भिंड। नवरात्रि में इस बार हम आपको मां भगवती के उस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका इतिहास और मान्यताएं अद्भुत हैं. श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र एक ऐसा मंदिर जहां हर नवरात्रों में भक्तों का सैलाब उमड़ता है. कहा जाता है कि भिंड के बीहड़ में स्थित पावई गांव में विराजी मां भगवती राजस्थान के करौली में विराजमान करौली माता कैला देवी की बहन हैं. इस शारदीय नवरात्रि जानिए बीहड़ों में बैठी पावई वाली मां की महिमा के किस्से और कहानियां. Shardiya Navratri 2022, navratri special about pawai mata in bhind
एक हज़ार साल पुराना है माता का मंदिर: भिंड जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर बीहड़ों के बीच पावई गांव में स्थित है मां भगवती का ऐतिहासिक मंदिर. पावई वाली माता के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर का इतिहास करीब 1000 वर्ष पुराना है. इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहार राजाओं ने करवाया था. पावई गांव में बनी विशाल परिसर में माता की मूर्ति कुएं में विराजमान है, जिनके दर्शन के लिए चैत्र और शारदीय दोनों ही नवरात्रि के समय भक्तों तांता लगता है. नवमी और दशहरे के दिन यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए पुलिस और प्रशासन भी यहां पर विशेष इंतजाम करता है. जिससे भक्तों को किसी प्रकार की समस्या ना हो नवरात्रि के 9 दिन यहां पर हजारों की संख्या में भक्त सिर पर जवारे रखकर और नेजा लेकर दूर-दूर से माता रानी के दरबार में चढ़ाने के लिए आते हैं.
करौली कैला देवी की छोटी बहन है पावई वाली माता: मान्यता है कि पावई माता को भक्तगण राजस्थान में स्थित करौली में विराजी मां कैला देवी की छोटी बहन के रूप में पूजते हैं. पावई माता मंदिर के पुजारी किशन दास महाराज कहते है कि, की पुर्वजों ने पीढ़ी दर पीढ़ी ये बताया था कि ये दोनों देवियां बहने हैं. देश के इन दोनों ही मंदिरों पर बालक देवता आहुत होते हैं, पुजारी महाराज ने यह भी बताया कि लगभग सभी जगह देवियों की प्रतिमाओं का मुख पूर्व की ओर होता है. करौली वाली माता का मुख भी पूर्व दिशा में है, जबकि उनकी बहन पावई वाली माता का मुख पश्चिम की ओर है. जिस तरह करौली में मंदिर के नीचे कालीसिंध बहती है ठीक उसी तरह पावई मंदिर के नीचे भी बारह मास झरना चलता है. कहा जाता है कि माता कैला देवी के दर्शन के बाद अगर पावई वाली माता रानी के दर्शन न किए जाएं तो श्रद्धालुओं की यात्रा भी अधूरी रह जाती है.
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जिस भाव से देखो उस रूप में नजर आती हैं माता: पावई वाली माता को लेकर एक और बात भी प्रसिद्ध है कि श्रद्धालुओं को वह अलग-अलग रूपों में नजर आती हैं. माता का स्वरूप बेहद शांत और शीतल है, किसी को शीतला देवी नजर आती हैं तो कोई उन्हें पद्मादेवी कहता है. गांव के ही कुछ लोग उन्हें मां अन्नपूर्णा का रूप मानते हैं. इस मंदिर में जो भी सच्चे मन से मनोकामना लेकर आता है और अर्जी लगाता है तो माता रानी उसकी मनोकामना जरूर पूरा करती हैं.
