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गरीबी ने किसान परिवार को बना दिया इंसानी बैल, महिला-पुरुष सब खींचते हैं हल

हर चुनाव में हर पार्टी किसानों को समृद्ध बनाने का वादा करती है, लेकिन सात दशक में किसान कितना आत्मनिर्भर हुआ है, ये किसी से छिपा नहीं है. कर्ज तले दबे किसानों की खुदकुशी, प्राकृतिक आपदा से तबाह किसान इसकी तस्दीक करने के लिए काफी हैं. सरकार की अनदेखी का शिकार किसान का पूरा परिवार बैल बनकर रह गया है. महिला हो या पुरुष हर किसी के लिए हल खींचना जैसे उनका पुराना पेशा बन गया है क्योंकि हल खींचे बिना उनको एक निवाला तक मयस्सर नहीं होता.

इंसानी बैल
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Published : Jul 18, 2019, 5:36 PM IST

Updated : Jul 18, 2019, 8:02 PM IST

बैतूल। जाकी पांव न फटी बिवाई, सो का जाने पीर पराई, जब किसी को दर्द ही नहीं हो रहा तो कोई इस किसान का दर्द समझे भी तो क्यों, जो हल खींचने के लिए बेटे-बहू-पत्नी तक को बैल बना दिया है. हालांकि, सूबे में इंसानों का बैल बनना कोई नई बात नहीं है. पहले भी सरकारी दावों की पोल खोलने वाले ऐसे कई मामले आये हैं, जबकि न जाने कितने इंसानी बैल ऐसे हैं, जिन पर किसी की नजर ही नहीं पड़ती. अब सुनाते हैं आपको इस किसान की दर्द भरी दास्तां किसान की जुबानी.

हल खींचता किसान परिवार

आर्थिक तंगी से गुजर रहा किसान परिवार खुद बैल बनकर सालों से खेती कर रहा है, किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए कृषि उपकरण और खाद-बीज पर अनुदान दिया जाता है, इस किसान के सामने ये सभी योजनाएं धूल फांकती नजर आती हैं क्योंकि इस परिवार को आज तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल सका है.

बैतूल ब्लॉक के बरसाली पंचायत के काजी काठी गांव के सद्दू मर्सकोले का परिवार अब तक पूरी तरह से बैल बन चुका है क्योंकि इस परिवार के सदस्य कई सालों से हल खींचते आ रहे हैं. सद्दू के पास महज 75 डिसमिल खेती की जमीन है, इसी के सहारे 7 सदस्यों की जीविका चलती है. बाकी कुछ कमाई मजदूरी से भी हो जाती है. कृषि विभाग भी किसान की मदद करने की बजाय दूसरे विभाग पर डाल रहा है, अधिकारी की मानें तो इतनी कम जमीन पर किसान को लाभ दिया जाना मुश्किल है, फिर भी उसकी खेती को उन्नत बनाकर उसकी मदद की जाएगी.

हिंदुस्तान की आत्मा गांवों में बसती है और उस गांव की आत्मा है किसान, जिसकी तरक्की के बिना देश की तरक्की मुमकिन नहीं है, फिर किसानों की ये सिसकी सरकारों को क्यों सुनाई नहीं पड़ती. जब तक किसानों के चेहरे पर मुस्कान नहीं आयेगी, या यूं कहें कि अंतिम छोर तक खुशहाली नहीं पहुंची तो तरक्की की कल्पना करना भी बेमानी है.

बैतूल। जाकी पांव न फटी बिवाई, सो का जाने पीर पराई, जब किसी को दर्द ही नहीं हो रहा तो कोई इस किसान का दर्द समझे भी तो क्यों, जो हल खींचने के लिए बेटे-बहू-पत्नी तक को बैल बना दिया है. हालांकि, सूबे में इंसानों का बैल बनना कोई नई बात नहीं है. पहले भी सरकारी दावों की पोल खोलने वाले ऐसे कई मामले आये हैं, जबकि न जाने कितने इंसानी बैल ऐसे हैं, जिन पर किसी की नजर ही नहीं पड़ती. अब सुनाते हैं आपको इस किसान की दर्द भरी दास्तां किसान की जुबानी.

हल खींचता किसान परिवार

आर्थिक तंगी से गुजर रहा किसान परिवार खुद बैल बनकर सालों से खेती कर रहा है, किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए कृषि उपकरण और खाद-बीज पर अनुदान दिया जाता है, इस किसान के सामने ये सभी योजनाएं धूल फांकती नजर आती हैं क्योंकि इस परिवार को आज तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल सका है.

