बड़वानी। कोरोना महामारी के चलते कई लोगों के जीवन की दशा और दिशा बदल दी. कोरोना काल में लोग अपने स्थापित रोजगार के छिन जाने के बाद मजबूरी में वैकल्पिक रोजगार की ओर मुड़ रहे हैं. ऐसा ही एक मामला बड़वानी जिले के अंजड़ नगर में सामने आया है. जहां मजबूरन एक शिक्षक ने कलम छोड़ सब्जी का ठेला अपने हाथों में थाम लिया. परिवार को पालने की जिम्मेदारी के आगे उसने गली- मौहले में जाकर सब्जी बेचनी शुरू कर दी, ताकि घर चल सकें. खास बात ये है कि शिक्षक विजय गांठे व्यापम परीक्षा में 99 अंक प्राप्त किए हुए हैं.
कोरोना काल में शिक्षक ने थामा सब्जी का ठेला
अंजड़ के रहने वाले विजय गांठे संस्कृत भाषा के शिक्षक हैं, और कोरोना काल से पहले निजी स्कूल में 12 हजार रुपये प्रति माह वेतन ले रहे थे, लेकिन कोरोना काल में स्कूल बंद होने के चलते बेरोजगार हो गए. कुछ समय जमा पूंजी से घर चलता रहा, पर स्कूलों पर ताले लगे होने के चलते उन्होंने सब्जी का ठेला लगाने का फैसला किया. पिछले तीन से चार महीने से सब्जी बेच कर अपना घर चला रहे हैं.
निजी संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों की परेशानी बढ़ी ,रोजगार का संकट
कोविड-19 के दौर में लगे लॉकडाउन से निजी शिक्षण संस्थाओं के बंद होने के कारण कई शिक्षक मजदूरी करने, सब्जी बेचने, पंचर जोड़ने जैसे कार्य में लग गए हैं. इतना ही नहीं, विषम परिस्थितियों में परिवार का पालन पोषण करने के लिए अपना शहर छोड़कर अन्य शहरों में जाकर मजदूरी कर रहे हैं. निजी स्कूलों के बंद होने से वहां कार्यरत शिक्षक समुदाय भी काफी हद तक प्रभावित हुआ है. जिनमें शिक्षक गांठे भी हैं. जो परिवार के पालन पोषण के लिए अंजड़ नगर के विभिन्न चौराहों पर सब्जी बेचकर अपना गुजारा कर रहे हैं.
शासकीय नौकरी के लिए भी पास की पात्रता परीक्षा
कोरोना से पहले निजी शिक्षण संस्था में कार्य करने वाला यह शिक्षक अब बेरोजगारी के चलते ठेले पर सब्जी का व्यवसाय कर रहे हैं, जबकि व्यापम परीक्षा में 99 अंक प्राप्त हासिल किए थे. इस परीक्षा के परिणाम के आधार पर शासकीय नौकरी में प्राथमिकता मिलती है. कोरोना महामारी के चलते शासकीय नियुक्तियों में फिलहाल रोक लगी है.
बेटा भी देता है पिता का साथ, सरकार से लगाई गुहार
शिक्षक विजय गाठे ने बताया कि अपने बेटे को साथ लेकर ठेलागाड़ी पर सब्जी लेकर बाजार में निकलते हैं, ताकि वो किसी गलत संगत में नहीं पड़े और मोबाइल से भी दूर रहे. शिक्षक ने सरकार से मांग की है कि शिक्षित समुदाय की दुर्दशा की ओर ध्यान दिया जाए, और उन्हें कुछ मुआवजा दिया जाना चाहिए, ताकि वे अपने परिवार का भरण पोषण आराम से कर सके.