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नागपंचमी पर भीलट देव धाम में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब, जानें मंदिर के पीछे की पौराणिक कथा - भीलट बाबा का जन्म

देशभर में ऐतिहासिक मंदिर के रूप में प्रसिद्ध और सतपुड़ा की नैसर्गिक खूबसूरती से भरपूर बड़वानी में स्थित है बाबा भीलट देव का मंदिर. इस मंदिर की कई खासियतें हैं, जिन्हें जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर..

नागपंचमी पर भिलट देव धाम में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब
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Published : Aug 5, 2019, 1:52 PM IST

बड़वानी। सतपुड़ा की हरी-भरी वादियों में बड़वानी के नागलवाड़ी गांव में भीलट देव शिखरधाम है. सतपुड़ा पर्वत पर चारों ओर से हरियाली ओढ़े भीलट देव धाम किसी तीर्थ से कम नहीं है. नाग पंचमी पर यहां लाखों श्रद्धालु भीलट देव के दर्शन कर खुद को भाग्यशाली मानते हैं. मंदिर का निर्माण गुलाबी पत्थरों से किया गया. इस मंदिर की वास्तुकला दर्शनीय है. नागपंचमी के दिन करीब 5 से 7 लाख श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते हैं.

नागपंचमी पर भीलट देव धाम में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब
खासतौर पर निःसंतान दंपतियों के लिए ये मंदिर श्रद्धा का केंद्र है. लोगों का दावा है कि यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना जरूर पूरी होती है. कुछ लोग इस मंदिर को चमत्कारिक मानते हैं.
भीलट देव धाम का इतिहास
पौराणिक कथाओं के मुताबिक प्राचीन समय में एक किन्नर ने संतान प्राप्ति की मनोकामना कर इन्हें आज़माना चाहा था, तब कुछ समय बाद भिलट देव के आशीर्वाद से किन्नर गर्भवती हो गया था.
Information about Bhilat Baba Nagalwadi in Barwani
इस मंदिर की वास्तुकला दर्शनीय है
हरदा जिले के रोल गांव पाटन में जन्मे भिलट देव भगवान शिव के वरद पुत्र माने जाते हैं. उनका जन्म एक गवली परिवार में हुआ था. इसी गांव में रहते थे जागीरदार राणा रेलन और उनकी पत्नी मैदा बाई. संतान नहीं होने से दुखी पति-पत्नी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की, जिसके बाद शिव ने उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद दिया, लेकिन उन्होंने दंपति को कहा कि जिस दिन आप मेरी भक्ति करना छोड़ देंगे, उस दिन मैं उस पुत्र को वापस ले लूंगा.विक्रम संवत 1220 में राणा के यहां बाबा भिलट देव का जन्म होता है, लेकिन कुछ साल बाद पति-पत्नी भगवान का स्मरण करना भूल जाते हैं. इस समय भगवान शंकर जोगी का वेश धर रोलन गांव आते हैं और एक वृक्ष के नीचे अपना डेरा जमा कर बैठ जाते हैं. मैदा बाई बाबा भीलटदेव को झोली में सुलाकर मकान के समीप पानी लेने बह रही माचक नदी पर जाती है. इधर भगवान शिव बच्चे को झोली से निकाल कर ले जाते हैं और उस झोली में एक नाग को छोड़ देते हैं. भीलट देव की मां जब पानी लेकर वापस आती है तो झोली खाली देख कर बहुत विलाप करती है और झोली में रखे नाग को निकालती है, तभी उन्हें वचन की याद आती है. वह नाग को सिलट नाम देकर पालती है.
Information about Bhilat Baba Nagalwadi in Barwani
सतपुड़़ा की हरी-भरी वादियों में बड़वानी के नागलवाड़ी गांव में भीलट देव शिखरधाम
माना जाता है कि वे आसुरी शक्तियों से लोहा लेने के लिए अवतरित हुए थे. बाबा भीलट देव ने अपनी शक्तियों से जनमानस की सेवा के लिए नांगलवाड़ी गांव और तपस्या के शिखर को चुना. मंदिर संचालकों का कहना है कि वर्षों से चली आ रही पशु बलि को इस स्थान पर प्रतिबंधित कर दिया है. नागलवाडी शिखर धाम पर भीलट देव के दर्शन कर मन्नतधारी यहां नारियल पर उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत मांगते हैं, साथ ही मन्नत पूरी होने पर नारियल पर सीधा स्वास्तिक बनाकर भगवान को नारियल चढ़ाते हैं.
