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ऐसे कैसे होगी कुपोषण के खिलाफ लड़ाई, जब जिम्मेदार ही कर रहे लापरवाही

भिंड जिले में कुपोषण लगातार बढ़ता जा रहा है. इसके पीछे लोगों में जागरूकता की कमी एक प्रमुख कारण है. जिले में महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी अभियान चलाकर जागरूकता फैलाने का दावा करते हैं, लेकिन जिले में कुपोषण की स्थिति इसकी पोल खोल रही है.

कुपोषण
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Published : Nov 25, 2019, 11:25 PM IST

भिंड। कुपोषण मुक्त भारत के लिए लगातार देशभर के सभी राज्यों में अभियान चलाकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है. लेकिन देश के दिल यानी मध्य प्रदेश के भिंड जिले में इस अभियान का कुछ खास असर नहीं नजर आ रहा. कुपोषण से लड़ने के लिए मध्यप्रदेश शासन आंगनवाड़ी केंद्रों के जरिए पोषण आहार का वितरण करता है, साथ ही समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम चलाकर लोगों को सरकार की योजनाओं की जानकारी दी जाती है.

भिंड जिले में लगातार बढ़ता कुपोषण

जब ईटीवी भारत ने भिंड जिला अस्पताल स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र पहुंचकर लोगों से बात की तो यहां कई माताओं को महिला एवं बाल विकास की ओर से चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी नहीं थी. कुछ महिलाओं का कहना था कि उनके घर पर भी ठीक से देखभाल हुई थी और उन्हें जानकारी दी गई थी उसी के मुताबिक उन्होंने दवाइयां भी समय पर ली इसके बावजूद उनके बच्चे कुपोषित पैदा हुए.

बच्चों में बढ़ते कुपोषण को लेकर भिंड एनआरसी में पदस्थ डाइटिशियन वर्षा दुबे ने बताया कि आमतौर पर एनआरसी में बच्चों की भर्ती करने के लिए अलग-अलग क्राइटेरिया होते हैं. उन्होंने बताया कि अमूमन गर्मी के समय एनआरसी में बच्चों की संख्या बढ़ जाती है जबकि सर्दियों के समय बच्चे कम भर्ती होते हैं.

अधिकारी कर रहे सकारात्मक परिणामों का दावा

महिला बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी अब्दुल गफ्फार ने बताया कि कुपोषण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रम में पोषण माह के अंतर्गत जिले में करीब 1 लाख 80 हजार की सरकारी राशि खर्च की गई, इस राशि के जरिए कुपोषण और गंभीर कुपोषण के खिलाफ जन जागरूकता कार्यक्रम चलाए गए, जिनके सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं.

कलेक्टर ने खोली दावे की पोल

लेकिन महिला बाल विकास विभाग के इन सकारात्मक परिणामों के दावों की पोल खुद कलेक्टर की कार्रवाई ने खोल दी, जहां हाल ही में पोषण पुनर्वास केंद्र में बच्चों की संख्या ना के बराबर होने और अधिकारियों की अनदेखी के चलते भिंड कलेक्टर ने महिला बाल विकास विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के वेतन पर रोक लगा दी है.

भले ही विभागीय अधिकारी लगातार लोगों को कुपोषण के प्रति जागरूक करने का दावा करें लेकिन जिले में कुपोषण को लेकर मौजूदा हालात इन दावों की पोल खोल रहे हैं. खासकर तब जबकि अधिकारियों की अनदेखी के खिलाफ भिंड कलेक्टर को ही कार्रवाई करनी पड़ रही है.

भिंड। कुपोषण मुक्त भारत के लिए लगातार देशभर के सभी राज्यों में अभियान चलाकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है. लेकिन देश के दिल यानी मध्य प्रदेश के भिंड जिले में इस अभियान का कुछ खास असर नहीं नजर आ रहा. कुपोषण से लड़ने के लिए मध्यप्रदेश शासन आंगनवाड़ी केंद्रों के जरिए पोषण आहार का वितरण करता है, साथ ही समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम चलाकर लोगों को सरकार की योजनाओं की जानकारी दी जाती है.

