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मजदूरों की आंखों से छलका लॉकडाउन का दर्द, अब घर चलाना हो रहा है मुश्किल - कोरोना संकट

कोरोना से गरीब मजदूर तबका बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. रोज कमा कर घर परिवार की जरूरतें पूरी करने वाला ये मजदूर वर्ग आज दाने-दाने के लिए मोहताज हो रहा है. इस संकट के दौर में इन मजदूरों को शासन-प्रशासन और दानदाताओं की मदद से अपना परिवार चलाना पड़ रहा है या कर्ज लेकर अपने परिवार को पालने को मजबूर हो रहे हैं.

Lockdown pain spilled from the eyes
आंखों से छलका लॉकडाउन दर्द
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Published : May 1, 2020, 12:20 PM IST

Updated : May 1, 2020, 12:56 PM IST

अशोकनगर। कोरोना महामारी ने जहां बड़े-बड़े उद्योगपतियों सहित अन्य सक्षम वर्ग को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाया है. वहीं गरीब मजदूर तबका भी इससे बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. रोज कमा कर घर परिवार की जरूरतें पूरी करने वाला ये मजदूर वर्ग आज दाने-दाने का मोहताज हो रहा है. इस संकट के दौर में इन मजदूरों को शासन- प्रशासन और दानदाताओं की मदद से अपना परिवार चलाना पड़ रहा है या कर्ज लेकर अपने परिवार को पालने को मजबूर हो रहे हैं.

आंखों से छलका लॉकडाउन दर्द

अपनी परेशानी बताते हुए मीना बाई ने कहा लॉकडाउन ने हम मजदूरों की कमर तोड़कर रख दी है. ना तो घर से बाहर निकल पा रहे और ना ही घर में खाने के लिए कुछ बचा है. किराए के मकान में रह रहे हैं, किराया देने के लिए तक पैसे नहीं है. अब ऐसी स्थिति में कोई बगैर किराए के कैसे अपने मकान में रखेगा. वहीं राशन के नाम पर चावल दिए गए थे. कब तक बच्चों को चावल ही चावल खिलाए जाएं. अब आर्थिक स्थिति काफी दयनीय हो चुकी है यदि लॉकडाउन बढ़ा तो संकट पैदा हो सकता है.

दान पे चल रहा परिवार

पठार मोहल्ला निवासी नवल ने अपनी दुख भरी कहानी बताते हुए कहा कि जब से लॉकडाउन हुआ है, तब से तीन बच्चे, पत्नी का पेट पालने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. बच्चे कुछ ना कुछ खाने के लिए मांगते हैं. लेकिन मेरे पास अब कुछ भी नहीं बचा. बस हमेशा मन में एक ही ख्याल आता है कि आखिर कोई कब तक खाने को देगा. पार्षद ने राशन दिया वो भी खत्म हो गया. गैस नहीं है तो जंगलों से लकड़ी लाकर चूल्हे पर ही खाना बनाकर दिन गुजारना पड़ रहा है.

खस्ताहाल जिंदगी

वहीं अपने परिवार की खस्ताहाल जिंदगी को साझा करते हुए रिंकी परिहार ने बताया कि घर में केवल पति कमाने वाले हैं.बाकी बच्चे मम्मी-पापा सहित 6 लोग हैं. घर की स्थिति इतनी दयनीय है की एक टाइम का भोजन भी मिलना मुश्किल है. मकान भी कच्चा है. जिसकी फरसिया लकड़ियों के सहारे टिकी हुई हैं. मजदूरी में पति को कुल 300 रुपये मिलते हैं. जिससे घर का खर्च ही नहीं चल पाता मकान की मरम्मत कराना तो दूर की बात है आसपास से आटा मांग कर घर चला रही हैं.

उधार से आया परिवार का खाना

उधार लेकर घर खर्च चलाने वाले भूरा ने बताया कि घर में बुजुर्ग मां-बाप हैं. उन्हें तो भूखे नहीं रख सकते इसके लिए पास के ही एक सरदार जी से 10 हजार का कर्ज लिया था. लेकिन लॉक डाउन बढ़ने के कारण कोई रोजगार ही नहीं मिला. जिससे कर्ज भी नहीं चुका पाया और जो कर्ज लिया था वो भी खत्म हो गया. अब तो मां-बाप को रोटी खिलाने तक की समस्या पैदा हो गई.

देश बचाना भी तो जरूरी है न

आज मजदूर दिवस है, लेकिन इस बार मजदूरों के हाल-हर हाल से बहुत कुछ जुदा हैं. सारे देश की नजर मजदूर पर है लेकिन मजदूर ही सबसे अधिक परेशान भी है. हमने मजदूरों से चर्चा कर उनके हालात को समझा.जो अपने घर पर ही हैं लेकिन उन्हें काम नहीं मिल पा रहा.लोक डाउन के दौरान अपने जीवन यापन कर्ज लेकर कर रहे हैं, या अपने संबंधियों से मांग कर काम चला रहे हैं. अपनी परेशानी बताते हुए मजदूरों की आंखें भी नम हो गई. भले ही ये लोग परेशान हो रहे हो लेकिन इन्होंने लॉकडाउन का उल्लंघन नहीं किया. क्योकि देश बचाना भी तो जरूरी है न.

