भिंड। बीहड़-बागी के लिए मशहूर चंबल अंचल के भिंड शहर का ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व भी कम नहीं है. बीहड़ों की गोद में बसा ये शहर सूबे की सियासत में भी अपनी अलग पहचान रखता है. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर बीजेपी का दबदबा माना जाता है. जहां बीजेपी ने आधी आबादी के सहारे पूरी जंग जीतने की रणनीति तैयार की है, वहीं कांग्रेस युवा जोश के साथ मैदान में ताल ठोक रही है.
भिंड लोकसभा सीट पर अब तक हुए 14 आम चुनाव में 8 बार बीजेपी ने विजय पताका फहराया है, जबकि कांग्रेस भी जीत की हैट्रिक लगा चुकी है. दो बार जनसंघ और एक बार निर्दलीय प्रत्याशी ने भी जीत दर्ज की है. 1989 से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है. 2009 में हुए परिसीमन के बाद ये सीट अनुसूचि जाति के लिए आरक्षित हो गई, लेकिन बीजेपी ने जीत का सिलसिला बरकरार रखा. भिंड से राजामाता विजयाराजे सिंधिया भी चुनाव जीत चुकी हैं.
भिंड के 17 लाख 33 हजार 411 मतदाता मिलकर इस बार अपना नया सांसद चुनेंगे. जिनमें 9 लाख 50 हजार 711 पुरुष मतदाता हैं, जबकि 7 लाख 82 हजार 657 महिला मतदाता शामिल हैं. थर्ड जेंडर की संख्या 43 है.
भिंड संसदीय क्षेत्र भिंड और दतिया जिले की विधानसभा सीटों से मिलकर बनता है. जिनमें भिंड, अटेर, लहार, मेंहगांव, गोहद, भाण्डेर, सेवढ़ा, और दतिया विधानसभा सीटें शामिल हैं, विधानसभा चुनाव में इन आठ सीटों में से 5 पर कांग्रेस, 2 पर बीजेपी और एक पर हाथी ने दौड़ लगाई थी. विधानसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर भिंड में बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस ज्यादा मजबूत है, लेकिन विधानसभा और लोकसभा के चुनावी नतीजों का यहां कोई तालमेल कभी भी नहीं रहा है.
भिंड क्षेत्र की अधिकतर आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है. जिसके चलते यहां बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और पानी जैसी समस्याओं का अभाव नजर आता है. वहीं, शहरी आबादी के भी अपने अलग-अलग मुद्दे हैं. ऐसे में भिंड का मतदाता बीजेपी की संध्या राय को सर आंखों पर बैठाती है, या कांग्रेस के देवाशीष जरारिया को दिल्ली की सैर कराती है. इस पर फाइनल मुहर 23 मई को चुनावी नतीजे ही लगायेंगे.