Information about Bhilat Baba Nagalwadi in Barwani
निःसंतान दंपतियों के लिए ये मंदिर श्रद्धा का केंद्र है
बालक भीलट देव की तंत्र शिक्षा-दीक्षा भगवान शिव और पार्वती की देखरेख में संपन्न होना माना जाता है. तांत्रिक शक्तियों को आजमाने के लिए बाबा भीलट देव अपने साथी भैरव के साथ देशभर में जाकर कई तांत्रिकों ओझाओं को पराजित कर किया था. बाबा भीलट देव का विवाह बंगाल की राजकुमारी राजल के साथ हुआ था. बाद में बाबा तपस्या के लिए पत्नी सहित सतपुड़ा के पर्वत पर चले गए और दिव्य ज्योति में विलीन हो जाते हैं. मान्यता है कि बाबा आज भी एक अलौकिक शक्ति के रूप में सतपुड़ा के पर्वत पर विराजित है.

बड़वानी। सतपुड़ा की हरी-भरी वादियों में बड़वानी के नागलवाड़ी गांव में भीलट देव शिखरधाम है. सतपुड़ा पर्वत पर चारों ओर से हरियाली ओढ़े भीलट देव धाम किसी तीर्थ से कम नहीं है. नाग पंचमी पर यहां लाखों श्रद्धालु भीलट देव के दर्शन कर खुद को भाग्यशाली मानते हैं. मंदिर का निर्माण गुलाबी पत्थरों से किया गया. इस मंदिर की वास्तुकला दर्शनीय है. नागपंचमी के दिन करीब 5 से 7 लाख श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते हैं.

नागपंचमी पर भीलट देव धाम में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब
खासतौर पर निःसंतान दंपतियों के लिए ये मंदिर श्रद्धा का केंद्र है. लोगों का दावा है कि यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना जरूर पूरी होती है. कुछ लोग इस मंदिर को चमत्कारिक मानते हैं.
भीलट देव धाम का इतिहास
पौराणिक कथाओं के मुताबिक प्राचीन समय में एक किन्नर ने संतान प्राप्ति की मनोकामना कर इन्हें आज़माना चाहा था, तब कुछ समय बाद भिलट देव के आशीर्वाद से किन्नर गर्भवती हो गया था.
Information about Bhilat Baba Nagalwadi in Barwani
इस मंदिर की वास्तुकला दर्शनीय है
हरदा जिले के रोल गांव पाटन में जन्मे भिलट देव भगवान शिव के वरद पुत्र माने जाते हैं. उनका जन्म एक गवली परिवार में हुआ था. इसी गांव में रहते थे जागीरदार राणा रेलन और उनकी पत्नी मैदा बाई. संतान नहीं होने से दुखी पति-पत्नी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की, जिसके बाद शिव ने उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद दिया, लेकिन उन्होंने दंपति को कहा कि जिस दिन आप मेरी भक्ति करना छोड़ देंगे, उस दिन मैं उस पुत्र को वापस ले लूंगा.विक्रम संवत 1220 में राणा के यहां बाबा भिलट देव का जन्म होता है, लेकिन कुछ साल बाद पति-पत्नी भगवान का स्मरण करना भूल जाते हैं. इस समय भगवान शंकर जोगी का वेश धर रोलन गांव आते हैं और एक वृक्ष के नीचे अपना डेरा जमा कर बैठ जाते हैं. मैदा बाई बाबा भीलटदेव को झोली में सुलाकर मकान के समीप पानी लेने बह रही माचक नदी पर जाती है. इधर भगवान शिव बच्चे को झोली से निकाल कर ले जाते हैं और उस झोली में एक नाग को छोड़ देते हैं. भीलट देव की मां जब पानी लेकर वापस आती है तो झोली खाली देख कर बहुत विलाप करती है और झोली में रखे नाग को निकालती है, तभी उन्हें वचन की याद आती है. वह नाग को सिलट नाम देकर पालती है.
Information about Bhilat Baba Nagalwadi in Barwani
सतपुड़़ा की हरी-भरी वादियों में बड़वानी के नागलवाड़ी गांव में भीलट देव शिखरधाम
माना जाता है कि वे आसुरी शक्तियों से लोहा लेने के लिए अवतरित हुए थे. बाबा भीलट देव ने अपनी शक्तियों से जनमानस की सेवा के लिए नांगलवाड़ी गांव और तपस्या के शिखर को चुना. मंदिर संचालकों का कहना है कि वर्षों से चली आ रही पशु बलि को इस स्थान पर प्रतिबंधित कर दिया है. नागलवाडी शिखर धाम पर भीलट देव के दर्शन कर मन्नतधारी यहां नारियल पर उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत मांगते हैं, साथ ही मन्नत पूरी होने पर नारियल पर सीधा स्वास्तिक बनाकर भगवान को नारियल चढ़ाते हैं.