बैतूल ब्लॉक के बरसाली पंचायत के काजी काठी गांव के सद्दू मर्सकोले का परिवार अब तक पूरी तरह से बैल बन चुका है क्योंकि इस परिवार के सदस्य कई सालों से हल खींचते आ रहे हैं. सद्दू के पास महज 75 डिसमिल खेती की जमीन है, इसी के सहारे 7 सदस्यों की जीविका चलती है. बाकी कुछ कमाई मजदूरी से भी हो जाती है. कृषि विभाग भी किसान की मदद करने की बजाय दूसरे विभाग पर डाल रहा है, अधिकारी की मानें तो इतनी कम जमीन पर किसान को लाभ दिया जाना मुश्किल है, फिर भी उसकी खेती को उन्नत बनाकर उसकी मदद की जाएगी.

हिंदुस्तान की आत्मा गांवों में बसती है और उस गांव की आत्मा है किसान, जिसकी तरक्की के बिना देश की तरक्की मुमकिन नहीं है, फिर किसानों की ये सिसकी सरकारों को क्यों सुनाई नहीं पड़ती. जब तक किसानों के चेहरे पर मुस्कान नहीं आयेगी, या यूं कहें कि अंतिम छोर तक खुशहाली नहीं पहुंची तो तरक्की की कल्पना करना भी बेमानी है.

Intro:बैतूल ।। बैतूल में आर्थिक तंगी से गुजर रहा एक परिवार के लोग खुद बैल बनकर सालो से खेती करने को मजबूर है । किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए कृषि उपकरण और खाद बीज में अनुदान दिए जाते है । लेकिन जमीनी हकीकत इस परिवार को देखकर कुछ और ही नजर आती है । क्योकि इस परिवार को आज तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नही मिल पाया है ।


Body:मामला है बैतूल ब्लॉक की बरसाली पंचायत के काजी काठी गांव का जहा सद्दू मर्सकोले बीते कई सालों से अपने परिवार के साथ हल में बैल की तरह जुतकर खेती करता आ रहा है । पहले वो और उसकी पत्नी बैल बनकर खेती करते थे फिर जब बेटा बड़ा हुआ तो उसने खेती के काम मे हाथ बटाना शुरू कर दिया । अब वो भी अपनी माँ पिता के साथ बैल बनकर अपने हाथों से खेती कर रहे है । सद्दू के पास महज 75 डिसमिल खेती के लिए जमीन है जिससे उनका 7 सदस्यो का भरण पोषण नही हो पाता है तो वे खेती के साथ दिहाड़ी मजदूरी भी करते है । यह परिवार बोनी से लेकर निंदाई और अन्य खेती के काम आज भी अपने हाथों से कर रहे है ।

किसान सद्दू मर्सकोले ने बताया कि जब 30 से 35 साल पहले जमीन का बटवारा हुआ तो उनके हिस्से में 75 डिसमिल जमीन आई । पहले वे अपनी के साथ बैल बनकर खेत की जुताई किया करते थे और हल चलाने के लिए किसी भी परिचित को बुलवा लिया करते थे । आज यदि उनका बेटा मजदूरी पर चला जाता है तो वे किसी को भी हल चलाने के लिए बुलवा लिया करते थे । किसान के मुताबिक उन्हें आज तक खेती के लिए कोई सरकारी मदद नही मिल पाई है । यदि उन्हें कोई सरकारी मदद मिल जाये तो वे एक जोड़ी बैल खरीद लेंगे या कुछ और काम भी करने लगेंगे । वही किसान को जानने वाली भी बताते है कि सद्दू और उसका परिवार सालो से बैल बनकर ही खेती कर रहे है ।

वही जब इस मामले में कृषि अधिकारी से हमने बात की तो उनका कहना था की किसान के पास महज 75 डिसमिल खेती की जमीन है इसलिए उन्हें कोई सरकारी मदद आज तक नही मिल पाई होगी । उनका विभाग किसानों को खाद बीज कृषि उपकरण आदि ही दिलवा सकते है । लेकिन जैसा मीडिया से मुझे पता चला है में पशुपालन विभाग और जनपद से बात करके कोशिश करूँगा की किसान की किसी भी तरह की कोई सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवा सकू ।




Conclusion:अब देखना होगा कि बैल बनकर खेती कर रहे इस परिवार को क्या किसी प्रकार की कोई सरकारी मदद मिल पाती है या नही ।

बाइट -- सद्दू मर्सकोले ( किसान )
बाइट -- सुनील मर्सकोले ( किसान का बेटा )
बाइट -- गुड्डू मर्सकोले ( पड़ोसी )
बाइट -- ए पी भगत ( कृषि अधिकारी )
Last Updated : Jul 18, 2019, 8:02 PM IST
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