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शिक्षा देने के लिए इस शिक्षक ने छोड़ दिया घर, 1800 फीट ऊंचाई पर बना स्कूल ही बन गया जिसका घर

बैतूल जिले की घोड़ाडोंगरी तहसील में करीब 1800 फीट ऊंचाई पर बसा है भण्डारपानी गांव. जहां एक शिक्षक गोरेलाल बारस्कर अपना घरबार छोड़कर यहां के बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे हैं.

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बैतूल न्यूज
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Published : Sep 5, 2020, 5:36 PM IST

बैतूल। अगर समाज में शिक्षा की अलख जगाने का जज्बा हो तो फिर कोई मुसीबत मायने नहीं रखती. कुछ ऐसा ही काम कर रहे हैं बैतूल जिले के भण्डारपानी गांव में रहने वाले शिक्षक गोरेलाल बारस्कर जो करीब 1800 फीट ऊंचाई पर जाकर भी बच्चों को पढ़ाने में जुटे हैं. वे पिछले पांच सालों से निशुक्ल शिक्षा दे रहे हैं.

पांच सालों से बच्चों को पढ़ा रहे है शिक्षक गोरेलाल
पांच सालों से बच्चों को पढ़ा रहे है शिक्षक गोरेलाल

बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी तहसील मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर भण्डारपानी गांव जो छिड़वाड़ा जिले की सीमा पर पहाड़ी पर बसा है. जहां तक पहुंचने के लिए सड़क तक नहीं है. पहाड़ी रास्ते से यहां तक पहुंचना आसान नहीं है. यहां रहने वाले आदिवासी परिवारों के बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल तक नहीं था. ऐसे में श्रमिक आदिवासी संगठन और समाजवादी जन परिषद ने बच्चों की पढ़ाई के लिए 'समता पाठशाला' नामक स्कूल साल 2007 में शुरू किया.

बच्चों के साथ शिक्षक गोरेलाल
बच्चों के साथ शिक्षक गोरेलाल

गांव में ही रहकर देते हैं शिक्षा

स्कूल तो शुरू हो गया पर कोई शिक्षित युवा बच्चों को निशुल्क पढ़ाने नहीं मिल रहा था. तब सालीवाड़ा गांव के गोरेलाल बारस्कर ने यह जिम्मेदारी उठाई. गोरेलाल रोज 40 किलोमीटर दूर से अप-डाउन संभव नहीं था और ना ही रोज उतनी ऊंची पहाड़ी चढ़ना और उतरना ही संभव था, लिहाजा उन्होंने वहीं रहने का निर्णय लिया. ग्रामीण उनके खाने की व्यवस्था कर देते थे. वहीं रहने की व्यवस्था झोपड़ीनुमा स्कूल में ही थी. इस तरह पूरे पांच साल से वे बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहे हैं.

1800 फीट ऊंचाई पर होने से नहीं बन सका स्कूल
1800 फीट ऊंचाई पर होने से नहीं बन सका स्कूल

अतिथि शिक्षक हैं गोरेलाल

हालांकि साल 2012 में शासन ने यहां प्राथमिक स्कूल खोल दिया पर और अतिथि शिक्षक के रूप में किसी और की नियुक्ति कर दी. लेकिन गोरेलाल के शिक्षा के प्रति समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा को देखते हुए ग्रामीणों और संगठन ने उन्हें ही अतिथि शिक्षक नियुक्त करने की मांग की. इस पर अधिकारी भी माने और तब से वे बतौर अतिथि शिक्षक सेवाएं दे रहे हैं. हालांकि इसमें भी महीने भर में अधिकतम पांच हजार रुपये के मानदेय का ही प्रावधान है जो कि बेहद कम है.

पिछले साल ही शिक्षक गोरेलाल का विवाह हुआ और अपने पति का शिक्षा के प्रति समर्पण भाव देख कर उनकी पत्नी भी उसी दुर्गम और सुविधा विहीन गांव में खुशी-खुशी रह रही हैं. गोरेलाल बताते हैं कि वह अपने ही गांव में आराम से रह सकते थे और अन्य जगह भी सुविधाजनक नौकरी उन्हें मिल सकती थी. पर इन गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई और शिक्षक नहीं मिलता. इन बच्चों को पढ़ा-लिखाकर कुछ बनाने की ललक ही उन्हें यहां तक खींच लाई

इसलिए नहीं बन पा रहा स्कूल भवन

इस गांव में स्कूल भवन पांच साल पहले स्वीकृत हो चुका है पर आज तक बन नहीं पाया है. इसकी वजह यह है कि इतनी ऊंची पहाड़ी पर निर्माण सामग्री पहुंचाना संभव ही नहीं है. इसलिए ग्रामीणों द्वारा तैयार झोपड़ी में ही स्कूल लगता हैय ग्रामीण ही हर साल इसकी मरम्मत करते हैं. अन्य कोई सुविधा भी यहां पर नहीं है.