Information about Bhilat Baba Nagalwadi in Barwani
निःसंतान दंपतियों के लिए ये मंदिर श्रद्धा का केंद्र है
बालक भीलट देव की तंत्र शिक्षा-दीक्षा भगवान शिव और पार्वती की देखरेख में संपन्न होना माना जाता है. तांत्रिक शक्तियों को आजमाने के लिए बाबा भीलट देव अपने साथी भैरव के साथ देशभर में जाकर कई तांत्रिकों ओझाओं को पराजित कर किया था. बाबा भीलट देव का विवाह बंगाल की राजकुमारी राजल के साथ हुआ था. बाद में बाबा तपस्या के लिए पत्नी सहित सतपुड़ा के पर्वत पर चले गए और दिव्य ज्योति में विलीन हो जाते हैं. मान्यता है कि बाबा आज भी एक अलौकिक शक्ति के रूप में सतपुड़ा के पर्वत पर विराजित है.
Intro:कल नागपंचमी के लिए स्पेशल स्टोरी-विकास सर से बात करने के बाद केवल raw स्टोरी भेजी है साथ ही उपरोक्त स्लग एवं टाइटल से ड्रेन कैमरे से लिए गए एक्सक्लुसिव विजुअल wrap से भेजे है।
स्टोरी-
बड़वानी जिले में सतपुड़ा पर्वत पर हरीतिमा ओड़े शिखर पर विराजित भिलट देव की तपोस्थली किसी तीर्थ से कम नहीं है । नाग पंचमी पर यहां लाखों श्रद्धालु भिलट देव के दर्शन कर खुद को भाग्य मान मानते हैं, यहां नवनिर्मित विशाल मंदिर की नक्काशी बस देखते ही बनती है देशभर के श्रद्धालुओं का आस्था का केंद्र होने के साथ चमत्कारिक होकर मन्नत पूरी करने वाला है। खासकर निसंतान लोगों के लिए खास श्रद्धा का केंद्र है भिलट देव शिखर धाम नागलवाडी । सर्प आकार में फन फैलाए 3 किलोमीटर की पहाड़ी के शिखर पर बैठे भिलट देव के दर्शन पाकर हर कोई आनंदित होता है। विक्रम सावंत 1220 अर्थात 855 वर्ष प्राचीन यह नांगलवाड़ी धाम भिलट देव के मानव रूप से नागरूप का साक्षी है । संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण करने वाले बाबा भिलट देव ने किन्नर द्वारा अजमाने पर उसको गर्भ ठहरा दिया था । हरदा जिले के रोल गांव पाटन में जन्मे भिलट देव जो कि भगवान शिव के वरद पुत्र के रूप में एक गवली परिवार में जन्मे थे । देशभर में तांत्रिक एवं आसुरी शक्तियों से लोहा लेने के लिए अवतरित हुए थे , किंतु किवदंती के अनुसार नाग रूप में आज के दिन पूजे जाते हैं। बाबा भिलट देव ने अपनी शक्तियों से जनमानस की सेवा के लिए नांगलवाड़ी गांव एवं तपस्या के शिखर को चुना।



Body: एक समय संपूर्ण भारतवर्ष में बंगाल के जादूगरों का घोर आतंक एवं अत्याचार फैला हुआ था, यह जादूगर अपने काले जादू के माध्यम से पूरे देश में अपनी इच्छा अनुसार मनुष्य को पशु पक्षी के रूप में परिवर्तित कर अपना गुलाम बना कर मन चाहे कार्य करवाया करते थे । उस समय निमाड़ क्षेत्र के तत्कालीन होशंगाबाद एवं वर्तमान के हरदा जिले के रोल गांव पाटन में गवली अर्थात यादव समाज के जागीरदार राणा रेलन निवास करते थे इनकी एक पत्नी थी जिसका नाम मैंदा बाई था । राणा जी के यहां कई साल बीत जाने के बाद भी कोई संतान नहीं थी इस कारण दोनों बहुत दुखी रहते थे संतान प्राप्ति के लिए दोनों ने भगवान शिव की तपस्या करने की सोची और घोर तपस्या की इधर भगवान शिव को भी बंगाल के जादू की शक्ति नष्ट करने के लिए अवतार को प्रकट करना था । राणा और उसकी पत्नी की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने पुत्र रत्न प्राप्ति का वरदान दिया किंतु एक शर्त रखी कि जब तक आप मेरा सुमिरन करेंगे मेरी भक्ति करेंगे तब तक यह बालक आपके पास रहेगा अन्यथा में इसे अपने पास ले आऊंगा । विक्रम संवत 1220 में राणा के यहां बाबा भिलट देव का जन्म होता है भिलट देव के जन्म के कुछ समय पश्चात सांसारिक माया के वशीभूत राणा दंपत्ति भगवान का स्मरण करना भूल जाते हैं।
