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MP उपचुनावः मेहगांव विधानसभा सीट का सियासी समीकरण, यहां नहीं रहा किसी एक दल का दबदबा

मध्य प्रदेश में उपचुनावों की तैयारियां शुरु हो गई हैं. भिंड जिले की मेहगांव विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव होना है. ईटीवी भारत 24 का चुनाव चक्र के जरिए आपकों सभी 24 विधानसभा सीटों की जानकारी देगा. जिसमें आज हम आपको भिंड जिले की मेहगांव की विधानसभा सीट के सियासी समीकरणों की जानकारी दे रहे हैं.

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मेहगांव उपचुनाव
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Published : Jun 24, 2020, 12:08 AM IST

भिंड। मध्य प्रदेश की 24 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए बीजेपी और कांग्रेस ने कमर कस ली है. भिंड जिले की मेहगांव विधानसभा सीट पर भी पूर्व विधायक ओपीएस भदौरिया के इस्तीफे से उपचुनाव होंगा. चंबल संभाग की प्रमुख सीटों में शामिल मेहगांव विधानसभा सीट पर यूं तो सियासी जंग बीजेपी और कांग्रेस में ही होती रही है. लेकिन यहां दूसरे दलों ने भी प्रभाव दिखाया है. जिससे चंबल की सियासत में अहम मानी जाने वाली मेहगांव विधानसभा सीट पर सबकी नजरें टिकी हैं.

मेहगांव विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव का सियासी समीकरण

सीट का समीकरण

मेहगांव विधानसभा सीट का सियासी इतिहास दिलचस्प रहा है, यहां की जनता किसी एक राजनीतिक दल पर भरोसा नहीं करती. मेहगांव में बीजेपी-कांग्रेस और बसपा से लेकर निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी जीत दर्ज की है. यानि किसी एक राजनीतिक दल का मेहगांव विधानसभा सीट पर कभी दबदबा नहीं रहा. मेहगांव विधानसभा सीट पर अब तक कुल 10 विधानसभा चुनाव हुए हैं. जिनमें तीन-तीन बार बीजेपी और कांग्रेस को जीत मिली है, तो तीन बार निर्दलीय प्रत्याशियों ने इस सीट पर अपना कब्जा जमाया है. जबकि एक बार बसपा ने भी यहां से जीत दर्ज की है.

मेहगांव विधानसभा सीट
मेहगांव विधानसभा सीट

जातिगत समीकरण

खास बात यह है कि मेहगांव में जातिगत समीकरण सबसे अहम भूमिका निभाते हैं, यहां ठाकुर और ब्राह्राण मतदाता निर्णायक भूमिका में होते हैं, तो ओबीसी और एससी वर्ग के मतदाताओं का भी अच्छा खासा दखल रहता है. मेहगांव विधानसभा में करीब 56 हजार ब्राह्मण वोट है, तो क्षत्रिय 46 हजार वोटों के साथ दूसरा सबसे प्रभावी वोटर है. इन दोनों के अलावा ओबीसी और एससी वोटर भी प्रभावी भूमिका में नजर आते है. जिनके किसी भी पार्टी को एकमुश्त वोट करने पर मामला पलट जाता है. 2018 के विधानसभा चुनाव में मेहगांव विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी ओपीएस भदोरिया ने बीजेपी के राकेश शुक्ला को हराकर जीत दर्ज की थी. ओपीएस भदोरिया को 61 हजार 500 वोट मिले थे. जबकि बीजेपी के राकेश शुक्ला को 35 हजार 746 वोट मिले थे. जीत का अंतर 25 हजार 814 रहा था.

ओपीएस को फिर जीत का भरोसा

पार्टी की नीतियों और उपेक्षाओं से तंग आकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए पूर्व विधायक ओपीएस भदौरिया उपचुनाव में बीजेपी की तरफ से मैदान में होंगे. वे अपनी जीत के प्रति एक बार फिर आश्वसत नजर आ रहे हैं. ओपीएस भदौरिया का कहना है कि कांग्रेस के साथ 30 साल राजनीति करने के बाद भी उनके विधायक बनने के बाद क्षेत्र के लिए काम नहीं कर पा रहे थे. इसलिए वे बीजेपी में गए हैं. ताकि क्षेत्र के विकास के लिए काम किया जा सके. भदौरिया ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि क्षेत्र की जनता उन्हें फिर मौका देगी.

