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सरकारी नौकरी छोड़ विदेश तक फैलाया योग, पानसेमल के कृष्णकांत ने मध्यप्रदेश का बढ़ाया मान

बड़वानी जिले के पानसेमल निवासी कृष्ण कांत सोनी अपनी शिक्षक की नौकरी छोड़कर निःशुल्क लोगों को योग सिखा रहे हैं. कृष्ण कांत सोनी ने योग को अपना लक्ष्य बनाकर जिले में योग गुरू का सम्मान पाया है. जानिए नौकरी छोड़कर कृष्णकांत ने क्यों बनाया योगा को अपना लक्ष्य....

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नौकरी छोड़ निःशुल्क फैला रहे योग का उजाला
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Published : Jun 19, 2020, 3:58 PM IST

बड़वानी। हमारे देश में योग की परंपरा उतनी ही पुरानी है, जितनी भारतीय संस्कृति. योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है. बदलते समय के साथ ये परंपरा विलुप्त होने के अलावा अपनी पहचान खोने लगी थी, लेकिन अब एक बार फिर लोग इसके महत्व को समझने लगे हैं. वर्तमान में कोरोना जैसी महामारी का इलाज भी योग से संभव है, इस बात का दावा भी किया जाने लगा है. लोग योग क्रियाओं के माध्यम से अपना इम्युनिटी पॉवर बढ़ाकर कोरोना संक्रमण पर जीत दर्ज कर रहे हैं.

नौकरी छोड़ निःशुल्क फैला रहे योग का उजाला

कृष्ण कांत कर रहे निःस्वार्थ सेवा

देशभर में कई ऐसे लोग भी हैं जो अपनी निस्वार्थ सेवाएं देकर लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक कर स्वास्थ्य जीवन के सूत्र सिखा रहे हैं. इन्हीं में से एक है बड़वानी जिले के पानसेमल निवासी कृष्ण कांत सोनी. जिसने शिक्षक की नौकरी को छोड़कर योग को अपना मिशन बना लिया है. उन्होंने योग को अपना लक्ष्य बनाकर योग गुरू का सम्मान जिले में पाया है.

योग को बनाया अपना लक्ष्य

योग को अपना लक्ष्य बनाकर 2011 में शिक्षक की नौकरी छोड़कर कृष्ण कांत निरंतर प्रदेशों से बाहर जाकर बच्चे, जवान और बड़ों को योग सिखाने का काम बखूबी कर रहे हैं. योग गुरू कृष्ण कांत सोनी की 1986 में पहली बार आर्मी में नौकरी लगी थी, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से 1 माह में ही नौकरी छोड़ कर वापस लौट आए. इसके बाद 1987 में पुलिस विभाग में 1 साल तक आरक्षक के पद पर सेवाएं दी और निजी कारणों से नौकरी छोड़ दी. 1988 में शिक्षक की नौकरी मिली, लेकिन यहां अधिकारियों के रवैए के कारण वीआरएस ले लिया.

पेंशन राशि का उपयोग योग में

योग गुरू सोनी की मां भी स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत थी जो अब रिटायर होकर पेंशनर हैं. दोनों मां-बेटे की पेंशन से मिलने वाली राशि का उपयोग कृष्ण कांत सोनी योग सिखाने और घर चलाने में लगाते हैं, जिससे उन्हें सुकून मिलता है. योग गुरू कृष्ण कांत सोनी पिछले 19 सालों से प्रदेश सहित महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, हरियाणा और दिल्ली तक जाकर लोगों को योग के गुर सिखा चुके हैं. इसके अलावा स्कूलों, पुलिस विभाग और छात्रावास सहित अन्य संस्थानों में निरंतर योग का अलख जगाने का काम कर रहे हैं.

योग गुरू के नाम से बनाई पहचान

जिले में योग गुरू के नाम से पहचान बनाने वाले कृष्णकांत कैलाश, मानसरोवर, श्रीलंका, कंबोडिया और मलेशिया की यात्रा भी कर चुके हैं. वहीं हर यात्राओं के दौरान उन्होंने अपने मिशन को नहीं छोड़ा. जहां समय और जगह मिलती वे लोगों को योग के गुर सिखाने में जुट जाते हैं.

योग गुरू सोनी ने बताया कि वह जहां भी गए उनके साथ चल रहे लोगों को योग की क्रिया सिखाकर स्वस्थ रखने का काम करते रहे हैं. योगगुरू सोनी अपने साथ झोला रखते हैं, जिसमें पेंशन की राशि से योगा उपकरण खरीद कर निःशुल्क वितरित करते हैं. योगा के माध्यम से कई लोग गम्भीर बीमारियों से छुटकारा पा चुके हैं और स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं.