बैतूल। अगर समाज में शिक्षा की अलख जगाने का जज्बा हो तो फिर कोई मुसीबत मायने नहीं रखती. कुछ ऐसा ही काम कर रहे हैं बैतूल जिले के भण्डारपानी गांव में रहने वाले शिक्षक गोरेलाल बारस्कर जो करीब 1800 फीट ऊंचाई पर जाकर भी बच्चों को पढ़ाने में जुटे हैं. वे पिछले पांच सालों से निशुक्ल शिक्षा दे रहे हैं.

पांच सालों से बच्चों को पढ़ा रहे है शिक्षक गोरेलाल
पांच सालों से बच्चों को पढ़ा रहे है शिक्षक गोरेलाल

बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी तहसील मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर भण्डारपानी गांव जो छिड़वाड़ा जिले की सीमा पर पहाड़ी पर बसा है. जहां तक पहुंचने के लिए सड़क तक नहीं है. पहाड़ी रास्ते से यहां तक पहुंचना आसान नहीं है. यहां रहने वाले आदिवासी परिवारों के बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल तक नहीं था. ऐसे में श्रमिक आदिवासी संगठन और समाजवादी जन परिषद ने बच्चों की पढ़ाई के लिए 'समता पाठशाला' नामक स्कूल साल 2007 में शुरू किया.

बच्चों के साथ शिक्षक गोरेलाल
बच्चों के साथ शिक्षक गोरेलाल

गांव में ही रहकर देते हैं शिक्षा

स्कूल तो शुरू हो गया पर कोई शिक्षित युवा बच्चों को निशुल्क पढ़ाने नहीं मिल रहा था. तब सालीवाड़ा गांव के गोरेलाल बारस्कर ने यह जिम्मेदारी उठाई. गोरेलाल रोज 40 किलोमीटर दूर से अप-डाउन संभव नहीं था और ना ही रोज उतनी ऊंची पहाड़ी चढ़ना और उतरना ही संभव था, लिहाजा उन्होंने वहीं रहने का निर्णय लिया. ग्रामीण उनके खाने की व्यवस्था कर देते थे. वहीं रहने की व्यवस्था झोपड़ीनुमा स्कूल में ही थी. इस तरह पूरे पांच साल से वे बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहे हैं.

1800 फीट ऊंचाई पर होने से नहीं बन सका स्कूल
1800 फीट ऊंचाई पर होने से नहीं बन सका स्कूल

अतिथि शिक्षक हैं गोरेलाल

हालांकि साल 2012 में शासन ने यहां प्राथमिक स्कूल खोल दिया पर और अतिथि शिक्षक के रूप में किसी और की नियुक्ति कर दी. लेकिन गोरेलाल के शिक्षा के प्रति समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा को देखते हुए ग्रामीणों और संगठन ने उन्हें ही अतिथि शिक्षक नियुक्त करने की मांग की. इस पर अधिकारी भी माने और तब से वे बतौर अतिथि शिक्षक सेवाएं दे रहे हैं. हालांकि इसमें भी महीने भर में अधिकतम पांच हजार रुपये के मानदेय का ही प्रावधान है जो कि बेहद कम है.

पिछले साल ही शिक्षक गोरेलाल का विवाह हुआ और अपने पति का शिक्षा के प्रति समर्पण भाव देख कर उनकी पत्नी भी उसी दुर्गम और सुविधा विहीन गांव में खुशी-खुशी रह रही हैं. गोरेलाल बताते हैं कि वह अपने ही गांव में आराम से रह सकते थे और अन्य जगह भी सुविधाजनक नौकरी उन्हें मिल सकती थी. पर इन गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई और शिक्षक नहीं मिलता. इन बच्चों को पढ़ा-लिखाकर कुछ बनाने की ललक ही उन्हें यहां तक खींच लाई

इसलिए नहीं बन पा रहा स्कूल भवन

इस गांव में स्कूल भवन पांच साल पहले स्वीकृत हो चुका है पर आज तक बन नहीं पाया है. इसकी वजह यह है कि इतनी ऊंची पहाड़ी पर निर्माण सामग्री पहुंचाना संभव ही नहीं है. इसलिए ग्रामीणों द्वारा तैयार झोपड़ी में ही स्कूल लगता हैय ग्रामीण ही हर साल इसकी मरम्मत करते हैं. अन्य कोई सुविधा भी यहां पर नहीं है.

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