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भिंड में आज भी जिंदा है परंपरा जिसमें हाथों से बनाए जाते हैं मिट्टी के मटके, जानिए देसी मटका का फायदा

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Published : Apr 23, 2023, 11:37 AM IST

गर्मी की शुरुआत हो चुकी है, ऐसे में सूरज की तेज तपिश से लोगों का हाल बेहाल है, जिसकी वजह से गला तर करने के लिए मिट्टी के मटके के पानी से बेहतर साधन कुछ और नहीं हो सकता. अब बाजारों में देसी फ्रीज भी मिलने लगी है, लेकिन क्या आपको पता है भिंड में आज भी वो परंपरा बची है जिसमें हाथ से मिट्टी के मटके बनाए जाते हैं, पढ़े इसके फायदे.

bhind desi matka
मिट्टी के मटके के फायदे
हाथों से बनाए जाते हैं मिट्टी के मटके

भिंड। एक दौर था जब घर-घर मिट्टी के बर्तनों का चलन था, पानी के लिए भी मिट्टी के मटके उपयोग में लाए जाते थे. धीरे-धीरे वो दौर चला गया और बाजारों में इलेक्ट्रॉनिक रेफ्रिजरेटर आ गया और इस आधुनिक उपकरण ने घर के देसी फ्रिज यानी मटके की जगह ले ली. लेकिन 2 साल पहले जब कोरोना ने दस्तक दी तो वही गांव में बना मिट्टी का देसी फ्रिज एक बार फिर से चलन में आ गया. बड़े-बड़े महानगरों में लोगों की दिलचस्पी मटके और इसके पानी में जागी, कई लोग तो कोरोना के जाने के बाद अब भी पानी ठंडा रखने के लिए मटकों का ही इस्तेमाल करते हैं, हालांकि छोटे और पिछड़े इलाकों में अब भी कुम्हारों को थोड़ी जद्दोजहद करनी पड़ रही है. लेकिन अगर आप भी देसी मटके के फायदे जानेंगे तो अपने घर इसे लाए बगैर नहीं रह पाएंगे.

bhind desi matka
भिंड देसी मटका

भिंड में बनते हैं प्राचीन पद्धति से मटके: कोरोना काल में कई व्यापार ठप हो गए, लोग बेरोजगार हो गए, जो कारीगर, बढ़ई और कामगार थे अपने पारंपरिक काम को छोड़ने के लिए मजबूर हुए. मिट्टी के पारंपरिक बर्तन बनाने वाले कुम्हार तो जैसे हालातों से समझौता कर मजदूरी के लिए पलायन कर गए, मध्यप्रदेश के भिंड जिले में भी हालात इनसे अलग नहीं थे. भले ही यह जिला पिछड़ा हो लेकिन आज भी इस जिले में कुछ ऐसे कुम्हार हैं जिन्होंने मटके बनाने की प्राचीन पद्धति को जीवित कर रखा है. ये आज भी मटके चाक पर नहीं बल्कि मिट्टी और अपने हाथों से तैयार करते हैं.

benefits of desi matka
मटके का पानी होता है फायदेमंद

आज भी बचा रखी है हाथ के मायके की परंपरा: भिंड के बाराकलां गांव में आज भी पारंपरिक मटके तैयार करने वाले कुम्हार गंगा राम और उनका परिवार मिलकर हर सीजन में मटके बनाते हैं और इन्हीं मटकों से परिवार का भरण पोषण करते हैं. गंगा राम बताते हैं कि यह उनका पुश्तैनी काम है, उनके पहले की पीढ़ियां यह काम करती आई और पिछले 40 वर्षों से वे खुद इस परंपरा को निभा रहे हैं. तैयार मटका आज 80 से 100 रुपए बिकता है, ग्राहकी भले ही पहले जैसी नहीं है लेकिन उन्हें किसी के आगे हाथ नहीं फैलाने पड़ते. आज उनके बच्चे पढ़ लिख रहे हैं और पेटभर भोजन कर रहे हैं.

