भिंड। मध्यप्रदेश में डॉक्टरों की भारी कमी किसी से छिपी नही करोड़ों का बजट होने के बाद भी स्वास्थ्य केंद्रों में मरीजों को इलाज के लिए परेशान होते देखा जा सकता है. चम्बल अंचल भी इससे अछूता नही है, अस्पताल या रास्ते में प्रसव, घायलों के इलाज में लापरवाही की तस्वीरें समय समय पर देखने को मिल जाती हैं. कुछ ऐसी ही तस्वीरें अंचल के भिंड ज़िले में भी देखने को मिली जब अंतियनपुरा गांव के पास यूपी के रहने वाला एक बाइक सवार सड़क हादसे का शिकार हो गया, जिसमें उसका पैर फ्रेक्चर हो गया. प्राथमिक उपचार के लिए उसे नजदीकी रौन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर के जाया गया, लेकिन यहां कच्चा प्लास्टर लगाने की जगह डॉक्टर ने उसके पैर में कागज का गत्ता लगाकर पट्टी कर दी और भिंड ज़िला अस्पताल रैफर कर दिया. जिला अस्पताल पहुंचने पर डाक्टर्स ने उसका इलाज शुरू किया, तब पट्टी खोलकर कच्चा प्लास्टर लगाया गया.
इन तस्वीरों ने स्वास्थ्य विभाग के दावे और कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं कि, क्या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में प्लास्टर तक की व्यवस्था नहीं है. इस बात की तहकीकात करने के लिए हमने अलग अलग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) के प्रभारियों से चर्चा की तो उन्होंने जो जानकारी दी वह और भी गम्भीर हो गई.
मेहगाँव अस्पताल में नही है प्लास्टर की व्यवस्था: वहीं ज़िले के मेहगाँव जनपद के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मेहगाँव के प्रभारी डॉक्टर मनीष शर्मा ने बताया की मेहगाँव में भी हड्डी रोग विशेषज्ञ ना होने के चलते फ़्रैक्चर की दशा में प्लास्टर के लिए मरीजों और घायलों को ज़िला अस्पताल ही भेजना पड़ता है क्यूँकि हड्डी टूटने पर उसे अलाइन करने के लिए X-ray सुविधा ना होने से पता नही चलता, ऊपर से हड्डी रोग विशेषज्ञ की देखरेख में ही प्लास्टर किया जाता है जिनकी पदस्थापना मेहंगाव में भी नही है. ऐसे में फ़्रैक्चर के गम्भीर मरीजों को लकड़ी से सपोर्ट देकर इम्मोबलाईज करने के बाद ज़िला अस्पताल पहुँचाया जाता है जहां उन्हें पहले कच्चा और फिर पक्का प्लास्टर कराया जा सके. लेकिन विशेषज्ञों की कमी यहाँ भी देखने को मिल रही है.
रौन सीएचसी पर X-ray ना होने से इलाज अधूरा: जिस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर लापरवाही के आरोप लगे वहाँ के प्रभारी डॉक्टर हेमंत शिवहरे से भी हमने पूरे प्रकरण और CHC केंद्र के हालातों पर सवाल जवाब किए. सीएचसी प्रभारी डॉक्टर शिवहरे का कहना था कि घायल के प्लास्टर को जबरन मुद्दा बनाया गया है, चूँकि रौन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर X-ray मशीन ना होने से ये पता नही चलता की फ़्रैक्चर माइनर है या गम्भीर इस स्थिति में कच्चा प्लास्टर या स्लैब लगाना सम्भव नही है साथ ही हड्डी रोग विशेषज्ञ भी नही हैं. इस परिस्थिति में मरीज को रैफ़र करना एक मात्र विकल्प है चूँकि हड्डी बुरी तरह क्षतिग्रस्त होने पर शरीर के उस भाग को जहां हड्डी टूटी है सपोर्ट देना आवश्यक हो जाता है क्यूँकि हड्डी टूटने पर दर्द असहनीय होता है और अंदरूनी तौर पर हड्डी के और टूटने या आसपास की नसों को डेमेज होने से बचाने के लिए लकड़ी या अन्य चीज़ का सपोर्ट लेना पड़ता है. और कर्मचारी ने वही किया था उसने पहले घाव पर पट्टी की उसके बाद गत्ते से सपोर्ट दिया था. उन्होंने कहा कि कम से कम शासन से यहाँ पहले X-ray मशीन की व्यवस्था हो जाए तब रिस्क पर हम प्लास्टर कर सकते हैं.
ज़िला अस्पताल में भी रेडियोलोजिस्ट की कमी: आख़िर में हमने भिंड ज़िला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉक्टर अनिल गोयल से सम्पर्क किया उन्होंने भी इस बात को दोहराया कि तकनीकी रूप से पैर को इम्मोबलाइज करने के लिए गत्ते का इस्तेमाल किया जाना कहीं से ग़लत नही था. डॉक्टर अपनी सूझ बूझ से ही इस तरह के केस हैंडल करते हैं पैर की हड्डी टूटने पर अगर पैर लटक जाता है तो स्टेबल रॉड्स ना होने पर लकड़ी या किसी ठोस चीज का इस्तेमाल करना सुरक्षित रहता है अगर ऐसी किसी चीज़ की उपलब्धता ना हो सके तो आख़िर में मरीज के दोनो पैर भी पास में बांध दिए जाते हैं जिससे कि पैर हिले डुले नही. हालाँकि उन्होंने यह भी माना कि एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर हड्डी फ़्रैक्चर के लिए प्लास्टर की सुविधा होना ही चाहिए. ज़िला अस्पताल में हड्डी रोग विशेषज्ञ हैं, दो जगह X-ray मशीनें काम कर रहीं है लेकिन दुर्भाग्य से रेडीयोलोजिस्ट की कमी है. हालाँकि यहाँ OPD होने से प्लास्टर और जरूरत पड़ने पर ऑपरेशन की सुविधा भी उपलब्ध है.
