भिंड। साल 2017 में मध्यप्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने चम्बल एक्सप्रेस-वे की घोषणा की थी, जो आज अटल प्रोग्रेस-वे प्रोजेक्ट के नाम से जाना जाता है. इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य प्रदेश में पिछड़े चम्बल-अंचल में विकास की धारा को तेजी से आगे बढ़ाना था. चम्बल नदी के किनारे बनाया जा रहा यह एक्सप्रेस-वे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और राजस्थान तीन राज्यों को जोड़ेगा. यह एक्सप्रेस -वे भिंड जिले को राजस्थान के कोचिंग हब कोटा से भी जोड़ेगा. लेकिन घोषणा के पाँच वर्षों बाद भी आज तक इसका निर्माण शुरू नही हो सका है.
करोड़ों रुपये का चम्बल एक्सप्रेस-वे: शुरुआत में यह प्रोजेक्ट करीब 300 किलोमीटर लम्बा था. यह ग्रीन कोरिडोर उत्तरप्रदेश के इटावा से भिंड और मुरैना जिले से होते हुए राजस्थान की सीमा पर लगे मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले तक चम्बल नदी के किनारे बनाया जा रहा था. जिसकी लागत करीब 850 करोड़ रुपये मानी जा रही थी. इस प्रोजेक्ट के तहत चम्बल एक्सप्रेस-वे कोरिडोर के साथ ही औद्योगिक क्षेत्र भी विकसित करने का प्रस्ताव था. जिससे इस नए बिजनेस हब से प्रदेश के युवकों को उद्योग जगत में रोजगार भी उपलब्ध हो सकेगा.
कमलनाथ सरकार ने भिंड के नाम पर चलाई थी कैंची: घोषणा के बाद डीपीआर तैयार हुई और कुछ वर्षों तक यह प्रोजेक्ट धीमी गति से चलता रहा. प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के बाद 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी, तो चम्बल के विकास के इस प्रोजेक्ट से कमलनाथ सरकार ने भिंड जिले का नाम ही हटवा दिया. नए डीपीआर में यह एक्सप्रेस वे प्रदेश के सिर्फ मुरैना और श्योपुर जिले से ही निकालने का प्रस्ताव लाया गया. जिसके बाद भिंड जिले में जनता और प्रदेश में बैठे विपक्षी दल भाजपा ने इसका विरोध किया था, जिले के लोगों ने भी कई दिनों तक आंदोलन किया था.
सिंधिया से मिला फायदा, नाम में बदलाव, प्रोजेक्ट में तेजी आयी: जब 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों ने कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को गिराकर दोबारा बीजेपी की सरकार बनवाई, तो इस प्रोजेक्ट में फिर से बदलाव हुआ. संसद में भिंड सांसद संध्या राय और प्रदेश में मंत्री और अटेर से विधायक अरविंद भदौरिया समेत नेताओं ने दिल्ली में भी डेरा डाला और भिंड का नाम दोबारा इस प्रोजेक्ट में शामिल किया गया. जिसमें यह एक्सप्रेस-वे तीनों जिलों के 162 गांव से होकर गुजरना प्रस्तावित हुआ. ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद इस प्रोजेक्ट में पहले की अपेक्षा तेजी आयी. इसका नाम में भी बदलाव कर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर अटल प्रोग्रेस-वे कर दिया गया.
भारतमाला परियोजना में शामिल किया गया अटल प्रोग्रेस-वे: अगस्त 2021 में मध्यप्रदेश आए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी भारत माला परियोजना से अटल प्रोग्रेस-वे को जोड़ा है. इस परियोजना के पहले फेज का हिस्सा बनते ही मध्यप्रदेश के इस प्रोग्रेस-वे को नया आयाम मिला. इस एक्सप्रेस-वे का स्ट्रेच श्योपुर से बढ़ाकर राजस्थान के कोटा जिले तक लाया गया. ऐसे में अब चम्बल एक्सप्रेस वे कुल 406 किमी लंबा प्रोजेक्ट बन गया, हालाँकि राजस्थान में इसका सिर्फ 78 किमी का ही हिस्सा होगा. इस प्रोजेक्ट की लागत परियोजना में शामिल होने के बाद करीब 5000 करोड़ रुपय अनुमानित थी, जो समय-समय पर बदलती गई.