इस समय भगवान शंकर जोगी का वेश धर रोलन गांव आते हैं और एक वृक्ष के नीचे अपना डेरा जमा कर बैठ जाते हैं। मैदा बाई बाबा भिलटदेव को झोली में सुला कर मकान के समीप पानी लेने बह रही माचक नदी पर जाती है। भगवान शिव बच्चे को झोली से निकाल कर ले जाते हैं एवं उस झोली में एक नाग को छोड़ देते हैं । भिलट देव की मां जब पानी लेकर वापस आती है तो झोली खाली देख कर बहुत विलाप करती है एवं झोली में रखे नाग को निकालती है तभी उन्हें वचन की याद आती है । वह नाग को सिलट नाम देकर पलती है। इधर भगवान शिव बालक भिलट को लेकर पचमढ़ी के चौरागढ़ नामक स्थान पर ले जाते हैं और माता पार्वती के साथ अदृश्य रूप से तंत्र मंत्र के संपूर्ण शिक्षा से परिपूर्ण करते हैं। भीलट को एक बार अपने मित्र भैरव के साथ नदी किनारे सोने के बाल मिलते हैं, उसे ले जाकर मां भगवती से पूछते हैं यह क्या है माता भिलट देव को एक वृतांत सुनाती है और कहती है यह बाल बंगाल की जादूगर राजकुमारी के हैं तब बाबा भिलट मन ही मन उस राजकुमारी से विवाह करने का प्रण लेते है, और जिद करके अपने साथी भैरव के साथ बंगाल निकल पड़ते हैं। काफी दिनों के सफर के बाद दोनों बंगाल के काहूर क्षेत्र में पहुंचते हैं। एक पानी का कुआं देख खाना बनाने का विचार आता है भिलट देव भैरव से कहते है तुम गांव से आग लेकर आओ तब तक मैं कुएं से पानी लाता हूं । भैरव आग लेने के लिए गंगू नामक एक तेलन के यहां पहुंच जाते हैं जो बंगाल की कुख्यात जादूगरनी रहती है । वह भैरव को जादू से बेल बनाकर तेल के घाने में जोत देती है। इधर काफी देर तक भैरव के नहीं आने पर अपनी शक्तियों से ज्ञात करते हैं और देखते हैं वह जादूगरनी के यहां बेल बने हैं इधर गंगू तेली की तेल की घाणी चरम पर पहुंचती है, उसमें पानी की आवश्यकता होती है तक जादूगरनी अपनी बहू को पानी लेने के लिए कुए पर भेजती है । कुए पर पहले से मौजूद भिलट देव अपने साथी को छुड़ाने के लिए जादूगरनी की बहू को गिलहरी बनाकर पेड़ पर बिठा देते हैं काफी देर होने पर गंगू जादूगरनी खुद उसे ढूंढने कुए पर आती है तब अपनी बहू को गिलहरी बनी देख क्रोधित होकर भिलट देव से जादू का खतरनाक द्वंद करती है। परंतु अंततः हार जाती है इसी तरह एक-एक करके बंगाल के जादूगर जिसमें बाणिया बाबा, लूणिया चमार , साफिर फकीर आदि को हराकर उनसे बुरे कार्य छुड़ाकर उनकी जादुई शक्तियों को मानव सेवा में लगाने की शिक्षा देते हैं। एक दिन बंगाल के राजा गन्धि की राजकुमारी राजल बगीचे में एक सांप काट लेता है। बंगाल के कई नीम हकीम जादूगर उसका इलाज करते हैं किंतु कोई भी उसकी बेहोशी दूर नहीं कर पाता, तब राजा घोषणा करता है कि जो भी राजकुमारी की निंद्रा दूर कर देगा उसके साथ उसका विवाह होगा तब भिलट देव अपनी विद्या से राजकुमारी को स्वस्थ कर देते हैं और उनसे विवाह कर वापस लौटते हैं, तब उनसे पराजित सभी जादूगर उनकी दासता