चौधरी राकेश सिंह पर नहीं बन पा रही सहमति

वहीं कांग्रेस में अब तक उपचुनाव को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है. आलाकमान सर्वे के नाम पर टिकट फाइनल कर रहे हैं लेकिन जनता के बीच मौजूद रहने वाले चेहरे टिकट पाने की जुगत में लगे हैं. यही कारण है कि कांग्रेस में टिकट के लिए होड़ अब अंतरकलह में बदलती जा रही है. पूर्व मंत्री चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी भी टिकट की दावेदारी ठोक रहे हैं. लेकिन 6 साल पहले भरे सदन में जिस तरह चतुर्वेदी ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का हाथ थामा था और बाद में सिंधिया के कहने पर 2018 में कांग्रेस में वापसी कि आज वह उनके लिए रोड़ा बन गई है.

अन्य नेता भी हैं कांग्रेस में दावेदार

कांग्रेस के जिला अध्यक्ष जयश्री राम बघेल बघेल समाज के वोटों का हवाला देते हुए टिकट की मांग कर रहे हैं. तो एक बड़ा तबका अटेर के पूर्व विधायक हेमंत कटारे को भी चुनाव में लड़ते देखना चाहता है. लेकिन हेमंत चुनाव तो लड़ना चाह रहे हैं पर अपनी गृह सीट अटेर पर किसी की छांव नहीं चाहते. ऐसे में अब तक कांग्रेस के पास उपचुनाव में उतारने के लिए कोई प्रबल दावेदार नहीं है और यह एक बड़ा कारण है कि इस अंतरकलह में कांग्रेस मेहगांव में अपनी लुटिया डुबो सकती है.

पाला बदलने वाले विधायक को मिलती है चुनौती

खास बात यह है मेहगांव विधानसभा सीट पर पाला बदलने वाले नेता के लिए परेशानिया बढ़ जाती है. राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार अनिल शर्मा कहते हैं कि मेहगांव विधानसभा क्षेत्र की जनता पाला बदलने वाले को कितना पसंद करती है इसका उदाहरण स्व राय सिंह भदौरिया बाबा थे. जिनके जनसंघ छोड़कर कांग्रेस में जाने के बाद उन्हें फिर क्षेत्र की जनता ने मौका नहीं दिया.

यानि इस बार मेहगांव में राजनीतिक दलों की तैयारियां पूरी है, बस इंतजार है तो उपचुनाव की रणभेरी बजने का. जहां बीजेपी शिवराज-सिंधिया की जोड़ी के सहारे मेहगांव में फिर परचम लहराने की कोशिश करेगी. तो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह भी सत्ता वापसी के लिए मेहगांव में पूरा जोर लगाएगे. लेकिन मेहगांव की जनता किसे उपचुनाव में जीत का ताज पहनाएगी यह तो उपचुनाव के नतीजों के बाद ही पता चलेगा.

भिंड। मध्य प्रदेश की 24 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए बीजेपी और कांग्रेस ने कमर कस ली है. भिंड जिले की मेहगांव विधानसभा सीट पर भी पूर्व विधायक ओपीएस भदौरिया के इस्तीफे से उपचुनाव होंगा. चंबल संभाग की प्रमुख सीटों में शामिल मेहगांव विधानसभा सीट पर यूं तो सियासी जंग बीजेपी और कांग्रेस में ही होती रही है. लेकिन यहां दूसरे दलों ने भी प्रभाव दिखाया है. जिससे चंबल की सियासत में अहम मानी जाने वाली मेहगांव विधानसभा सीट पर सबकी नजरें टिकी हैं.

मेहगांव विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव का सियासी समीकरण

सीट का समीकरण

मेहगांव विधानसभा सीट का सियासी इतिहास दिलचस्प रहा है, यहां की जनता किसी एक राजनीतिक दल पर भरोसा नहीं करती. मेहगांव में बीजेपी-कांग्रेस और बसपा से लेकर निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी जीत दर्ज की है. यानि किसी एक राजनीतिक दल का मेहगांव विधानसभा सीट पर कभी दबदबा नहीं रहा. मेहगांव विधानसभा सीट पर अब तक कुल 10 विधानसभा चुनाव हुए हैं. जिनमें तीन-तीन बार बीजेपी और कांग्रेस को जीत मिली है, तो तीन बार निर्दलीय प्रत्याशियों ने इस सीट पर अपना कब्जा जमाया है. जबकि एक बार बसपा ने भी यहां से जीत दर्ज की है.