bhind hand made pot tradition alive
भिंड में हाथ से बने बर्तन की परंपरा जीवित

दो दिन में तैयार होता है एक मटका: कुम्हार गंगा राम की पत्नी कटोरी बाई कहती हैं कि एक मटका बनकर तैयार होने में करीब दो दिन का समय लगता है. इसके लिए पूरे परिवार को लगना पड़ता है. मिट्टी के बर्तन या मटका बनाने के लिए पहले मिट्टी खरीदनी और फिर तैयार करनी पड़ती है. महीन मिट्टी को हाथों से तैयार किया जाता है इसके बाद पहले से बनाए हुए लकड़ी के औजार और हाथों की मदद से ठोक कर मटके को आकार दिया जाता है. इसके बाद इसे चिकना स्वरूप देने के लिए एक खास प्लेट पर इसे रखा और घुमाया जाता है, जिससे यह घड़े की तरह चिकना होता है. इतना काम होने के बाद इन कच्चे मटकों को बारी-बारी से धूप और छांव में सुखाया जाता है. अंत में इसपर मिट्टी से मुहाना बनाकर हवा दिलाई जाती है फिर भट्टी में पकाया जाता है तब जाकर मटका तैयार होता है.

ये खबरें भी पढ़ें...

मटके का पानी होता है फायदेमंद: अब बात आती है कि इन मिट्टी के बने मटकों का पानी पीने से फायदा क्या है, तो इसपर भिंड जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉक्टर अनिल गोयल का कहना है कि मिट्टी के मटके का पानी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है. पहले जब रेफ्रिजरेटर नहीं हुआ करता था तब मटका ही पानी ठंडा करने का जरिया होता था. यह प्राकृतिक रूप से पानी को संतुलन में ठंडा करता है जो कभी सर्दी नहीं करता, वह शरीर के लिए नुकसान दायक नहीं होता. कोरोना काल में लोगों ने फ्रिज के पानी से परहेज कर मटके का पानी पीना शुरू कर दिया था, आज भी कई लोग फ्रिज का पानी नहीं पीते हैं.

मटके के स्वास्थ्यवर्धक फायदे:

  1. बहुत कम लोग जानते हैं कि मटके के पानी में प्राकृतिक रूप से एल्कलाइन होता है.
  2. मटके का पानी एसिडिक प्रकृति को कम करता है और पानी का पीएच लेवल भी संतुलित करता है.
  3. मटके के पानी से शरीर में डीहाइड्रेशन की समस्या भी नहीं होती.
  4. सामान्य की अपेक्षा मटके के पानी में कैल्शियम, मेग्नीशियम, फॉस्फोरस जैसे मिनरल अधिक मात्रा में होते हैं.
  5. मिट्टी का मटका पानी में मिनरल और पोषक तत्वों को बनाए रखता है, जिससे सनस्ट्रोक से बचने में भी मदद मिलती है.

हाथों से बनाए जाते हैं मिट्टी के मटके

भिंड। एक दौर था जब घर-घर मिट्टी के बर्तनों का चलन था, पानी के लिए भी मिट्टी के मटके उपयोग में लाए जाते थे. धीरे-धीरे वो दौर चला गया और बाजारों में इलेक्ट्रॉनिक रेफ्रिजरेटर आ गया और इस आधुनिक उपकरण ने घर के देसी फ्रिज यानी मटके की जगह ले ली. लेकिन 2 साल पहले जब कोरोना ने दस्तक दी तो वही गांव में बना मिट्टी का देसी फ्रिज एक बार फिर से चलन में आ गया. बड़े-बड़े महानगरों में लोगों की दिलचस्पी मटके और इसके पानी में जागी, कई लोग तो कोरोना के जाने के बाद अब भी पानी ठंडा रखने के लिए मटकों का ही इस्तेमाल करते हैं, हालांकि छोटे और पिछड़े इलाकों में अब भी कुम्हारों को थोड़ी जद्दोजहद करनी पड़ रही है. लेकिन अगर आप भी देसी मटके के फायदे जानेंगे तो अपने घर इसे लाए बगैर नहीं रह पाएंगे.

