बड़वानी। कोरोना काल में हुए लॉकडाउन के दौरान कई प्रवासी मजदूर अपने-अपने गांव-घर बड़ी ही कठिनाइयों से वापस आए. मई तक सबकी निगाहें प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के दौरान उनकी मजबूरी और जद्दोजहद पर टिकी हुई थीं. तमाम कष्टों को सहने के बाद अपने घर लौटे मजदूरों की परेशानियां घर लौटने पर भी कम नहीं हुई. भूख की आग और आर्थिक तंगी ने एक बार फिर अब मजदूरों को उल्टे पांव मजदूरी के लिए दूसरे राज्यों पर जाने के लिए मजबूर कर दिया है. वहीं पलायन कर लौटे मजदूरों के लिए प्रशासन ने कई घोषणाएं की थी, जो की अब खोखली नजर आ रही हैं.
मनरेगा के तहत दिया जाना था काम
ढोल पीट-पीटकर की गई घोषणाएं की प्रवासी मजदूरों को उनके ही गांव में मनरेगा के तहत काम दिया जाएगा, अब कहीं सुनाई नहीं दे रही और न ही काम करते हुए मजदूर दिख रहे हैं. काम देने के सरकारी दावों के बीच कोरोना काल में एक बार फिर मजदूरों के पलायन का सिलसिला शुरू हो गया है. जिला कलेक्टर से लेकर लोकसभा सांसद और बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता ने मनरेगा के अंतर्गत जिले के मजदूरों को रोजगार दिए जाने का वादा किया था, लेकिन न तो वो वादा पूरा होता दिख रहा है और न ही वादा करने वाले. कम काम और कम दाम मजदूरों के लिए अब पलायन की मजबूरी बना.
फिर पलायन शुरू
कोविड -19 के खौफ की वजह से कई मजदूर गुजरात और महाराष्ट्र का दामन छोड़कर सरकार की मनरेगा योजना की छांव तले आ तो गए थे लेकिन एक बार फिर उनका मोह प्रदेश सरकार सहित मनरेगा योजना से भंग हो गया है. अब मजदूर अपनी जान जोखिम में डालकर पलायन कर रहे हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि मनरेगा योजना के तहत उन्हें भुगतान कम मिल रहा है, वहीं दूसरी तरफ उन्हें पर्याप्त काम न मिलने की वजह से खाने के लाले पड़ गए हैं. नतीजा यह की चार पहिया वाहन से एक बार फिर मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है.
वहीं मजदूर अपने घरों की ओर आ रहे थे तो शासन-प्रशासन की निगाहें उन पर जमी हुई थी लेकिन अब जब यह वापस जा रहे है तो प्रशासन को इस मामले की भनक तक नहीं मिल रही है. कुल मिलाकर अपर्याप्त काम और मजदूरी ने मजदूरों को जान जोखिम में डालने की मजबूरी की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया है.
ऊंट के मुंह में जीरा है योजना
प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने जिले में करीब 50 हजार लोगों को मनरेगा के तहत काम का पिटारा खोलने का ढिंढोरा तो पिट दिया था लेकिन यह योजना ऊंट के मुंह मे जीरा की तरह साबित हो रही है. मजदूर ज्यादा है और काम बहुत कम. नतीजतन कहीं लोगों को काम नहीं मिल पा रहा है, जिसके चलते असंतुष्ट मजदूरों ने मनरेगा में काम करने की बजाए वापस अपने पुराने कामों पर लौटने का मन बना लिया है.
पलायन को मजबूर मजदूर
जिले से वापस पलायन कर आए लोगों का कहना है कि जितना रुपए यहां एक दिन की दाड़की में मिलता है उससे दुगना गुजरात मे मिल जाता है. जिसके चलते मजदूर गुजरात के मूवी, गोंडल, जूनागढ़, राजकोट, चोटिला सहित कई शहरों में चार पहिया वाहनों से कूच कर रहे हैं. जिले के बोराली, पलसूद, सिंधी, रेवजा, मोजली, जलखेड़ा सहित कई पंचायतों से रोजाना सैंकड़ों की संख्या में मजदूर पलायन करने को मजबूर हैं.
वहीं प्रशासन द्वारा दावा किया जा रहा है कि बड़वानी जिले की 416 पंचायतों में से 412 ग्राम पंचायतों में चार हजार 510 मनरेगा अंतर्गत काम चल रहे हैं. जिसमें कपिलधारा कूप, आवास, सुदूर संपर्क सड़क, सीसी रोड, खेत-तालाब, पौधरोपण, आंगनबाड़ी, राजीव गांधी सेवा केंद्र, तालाब विस्तार, तालाब जीर्णोद्धार, चेक डेम, बोल्डर चेक डेम, निर्मल नीर समेत कई काम शामिल हैं.
जानकारी के मुताबिक जनपद बड़वानी में 350 काम, निवाली में 278 ,पानसेमल में 746, पाटी में 422 , राजपुर में 822 , सेंधवा में 1516 और ठीकरी में 376 काम चल रहे हैं. वहीं जनप्रतिनिधियों द्वारा इन कामों का बखान भी बढ़चढ़कर कर किया जा रहा है. मनरेगा अंतर्गत चलाए जा इन कामों को पंचायतो में काम एक या दो गांवो में ही चलता है. ऐसे में चुनिंदा मजदूरों को ही मजदूरी मिल पाती है. इसके विपरीत गुजरात मे उन्हें प्रतिदिन 300 से 400 रुपए मजदूरी मिल जाती है.