अशोकनगर। जिले की अशोकनगर और मुंगावली विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने हैं. अशोकनगर विधानसभा सीट बीजेपी का गढ़ माना जाता है. लेकिन 2018 के चुनाव में इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी लड्डू राम कोरी को मात देकर जजपाल सिंह जज्जी ने कांग्रेस से चुनाव जीता था, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ जजपाल सिंह जज्जी ने भी भाजपा का दामन थामा लिया था. जिसके बाद यह सीट खाली हुई थी. अब बीजेपी ने भी सिंधिया के समर्थक जजपाल सिंह जज्जी को ही उम्मीदवार बनाया है. जजपाल सिंह का मुकाबला उन्हीं के साथ कांग्रेस पार्टी में काम करने वाली कांग्रेस नेता अनीता जैन की बहू आशा दोहरे को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है. बीजेपी में शामिल होने के पहले लगभग 15 साल तक जजपाल और आशा दोहरे की सास अनीता जैन ने साथ ही काम किया है. तब जजपाल सिंह जज्जी नगर पालिका अध्यक्ष थे, तब अनीता जैन पार्षद रही है.
बीजेपी का गढ़ है अशोकनगर
पिछले तीन विधानसभा चुनाव में भाजपा इस सीट पर जीत हासिल करती आ रही है, लेकिन 2018 में हुए चुनाव में लंबे समय बाद कांग्रेस इस सीट पर चुनाव जीती थी. 2013 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर गोपीलाल जाटव ने जजपाल सिंह जज्जी को 3,348 मतों से हराया था. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी के लड्डूराम कोरी को जजपाल सिंह ने 9,730 वोट से हरा दिया था. अशोकनगर विधानसभा की बात की जाए तो अशोकनगर सीट 2003 से पहले गुना जिले का हिस्सा हुआ करती थी. जबकि साडोरा सीट 1977 में अस्तित्व में आ गई थी. तब से 2003 तक इस सीट पर 7 बार चुनाव हुए हैं. उस समय प्रत्येक जिले में एक सीट आरक्षित रखी जाती थी. इसलिए यह सीट गुना जिले की आरक्षित सीट के रूप में बनी हुई थी. 2003 में 15 अगस्त को गुना जिले का विभाजन कर अशोकनगर को नया जिला बनाया गया.
विधानसभा का जातिगत समीकरण जातिगत आंकड़ों के लिहाज से अगर देखा जाए तो अनुसूचित जाति वर्ग, यादव और रघुवंशी मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते आए हैं. एक अनुमान के मुताबिक अशोकनगर विधानसभा में लगभग 38 हजार अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाता हैं, 28 हजार यादव मतदाता, 25 हजार रघुवंशी मतदाता, इसके अलावा 14 हजार ब्राह्मण वोटर हैं. 10 हजार जैन, 12 हजार मुस्लिम,14 हजार कुशवाहा सहित शेष अन्य जातियों के मतदाता हैं.
अशोकनगर विधानसभा सीट का इतिहास
- 1957 में पहली बार राम दयाल सिंह इंडियन नेशनल कांग्रेस से यहां चुनाव जीते थे.
- 1962 में राम दयाल सिंह प्रत्याशी इंडियन नेशनल कांग्रेस 1,713 वोटों से चुनाव जीते थे.
- 1967 में मुल्तानमल स्वतंत्र पार्टी से प्रत्याशी 21,778 वोटों से जीते थे.
- 1972 में भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी महेंद्र सिंह 8,462 वोटों से जीते थे.
- 1977 में जनता पार्टी से चिमनलाल गुजारीलाल 1,837 वोट से जीते थे.
- 1980 में इंडियन नेशनल कांग्रेस से महेंद्र सिंह 7,744 वोटों से जीते थे.
- 1985 में प्रत्याशी इंडियन नेशनल कांग्रेस रविंद्र सिंह 1,872 वोटों से चुनाव जीते
- 1990 में बीजेपी से नीलम सिंह यादव 17,644 वोटों से जीते थे.
- 1993 में बीजेपी से नीलम सिंह यादव 3,131 वोटों से चुनाव जीती थी.
- 1998 में बहुजन समाज पार्टी से बलवीर सिंह कुशवाहा 12,544 वोटों से चुनाव जीते थे
- 2003 में बीजेपी जगन्नाथ सिंह रघुवंशी 14,855 वोटों से चुनाव जीते थे.