भिंड जिले में लगातार बढ़ता कुपोषण

जब ईटीवी भारत ने भिंड जिला अस्पताल स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र पहुंचकर लोगों से बात की तो यहां कई माताओं को महिला एवं बाल विकास की ओर से चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी नहीं थी. कुछ महिलाओं का कहना था कि उनके घर पर भी ठीक से देखभाल हुई थी और उन्हें जानकारी दी गई थी उसी के मुताबिक उन्होंने दवाइयां भी समय पर ली इसके बावजूद उनके बच्चे कुपोषित पैदा हुए.

बच्चों में बढ़ते कुपोषण को लेकर भिंड एनआरसी में पदस्थ डाइटिशियन वर्षा दुबे ने बताया कि आमतौर पर एनआरसी में बच्चों की भर्ती करने के लिए अलग-अलग क्राइटेरिया होते हैं. उन्होंने बताया कि अमूमन गर्मी के समय एनआरसी में बच्चों की संख्या बढ़ जाती है जबकि सर्दियों के समय बच्चे कम भर्ती होते हैं.

अधिकारी कर रहे सकारात्मक परिणामों का दावा

महिला बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी अब्दुल गफ्फार ने बताया कि कुपोषण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रम में पोषण माह के अंतर्गत जिले में करीब 1 लाख 80 हजार की सरकारी राशि खर्च की गई, इस राशि के जरिए कुपोषण और गंभीर कुपोषण के खिलाफ जन जागरूकता कार्यक्रम चलाए गए, जिनके सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं.

कलेक्टर ने खोली दावे की पोल

लेकिन महिला बाल विकास विभाग के इन सकारात्मक परिणामों के दावों की पोल खुद कलेक्टर की कार्रवाई ने खोल दी, जहां हाल ही में पोषण पुनर्वास केंद्र में बच्चों की संख्या ना के बराबर होने और अधिकारियों की अनदेखी के चलते भिंड कलेक्टर ने महिला बाल विकास विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के वेतन पर रोक लगा दी है.

भले ही विभागीय अधिकारी लगातार लोगों को कुपोषण के प्रति जागरूक करने का दावा करें लेकिन जिले में कुपोषण को लेकर मौजूदा हालात इन दावों की पोल खोल रहे हैं. खासकर तब जबकि अधिकारियों की अनदेखी के खिलाफ भिंड कलेक्टर को ही कार्रवाई करनी पड़ रही है.

Intro:कुपोषण मुक्त भारत के लिए लगातार देशभर के सभी राज्यों में अभियान चलाकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है लेकिन देश के दिन यानी मध्य प्रदेश में इस अभियान का कुछ खास असर नहीं नजर आ रहा क्योंकि मध्य प्रदेश के भिंड जिले में बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं हालात यह हैं कि कुपोषण का शिकार बच्चों को इलाज के लिए पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया जाना होता है लेकिन यह केंद्र भी ना के बराबर भरवा रहे हैं इस साल जनवरी से अब तक भिंड जिले में करीब 1000 बच्चों को कुपोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया गया है जबकि आंकड़ों के मुताबिक करीब 1500 बच्चों को कुपोषण से सुपोषण की ओर ले जाया जा सकता था



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देखा जाए तो जन्म से ही बच्चे किसी ना किसी संक्रमण के चलते कुपोषित हो जाते हैं लेकिन यह समस्या भी गर्भवती महिलाओं की देखभाल ठीक से ना हो पाना या सही पोषण आहार न मिलने के चलते होता है इस बात पर खास ध्यान देते हुए मध्यप्रदेश शासन आंगनवाड़ी केंद्रों के जरिए पोषण आहार का वितरण करती है साथ ही समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम चलाकर लोगों को सरकार की योजनाओं की जानकारी देती है लेकिन भिंड में इन अभियानों का कुछ खास असर दिखाई नहीं दे रहा है भिंड जिला अस्पताल स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र यानी एनआरसी मैं पहुंचने पर ईटीवी भारत ने पाया कि कई माताओं को महिला बाल विकास की ओर से चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी नहीं थी ना ही उन्हें किस तरह बच्चों की देखभाल करना है या गर्भावस्था के दौरान किस तरह की सावधानियां बरतनी है इस बात की जानकारी दी गई वहीं कुछ महिलाओं का मानना था कि उनके घर पर भी ठीक से देखभाल हुई थी और उन्हें जानकारी दी गई थी उसी के मुताबिक उन्होंने दवाइयां भी समय पर ली इसके बावजूद उनको बच्चे कुपोषित पैदा हुए

