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कारगिल विजय दिवस: 'ऑपरेशन विजय' की वीरगाथा, जिसने अमर कर दी हवलदार सुल्तान सिंह की शहादत

भारत और पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध में भारत की जीत हुई थी, जिसमें 527 वीर सपूत शहीद हुए थे. हर साल उन वीर शहीदों के बलिदान को याद करते हुए 26 जुलाई को देश कारगिल विजय दिवस मनाता है. इन्हीं शहीदों में से एक हैं मध्यप्रदेश के भिंड जिले के शहीद हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया. आइए जानते हैं शहीद की वीरगाथा.

Shaheed Havaldar Sultan Singh Narwaria
शहीद हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया
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Published : Jul 14, 2020, 1:29 PM IST

भिंड। भारत और पाकिस्तान के बीच 1948 से अब तक चार युद्ध हुए हैं. आखिरी युद्ध साल 1999 में करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर कारगिल में लड़ा गया था. भारत ने 30 हजार सैनिकों के साथ दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया और 26 जुलाई 1999 को युद्ध में भारत की जीत की आधिकारिक घोषणा हुई. इस युद्ध में देश की रक्षा के लिए भारत माता के 527 वीर सपूत अपने प्राण न्यौछावर करते हुए शहीद हो गए. हर साल उन वीर जवान शहीदों के बलिदान को याद करते हुए 26 जुलाई को देश कारगिल विजय दिवस मनाता है.

Shaheed Havaldar Sultan Singh Narwaria
शहीद हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया

527 वीर सपूत जिनकी शहादत ने उन्हें अमर कर दिया, ईटीवी भारत भी उन शहीदों को सलाम करने और उन्हें याद करने के लिए उनकी वीर गाथाएं आपके सामने ला रहा है. इन 527 योद्धाओं में से 3 सपूतों ने मध्यप्रदेश के छोटे से जिले भिंड में जन्म लिया था, उनमें से एक थे शहीद हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया. उनकी शहादत इसलिए भी यादगार है, क्योंकि 1999 में हुए कारगिल युद्ध के मध्य प्रदेश के पहले शहीद थे.

Veerchakra
वीरचक्र सर्टिफिकेट

किस तरह सेना से जुड़ा नाता

16 जून 1960 को भिंड जिले के छोटे से गांव पीपरी में सुल्तान सिंह नरवरिया का जन्म हुआ था. परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी, फिर भी किसी तरह हायर सेकंडरी तक की पढ़ाई भिंड में रहकर पूरी की. उन दिनों सेना की भर्तियां भी चलती रहती थी, सुल्तान सिंह उन्हें भी देखने चले जाते थे. एक दिन विचार आया कि, सेना में जाना है, उन दिनों ग्वालियर में चल रही भर्ती में शामिल हुए और 1979 में उनका चयन सेकंड राजपूताना राइफल्स में हो गया.

Veerchakra
वीरचक्र

कारगिल युद्ध की सूचना

3 मई 1999 को शुरू हुई पाकिस्तानी घुसपैठ की चिंगारी जल्द ही युद्ध में तब्दील हो चुकी थी. उस जमाने में टेलीफोन भी गिने-चुने लोगों के घर होते थे, ऐसे में टेलीविजन और रेडियो के माध्यम से हवलदार सुल्तान सिंह की बटालियन राजपूताना राइफल्स को युद्ध की सूचना मिली. उस वक्त वो अपने घर पर ही थे, उन्हें फोन द्वारा ग्वालियर बुलाया गया और सभी जवान कारगिल के लिए रवाना हो गए, उन्हें युद्ध के लिए रवाना होने की जानकारी अपने परिवार को देने का मौका तक नहीं मिल पाया था.

war memorial operation vijay kargil
युद्ध स्मारक 'ऑपरेशन विजय' कारगिल

समाचार में सुनी थी शहादत की खबर

हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया के परिवार को भी उनसे आखरी बार बात करने का समय नहीं मिला, मिली तो सिर्फ सूचना. पहले टेलीविजन पर समाचार में कि 13 जून को राजपूताना राइफल्स के 17 जवान कारगिल युद्ध में शहीद हो गए. जिसके बाद सेना के किसी अधिकारी ने फोन से जानकारी दी और अगले दिन सुबह अखबार में शहीदों में उनका नाम भी लिखा था. परिवार को बेटा खोने का गम था, लेकिन उससे ज्यादा गर्व था, कि उनका बेटा देश के दुश्मनों को ढेर करते हुए शहीद हुआ. आज भी शहीद हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया के परिवार के चार से पांच लोग फौज में हैं और देश की सेवा कर रहे हैं.

