भिंड। मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव नतीजे जनता द्वारा लिये अहम फैसलों में से थे. प्रदेश में गठजोड़ के साथ कांग्रेस की सरकार बनी और बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई. ये पहला रेड फ्लैग था. बीजेपी जोड़तोड़ की राजनीति से सत्ता हासिल करने में सफल तो रही, लेकिन कहीं ना कहीं इन नतीजों ने बीजेपी की चिंता को बढ़ा रखा है. यही वजह है कि विधानसभा में जीत सुनिश्चित करने के लिए बीजेपी ने स्थानीय नेता या दावेदारों की बजाय दो राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के साथ ही 7 सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतार दिया है. जिनमें तीन केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं, लेकिन इन दिग्गजों की भी जान अपनी सीट ओर अटकी नजर आ रही है.
किस VVIP सीट पर क्या हालात:
बुधनी विधानसभा सीट पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह: बुधनी विधानसभा सीट मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सीट है. वे पिछले 18 साल से यहां से विधायक हैं और राजनीति के अजेय खिलाड़ी बने हुए हैं. कांग्रेस लाख कोशिशों के बावजूद यहां सेंध लगाने में नाकाम रही है. 2006, 2008, 2013, 2018 के बाद अब इस सीट पर शिवराज सिंह 6वीं बार चुनाव मैदान में हैं. यहां से कांग्रेस ने हनुमान फेम टीवी एक्टर विक्रम मस्ताल को सीएम के सामने उतारा है. उधर सपा ने मिर्ची बाबा को टिकट दिया, लेकिन क्षेत्र में पकड़ होने के चलते शिवराज काफी मजबूत नज़र आ रहे हैं. कांग्रेस के लिए यहां सेंध लगाना आसान नजर नहीं आ रहा है.
छिन्दवाड़ा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ: कमलनाथ छिंदवाड़ा से 9 बार सांसद रहे, 2018 में कांग्रेस से मुख्यमंत्री बने तो 2019 में विधानसभा से पहला उपचुनाव जीत कर प्रदेश की राजनीति में उतरे. हालांकि चुनाव में बीजेपी के युवा नेता बंटी साहू ने कड़ी टक्कर दी थी. अपेक्षाकृत जीत का अंतर काफी कम था. लगभग 24 हजार, इस बार भी दोनों प्रत्याशी अमने-सामने हैं, लेकिन कमलनाथ के लिए चुनाव कसावट भरा है. स्थानिय रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी का कमलनाथ को उनके ही घर में घेरने की प्लानिंग सफल रही, वे अपने चुनाव के लिए छिंदवाड़ा में कैद हैं.
कोई बड़ा स्टार प्रचारक छिंदवाड़ा में सभा करने नहीं पहुंचा. कमलनाथ भी दिन में सिर्फ दो सभाएं करने ही प्रदेश के इन इलाकों में जा पाये. ज्यादातर समय उन्हें छिन्दवाड़ा में ही डटना पड़ा. अब उनके गढ़ में बीजेपी पिछली बार से मजबूत नजर आ रही है. बीजेपी प्रत्याशी जीत भले ना पाए, लेकिन जीत का मार्जिन काफी कम करने की स्थिति में जरूर है. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने का दावा करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की इस बार छिंदवाड़ा सीट जान अटकी नजर आ रही है.
वायरल वीडियो और जनता का विरोध नरेंद्र सिंह के लिए मुसीबत: मुरेना की दिमनी विधानसभा सीट से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को बीजेपी ने चुनाव में उतारा है, उम्मीद थी कि वे आसानी से चुनाव जीत लेंगे क्योंकि वे इस क्षेत्र से लोकसभा सांसद हैं, उनके सामने कांग्रेस ने विधायक रवींद्र सिंह भिड़ोसा को टिकट दिया है. दोनों ही प्रत्याशियों के लिए यह चुनाव जीतना कांटे की टक्कर है. जहां केंद्रीय मंत्री के आगे कांग्रेस प्रत्याशी काफी कमजोर हैं, लेकिन दिमनी क्षेत्र में जनता नरेंद्र सिंह से नाराज दिखायी दे रही है.
बीजेपी की ओर से प्रत्याशी घोषित होने के काफी समय तक नरेंद्र जानता के बीच तक नहीं पहुंचे थे. उन्होंने नामांकन से पहले हुई सीएम के कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान पहली सभा की थी. यहां जनता इस बात से नाराज है कि सांसद होने के बावजूद उन्होंने इस क्षेत्र में विकास पर ध्यान नहीं दिया. उनके पैतृक गांव उरेठी में भी जनता में नाराजगी है. वहीं हाल ही में उनके बेटे रामू तोमर के करोड़ों के लेनदेन को लेकर बातचीत के एक के बाद एक तीन वीडियो वायरल हुए. जिन्होंने राजनीतिक छवि पर असर डाला है. इसका असर भी चुनाव के नतीजों पर देखने को मिल सकता है. ऐसे में इस सीट पर अब केंद्रीय मंत्री सांसे अटकी हुई है.