प्रतिमा खंडित करने आये मुगलों को दी थी चुनौती: मंदिर के पुजारी किशन दास पुजारी ने माता की महिमा से जुड़ा एक और किस्सा बताया उनका कहना था कि पूर्वजों द्वारा बताया गया था कि जब देश में मुगल शासक मंदिरों मठों से हिंदू धर्म की मूर्तियां तोड़ रहे थे उस दौरान खुद माता रानी ने युद्ध लड़ा था उन्होंने बताया कि जब मुगल शासक भिंड के इस मंदिर में आए तो माता रानी खुद अपने मठ से उठकर पास बने कुएं में विराजमान हो गई थी और वहीं से उन्होंने मुगलों से कहा कि तुम मुझे खंडित नहीं कर पाओगे काफी कोशिशों के बाद मुगल शासक हार मान कर यहां से चले गए थे. आज भी मंदिर परिसर में मुगलों द्वारा खंडित किए गए प्राचीन मूर्तियों और पाषाण कला के अवशेष मौजूद हैं. माता आज भी उस कुएं में विराजमान हैं, हालांकि उनकी एक प्रतिमा की प्रतिष्ठा कुएं के पास ही कराई गई है, जहां भक्त मां के दर्शन लाभ लेते हैं.
नवरात्रि में डकैत चढ़ाते थे घंटा, मूवमेंट रोकने परिसर में स्थापित की गई थी पुलिस चौकी: चंबल क्षेत्र काफी समय तक डकैतों का गढ़ रहा है और सभी जानते हैं कि मां भगवती डकैतों की आराध्य रही हैं. वह माता के बड़े भक्त हुआ करते थे, पावई वाली माता के मंदिर में भी डकैतों का आवागमन रहा करता था. नवरात्रि में डकैत यहां घंटा चढ़ाने आते थे, लगातार डकैत मूवमेंट को देखते हुए मंदिर परिसर में ही एक पुलिस चौकी का निर्माण कराया गया था. जिससे कि उन्हें मंदिर में और इस क्षेत्र में आने से रोका जा सके.
जब भक्त नेकाट कर चढ़ा दी थी जीभ, मां ने दिखाया चमत्कार: माता की महिमा के साथ भक्तों का प्रेम भी अपार होता है. भक्त मां की सेवा में अपना जीवन न्योछावर कर देते हैं. ऐसा ही किस्सा गांव में रहने वाले श्यामलाल का है, सालों पहले अपनी किसी मनोकामना के लिए श्याम लाल ने माता के सामने अपनी जीभ काटकर चढ़ा दी थी. मंदिर के पुजारी किशन दास के अलावा गांव में रहने वाले बुजुर्ग कल्याण ने भी इस बात की पुष्टि की. उन्होंने बताया के उस्ताद पड़वा के दिन अचानक तेजी से चलते हुए श्यामलाल उनके घर के पास से गुजरे तो उससे पूछा कि कहां जा रहे हो उसने बताया कि वह माता के दर्शन के लिए जा रहा है. उसके कुछ ही देर बाद खबर आई कि श्यामलाल ने अपनी जीभ काटकर माता पर चढ़ा दी है. कल्याण दौड़ कर मंदिर में पहुंचे तो हर तरफ खून ही खून दिख रहा था और जीभ सामने पड़ी थी, लेकिन माता रानी का चमत्कार था कि नवमी के दिन श्यामलाल माता का जयकारा लगाते हुए खड़े हो गए थे. उनकी जीभ अपने आप आ गई थी और तब से आज तक में अच्छी तरह बात करते और स्वस्थ हैं
नवरात्र में लगता है विशाल मेला, भंडारों का होता है आयोजन: पावई में विराजी मां भगवती की महिमा के न जाने कितने ही और कितने इस क्षेत्र में प्रसिद्ध हैं और भक्तों मां के आस्था में लीन हैं. यही वजह है के प्रति सोमवार मंदिर में भक्तों की भीड़ दर्शन को पहुंचती है और हर नवरात्र में यहां विशाल मेला लगता है प्रसादी भंडारों का आयोजन होता है पूरे नवरात्र यहां का माहौल देखने लायक होता है.(Shardiya Navratri 2022) (26 October Shardiya Navratri start) (navratri special about pawai mata in bhind) (pawai mata in bhind)