President conferred with 'Veerchakra'
राष्ट्रपति ने 'वीरचक्र' से नवाजा

फौज ने बनाया निडर

भिंड के शहीद सपूत हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया के बेटे देवेंद्र कहते हैं कि, उनके पिता को कभी किसी से डर नहीं लगा, वे कहते थे कि, 2 से 4 लोगों को तो अकेले ही निपटा सकते हैं. फौज में होने की वजह से उन्होंने ब्लैक कैंट कमांडो की ट्रेनिंग भी ली थी.

बेटे ने बताई पिता की वीरगाथा

'ऑपरेशन विजय' की वह वीरगाथा, जिसने अमर कर दी शहादत

हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया को आर्मी के ऑपरेशन विजय का हिस्सा बनाया गया. 10 जून को उन्हें एक टुकड़ी का सेक्शन कमांडर बनाया गया. उन्हें कारगिल में तोलोलिंग पहाड़ी पर द्रास सेक्टर के पॉइंट 4590 रॉक एरिया को दुश्मन से मुक्त कराने के लिए टारगेट दिया गया. शहीद सुल्तान सिंह के बेटे देवेंद्र गर्व से बताते हैं कि, उनके पिता के साथी फौजियों ने उनकी वीर गाथाएं उन तक पहुंचाई हैं.

शहीद हवलदार सुल्तान की वीर गाथा

8 से 10 दुश्मनों को किया ढेर

शहीद के बेटे ने कहा कि, उन्होंने बताया था कि, तोलोलिंग पहाड़ी पर बनी चौकी पर दुश्मन पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा किया था. उस वक्त भारतीय सेना के जवानों की एक टुकड़ी जिसका हिस्सा उनके पिता हवलदार सुल्तान सिंह भी थे, आगे बढ़ रही थी, लेकिन लगातार गोलीबारी के बीच कुछ सैनिक शहीद हुए, तो वहां मौजूद एमएमजी गन की कमान उन्होंने खुद अपने हाथों में ली. तभी दुश्मन फायर कर रहे थे, नीचे से एमएमजी गन संभाले सुल्तान सिंह दुश्मन पर हमला कर रहे थे. लगातार गोलीबारी में एमएमजी गन की गोलियां खत्म हो गं, तो उन्होंने अपनी सर्विस राइफल से फायरिंग करते हुए आगे बढ़ने का फैसला लिया और 2 से 3 किलोमीटर तक आगे बढ़कर 8 से 10 दुश्मनों को ढेर कर दिया, लेकिन तब तक उनको भी कई गोलियां लग चुकी थी. उनके जज्बे और शहादत से प्रेरित उनकी बाकी पलटन भी आगे बढ़ी और दुश्मन पर फायरिंग करते हुए लक्ष्य को अपने नाम कर लिया. साथ ही हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया की शहादत को सदैव के लिए अमर कर दिया.

श्रद्धांजलि देने उमड़ा था जनसैलाब

इतिहास के जानकार अनिल शर्मा ने बताया कि, इतिहास के पन्नों में कारगिल में शहीद होने वाले भिंड जिले के 3 नाम हैं, लेकिन शहीद हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया ने युद्ध के दौरान दुश्मन को मारते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. वे इस युद्ध के दौरान मध्यप्रदेश के पहले शहीद थे. उस दौर में जब अखबारों में ये खबर आई, तो लोग उनके गांव पीपरी में श्रद्धांजलि देने उमड़ पड़े, क्योंकि पहली बार उस दौर में शहीदों की पार्थिव देह तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने परिवारों तक पहुंचाने की व्यवस्था की थी. उस वक्त जिले का हर शख्स गर्व महसूस कर रहा था.

राष्ट्रपति ने 'वीरचक्र' से नवाजा

युद्ध समाप्त होने के बाद उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत साल- 2002 में 15 अगस्त को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा उन्हें सेना के दूसरे सबसे बड़े सम्मान 'वीरचक्र' से नवाजा गया. भारत सरकार ने उनके परिवार के लिए जमीन देकर घर का निर्माण कराया, साथ ही मेहगांव में एक पेट्रोल पंप भी दिया गया. जिससे उनके परिवार को जीवन यापन में किसी तरह की असुविधा ना हो. आमने- सामने की लड़ाई में दुश्मन को ढेर कर शहीद हुए सुल्तान सिंह आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं और उनसे प्रेरित कई नौजवान आज भिंड जिले से सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा कर रहे हैं.

