससे कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस गौ सेवा के कार्य में जुड़ सकें और जरूरत पड़ने पर खुद व्यवस्थाएं संभाल सके.
अब सरकारी अस्पताल और नपा मांगती है मदद
कई बार लोग फोन के माध्यम से या व्हाट्सएप के माध्यम से मैसेज कर घायल और बीमार पशुओं की जानकारी विपिन या उनसे जुड़े अन्य समाजसेवियों को देते हैं. जिस पर परिस्थिति को समझते हुए गौशाला के यह गौसेवक तुरंत गाड़ी लेकर जाते हैं और मवेशी को लेकर आते हैं. इस तरह की जानकारियां मिलती रहे इसलिए दो मोबाइल नंबर भी उन्होंने उपलब्ध कराए हैं. जनपद कभी भी कोई भी संपर्क कर सकता है कभी हाथ खींच लेने वादी नगर पालिका और पशु चिकित्सा विभाग से भी कई बार मवेशियों को उठाने और उनके इलाज के लिए मदद मांगने फोन आते हैं, हालांकि गौ सेवा के भाव के चलते यह समाजसेवी कभी अपने धर्म से पीछे नहीं हटते है.
समाजसेवी एवं व्यवस्थापक संजीव गुप्ता ने बताया कि एक दिन वो सुबह घूमने जा रहे थे तभी एक गाय घायल अवस्था में सड़क पर बैठी थी. फिर उस गाय को यहां लेकर आए और उसका इलाज किया लेकिन वह गाय ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह पाई. गौशाला के पशु चिकित्सक कमलेश श्रीवास्तव ने बताया कि किसी अन्य गौशाला से यहां बहुत अंदर है. यहां हर लिहाज से गायों और गौवंश को बेहतर देखभाल और इलाज दिया जाता है. कई बार लोग फोन के माध्यम से या व्हाट्सएप के से मैसेज कर घायल और बीमार पशुओं की जानकारी विपिन या उनसे जुड़े अन्य समाजसेवियों को देते हैं. जिस पर परिस्थिति को समझते हुए गौशाला के यह गौ सेवक तुरंत गाड़ी लेकर जाते हैं और मवेशी को लेकर आते हैं.