योग के प्रति समर्पण भाव के पीछे कृष्ण कांत ने बताया कि उन्होंने भारतीय संस्कृति का गहराई से अध्ययन किया है, साथ ही देश और विदेश की यात्रा कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि वे प्रदेश और देश में भारतीय संस्कृति को बनाए रखने और लोगों को स्वस्थ रखने के लिए योग का प्रदेश, देश और विदेश में निःशुल्क प्रचार प्रसार कर रहे हैं.

बड़वानी। हमारे देश में योग की परंपरा उतनी ही पुरानी है, जितनी भारतीय संस्कृति. योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है. बदलते समय के साथ ये परंपरा विलुप्त होने के अलावा अपनी पहचान खोने लगी थी, लेकिन अब एक बार फिर लोग इसके महत्व को समझने लगे हैं. वर्तमान में कोरोना जैसी महामारी का इलाज भी योग से संभव है, इस बात का दावा भी किया जाने लगा है. लोग योग क्रियाओं के माध्यम से अपना इम्युनिटी पॉवर बढ़ाकर कोरोना संक्रमण पर जीत दर्ज कर रहे हैं.

नौकरी छोड़ निःशुल्क फैला रहे योग का उजाला

कृष्ण कांत कर रहे निःस्वार्थ सेवा

देशभर में कई ऐसे लोग भी हैं जो अपनी निस्वार्थ सेवाएं देकर लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक कर स्वास्थ्य जीवन के सूत्र सिखा रहे हैं. इन्हीं में से एक है बड़वानी जिले के पानसेमल निवासी कृष्ण कांत सोनी. जिसने शिक्षक की नौकरी को छोड़कर योग को अपना मिशन बना लिया है. उन्होंने योग को अपना लक्ष्य बनाकर योग गुरू का सम्मान जिले में पाया है.

योग को बनाया अपना लक्ष्य

योग को अपना लक्ष्य बनाकर 2011 में शिक्षक की नौकरी छोड़कर कृष्ण कांत निरंतर प्रदेशों से बाहर जाकर बच्चे, जवान और बड़ों को योग सिखाने का काम बखूबी कर रहे हैं. योग गुरू कृष्ण कांत सोनी की 1986 में पहली बार आर्मी में नौकरी लगी थी, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से 1 माह में ही नौकरी छोड़ कर वापस लौट आए. इसके बाद 1987 में पुलिस विभाग में 1 साल तक आरक्षक के पद पर सेवाएं दी और निजी कारणों से नौकरी छोड़ दी. 1988 में शिक्षक की नौकरी मिली, लेकिन यहां अधिकारियों के रवैए के कारण वीआरएस ले लिया.

पेंशन राशि का उपयोग योग में

योग गुरू सोनी की मां भी स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत थी जो अब रिटायर होकर पेंशनर हैं. दोनों मां-बेटे की पेंशन से मिलने वाली राशि का उपयोग कृष्ण कांत सोनी योग सिखाने और घर चलाने में लगाते हैं, जिससे उन्हें सुकून मिलता है. योग गुरू कृष्ण कांत सोनी पिछले 19 सालों से प्रदेश सहित महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, हरियाणा और दिल्ली तक जाकर लोगों को योग के गुर सिखा चुके हैं. इसके अलावा स्कूलों, पुलिस विभाग और छात्रावास सहित अन्य संस्थानों में निरंतर योग का अलख जगाने का काम कर रहे हैं.

योग गुरू के नाम से बनाई पहचान

जिले में योग गुरू के नाम से पहचान बनाने वाले कृष्णकांत कैलाश, मानसरोवर, श्रीलंका, कंबोडिया और मलेशिया की यात्रा भी कर चुके हैं. वहीं हर यात्राओं के दौरान उन्होंने अपने मिशन को नहीं छोड़ा. जहां समय और जगह मिलती वे लोगों को योग के गुर सिखाने में जुट जाते हैं.

योग गुरू सोनी ने बताया कि वह जहां भी गए उनके साथ चल रहे लोगों को योग की क्रिया सिखाकर स्वस्थ रखने का काम करते रहे हैं. योगगुरू सोनी अपने साथ झोला रखते हैं, जिसमें पेंशन की राशि से योगा उपकरण खरीद कर निःशुल्क वितरित करते हैं. योगा के माध्यम से कई लोग गम्भीर बीमारियों से छुटकारा पा चुके हैं और स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं.

योग के प्रति समर्पण भाव के पीछे कृष्ण कांत ने बताया कि उन्होंने भारतीय संस्कृति का गहराई से अध्ययन किया है, साथ ही देश और विदेश की यात्रा कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि वे प्रदेश और देश में भारतीय संस्कृति को बनाए रखने और लोगों को स्वस्थ रखने के लिए योग का प्रदेश, देश और विदेश में निःशुल्क प्रचार प्रसार कर रहे हैं.

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