भिंड। जब भी सपने देखे तो खुली आंखों से देखना चाहिए जिससे उन्हें पूरा करने की चाह आपको उस मुक़ाम तक पहुंचा दे, जहां आप पहुंचना चाहते हैं. ये सीख भिंड की दिव्यांग बेटी पूजा ओझा ने सार्थक कर दिखाई है. दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद पूजा ओझा ने एक बार फिर उजबेकिस्तान में आयोजित हुई एशियन पैरा केनो चैंपियनशिप में एक नहीं बल्कि दो-दो गोल्ड मेडल हासिल किए है. पूजा उजबेकिस्तान से लौट कर अपने घर भिंड आ चुकी हैं इस मौके पर उन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.
बीते हफ़्ते उजबेकिस्तान के समरकंद में आयोजित हुई तीसरी एशियन पैरा केनो चैंपियनशिप में भारत ने 24 में से 23 मेडल हासिल किए हैं. जिनमें दो गोल्ड मेडल भिंड की बेटी और राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित दिव्यांग खिलाड़ी पूजा ओझा के नाम रहे. पूजा लौटकर अपने घर आ चुकी हैं और अब बधाइयों का दौर जारी है.
![para athlete Pooja Ojha](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/18428679_th.jpeg)
दिव्यांगता को कमजोरी नहीं स्ट्रेंथ बनायें: ETV Bharat से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि अगर हम दिव्यांगता को साथ लेकर चले होते तो शायद इस मुक़ाम पर नहीं होते क्योंकि जब पहली बार भिंड से भोपाल गई तो बहुत से सवाल मन में थे एक डर था कि कैसे कर पायेंगी क्यूंकि अकेले कभी भिंड के बाहर भी कदम नहीं रखा था और फिर सीधा इंटरनेशनल के लिए निकली थी लेकिन मौका मिला था कुछ कर दिखाना था इसलिए दिव्यांग को कमजोरी नहीं स्ट्रेंथ बनाया और कई नेशनल और इंटरनेशनल इवेंट खेले भी और अच्छा प्रदर्शन करने का प्रयास रहा. यही वजह है कि आज जब दो गोल्ड मेडल हासिल किए तब लगता है की अगर शुरुआत में अगर हार मन ली होती तो शायद आज अपने जिले का देश का नाम रौशन नहीं कर रही होती और राष्ट्रपति से सम्मानित नहीं हुई होती. उनका कहना है कि उनके लिए दिव्यांगता कभी अभिशाप नहींं रही.
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6 महीने कड़ी ट्रेनिंग, दो गेम्स में दो गोल्ड जीते: उजबेकिस्तान में आयोजित हुए तीसरे एशियन पैरा केनो चैंपियनशिप 2023 गेम्स के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि इस प्रतिस्पर्धा में उन्होंने पैरा केनो और पेरा कयाकिंग दोनों ही तरह के गेम्स में हिस्सा लिया था. अच्छी बात यह रही की दोनों ही गेम्स में उन्होंने गोल्ड मेडल जीते. पूजा ने बताया कि इसके लिए उन्होंने भोपाल में 6 माह प्रैक्टिस की थी. उनके कोच मयंक ठाकुर और अनिल राठी की देख रेख में कड़ी ट्रेनिंग ली. सुबह शाम 4-4 घंटे की प्रैक्टिस और ट्रेनिंग रहती थी इसके बाद भी अकेले रहने की वजह से घर पहुंच कर खुद से भोजन तैयार करने से लेकर ट्रेनिंग सेंटर तक जाना एक तरह से इन छह महीनों में सांस लेने की भी फुरसत नहीं मिली. यही वजह है कि आज वह मेहनत सफल हुई. इस मेहनत के साथ फेडरेशन का सपोर्ट हमारे शुभचिंतकों और भिंड वासियों का प्यार रहा जिसने मोटिवेट किया. आगे और मेहनत कर इस साल सितंबर में चाइना के हांग्ज़ो में आयोजित होने जा रहे एशियाड यानी एशियन गेम्स 2022 में भी भारत के लिए गोल्ड मेडल हांसिल करूंगी.
