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ऐसे ही पढ़ेगा इंडिया, तो कैसे बढ़ेगा इंडिया? , देखें पूरी खबर

बच्चे प्रतिदिन स्कूल में फर्श में झाड़ू-पोछा लगाते नजर आते हैं. कक्षाएं जुलाई से संचालित हो रही हैं. वहीं बच्चे भी अपनी बैठने की व्यवस्था बनाने के लिए स्वयं ही साफ सफाई करने को मजबूर हैं.

ऐसे ही पढ़ेगा इंडिया, तो कैसे बढ़ेगा इंडिया
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Published : Jul 20, 2019, 11:52 PM IST

अनूपपुर| माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजते हैं. लेकिन अनूपपुर जिले के ग्राम पंचायत डोला के शासकीय हाईस्कूल का आलम कुछ और ही है. यहां बच्चे प्रतिदिन स्कूल में फर्श में झाड़ू-पोछा लगाते नजर आते हैं. कक्षाएं जुलाई से संचालित हो रही हैं. वहीं बच्चे भी अपनी बैठने की व्यवस्था बनाने के लिए स्वयं ही साफ सफाई करने को मजबूर हैं. प्रदेशभर में शिक्षा को लेकर सरकार द्वारा लाखों करोड़ों रुपए का बजट हर सत्र में तैयार किया जाता है, फिर भी मध्यप्रदेश के अंतिम छोर पर बसे अनूपपुर में 2 साल से बच्चों से फर्श में साफ-सफाई का काम कराया जाता है.

ऐसे ही पढ़ेगा इंडिया, तो कैसे बढ़ेगा इंडिया

डोला हाई स्कूल में 2 साल से स्वीपर की भर्ती नहीं की गई. जिस कारण से स्कूल में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को ही अपने क्लासरूम, लैब और स्कूल में साफ-सफाई करना पड़ता है. छात्रों का कहना है कि मैडम के द्वारा सफाई के लिए बोला जाता है. हाई स्कूल में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं के परिजन इस बात से अनजान हैं कि बच्चे स्कूल जा कर शिक्षा नहीं सफाई की कक्षाएं ले रहे हैं.

इस विषय पर जब बड़े अधिकारियों से बात करनी चाही तो उन्होंने इस विषय पर बात करने से मना कर दिया. इससे ये स्पष्ट होता है कि छात्रों की भविष्य की चिंता न आला अधिकारियों को है न वहां पदस्थ शिक्षकों को.

अनूपपुर| माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजते हैं. लेकिन अनूपपुर जिले के ग्राम पंचायत डोला के शासकीय हाईस्कूल का आलम कुछ और ही है. यहां बच्चे प्रतिदिन स्कूल में फर्श में झाड़ू-पोछा लगाते नजर आते हैं. कक्षाएं जुलाई से संचालित हो रही हैं. वहीं बच्चे भी अपनी बैठने की व्यवस्था बनाने के लिए स्वयं ही साफ सफाई करने को मजबूर हैं. प्रदेशभर में शिक्षा को लेकर सरकार द्वारा लाखों करोड़ों रुपए का बजट हर सत्र में तैयार किया जाता है, फिर भी मध्यप्रदेश के अंतिम छोर पर बसे अनूपपुर में 2 साल से बच्चों से फर्श में साफ-सफाई का काम कराया जाता है.

ऐसे ही पढ़ेगा इंडिया, तो कैसे बढ़ेगा इंडिया

डोला हाई स्कूल में 2 साल से स्वीपर की भर्ती नहीं की गई. जिस कारण से स्कूल में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को ही अपने क्लासरूम, लैब और स्कूल में साफ-सफाई करना पड़ता है. छात्रों का कहना है कि मैडम के द्वारा सफाई के लिए बोला जाता है. हाई स्कूल में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं के परिजन इस बात से अनजान हैं कि बच्चे स्कूल जा कर शिक्षा नहीं सफाई की कक्षाएं ले रहे हैं.

इस विषय पर जब बड़े अधिकारियों से बात करनी चाही तो उन्होंने इस विषय पर बात करने से मना कर दिया. इससे ये स्पष्ट होता है कि छात्रों की भविष्य की चिंता न आला अधिकारियों को है न वहां पदस्थ शिक्षकों को.

Intro:माता पिता अपने बच्चों को स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजते हैं परंतु राज्य के अंतिम छोर पर बसे अनूपपुर जिले के ग्राम पंचायत डोला की शासकीय हाईस्कूल का आलम यह है कि बच्चे प्रतिदिन स्कूल में फर्श में झाड़ू पोछा लगाते नजर आते हैं। कक्षाएं जुलाई से संचालित हो रही हैं वही साथ ही बच्चे भी जुलाई से अपनी बैठने की व्यवस्था बनाने के लिए स्वयं ही साफ सफाई कर ने को मजबूर है। प्रदेशभर में शिक्षा को लेकर सरकार द्वारा लाखों करोड़ों रुपए कम बजट हर सत्र में तैयार किया जाता है फिर भी मध्य प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे अनूपपुर जिले के डोला पंचायत में 2 वर्षों से बच्चों से फर्श में साफ सफाई का कार्य कराया जाता है। शासकीय हाई स्कूल ढोला में दो दो से कड़े से भी ज्यादा बच्चे शिक्षा अध्ययन करते हैं जिन्हें प्रतिदिन अपनी कक्षा अपनी टेबल तथा अपना स्कूल स्वयं ही साफ करना पड़ता है जिस कारण से बच्चों की पढ़ाई में काफी नुकसान होता है।


Body:डोला हाई स्कूल में 2 वर्षों से भृत्य की भर्ती नहीं की गई जिस कारण से स्कूल में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को ही अपने क्लासरूम लैब तथा स्कूल में ही साफ सफाई का कार्य खुद ही किया जाता है। छात्रों का कहना है कि मैडम के द्वारा सफाई के लिए बोला जाता है डोला हाई स्कूल में पढ़ रहे हैं छात्र-छात्रा के परिजन इन बातों से अनजान है कि बच्चे स्कूल जा कर शिक्षा नहीं सफाई की कक्षाएं ले रहे हैं । बकायदा छात्र-छात्राओं से झाड़ू पोछा का कार्य कराया जाता है संचारित कक्षाओं में से छात्रों को उठाकर सफाई के लिए बुलाया जाता है तथा कार्य कराया जाता है । इस विषय पर जब बड़े अधिकारियों से बात करनी चाहिए तो उन्होंने सीधे विषय पर बात करने से मना कर दिया इससे यह साफ स्पष्ट होता है कि छात्रों की भविष्य की चिंता ना आला अधिकारी ना वहां पदस्थ शिक्षकों को है।


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