अपनों का विरोध झेल रहे केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल: हर हाल में जीत की उम्मीद के साथ केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को बीजेपी ने नरसिंहपुर विधानसभा से चुनाव लड़ाया है. यहां से कांग्रेस ने लाखन सिंह को उम्मीदवार बनाया है. नरसिंहपुर विधानसभा सीट के वर्तमान समीकरण बीजेपी के पक्ष में 70 प्रतिशत और कांग्रेस के लिए 30 प्रतिशत माने जा रहे हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में भाजपा समर्थित जनसमुदाय अधिक है. लेकिन इस क्षेत्र में बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ताओं में अंदरूनी विरोध देखा जा रहा है.
नाम उजागर ना करने की शर्त पर एक बीजेपी पदाधिकारी का कहना है अगर पार्टी बड़े क्षत्रों को विधानसभा जैसे चुनाव में उतारेगी तो नये दावेदारों को मौका कैसे मिलेगा. हालांकि उनका खुद का समर्थित कार्यकर्ता क्षेत्र में सक्रिय है. ये कलह कांग्रेस को फायदा दिला सकती है. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी लाखन सिंह लगातार क्षेत्र में पैठ बना रहे हैं. अंतिम समय तक अपना समर्थन 50 प्रतिशत तक ला सकते हैं. ऐसे में इस बार नरसिंहपुर का चुनाव भी कांटे की टक्कर का होने वाला है.
निवास को जीतने बीजेपी ने फ़ग्गन सिंह कुलसते को उतारा: मण्डला जिले की निवास सीट पर इस बार चुनाव कांटे की टक्कर का है. कांग्रेस के प्रभाव वाली इस सीट पर जहां कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ आदिवासी नेता चैन सिंह वरकड़े को टिकट दिया है, तो वहीं बीजेपी इस सीट पर हार हाल में कब्जा करने की उम्मीद में केंद्रीय राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलसते को टिकट दिया. वैसे 2018 के पहले तीन बार से बीजेपी का कब्जा था, लेकिन पीछे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट को हथिया लिया फग्गन सिंह छोटे भाई जो इस सीट पर बीजेपी के प्रत्याशी थे 30 हज़ार वोटों से शिकस्त दी थी.
हालांकि केंद्रीय मंत्री कुलस्ते इस सीट पर मजबूत हैं, क्योंकि अपने केंद्रीय मंत्री रहते उस क्षेत्र के उद्यौगिक विकास पर काफी ध्यान दिया. जिसका फायदा उन्हें चुनाव में मिलने की पूरी उम्मीद है. वे इससे पहले 1990 में विधायक बने थे और 2023 में दूसरी बार विधानसभा लड़ रहे हैं.
गाडरवाड़ा विधानसभा में सांसद उदय प्रताप सिंह के लिए कांटे की टक्कर: गाडरवाड़ा विधानसभा सीट पर बीजेपी ने भले ही सांसद उदय प्रताप सिंह को मैदान में उतार दिया हो, लेकिन इस विधानसभा सीट पर चुनाव में कांटे की टक्कर है, क्योंकि यहां कांग्रेस ने सुनीता पटेल को टिकट दिया है. वहीं पूर्व विधायक गोविंद पटेल के बेटे गौतम सिंह पटेल बीजेपी छोड़ कांग्रेस में गये थे, लेकिन टिकट नहीं मिला था.
उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी का समर्थन कर दिया. जिसकी वजह से कांग्रेस मजबूत स्थिति में है. वहीं सांसद उदय प्रताप सिंह की बात करें तो इस चुनाव में पिछड़ सकते हैं. एनटीपीसी के छोटे से पार्टनर ठेकेदार थे, स्थानीय नेताओं से तालकुकात के चलते टिकट मिला तो लोकसभा में वे मोदी लहर में जीते, लेकिन विधानसभा में उन्हें जीत के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. आज किसी बड़े नेता का साथ नहीं खुद की दम पर चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन स्थानीय जनता भी बदलाव की उम्मीद में है ऐसे में टक्कर कांटे की होगी. जीत हार का अंतर भी 5-10 हज़ार वोटों से होने की उम्मीद है.