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सरकार को करना चाहिए खिलाड़ियों की मदद: एक लम्बे संघर्ष के बाद भिंड की बेटी जब चम्बल से निकल कर विश्व स्तर पर खेली और खुद स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया आप की सक्सेस शेयर कर रहा है तो कैसा लगता है ये सवाल जब हमने पूजा से किया तो उन्होंने कहा कि ये बात सही जब हम मेहनत कर बड़े स्तर पर पहुंचते हैं तो हमें सभी पसंद करने लगते हैं जो नहीं जानते हैं वे भी बधाई देता है. लेकिन निचले स्तर से शुरुआत होती है तो उसके स्ट्रगल के बारे में कोई नहीं जानता है. पूजा कहती हैं कि समय रहते अगर किसी खिलाड़ी को सही सपोर्ट और मार्गदर्शन मिल जाए तो कई ऐसे खिलाड़ी उभरकर सामने आएंगे जो देश को ओलम्पिक पदक दिला सकते हैं. आज खुशी है की स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) मुझे सपोर्ट कर रही है. समय समय पर जितना सपोर्ट वे कर सकते हैं करते हैं. पूजा ने सरकार से भी दरखास्त की जब खिलाड़ी शुरुआत करते हैं उसी संत उन पर ध्यान दिया जाये जिससे वे देश के लिए अच्छा कर सकें. अगर समय रहते सपोर्ट मिलता है तो खिलाड़ी देश के लिए कुछ भी कर सकता है.
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आज भी आसान नहीं खेल की राह: खिलाड़ियों के जीवन के संघर्ष के बारे में भी पूजा ओझा ने बात की उन्होंने कहा की कभी कभार साल में दो कॉम्पिटीशन होते हैं. ऐसे में SAI का कहना होता है कि जो जरूरी प्रतिस्पर्धाएं हैं खिलाड़ियों को उन्हीं में भेजा जाएगा लेकिन उनका मानना है कि खिलाड़ियों के लिए हर एक कम्पटीशन जरूरी है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय लेवल पर इन्होंने जरिए अपने आपको आंकने का मौका एक खिलाड़ी को मिलता है कि वह किस स्तर पर है और उसे कितना और सुधार या मेहनत अभी करना बाकी है. इसलिए अन्य प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लेने के लिए मुझे भी आर्थिक मदद लेनी पड़ती है. कभी किसी से तो कभी किसी और व्यक्ति से मदद मांगनी पड़ती हैं और कई बार इन परिस्थितियों की वजह से उन कम्पटीशन में जा भी नही पाते हैं जहां अपनी काबिलियत साबित करने का मौका मिल रहा है. उन्होंने कहा कि स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया हमारी मदद करता है लेकिन उनके भी अपने नियम और मानक होते हैं लेकिन जब खिलाड़ियों को फण्ड की जरूरत होती है तब अगर थोड़ा थोड़ा करके भी मदद मिले तो जाना हो जाएगा और वो मौका हाथ से नहीं निकलेगा. जहां हम अपने आपको साबित करने जा पाएं.
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माता-पिता का सपोर्ट: भिंड की बेटियों को संदेश देते हुआ कहा कि हमारे जिले की बेटियों की जिस भी क्षेत्र में रुचि हो चाहे वह स्पोर्ट्स हो, चाहे पढ़ाई हो आगे आए और अपने आप को पूरा मौका दें. साथ ही माता पिता से भी गुजारिश है कि जिस तरह उनके माता पिता ने उन्हें सपोर्ट किया आज उनकी बदौलत वे भोपाल में रहती हैं. विदेशों में खेलने जाती है इसी तरह हर मां बाप अपनी बेटियों को सपोर्ट करें खासकर दिव्यांग बेटियों को सपोर्ट करेंगे तो हम विश्व पटल पर कहीं भी भारत की छाप छोड़ सकते हैं.