भिंड। शिवराज सरकार(Shivraj Singh Government) खुद को किसान हितैषी बताती है. लेकिन फिर भी चंबल के किसानों की नींद उड़ी हुई है. रबी की फसल बोवनी पर है और खाद की भारी किल्लत है. मुरेना में खाद के बदले किसानों को लठियां मिली, तो कालाबाज़ारी के चलते भिंड जिले में दो जगहों पर खाद की लूट हो गयी. कई किसान हर रोज खाद केंद्रों पर पहुंच रहे हैं , लेकिन पर्ची कराने के बाद भी उन्हें कई दिनों तक डीएपी खाद नहीं मिल रही है.
डीएपी पर किसानों के लिए 50-50 फॉर्मूला
ऐसा नहीं है की जिले में डीएपी खाद (Shortage Of DAP In Bhind) उपलब्ध नहीं है. खाद तो है लेकिन सोसायटियों के गोदामों में बंद. आख़िर इस स्थिति का मतलब क्या है . भारत में डीएपी खाद की मांग का करीब आधा ही उत्पादन होता है, बाकी खाद आयात करनी पड़ती है. जिसकी वजह से इसकी लागत और भी बढ़ जाती है, लेकिन इतनी महंगी खाद खरीदना आम किसान के लिए मुश्किल होता है. इस परिस्थिति से निपटने के लिए 50-50 फॉर्मूला अपनाया जाता है. खाद की ख़रीदी दर की 50 प्रतिशत क़ीमत राज्य सरकार द्वारा अनुदान के रूप में दी जाती है. इस तरह किसानों को कम दाम पर भी अच्छी खाद मिल जाती है. कुछ समय पहले डीएपी बनाने वाली कम्पनियों ने इसके दाम बढ़ा दिए, इसलिए DAP आयात करने वाले व्यापारी महंगा खाद नही खरीद रहे. यही बड़ी वजह है कि मार्केट में DAP की भारी कमी है.
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किसानों के हिस्से में सिर्फ़ 20 फ़ीसदी खाद
एक और बड़ी वजह यह भी है की सरकार के नियमों के अनुसार खाद की (Shortage Of DAP In Bhind) उपलब्धता किसी भी खाद वितरण केंद के लिए 80 प्रतिशत और किसानों और अन्य लोगों के लिए सिर्फ़ 20 प्रतिशत ही है. ऐसे में जो भी खाद भिंड ज़िले में आती है वह 80 फ़ीसदी स्टॉक सहकारी समितियों के गोदामों में भरी पड़ी है, जो किसानों क्रेडिट पर खाद उपलब्ध कराएंगे. जबकि मार्कफेड के ज़रिए किसानों को सरकारी दाम पर बांटने के लिए महज 20 फ़ीसदी हिस्सा ही मिलता है. जो ज़िले के लाखों किसानों के बीच जीरे के सामान होता है और चंद घंटों में ख़त्म हो जाता है. लेकिन मार्कफ़ेड द्वारा किसानों से नगद रुपए लेकर पर्चियां काटी जा रही हैं, लेकिन डीएपी का स्टॉक ना होने से खाद नहीं बांटा जा रहा है.
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खाद की जगह मिल रही सिर्फ पर्ची
डीएपी की मांग ख़ासकर सरसों की फसल के लिए रहती है. लेकिन सरकार इसकी कमी दूर करने के लिए अब तक कोई ख़ास व्यवस्था नही कर पाई है. यही वजह है कि डीएपी खाद की उपलब्धता ना (Shortage Of DAP In Bhind) के बराबर है, लेकिन सरकार पर्याप्त मात्रा में DAP उपलब्ध होने की बात कह रही है. लेकिन भिंड ज़िले का किसान और उसके हालत सरकारी दावों पर एकराय नज़र नहीं आते हैं. लगभग ज़िले के सभी वितरण केंद्रों में किसान खाद के लिए परेशान है. कई केंद्रों पर तो खाद के इंतज़ार में किसान आधी रात से लाइन में लगता है. लेकिन उनके हाथ लगती भी है तो सिर्फ़ पर्ची. क्योंकि इन केंद्रों में यूरिया तो पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है लेकिन डीएपी नही.
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दिन रात केंद्र पर डटा अन्नदाता
ग्राउंड ज़ीरो पर पहुंच कर ईटीवी भारत (Reality Check On Ground)ने भी किसानों से बातचीत की, तो किसानों का गुस्सा सामने आ गया. किसानों ने अपनी मजबूरी और प्रशासन की व्यवस्थाओं के दावों की पोल खोल कर रख दी. भिंड स्थित गल्ला मंडी के किसानों ने बताया कि किसी को 3 दिन पहले तो किसी को हफ़्ते भर पहले पर्ची दी गयी थी, लेकिन अब तक DAP खाद नहीं दी गयी है. एक किसान ने बताया के उसके साथ आए गांव के लोग तो यही इंतज़ार करते हैं वे केंद्र पर ही खाना बनाते और खाते हैं. क्यों कि पता नहीं चलेगा की खाद कब आया और बंट गया.
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DAP की जगह थमाया जा रहा NPK, उसके बिना यूरिया भी नहीं मिल रहा
एक अन्य किसान ने बताया कि केंद्र पर डीएपी के अलावा यूरिया देने में भी अनाकानी कर रहे हैं .उनका कहना है की NPK ख़रीदने पर ही यूरिया दिया जाएगा. किसानों का कहना है कि उन्हें डीएपी चाहिए, क्योंकि NPK खाद कभी पहले इस्तेमाल नहीं की है. ऐसे में फसल पर वह रिस्क नही ले सकते. भिंड ज़िले में ज़्यादातर किसान साल में सिर्फ़ एक फसल ही तैयार करते हैं, जिससे उनकी साल भर की आय होती है. केंद्र पर मौजूद कर्मचारी का कहना है कि उनके पास NPK और यूरिया है. अगर कोई NPK लेता है तो साथ में उसके मुताबिक़ यूरिया दिया जा रहा है. लेकिन अगर बिना किताब सिर्फ़ यूरिया चाहिए तो सिर्फ़ दो बोरी ही दी जा सकती है.
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NPK को बताया जा रहा बेहतर विकल्प
हमने ज़िला विपणन अधिकारी अमित गुप्ता से सम्पर्क किया. उनके मुताबिक भिंड जिले में 5 ब्लॉक में इन दिनों खाद की बिक्री के लिए केंद्र बनाए गए हैं. जहां दबोह में दो काउंटर बनाए गए हैं, लहार में 2 काउंटर, भिंड में 5 काउंटर, मेहगाँव और गोहद दोनों ही ब्लॉक में 2 से 3 काउंटर बनाए गए हैं. उन्होंने बताया कि वर्तमान में खाद की उपलब्धता ज़िले में काफ़ी ठीक है. उनके मुताबिक़ मार्कफ़ेड के पास इस वक्त मार्कफ़ेड के पास यूरिया- 1400 मीट्रिक टन और NPK- 700 मीट्रिक टन की उपलब्धता है. साथ ही DAP के लिए समय समय पर रैक मंगाई जा रही है.पूरा प्रयास किया जा रहा है कि DAP जितना हो मिलते ही किसानों को उपलब्ध कराया जाए. उन्होंने यह भी कहा की किसानों को समझना होगा कि DAP नहीं मिलने की दशा में एनपीके एक बेहतर विकल्प है, बल्कि डीएपी से ज़्यादा अच्छा है जिसका इस्तेमाल किसान बिना परेशानी कर सकते हैं.