- 2008 में बीजेपी से लड्डू राम कोरी 21,019 वोटों से चुनाव जीते थे.
- 2013 में बीजेपी से गोपीलाल जाटव 3,348 वोटों से चुनाव जीते थे.
- 2018 में कांग्रेस से जजपाल सिंह 9,737 वोटों से चुनाव जीते थे.
अशोकनगर में कुल वोटर | पुरुष वोटर | महिला वोटर | अन्य मतदाता |
196478 | 103806 | 92666 | 6 |
बीजेपी प्रत्याशी जजपाल सिंह जज्जी का दावा
उपचुनाव को लेकर जजपाल सिंह जज्जी का कहा है कि मैं लंबे समय से नगर पालिका अध्यक्ष और जनपद में सदस्य रहा हूं. लोग मेरी कार्यशैली और क्षमताओं को जानते हैं. कांग्रेस को लग रहा है कि वह चुनाव हार रही है. उनके पास कुछ पॉजिटिव कहने और सुनने के लिए नहीं बचा है, इसलिए नकारात्मक बात कर रहे हैं. जनता सब समझ रही है. इस से काम चलने वाला नहीं. अब जनता को विकास चाहिए और वादा पूर्ण करने वाली सरकार चाहिए. 6 महीने के कार्यकाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने विधानसभा में 128 कार्यों की सौगात दी है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह द्वारा अशोकनगर में कई योजनाएं शुरू की गई हैं. उनका कहना है कि कमलनाथ के 15 महीने के कार्यकाल और शिवराज सिंह के 6 महीने के कार्यकाल को जनता समझ गई है. इसलिए क्षेत्र की जनता बीजेपी को ही विजेता बनाएगी.
अशोकनगर में पहली बार कांग्रेस ने महिला को बनाया उम्मीदवार
वहीं कांग्रेस प्रत्याशी आशा दोहरे का कहना है कि जनता टिकाऊ और बिकाऊ को देख चुकी है. अशोकनगर की जनता सिर्फ टिकाऊ प्रत्याशी को विजय बनाएंगी. जीत को लेकर मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं. क्योंकि यह चुनाव में नहीं जनता लड़ रही है, बल्कि जनता रह रही है. ईश्वर और सत्य जिसके साथ है जीत उसी की होगी.
आशा दोहरे की सासु मां अनीता जैन लगभग 20 वर्षों से कांग्रेस पार्टी से जुड़ी रही हैं, जो लगातार नगर पालिका में पार्षद के पद पर आसींन रही. अनीता जैन नगर पालिका में नेता प्रतिपक्ष का दायित्व भी संभाला है. वे लगातार 2013 और 2018 के विधानसभा चुनावों में अपनी बहू आशा दोहरे के लिए टिकट को लेकर प्रयास करती रही. लेकिन कांग्रेस पार्टी ने उनकी बहू को इस उपचुनाव में विधायक प्रत्याशी का टिकट दिया.
हाल ही में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भारतीय जनता पार्टी में जाने के बाद उनका और अनीता जैन का पैसे के लेनदेन को लेकर एक वीडियो भी वायरल हुआ था. जिसके बाद अनीता जैन सुर्खियों में आ गई. कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी ने सच्चे सिपाही के तौर पर उन्हें टिकट दिया है. अनीता जैन के पुत्र ने आशा दोहरे के साथ लगभग 20 वर्ष पहले प्रेम विवाह किया था. इसके बाद से ही उनके साथ रह रही थी.
हालांकि आशा दोहरे का कोई विशेष राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं है, लेकिन वे लगभग 5 साल से कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्य के रूप में कार्य कर रही थी. महिला मोर्चा में भी वे सदस्य के रूप में कार्यरत हैं. अशोक नगर विधानसभा में पहली बार कांग्रेस पार्टी ने महिला को उम्मीदवार बनाया.
राजनीतिक विशेषज्ञ की राय
इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक संतोष शर्मा का कहना है कि अशोकनगर में सभी प्रकार के मुद्दे खत्म हो चुके हैं. केवल बीजेपी 6 महीने के शिवराज सिंह सरकार के कार्यकाल का हवाला दे रही है. तो वहीं कांग्रेसी टिकाऊ और बिकाऊ पर अड़ी हुई हैं. लेकिन जनता अभी बिल्कुल शांत हैं. वह कुछ भी कहने से कतरा रहा है. लिहाजा आने वाली 10 नवबंर को किसे जीत मिलेगी इसका निर्णय जनता करेंगी.