अलीराजपुर। देशभर में लगे लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा है. कोरोना वायरस के चलते जैसे ही लॉकडाउन घोषित किया गया, दिहाड़ी मजदूरों सहित देशभर के अन्य राज्यों में काम कर रहे मजदूरों का काम बंद हो गया. इसी के साथ उनके सामने रोजी रोजी का संकट खड़ा हो गया. वहीं कई दिनों तक फंसे रहने के बाद राज्य सरकारों ने इन्हें गृह राज्य लाने की पहल शुरू की. जिसमें अब प्रदेश सरकार दावा कर रही है कि लाखों मजदूरों को श्रमिक स्पेशल ट्रेन के माध्यम से प्रदेश में लाया गया है. इसी बीच एक ऐसी कहानी सामने आई है, जो प्रदेश सरकार के दावों की पोल खोल रही है. मजदूरों ने कहानी बयां करते हुए कहा कि चार लाख 37 हजार का बस का किराया देकर वह अपने गांव तक पहुंचे हैं.
मथवाड़ गांव के 46 मजदूरों का दर्द
दरअसल जिले के कई मजदूर प्रदेश के अलावा कई राज्यों में रोजी रोटी कमाने गए हुए थे. ऐसे में कोरोना ऐसा कहर बनकर बरपा की, मजदूर जहां थे, वहीं फंसकर रह गए. कोरोना कहर के चलते लगे लॉकडाउन में जिले के कई मजदूर दूसरे राज्यों में फंस गए थे. कई दिनों बाद सरकार ने दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों को वापस लाने की पहल शुरू की. जिसके बाद प्रदेश सराकर ने दावा किया कि प्रदेश के लाखों लोगों को प्रदेश लाया गया है. वहीं मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र के अलीराजपुर जिले के मथवाड़ गांव के 46 मजदूर की कहानी सरकार के दावों की पोल खोलती नजर आ रही है. जिले के इन 46 मजदूरों ने गांव पहुंचने के लिए जो कीमत अदा की है, वह चौंकाने वाली है. यह मजदूर मद्रास से अलीराजपुर आने के लिए चार लाख 37 हजार का बस का किराया देकर अपने गांव पहुंचे हैं.
किराए में दी खून पसीने की कमाई
मजदूरों ने जो कहानी बयां की है, वह दिल को झंझोर देने वाली है, वहीं सरकारी सिस्टम की पोल भी खोलती है. मजदूरों का कहना है कि मद्रास में उन्होंने हर संभव मदद मांगी, लेकिन जब उन्हें कोई मदद नहीं मिल पाई. ऐसे में मरता क्या नहीं करता. जो रकम इतने दिनों तक खून पसीना एक कर कमाई थी, वह सारी रकम किराए में देकर घऱ पहुंचने के लिए लाचार हो गए. मजदूरों ने बताया कि जब किसी तरफ से कोई उम्मीद की किरण नजर नहीं आई, तो 46 मजदूरों ने 4 लाख 37 हजार रूपए देकर एक बस किराए पर ली. जिसके बाद वह अपने गांव तक पहुंच पाए. मजदूरों का कहना है कि इतने दिनों तक जो कुछ कमाया था, सब किराए में दे दिया. अब उनके पास कुछ नहीं बचा है. अब यह सरकार से कुछ राहत मिलने की उम्मीद लगाए बैंठे हैं.