बच्चों में बढ़ते कुपोषण को लेकर भिंड एनआरसी में पदस्थ डाइटिशियन वर्षा दुबे ने बताया कि आमतौर पर एनआरसी में बच्चों की भर्ती करने के लिए अलग-अलग क्राइटेरिया होते हैं या तो बच्चे के वजन के मुकाबले बच्चे की लंबाई में परेशानी हो या एमयूसी 11.5 से कम हो या बच्चे को सूजन किस ज्यादा समस्या हो इन परिस्थितियों में बच्चे को भर्ती कर आना ही चाहिए साथ ही उन्होंने बताया कि अमूमन गर्मी के समय एनआरसी में बच्चों की संख्या बढ़ जाती है जबकि सर्दियों के समय बच्चे कम भर्ती होते हैं

महिला बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी अब्दुल गफ्फार से मिली जानकारी के अनुसार अक्टूबर माह में करीब 146000 बच्चों का वजन किया गया था जिनमें से 17000 के लगभग बच्चे कम वजन की श्रेणी में आए हैं जिनमें 11100 बच्चे अति कम वजन के पाए गए हैं जिनमें एनआरसी में भर्ती करने लायक 246 बच्चे हैं जिन्हें निरंतर एनआरसी में भर्ती किया जा रहा है इससे पहले जून में मिले आंकड़ों के अनुसार 3200 बच्चे अति कम वजन की श्रेणी में मिले थे जिनमें से इलाज के द्वारा करीब 1800 बच्चों को कुपोषण से निकाला गया

कुपोषण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रम में पोषण माह के अंतर्गत जिले में करीब ₹180000 की सरकारी राशि खर्च की गई महिला बाल विकास विभाग के अनुसार इस राशि के जरिए कुपोषण और गंभीर कुपोषण के खिलाफ जन जागरूकता कार्यक्रम चलाए गए जिनके सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं

हालांकि महिला बाल विकास विभाग के जो सकारात्मक परिणाम की बात है उसकी पोल खुद कलेक्टर की कार्रवाई ने खोल दी है जहां हाल ही में पोषण पुनर्वास केंद्र में बच्चों की संख्या ना के बराबर होने और अधिकारियों की अनदेखी के चलते भिंड कलेक्टर ने महिला बाल विकास विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के वेतन पर रोक लगा दी है

अगर बात करें स्वास्थ्य विभाग के सर्वे के अनुसार भिंड जिले में शिशु मृत्यु दर प्रति हजार चौवन बच्चे हैं सीएमएचओ कार्यालय से मिले आंकड़ों के हिसाब से साल 2017-18 में मरने वाले बच्चों की संख्या 47 थी, जबकि साल 2018-19 में यह आंकड़ा घटकर 20 पर आगया, वही इस साल यानी अप्रैल 2019 से नवम्बर 2019 तक 17 नवजातों की मौत हुई। हालांकि अच्छी बात यह है कि इस साल कुपोषण खून की कमी या एनीमिया की वजह से एक भी बच्चे की मौत नहीं हुई है


Conclusion:मध्यप्रदेश के लिए कुपोषण आज भी एक कलंक बना हुआ है प्रदेश की मौजूदा कमलनाथ सरकार कुपोषण दूर करने के लिए अभियान चलाने का दावा कर रही है लेकिन भिंड में कुपोषित बच्चों के आंकड़े इन दावों को फेल बता रहे हैं हालांकि विभागीय अधिकारियों का कहना है कि लगातार लोगों को कुपोषण के प्रति जागरूक करने के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन जिले में कुपोषण को लेकर मौजूदा हालात इन प्रयासों की पोल खोल रहे हैं खासकर तब जब अधिकारियों की अनदेखी के खिलाफ भिंड के कलेक्टर को ही कार्रवाई करनी पड़ रही है।

बाइट- देवकी, कुपोषित बच्चे की माँ, ( लाल शॉल में)
बाइट- लक्ष्मी, कुपोषित बच्चे की माँ (पीली साड़ी में)
बाइट- सुमित्रा, कुपोषित बच्चे की माँ (लाल साड़ी में)
बाइट- वर्षा दुबे, डाइटिशियन, एनआरसी, भिंड
बाइट- छोटे सिंह, कलेक्टर, भिंड
बाइट- 121- अब्दुल गफ्फार खान, डीपीओ, महिला बाल विकास विभाग
पीटीसी- पीयूष श्रीवास्तव, संवाददाता
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