गत्ते से फ़्रैक्चर को इम्मोबलाईज़ करना गलत नहीं: फ़्रैक्चर होने पर प्लास्टर लगाने का यह काम तो अस्पताल में मौजूद छोटे कर्मचारी ही करते हैं लेकिन ऐसा करने के लिए पहले हड्डी रोग विशेषज्ञ चिकित्सक द्वारा परीक्षण कर हड्डी को अलाइन किया जाना ज़रूरी होता है इसके बाद वही बताता है कि प्लास्टर किस तरह लगाना है. पहले सपोर्ट स्लैब और बैंडेज के साथ कच्चा प्लास्टर किया जाता है और 15 दिन बाद पक्का प्लास्टर होता है. बिना हड्डी रोग विशेषज्ञ के कर्मचारी सिर्फ़ फ्रैक्चर पोर्शन को लकड़ी या गत्ता जैसी चीजों से स्थिर करना होता है जिससे रैफर के दौरान रास्ते में टूटी हड्डी और नुक़सान ना करे और गंतव्य तक सुरक्षित रूप से मरीज पहुँच जाए. जहां चोट की स्थिति के अनुसार प्लास्टर या ऑपरेशन कर इलाज मुहैया कराया जाता है.
भिंड जिले में स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति: भिंड जिला वर्तमान में 20 लाख से अधिक आबादी का क्षेत्र है जहां जिले में 1 जिला अस्पताल, 1 सिविल अस्पताल (लहार), 6 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (अटेर, गोहद, अमायन, मेहगाँव, रौन और मौ), 21 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 190 उप-स्वास्थ्य केंद्र कार्यरत हैं. लेकिन ज़्यादातर अस्पतालों में इलाज के लिए पर्याप्त संसाधन और कर्मचारियों की कमी है. सामुदायिक केंद्रों में ब्लड एडवाँस डाययग्नोसिस लैब, X-ray मशीन उपलब्ध नही है. ऑपरेशन की सुविधा भी गिने चुने केंद्रों पर है. जबकि शासन के अनुसार ये मशीने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर होना चाहिए.
इन परिस्थितियों पर खड़े हो रहे सवाल:
- आख़िर एक लाख से ज़्यादा आबादी वाले क्षेत्र में बनाए गए सीएचसी पर संसाधनों की कमी क्यों?
- सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं पर करोड़ों खर्च होने के बाद भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर अब तक X-ray मशीने क्यों नही लगवाईं गयी?
- लगातार ज़िला अस्पताल में दवाओं से लेकर अस्पताल के कायाकल्प पर लाखों रुपय खर्च किया जाता है तो आज तक शासन को ज़रूरी मेडिकल संसाधनों की जरूरत से अवगत क्यों नही कराया गया?
- भिंड जिले में सीएमएचओ समेत तीन हड्डी रोग विशेषज्ञ ज़िला अस्पताल में ही पदस्थ है इनमें से किसी एक विशेषज्ञ डॉक्टर को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर पदस्थ क्यूँ नही किया जा रहा?
- जिले की 20 लाख की आबादी चंद विशेषज्ञ डॉक्टर के भरोसे, सरकार डॉक्टरों की भर्ती कर इन रिक्त पदों को क्यूँ नही भर रही?
- सबसे महत्वपूर्ण जिले में इस तरह की खोखली स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए ज़िम्मेदार कौन, स्थानीय स्वास्थ्य विभाग या मप्र सरकार ?
इनका क्या कहना:
"यहाँ हड्डियों विशेषज्ञ नहीं है माइनर फ़्रैक्चर जिनमें परेशानी ना हो डॉक्टर हमारे यहाँ अपने रिस्क पर प्लास्टर करते हैं लेकिन सामान्यतः गेम मरीज को ग्वालियर ट्रांसफ़र करना पड़ता है. गोहद और मौ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में फ़्रैक्चर पर प्लास्टर की सुविधा नही है."- डॉ आलोक शर्मा, बीएमओ गोहद
"हमारे यहाँ प्लास्टर नही होता फ़्रैक्चर की दशा में ज़रूरी हो तो डॉक्टर हड्डी को इम्मोबलाईज करने के लिए लकड़ी या अन्य ठोस चीज का इस्तेमाल कर सपोर्ट देते हैं जिससे टूटी हड्डी आपस की नसों को डेमेज ना कर दे और रैफ़र करने पर ज़िला अस्पताल तक पहुँचने में मरीज़ को ख़तरा ना रहे."- डॉ मनीष शर्मा, बीएमओ, मेहंगाव
"अस्पताल में X-ray की व्यवस्था नही जिसकी वजह से चाहकर भी फ़्रैक्चर पर प्लास्टर नही किया जा सकता, बिना X-ray में चोट को देखे प्लास्टर करना उचित नही है, इसलिए हमें ज़िला अस्पताल के लिए मरीज़ों को रैफ़र करना पड़ता है. ऊपर से प्लास्टर सिर्फ़ हड्डी रोग विशेषज्ञ की अनुमति और देखरेख में ही किया जाता है."- डॉ हेमंत शिवहरे, सीएचसी प्रभारी, रौन
"फ़्रैक्चर पर हड्डी को इम्मोबलाईज करने के लिए गत्ते का इस्तेमाल टेकनिकली ग़लत नही है लेकिन इसे एथिकली सही भी नही कहा जा सकता. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर प्लास्टर की सुविधा होना ही चाहिए ये इलाज के लिए अहम है."- डॉ अनिल गोयल, सिविल सर्जन, ज़िला अस्पताल भिंड