सीधी से सांसद रीति पाठक, पेशाब कांड का दिख सकता है असर: मध्यप्रदेश की सीधी विधानसभा में चुनाव इस बार सीधा नहीं है. विधानसभा चुनाव में इस बार सिटिंग विधायक की बजाय बीजेपी ने सांसद रीति पाठक को प्रत्याशी बनाया है. वहीं कांग्रेस ने ज्ञान सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है, लेकिन बीजेपी का मुकाबला अपने ही निष्काशित विधायक केदारनाथ शुक्ला से है. जो निर्दलीय चुनाव में उतरे हैं और बीजेपी के लिये मुकाबला त्रिकोणीय कर दिया है. हालांकि अब यह चुनाव विकास नहीं बल्कि जनता के बीच वर्चस्व का है.
ऊपर से पहले ही सीधी में हुए पेशाब कांड ने इस क्षेत्र में बीजेपी की हवा खराब कर रखी है. मामला भले ही निपट गया हो, लेकिन यह सीट जीतना बीजेपी के लिये किसी चुनौती से कम नहीं है. इस वजह से ये ज़िम्मेदारी रीति पाठक को दी गई है. लेकिन चुनाव के आखिर में केदारशुक्ला ने बीजेपी प्रत्याशी को सीधी कांड का मास्टर माइंड बता कर मुसीबत और बढ़ा दी है. ऐसे में अंत समय में सांसद की भी सांसे भी अटकी हुई है.
जबलपुर पश्चिम से उतरे राकेश सिंह के लिए आसान नहीं चुनाव: जबलपुर पश्चिम सीट पर कांग्रेस के तरुण भनौट दो बार लगातार चुनाव जीतने के बाद खुद को मजबूत उम्मीदवार के रूप में स्थापित कर चुके हैं. ऐसे में बीजेपी के पास इस सीट पर कोई बेहतर विकल्प नहीं होने से सांसद राकेश सिंह को मैदान में प्रत्याशी बनाकर उतारा गया है. 2004 में पहली बार राकेश सिंह जबलपुर लोकसभा से जीत कर सांसद बने. इसके बाद 2009, 2014 और 2018 में भी सांसद चुने गये हैं, लेकिन विधानसभा का चुनाव वे पहली बार लड़ रहे हैं.
हालांकि यह चुनाव जीतना उनके लिए भी आसान नहीं होगा क्योंकि 2018 के चुनाव के दौरान वे बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष थे और पार्टी को उस चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था. शिवराज सिंह चौहान के हाथ से सत्ता फिसल गई थी. ये फ़ैक्टर अब भी उनपर दाग लगाये हुए है ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी के बीच यहां भी कांटे की टक्कर है. जीत हार मतदाता ही तय करेगा.
लहार में ढहने की कगार पर नेता प्रतिपक्ष का किला: मध्य प्रदेश की लहर सीट कांग्रेस का अभेद किला माना जाता है. यहां से नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह पिछले 33 वर्षों से विधायक हैं. 1990 में जनता दल और इसके बाद 1993 में कांग्रेस से जीते डॉ गोविंद सिंह अब तक 7 बार से लगातार विधायक हैं. इतने वर्षों में बीजेपी यहां चुनाव नहीं जीत सकी, लेकिन इस बार पूरी रणनीति के तहत नेता प्रतिपक्ष को भारतीय जनता पार्टी ने घेर लिया है. यहां से उनके खिलाफ अम्बरीश शर्मा को टिकट दिया है.
पहले ही डॉ गोविंद सिंह से क्षेत्र का ब्राह्मण वोटर नाराज है. वहीं उनका वैश्य और राजपूत समाज भी उनकी कार्यप्रणाली से काफी समय से नाराज है. बीजेपी के पूर्व विधायक रसाल सिंह भी बसपा से मैदान में और भारी वोटबैंक अपने साथ रखते हैं. ऐसे में इस बार मामला त्रिकोणीय है. साथ-साथ ही दो हफ्तों पहले चुनाव में रुपयों के लेनदेन और धमकी का उनका एक ऑडियो भी वायरल हुआ है. जिसने उनकी छवि पर असर डाला है. स्थानीय नेताओं और मतदाताओं की माने इस बार वे तीसरे नंबर पर भी आ सकते हैं. ऐसे में इस चुनाव ने नेता प्रतिपक्ष की नींद उड़ा रखी है.
(यह आर्टिकल स्थानीय रूप से चुनावी माहौल के अनुसार किया गया विश्लेषण है. ईटीवी भारत इसमें किसी भी तरह की भिन्नता या बदलाव के लिए जिम्मेदार नहीं है.) चुनाव से संबंधित छोटी बड़ी खबरों के लिए जुड़े रही ETV Bharat के साथ.