भूमि अधिग्रहण भी बना चुनौती का सबब: पिछले साल जब यह प्रोजेक्ट फाइनल हुआ और सर्वे के बाद भूमि अधिग्रहण की बारी आयी, तो यह एक चुनौती साबित हुई. क्योंकि यह एक्सप्रेस वे भिंड जिले से होकर गुजरेगा, जिसमें अटेर क्षेत्र के 26 गांव एवं भिण्ड का एक गांव शामिल है. ऐसे में यहाँ की 233.62 हैक्टेयर शासकीय और 124.72 हैक्टेयर निजी भूमि के साथ 177.68 हैक्टेयर वन भूमि यानी कुल 536.02 हैक्टेयर भूमि अटल प्रोग्रेस वे के लिए अधिग्रहण की जा रही है. जिसमें निजी जमीन अधिग्रहण भी आसान नहीं रहा.
बीहड़ों में दी गई भूमि अधिग्रहण के बदले जमीन: शुरुआत में किसानों पर दबाव बनाया गया और उनसे जमीन के बदले जमीन के नाम पर भूमि अधिग्रहण की गयी. लेकिन जब मुआवजे के तौर पर मिली भूमि बीहड़ों में दी गयी, तो किसानों ने विरोध किया और बाद में नीति में बदलाव करते हुए भूमि अधिग्रहण के बदले मुआवजा राशि का प्रावधान लाया गया. खुद मंत्री अरविंद भदौरिया ने ईटीवी भारत को बताया कि अटल प्रोग्रेस वे में भूमि अधिग्रहण के लिए 90 फीसदी तक मुआवजा राशि का वितरण किया जा चुका है. शेष मुआवजा भी जल्द दे दिया जाएगा.
एनजीटी-पर्यावरण मंत्रालय ने जताई आपत्ति: पहले अंदाजा लगाया जा रहा था कि, भारतमाला प्रोजेक्ट में शामिल होने से यह एक्सप्रेस-वे 2023 के अंत तक पूरा हो जाएगा. लेकिन अब एक नया बदलाव इसे देरी की ओर धकेलेगा. अटल प्रोग्रेस-वे घड़ियाल अभयारण्य और वन क्षेत्र की रक्षा के लिए चंबल नदी से अब 3 किमी दूर स्थानांतरित किया जाएगा. भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI), राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की आपत्तियों के बाद इस परियोजना में बदलाव कर रहा है.
बदलाव से बढ़ेगी लागत, मुआवजा भी दोगुना: अब यह प्रोग्रेस-वे श्योपुर, मुरैना और भिंड के 162 गांवों से नहीं, बल्कि 204 गांवों से होकर गुजरेगा. पहले इसका रास्ता चंबल नदी के किनारे से होकर जाना था, लेकिन रास्ते में चंबल की घड़ियाल सेंचुरी और करीब 403 हेक्टेयर का घना जंगल है, इसलिए अब इसे चंबल नदी से तीन किमी दूर स्थानांतरित कर दिया गया है. इस बदलाव से परियोजना की लागत 500 करोड़ रुपये बढ़कर 7500 करोड़ रुपये हो जाएगी. किसानों को भूमि अधिग्रहण का मुआवजा जो पहले 350 करोड़ रुपये दिया जाना था, अब बढ़कर 700 करोड़ रुपये हो जाएगा. हालांकि, इस बदलाव से एमपी में प्रोग्रेस वे की कुल लंबाई 312 किमी से घटकर 307 किमी रह जाएगी.
पीछे नही हटेगी सरकार- मंत्री अरविंद भदौरिया: अब परियोजना के लिए फिर निजी जमीन का अधिग्रहण करना होगा. क्योंकि पुराने अलाइनमेंट में सरकारी जमीन ज्यादा थी, ऐसे में यह भी देरी का कारण बनेगा. हालांकि मंत्री अरविंद भदौरिया का कहना है कि, चम्बल एक्सप्रेस-वे नदी के किनारे दो किलो मीटर दूर बनाया जा रहा था, वह नदी के बीच से नहीं गुजरने वाला था. जिससे किसी जलीय जीव को खतरा होता. हालांकि बदलाव ऐसा क्यों हुआ, यह मैं देखूँगा अभी. लेकिन रहा सवाल अतिरिक्त भार और प्रोजेक्ट कोस्ट बढ़ने का, तो क्षेत्र के विकास के लिए किसानों को कितना भी मुआवजा देना पड़े सरकार पीछे नहीं हटेगी, किसानों के साथ अन्याय नहीं होगा. मंत्री ने कहा कि, इस प्रोग्रेस-वे के लिए वे खुद लड़ झगड़कर इसे भिंड के बरही तक लाए हैं और जब यह बनकर तैयार होगा तो भिंड जिले के लोगों को इसका बहुत फायदा होगा.