बैतूल। कोई भी त्यौहार अपनी निश्चित तिथि पर ही मनाया जाता है. लेकिन बैतूल में एक ऐसा गाँव है, जहां होली-दिवाली या कोई भी त्यौहार तय तिथि से एक दिन पहले ही मना लिया जाता है. त्यौहार के दिन गाँव में सन्नाटा पसरा रहता है, इसी के चलते यहां होली भी एक दिन पहले ही मना ली जाती है. डर और अंधविश्वास के कारण ग्रामीण यह परंपरा वर्षो से निभाते आ रहे हैं.
बरेलीपार गांव के लोगों ने एक दिन पहले उड़ाए रंग-गुलाल
होली 18 मार्च को है, लेकिन इस गाँव के लोगों एक दिन पहले ही एकदूसरे को रंग-गुलाल लगा रहे हैं. बरेलीपार बैतूल के घोड़ाडोंगरी विकासखंड का एक आदिवासी बाहुल्य गाँव है, यहां केवल होली ही नहीं बल्कि हर त्यौहार निश्चित तिथि से एक दिन पहले मनाने का नियम है. जबकि मुख्य त्यौहार के दिन गाँव मे अजीब सा डर और खामोशी होती है, होली पर भी यहां रंगोत्सव होता है, लेकिन धुरेड़ी से एक दिन पहले.
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अनहोनी के डर से नहीं मनाते त्यौहार
गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि देश आजाद होने के बाद से अब तक गाँव में यही नियम चला आ रहा है. ऐसा बताया जाता है कि दशकों पहले यहां जब भी कोई त्यौहार मनाया जाता था, तो गाँव मे कोई अनहोनी हो जाती थी. इसके चलते कई वर्षों तक तो यहां कोई भी त्यौहार मनाया ही नहीं गया. लेकिन जब दोबारा शुरुआत हुई तो दहशत के चलते हर त्यौहार एक दिन पहले ही मनाया जाने लगा.
कोरोना के चलते 2 सालों से नहीं खेली गई होली
पिछले दो सालों से कोरोना संक्रमण के चलते यहां होली नहीं मनाई गई. लेकिन इस बार सब कुछ सामान्य होने पर लोग होली पर धूम मचाने को तैयार हैं, तब भी बरेलीपार गाँव मे वही डर और दहशत का माहौल बरकरार है. बीती बातों को भूलकर यहां के ग्रामीण अंधविश्वास और दहशत से बाहर निकलने को तैयार नहीं हैं. लेकिन राहत की बात ये है कि एक दिन पहले ही सही, ये लोग कम से कम हर त्यौहार पर जश्न तो मना ही लेते हैं.