अशोकनगर। कोरोना महामारी ने जहां बड़े-बड़े उद्योगपतियों सहित अन्य सक्षम वर्ग को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाया है. वहीं गरीब मजदूर तबका भी इससे बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. रोज कमा कर घर परिवार की जरूरतें पूरी करने वाला ये मजदूर वर्ग आज दाने-दाने का मोहताज हो रहा है. इस संकट के दौर में इन मजदूरों को शासन- प्रशासन और दानदाताओं की मदद से अपना परिवार चलाना पड़ रहा है या कर्ज लेकर अपने परिवार को पालने को मजबूर हो रहे हैं.

आंखों से छलका लॉकडाउन दर्द

अपनी परेशानी बताते हुए मीना बाई ने कहा लॉकडाउन ने हम मजदूरों की कमर तोड़कर रख दी है. ना तो घर से बाहर निकल पा रहे और ना ही घर में खाने के लिए कुछ बचा है. किराए के मकान में रह रहे हैं, किराया देने के लिए तक पैसे नहीं है. अब ऐसी स्थिति में कोई बगैर किराए के कैसे अपने मकान में रखेगा. वहीं राशन के नाम पर चावल दिए गए थे. कब तक बच्चों को चावल ही चावल खिलाए जाएं. अब आर्थिक स्थिति काफी दयनीय हो चुकी है यदि लॉकडाउन बढ़ा तो संकट पैदा हो सकता है.

दान पे चल रहा परिवार

पठार मोहल्ला निवासी नवल ने अपनी दुख भरी कहानी बताते हुए कहा कि जब से लॉकडाउन हुआ है, तब से तीन बच्चे, पत्नी का पेट पालने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. बच्चे कुछ ना कुछ खाने के लिए मांगते हैं. लेकिन मेरे पास अब कुछ भी नहीं बचा. बस हमेशा मन में एक ही ख्याल आता है कि आखिर कोई कब तक खाने को देगा. पार्षद ने राशन दिया वो भी खत्म हो गया. गैस नहीं है तो जंगलों से लकड़ी लाकर चूल्हे पर ही खाना बनाकर दिन गुजारना पड़ रहा है.

खस्ताहाल जिंदगी

वहीं अपने परिवार की खस्ताहाल जिंदगी को साझा करते हुए रिंकी परिहार ने बताया कि घर में केवल पति कमाने वाले हैं.बाकी बच्चे मम्मी-पापा सहित 6 लोग हैं. घर की स्थिति इतनी दयनीय है की एक टाइम का भोजन भी मिलना मुश्किल है. मकान भी कच्चा है. जिसकी फरसिया लकड़ियों के सहारे टिकी हुई हैं. मजदूरी में पति को कुल 300 रुपये मिलते हैं. जिससे घर का खर्च ही नहीं चल पाता मकान की मरम्मत कराना तो दूर की बात है आसपास से आटा मांग कर घर चला रही हैं.

उधार से आया परिवार का खाना

उधार लेकर घर खर्च चलाने वाले भूरा ने बताया कि घर में बुजुर्ग मां-बाप हैं. उन्हें तो भूखे नहीं रख सकते इसके लिए पास के ही एक सरदार जी से 10 हजार का कर्ज लिया था. लेकिन लॉक डाउन बढ़ने के कारण कोई रोजगार ही नहीं मिला. जिससे कर्ज भी नहीं चुका पाया और जो कर्ज लिया था वो भी खत्म हो गया. अब तो मां-बाप को रोटी खिलाने तक की समस्या पैदा हो गई.

देश बचाना भी तो जरूरी है न

आज मजदूर दिवस है, लेकिन इस बार मजदूरों के हाल-हर हाल से बहुत कुछ जुदा हैं. सारे देश की नजर मजदूर पर है लेकिन मजदूर ही सबसे अधिक परेशान भी है. हमने मजदूरों से चर्चा कर उनके हालात को समझा.जो अपने घर पर ही हैं लेकिन उन्हें काम नहीं मिल पा रहा.लोक डाउन के दौरान अपने जीवन यापन कर्ज लेकर कर रहे हैं, या अपने संबंधियों से मांग कर काम चला रहे हैं. अपनी परेशानी बताते हुए मजदूरों की आंखें भी नम हो गई. भले ही ये लोग परेशान हो रहे हो लेकिन इन्होंने लॉकडाउन का उल्लंघन नहीं किया. क्योकि देश बचाना भी तो जरूरी है न.

Last Updated : May 1, 2020, 12:56 PM IST
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