bhind desi matka
भिंड देसी मटका

भिंड में बनते हैं प्राचीन पद्धति से मटके: कोरोना काल में कई व्यापार ठप हो गए, लोग बेरोजगार हो गए, जो कारीगर, बढ़ई और कामगार थे अपने पारंपरिक काम को छोड़ने के लिए मजबूर हुए. मिट्टी के पारंपरिक बर्तन बनाने वाले कुम्हार तो जैसे हालातों से समझौता कर मजदूरी के लिए पलायन कर गए, मध्यप्रदेश के भिंड जिले में भी हालात इनसे अलग नहीं थे. भले ही यह जिला पिछड़ा हो लेकिन आज भी इस जिले में कुछ ऐसे कुम्हार हैं जिन्होंने मटके बनाने की प्राचीन पद्धति को जीवित कर रखा है. ये आज भी मटके चाक पर नहीं बल्कि मिट्टी और अपने हाथों से तैयार करते हैं.

benefits of desi matka
मटके का पानी होता है फायदेमंद

आज भी बचा रखी है हाथ के मायके की परंपरा: भिंड के बाराकलां गांव में आज भी पारंपरिक मटके तैयार करने वाले कुम्हार गंगा राम और उनका परिवार मिलकर हर सीजन में मटके बनाते हैं और इन्हीं मटकों से परिवार का भरण पोषण करते हैं. गंगा राम बताते हैं कि यह उनका पुश्तैनी काम है, उनके पहले की पीढ़ियां यह काम करती आई और पिछले 40 वर्षों से वे खुद इस परंपरा को निभा रहे हैं. तैयार मटका आज 80 से 100 रुपए बिकता है, ग्राहकी भले ही पहले जैसी नहीं है लेकिन उन्हें किसी के आगे हाथ नहीं फैलाने पड़ते. आज उनके बच्चे पढ़ लिख रहे हैं और पेटभर भोजन कर रहे हैं.

bhind hand made pot tradition alive
भिंड में हाथ से बने बर्तन की परंपरा जीवित

दो दिन में तैयार होता है एक मटका: कुम्हार गंगा राम की पत्नी कटोरी बाई कहती हैं कि एक मटका बनकर तैयार होने में करीब दो दिन का समय लगता है. इसके लिए पूरे परिवार को लगना पड़ता है. मिट्टी के बर्तन या मटका बनाने के लिए पहले मिट्टी खरीदनी और फिर तैयार करनी पड़ती है. महीन मिट्टी को हाथों से तैयार किया जाता है इसके बाद पहले से बनाए हुए लकड़ी के औजार और हाथों की मदद से ठोक कर मटके को आकार दिया जाता है. इसके बाद इसे चिकना स्वरूप देने के लिए एक खास प्लेट पर इसे रखा और घुमाया जाता है, जिससे यह घड़े की तरह चिकना होता है. इतना काम होने के बाद इन कच्चे मटकों को बारी-बारी से धूप और छांव में सुखाया जाता है. अंत में इसपर मिट्टी से मुहाना बनाकर हवा दिलाई जाती है फिर भट्टी में पकाया जाता है तब जाकर मटका तैयार होता है.

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मटके का पानी होता है फायदेमंद: अब बात आती है कि इन मिट्टी के बने मटकों का पानी पीने से फायदा क्या है, तो इसपर भिंड जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉक्टर अनिल गोयल का कहना है कि मिट्टी के मटके का पानी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है. पहले जब रेफ्रिजरेटर नहीं हुआ करता था तब मटका ही पानी ठंडा करने का जरिया होता था. यह प्राकृतिक रूप से पानी को संतुलन में ठंडा करता है जो कभी सर्दी नहीं करता, वह शरीर के लिए नुकसान दायक नहीं होता. कोरोना काल में लोगों ने फ्रिज के पानी से परहेज कर मटके का पानी पीना शुरू कर दिया था, आज भी कई लोग फ्रिज का पानी नहीं पीते हैं.

मटके के स्वास्थ्यवर्धक फायदे:

  1. बहुत कम लोग जानते हैं कि मटके के पानी में प्राकृतिक रूप से एल्कलाइन होता है.
  2. मटके का पानी एसिडिक प्रकृति को कम करता है और पानी का पीएच लेवल भी संतुलित करता है.
  3. मटके के पानी से शरीर में डीहाइड्रेशन की समस्या भी नहीं होती.
  4. सामान्य की अपेक्षा मटके के पानी में कैल्शियम, मेग्नीशियम, फॉस्फोरस जैसे मिनरल अधिक मात्रा में होते हैं.
  5. मिट्टी का मटका पानी में मिनरल और पोषक तत्वों को बनाए रखता है, जिससे सनस्ट्रोक से बचने में भी मदद मिलती है.
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