भिंड। कुपोषण मुक्त भारत के लिए लगातार देशभर के सभी राज्यों में अभियान चलाकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है. लेकिन देश के दिल यानी मध्य प्रदेश के भिंड जिले में इस अभियान का कुछ खास असर नहीं नजर आ रहा. कुपोषण से लड़ने के लिए मध्यप्रदेश शासन आंगनवाड़ी केंद्रों के जरिए पोषण आहार का वितरण करता है, साथ ही समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम चलाकर लोगों को सरकार की योजनाओं की जानकारी दी जाती है.
जब ईटीवी भारत ने भिंड जिला अस्पताल स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र पहुंचकर लोगों से बात की तो यहां कई माताओं को महिला एवं बाल विकास की ओर से चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी नहीं थी. कुछ महिलाओं का कहना था कि उनके घर पर भी ठीक से देखभाल हुई थी और उन्हें जानकारी दी गई थी उसी के मुताबिक उन्होंने दवाइयां भी समय पर ली इसके बावजूद उनके बच्चे कुपोषित पैदा हुए.
बच्चों में बढ़ते कुपोषण को लेकर भिंड एनआरसी में पदस्थ डाइटिशियन वर्षा दुबे ने बताया कि आमतौर पर एनआरसी में बच्चों की भर्ती करने के लिए अलग-अलग क्राइटेरिया होते हैं. उन्होंने बताया कि अमूमन गर्मी के समय एनआरसी में बच्चों की संख्या बढ़ जाती है जबकि सर्दियों के समय बच्चे कम भर्ती होते हैं.
अधिकारी कर रहे सकारात्मक परिणामों का दावा
महिला बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी अब्दुल गफ्फार ने बताया कि कुपोषण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रम में पोषण माह के अंतर्गत जिले में करीब 1 लाख 80 हजार की सरकारी राशि खर्च की गई, इस राशि के जरिए कुपोषण और गंभीर कुपोषण के खिलाफ जन जागरूकता कार्यक्रम चलाए गए, जिनके सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं.
कलेक्टर ने खोली दावे की पोल
लेकिन महिला बाल विकास विभाग के इन सकारात्मक परिणामों के दावों की पोल खुद कलेक्टर की कार्रवाई ने खोल दी, जहां हाल ही में पोषण पुनर्वास केंद्र में बच्चों की संख्या ना के बराबर होने और अधिकारियों की अनदेखी के चलते भिंड कलेक्टर ने महिला बाल विकास विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के वेतन पर रोक लगा दी है.
भले ही विभागीय अधिकारी लगातार लोगों को कुपोषण के प्रति जागरूक करने का दावा करें लेकिन जिले में कुपोषण को लेकर मौजूदा हालात इन दावों की पोल खोल रहे हैं. खासकर तब जबकि अधिकारियों की अनदेखी के खिलाफ भिंड कलेक्टर को ही कार्रवाई करनी पड़ रही है.