भिंड। भारत और पाकिस्तान के बीच 1948 से अब तक चार युद्ध हुए हैं. आखिरी युद्ध साल 1999 में करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर कारगिल में लड़ा गया था. भारत ने 30 हजार सैनिकों के साथ दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया और 26 जुलाई 1999 को युद्ध में भारत की जीत की आधिकारिक घोषणा हुई. इस युद्ध में देश की रक्षा के लिए भारत माता के 527 वीर सपूत अपने प्राण न्यौछावर करते हुए शहीद हो गए. हर साल उन वीर जवान शहीदों के बलिदान को याद करते हुए 26 जुलाई को देश कारगिल विजय दिवस मनाता है.

Shaheed Havaldar Sultan Singh Narwaria
शहीद हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया

527 वीर सपूत जिनकी शहादत ने उन्हें अमर कर दिया, ईटीवी भारत भी उन शहीदों को सलाम करने और उन्हें याद करने के लिए उनकी वीर गाथाएं आपके सामने ला रहा है. इन 527 योद्धाओं में से 3 सपूतों ने मध्यप्रदेश के छोटे से जिले भिंड में जन्म लिया था, उनमें से एक थे शहीद हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया. उनकी शहादत इसलिए भी यादगार है, क्योंकि 1999 में हुए कारगिल युद्ध के मध्य प्रदेश के पहले शहीद थे.

Veerchakra
वीरचक्र सर्टिफिकेट

किस तरह सेना से जुड़ा नाता

16 जून 1960 को भिंड जिले के छोटे से गांव पीपरी में सुल्तान सिंह नरवरिया का जन्म हुआ था. परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी, फिर भी किसी तरह हायर सेकंडरी तक की पढ़ाई भिंड में रहकर पूरी की. उन दिनों सेना की भर्तियां भी चलती रहती थी, सुल्तान सिंह उन्हें भी देखने चले जाते थे. एक दिन विचार आया कि, सेना में जाना है, उन दिनों ग्वालियर में चल रही भर्ती में शामिल हुए और 1979 में उनका चयन सेकंड राजपूताना राइफल्स में हो गया.

Veerchakra
वीरचक्र

कारगिल युद्ध की सूचना

3 मई 1999 को शुरू हुई पाकिस्तानी घुसपैठ की चिंगारी जल्द ही युद्ध में तब्दील हो चुकी थी. उस जमाने में टेलीफोन भी गिने-चुने लोगों के घर होते थे, ऐसे में टेलीविजन और रेडियो के माध्यम से हवलदार सुल्तान सिंह की बटालियन राजपूताना राइफल्स को युद्ध की सूचना मिली. उस वक्त वो अपने घर पर ही थे, उन्हें फोन द्वारा ग्वालियर बुलाया गया और सभी जवान कारगिल के लिए रवाना हो गए, उन्हें युद्ध के लिए रवाना होने की जानकारी अपने परिवार को देने का मौका तक नहीं मिल पाया था.

war memorial operation vijay kargil
युद्ध स्मारक 'ऑपरेशन विजय' कारगिल

समाचार में सुनी थी शहादत की खबर

हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया के परिवार को भी उनसे आखरी बार बात करने का समय नहीं मिला, मिली तो सिर्फ सूचना. पहले टेलीविजन पर समाचार में कि 13 जून को राजपूताना राइफल्स के 17 जवान कारगिल युद्ध में शहीद हो गए. जिसके बाद सेना के किसी अधिकारी ने फोन से जानकारी दी और अगले दिन सुबह अखबार में शहीदों में उनका नाम भी लिखा था. परिवार को बेटा खोने का गम था, लेकिन उससे ज्यादा गर्व था, कि उनका बेटा देश के दुश्मनों को ढेर करते हुए शहीद हुआ. आज भी शहीद हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया के परिवार के चार से पांच लोग फौज में हैं और देश की सेवा कर रहे हैं.