मेहगांव विधानसभा सीट
मेहगांव विधानसभा सीट

जातिगत समीकरण

खास बात यह है कि मेहगांव में जातिगत समीकरण सबसे अहम भूमिका निभाते हैं, यहां ठाकुर और ब्राह्राण मतदाता निर्णायक भूमिका में होते हैं, तो ओबीसी और एससी वर्ग के मतदाताओं का भी अच्छा खासा दखल रहता है. मेहगांव विधानसभा में करीब 56 हजार ब्राह्मण वोट है, तो क्षत्रिय 46 हजार वोटों के साथ दूसरा सबसे प्रभावी वोटर है. इन दोनों के अलावा ओबीसी और एससी वोटर भी प्रभावी भूमिका में नजर आते है. जिनके किसी भी पार्टी को एकमुश्त वोट करने पर मामला पलट जाता है. 2018 के विधानसभा चुनाव में मेहगांव विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी ओपीएस भदोरिया ने बीजेपी के राकेश शुक्ला को हराकर जीत दर्ज की थी. ओपीएस भदोरिया को 61 हजार 500 वोट मिले थे. जबकि बीजेपी के राकेश शुक्ला को 35 हजार 746 वोट मिले थे. जीत का अंतर 25 हजार 814 रहा था.

ओपीएस को फिर जीत का भरोसा

पार्टी की नीतियों और उपेक्षाओं से तंग आकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए पूर्व विधायक ओपीएस भदौरिया उपचुनाव में बीजेपी की तरफ से मैदान में होंगे. वे अपनी जीत के प्रति एक बार फिर आश्वसत नजर आ रहे हैं. ओपीएस भदौरिया का कहना है कि कांग्रेस के साथ 30 साल राजनीति करने के बाद भी उनके विधायक बनने के बाद क्षेत्र के लिए काम नहीं कर पा रहे थे. इसलिए वे बीजेपी में गए हैं. ताकि क्षेत्र के विकास के लिए काम किया जा सके. भदौरिया ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि क्षेत्र की जनता उन्हें फिर मौका देगी.

चौधरी राकेश सिंह पर नहीं बन पा रही सहमति

वहीं कांग्रेस में अब तक उपचुनाव को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है. आलाकमान सर्वे के नाम पर टिकट फाइनल कर रहे हैं लेकिन जनता के बीच मौजूद रहने वाले चेहरे टिकट पाने की जुगत में लगे हैं. यही कारण है कि कांग्रेस में टिकट के लिए होड़ अब अंतरकलह में बदलती जा रही है. पूर्व मंत्री चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी भी टिकट की दावेदारी ठोक रहे हैं. लेकिन 6 साल पहले भरे सदन में जिस तरह चतुर्वेदी ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का हाथ थामा था और बाद में सिंधिया के कहने पर 2018 में कांग्रेस में वापसी कि आज वह उनके लिए रोड़ा बन गई है.

अन्य नेता भी हैं कांग्रेस में दावेदार

कांग्रेस के जिला अध्यक्ष जयश्री राम बघेल बघेल समाज के वोटों का हवाला देते हुए टिकट की मांग कर रहे हैं. तो एक बड़ा तबका अटेर के पूर्व विधायक हेमंत कटारे को भी चुनाव में लड़ते देखना चाहता है. लेकिन हेमंत चुनाव तो लड़ना चाह रहे हैं पर अपनी गृह सीट अटेर पर किसी की छांव नहीं चाहते. ऐसे में अब तक कांग्रेस के पास उपचुनाव में उतारने के लिए कोई प्रबल दावेदार नहीं है और यह एक बड़ा कारण है कि इस अंतरकलह में कांग्रेस मेहगांव में अपनी लुटिया डुबो सकती है.

पाला बदलने वाले विधायक को मिलती है चुनौती

खास बात यह है मेहगांव विधानसभा सीट पर पाला बदलने वाले नेता के लिए परेशानिया बढ़ जाती है. राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार अनिल शर्मा कहते हैं कि मेहगांव विधानसभा क्षेत्र की जनता पाला बदलने वाले को कितना पसंद करती है इसका उदाहरण स्व राय सिंह भदौरिया बाबा थे. जिनके जनसंघ छोड़कर कांग्रेस में जाने के बाद उन्हें फिर क्षेत्र की जनता ने मौका नहीं दिया.

यानि इस बार मेहगांव में राजनीतिक दलों की तैयारियां पूरी है, बस इंतजार है तो उपचुनाव की रणभेरी बजने का. जहां बीजेपी शिवराज-सिंधिया की जोड़ी के सहारे मेहगांव में फिर परचम लहराने की कोशिश करेगी. तो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह भी सत्ता वापसी के लिए मेहगांव में पूरा जोर लगाएगे. लेकिन मेहगांव की जनता किसे उपचुनाव में जीत का ताज पहनाएगी यह तो उपचुनाव के नतीजों के बाद ही पता चलेगा.

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