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इस बैगा परिवार की सुनो सरकार, पेट भरने को नहीं खाना, बच्चों की हालत देख आ जाएगा रोना

बालाघाट के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र परसवाड़ा में एक परिवार पर मानों मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है. आदिवासी इंदल सिंह की पत्नी की एक महीने पहले मौत हो गई थी. जिसके बाद इंदल भी एक हादसे में घायल हो गए. ऐसे में बेघर बच्चे यहां वहां जीवन यापन करने को मजबूर हैं.

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Published : Jun 25, 2020, 8:15 AM IST

बालाघाट। सरकार हर साल अति पिछड़ी जनजाति बैगा आदिवासियों के नाम पर बैगा ओलंपिक का आयोजन कर करोडों रुपये फूंक देती है, लेकिन जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र परसवाड़ा का एक परिवार ऐसा है जो दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है. सरकार गरीब आदिवासियों के विकास और उन्हें सुविधा देने के लिए कई योजना चला रही है. बावजूद इसके परिवार के पास ना तो खाने के लिए एक दाना है और ना ही सिर पर छत है. वहीं इन बच्चों को तन ढकने तक के लिए कपड़ा भी नसीब नहीं हो रहा.

मासूमों के सिर से उठा मां का साया

जनपद पंचायत परसवाड़ा अंतर्गत आने वाले वनग्राम कुकड़ा में एक बैगा परिवार के चार बच्चे ऐसे हैं जिनकी देखरेख करने वाला तो दूर उनके पास तन ढकने के लिए कपड़ा भी नसीब नहीं हो पा रहा है. इन बच्चों की उम्र बहुत कम है. एक 7 साल, 5 साल, 3 साल और एक तो मात्र एक महीने का ही है. ग्रामीणों द्वारा अपने घर पर ही रख कर दूध पिला कर जैसे तैसे उनकी देखभाल कर रहे हैं. इन बच्चों की मां लगभग महीने भर पहले अपनी चौथी संतान को जन्म देने के तीन-चार दिनों के पश्चात दुनिया से चल बसी. वहीं पिता इंदरजीत भी एक हादसे में अपने दोनों पैर टूट जाने के चलते अस्पताल में भर्ती हैं.

रिश्तेदार रखते हैं बच्चों का ख्याल

इस हालत में ना तो इन बच्चों के पास मां का आंचल है और ना पिता का सहारा. ऐसे में अब यह बच्चे भूखे नंगे बदन जैसे तैसे जी रहे हैं. वहीं इन बच्चों के दूर के रिश्तेदार ने इस परिवार के बच्चों को अपने घर पर पनाह दे रखी है. जिनके द्वारा उन्हें जैसे तैसे दो वक्त का भोजन दिया जा रहा है, लेकिन इस परिवार के सदस्यों का भी कहना है कि दूर के रिश्तेदार होने के चलते हम सप्ताह भर इनकी देखरेख कर सकते हैं. बारिश के मौसम में हम जब काम करने के लिए इधर उधर चले गए तो ऐसे में इन बच्चों की देखभाल कौन करेगा.

बेघर बच्चे इधर उधर जीवन यापन करने को मजबूर

ग्रामीणों का कहना है कि आवास योजना के तहत दिया गया इनका घर टूट चुका है. घर गिर जाने के बाद गांव में इधर उधर जैसे तैसे रह रहे थे. घर टूटे जाने के बाद बच्चों के पिता ने वहीं पर बांस की झोपड़ी तैयार की थी. उसी दौरान उनका पैर टूट जाने से वह घर भी अधर में लटक गया है. ऐसे में यह बच्चे बेघर होकर इधर उधर जीवन यापन करने को मजबूर हैं.

मामला सामने आने के बाद कलेक्टर दीपक आर्य का कहना है कि महिला बाल विकास अधिकारी को मौके पर भेज कर परिवार की सहायता की जा रही है. फिलहाल तीनों बच्चों को बाल सुधार ग्रह लाया जा रहा है और एक महीने के बच्चे के लिए अर्थिक सहायता देने के निर्देश दिए हैं, जिसका पाल पोषण बच्चे की बड़ी मां कर रही है. वहीं कलेक्टर दीपक आर्य ने बेहतर इलाज के लिए स्वास्थ्य विभाग को भी निर्देश दिए हैं.

