बालाघाट। 15 अगस्त 1947 को हमारा भारत देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था, इस आजादी को पाने के लिए देश के अनेक महापुरुषों एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपना बलिदान दिया है. बालाघाट जिला भी आजादी के इस आंदोलन से अछूता नहीं रहा है, आज हम जब आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो जिले के अमर सेनानियों को याद करना भी जरूरी है. Azadi ka Amrit Mahotsav
आजादी के आंदोलन में बालाघाट का योगदान: वर्ष 1942 में जब महात्मा गांधी द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ किया गया था तो उसमें जिले के आजादी के सिपाहियों ने भी अपना योगदान दिया था. इसी कड़ी में वारासिवनी में थाने के सामने प्रदर्शन की योजना बनाई गई थी. इस स्थान को आज हम पुराने थाने के रूप में जानते हैं, उस समय के सुपरिंटेंडेंट ऑफ़ पुलिस को जब इस प्रदर्शन की जानकारी मिली तो वह इस स्थल पर पहुंचे थे. वहां पर प्रदर्शनकारी अंग्रेजी शासन के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे थे, प्रदर्शन पर नियंत्रण करने के लिए पुलिस के अधिकारी भी पहुंच गए थे. इसी बीच किसी व्यक्ति ने पीछे से पत्थर फेंक दिया जो किसी पुलिस अधिकारी को लग गया. इसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया और गोली भी चलाई, इससे चारों ओर भगदड़ मच गई. इस भगदड़ के दौरान ही अपने घर से बाहर झांक रहे दशाराम फुलवारी को पुलिस की गोली लग गई और वह शहीद हो गए, उनकी याद में वारासिवनी में इस चौक को गोलीबारी चौक नाम दिया गया है और इस स्थान पर अपनी शहादत देने वाले अमर शहीद दशाराम फुलवारी जी की प्रतिमा भी लगाई गई है. वारासिवनी में हुए इस आंदोलन का मार्गदर्शन अंडरग्राउंड रहकर पंडित परमानंद तिवारी कर रहे थे.
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सूरज लाल गुप्ता का योगदान: ऐसे ही एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तिरोड़ी के सूरज लाल गुप्ता थे, जो अपने साथियों के साथ रामटेक से नागपुर जा रहे अंग्रेजों के खजाने को लूटने के जुर्म में अंग्रेजों द्वारा पकड़े गए थे और इस जुर्म में उन्हें कालापानी की सजा दी गई थी. बता दें कि बालाघाट जिला अंग्रेजी शासन के दौरान सीपी(सेंट्रल प्राविंस) एंड बरार के अंतर्गत आता था और इसकी राजधानी नागपुर थी, बालाघाट सीपी एंड बरार के महाकौशल क्षेत्र के अंतर्गत आता था और इस क्षेत्र से आजादी के लिए लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. मध्यप्रदेश में सर्वाधिक 365 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बालाघाट जिले से थे और उसमें भी सबसे अधिक 92 सेनानी वारासिवनी से थे. जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में सबसे अधिक सेनानी गढ़वाल समाज से थे, जिले के 365 में से 70 से अधिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने 6 माह से अधिक के कारावास की सजा पाई थी. आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी, अरुणा आसफ अली, आचार्य कृपलानी जी, तपस्वी सुंदरलाल भी वारासिवनी पहुंचे थे.
वर्तमान में जिले में एक भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जीवित नहीं है, लेकिन उनकी विधवाएं अभी जीवित है, जिन्हें शासन से सम्मान निधि प्राप्त हो रही है. चलने फिरने में असमर्थ होने के कारण स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के इन परिजनों का प्रशासन के अधिकारियों द्वारा 15 अगस्त को उनके घर जाकर सम्मान किया जाएगा.