स्वीकार कर जनकल्याण के लिए साथ चलने का आग्रह करते हैं । भिलट देव उनको साथ लेकर चौरागढ़ आते हैं तब मां कहती है इन जादूगरों के साथ पश्चिम में सतपुड़ा पर्वत की तलहटी में नागलवाड़ी स्थान पर जाकर दीन दुखियों एवं जनकल्याणकारी कार्य करो । इस तरह बाबा भिलट देव अपने साथियों के साथ सतपुड़ा के घने जंगलों से घिरे इस बीहड़ को आबाद कर जीवन पर्यंत लोक कल्याण के कार्य करते रहे हैं, एवं अंत में तपस्या हेतु सतपुड़ा के उच्च शिखर को चुनते हैं पत्नी सहित सारे साथी शिखर की ओर चल पड़ते हैं। शिखर के समीप पहुंचने से पहले भीलटदेव रानी राजल देवझिरी से पानी कहते है, लेकिन रानी वापस नहीं आती वहीं दिव्य ज्योति में विलीन हो जाती है । इधर शिखर पर आगे बढ़ने पर सभी साथी एक एक कर रास्ते में ही रह जाते हैं अंत में बाबा भिलट देव शिखर पर पहुंचकर तपस्या रत रहते दिव्य ज्योति में विलीन हो जाते हैं और आज भी एक अलौकिक शक्ति के रूप में इस शिखर पर विराजित है। शिखर धाम से नीचे नागलवाड़ी गांव में भिलट देव की गादी एवं जन्म स्थान रोलनगांव पाटन पर प्रतीक अवशेष मौजूद है।
शिखर धाम प्रमुख राजेंद्र बाबा का कहना है कि बाबा भिलट देव के चमत्कार आज भी प्रासंगिक है सच्चे दिल से संतान प्राप्ति की कामना लेकर आने वाले श्रद्धालु यहां मन्नत मांगते हैं एक बार एक किन्नर ने बाबा की परीक्षा लेते हुए चुनौती दी कि अगर वास्तव में तू निसंतान को संतान सुख देता है तो मुझे भी संतान सुख प्रदान कर तो बाबा की माया से उस किन्नर को गर्भ ठहर जाता है और पूरे 9 माह का गर्भ पलता है लेकिन नारी गत समस्या के चलते प्रसव के समय उसकी मृत्यु हो जाती है जिस की समाधि आज भी गांव के पास कहीं मौजूद है ,तब से आज तक कोई किन्नर रात्रि विश्राम नांगलवाड़ी क्षेत्र में नहीं करता है और नहीं सीमा में प्रवेश करता है ।
मंदिर संचालकों का कहना है कि वर्षों से चली आ रही पशु बलि को इस स्थान पर प्रतिबंधित कर दिया है , जन जागृति का बिगुल फूंकते हुए बलि प्रथा पर पूर्ण विराम लगा दिया है । भिलट देव की तपोस्थली पर निरीह पशुओं के खून से स्थान की पवित्रता को बनाए रखने के लिए यह बड़ा कदम है। भिलट देव शिखर पर नागपंचमी के दिन करीब पांच से सात लाख श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं जिनके लिए 20 एकड़ के खेत में संपूर्ण पार्किंग व्यवस्था रहती है साथ ही देश के कई राज्यों से श्रद्धालु यहां आते रहते हैं।
नागलवाडी शिखर धाम पर भिलट देव के दर्शन कर मन्नत धारी यहां नारियल पर उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत मांगते हैं साथ ही मन्नत पूरी होने पर नारियल पर सीधा स्वास्तिक बनाकर भगवान को नारियल चढ़ाते हैं।
बाइट01-02-राजेन्द्र बाबा-मंदिर प्रमुख
बाइट03-राजेन्द्र गोयल-मन्दिर संचालक
बाइट04-मनोज गुप्ता-मन्दिर संचालक
बाइट05-ऋषि निकम-शृद्धालु-खरगोन


Conclusion: पंचमी के अवसर पर पश्चिम निमाड़ के तीर्थस्थल नांगलवाड़ी के शिखर धाम पर लाखों श्रद्धालु बाबा भिलट देव के दर्शन करेंगे हाथी ने संतान एवं पुत्र प्राप्ति की चाह रखने वाले श्रद्धालु मन्नत लेंगे साथ ही जिन की मनोकामना पूर्ण होती है वह अपनी मन्नत उतारेंगे ।
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