बालाघाट। सरकार हर साल अति पिछड़ी जनजाति बैगा आदिवासियों के नाम पर बैगा ओलंपिक का आयोजन कर करोडों रुपये फूंक देती है, लेकिन जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र परसवाड़ा का एक परिवार ऐसा है जो दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है. सरकार गरीब आदिवासियों के विकास और उन्हें सुविधा देने के लिए कई योजना चला रही है. बावजूद इसके परिवार के पास ना तो खाने के लिए एक दाना है और ना ही सिर पर छत है. वहीं इन बच्चों को तन ढकने तक के लिए कपड़ा भी नसीब नहीं हो रहा.

मासूमों के सिर से उठा मां का साया

जनपद पंचायत परसवाड़ा अंतर्गत आने वाले वनग्राम कुकड़ा में एक बैगा परिवार के चार बच्चे ऐसे हैं जिनकी देखरेख करने वाला तो दूर उनके पास तन ढकने के लिए कपड़ा भी नसीब नहीं हो पा रहा है. इन बच्चों की उम्र बहुत कम है. एक 7 साल, 5 साल, 3 साल और एक तो मात्र एक महीने का ही है. ग्रामीणों द्वारा अपने घर पर ही रख कर दूध पिला कर जैसे तैसे उनकी देखभाल कर रहे हैं. इन बच्चों की मां लगभग महीने भर पहले अपनी चौथी संतान को जन्म देने के तीन-चार दिनों के पश्चात दुनिया से चल बसी. वहीं पिता इंदरजीत भी एक हादसे में अपने दोनों पैर टूट जाने के चलते अस्पताल में भर्ती हैं.

रिश्तेदार रखते हैं बच्चों का ख्याल

इस हालत में ना तो इन बच्चों के पास मां का आंचल है और ना पिता का सहारा. ऐसे में अब यह बच्चे भूखे नंगे बदन जैसे तैसे जी रहे हैं. वहीं इन बच्चों के दूर के रिश्तेदार ने इस परिवार के बच्चों को अपने घर पर पनाह दे रखी है. जिनके द्वारा उन्हें जैसे तैसे दो वक्त का भोजन दिया जा रहा है, लेकिन इस परिवार के सदस्यों का भी कहना है कि दूर के रिश्तेदार होने के चलते हम सप्ताह भर इनकी देखरेख कर सकते हैं. बारिश के मौसम में हम जब काम करने के लिए इधर उधर चले गए तो ऐसे में इन बच्चों की देखभाल कौन करेगा.

बेघर बच्चे इधर उधर जीवन यापन करने को मजबूर

ग्रामीणों का कहना है कि आवास योजना के तहत दिया गया इनका घर टूट चुका है. घर गिर जाने के बाद गांव में इधर उधर जैसे तैसे रह रहे थे. घर टूटे जाने के बाद बच्चों के पिता ने वहीं पर बांस की झोपड़ी तैयार की थी. उसी दौरान उनका पैर टूट जाने से वह घर भी अधर में लटक गया है. ऐसे में यह बच्चे बेघर होकर इधर उधर जीवन यापन करने को मजबूर हैं.

मामला सामने आने के बाद कलेक्टर दीपक आर्य का कहना है कि महिला बाल विकास अधिकारी को मौके पर भेज कर परिवार की सहायता की जा रही है. फिलहाल तीनों बच्चों को बाल सुधार ग्रह लाया जा रहा है और एक महीने के बच्चे के लिए अर्थिक सहायता देने के निर्देश दिए हैं, जिसका पाल पोषण बच्चे की बड़ी मां कर रही है. वहीं कलेक्टर दीपक आर्य ने बेहतर इलाज के लिए स्वास्थ्य विभाग को भी निर्देश दिए हैं.

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