President conferred with 'Veerchakra'
राष्ट्रपति ने 'वीरचक्र' से नवाजा

फौज ने बनाया निडर

भिंड के शहीद सपूत हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया के बेटे देवेंद्र कहते हैं कि, उनके पिता को कभी किसी से डर नहीं लगा, वे कहते थे कि, 2 से 4 लोगों को तो अकेले ही निपटा सकते हैं. फौज में होने की वजह से उन्होंने ब्लैक कैंट कमांडो की ट्रेनिंग भी ली थी.

बेटे ने बताई पिता की वीरगाथा

'ऑपरेशन विजय' की वह वीरगाथा, जिसने अमर कर दी शहादत

हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया को आर्मी के ऑपरेशन विजय का हिस्सा बनाया गया. 10 जून को उन्हें एक टुकड़ी का सेक्शन कमांडर बनाया गया. उन्हें कारगिल में तोलोलिंग पहाड़ी पर द्रास सेक्टर के पॉइंट 4590 रॉक एरिया को दुश्मन से मुक्त कराने के लिए टारगेट दिया गया. शहीद सुल्तान सिंह के बेटे देवेंद्र गर्व से बताते हैं कि, उनके पिता के साथी फौजियों ने उनकी वीर गाथाएं उन तक पहुंचाई हैं.

शहीद हवलदार सुल्तान की वीर गाथा

8 से 10 दुश्मनों को किया ढेर

शहीद के बेटे ने कहा कि, उन्होंने बताया था कि, तोलोलिंग पहाड़ी पर बनी चौकी पर दुश्मन पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा किया था. उस वक्त भारतीय सेना के जवानों की एक टुकड़ी जिसका हिस्सा उनके पिता हवलदार सुल्तान सिंह भी थे, आगे बढ़ रही थी, लेकिन लगातार गोलीबारी के बीच कुछ सैनिक शहीद हुए, तो वहां मौजूद एमएमजी गन की कमान उन्होंने खुद अपने हाथों में ली. तभी दुश्मन फायर कर रहे थे, नीचे से एमएमजी गन संभाले सुल्तान सिंह दुश्मन पर हमला कर रहे थे. लगातार गोलीबारी में एमएमजी गन की गोलियां खत्म हो गं, तो उन्होंने अपनी सर्विस राइफल से फायरिंग करते हुए आगे बढ़ने का फैसला लिया और 2 से 3 किलोमीटर तक आगे बढ़कर 8 से 10 दुश्मनों को ढेर कर दिया, लेकिन तब तक उनको भी कई गोलियां लग चुकी थी. उनके जज्बे और शहादत से प्रेरित उनकी बाकी पलटन भी आगे बढ़ी और दुश्मन पर फायरिंग करते हुए लक्ष्य को अपने नाम कर लिया. साथ ही हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया की शहादत को सदैव के लिए अमर कर दिया.

श्रद्धांजलि देने उमड़ा था जनसैलाब

इतिहास के जानकार अनिल शर्मा ने बताया कि, इतिहास के पन्नों में कारगिल में शहीद होने वाले भिंड जिले के 3 नाम हैं, लेकिन शहीद हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया ने युद्ध के दौरान दुश्मन को मारते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. वे इस युद्ध के दौरान मध्यप्रदेश के पहले शहीद थे. उस दौर में जब अखबारों में ये खबर आई, तो लोग उनके गांव पीपरी में श्रद्धांजलि देने उमड़ पड़े, क्योंकि पहली बार उस दौर में शहीदों की पार्थिव देह तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने परिवारों तक पहुंचाने की व्यवस्था की थी. उस वक्त जिले का हर शख्स गर्व महसूस कर रहा था.

राष्ट्रपति ने 'वीरचक्र' से नवाजा

युद्ध समाप्त होने के बाद उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत साल- 2002 में 15 अगस्त को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा उन्हें सेना के दूसरे सबसे बड़े सम्मान 'वीरचक्र' से नवाजा गया. भारत सरकार ने उनके परिवार के लिए जमीन देकर घर का निर्माण कराया, साथ ही मेहगांव में एक पेट्रोल पंप भी दिया गया. जिससे उनके परिवार को जीवन यापन में किसी तरह की असुविधा ना हो. आमने- सामने की लड़ाई में दुश्मन को ढेर कर शहीद हुए सुल्तान सिंह आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं और उनसे प्रेरित कई नौजवान आज भिंड जिले से सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा कर रहे हैं.

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