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अलीराजपुर: प्रसिद्ध पंजा दरी अब लेने लगी आकार

जोबट को देशभर में पहचान दिलाने वाली पंजा दरी का कारोबार कोरोना महामारी का शिकार हो गया था .लेकिन पंजा दरी का कारोबार अब फिर बाजार में वापस लौटने लगा है. 3 बाई 6 की दरी की कीमत बाजार के भाव के हिसाब से 80-85 रुपये प्रति वर्गफीट के हिसाब से मिल जाती है.

panja dari
प्रसिद्ध पंजा दरी
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Published : Jan 27, 2021, 11:00 AM IST

अलीराजपुर। जोबट को देशभर में पहचान दिलाने वाली पंजा दरी के निर्माण कार्य को कोरोना महामारी के कारण गंभीर नुकसान पहुंचा . लाकडाउन लगते ही दरी का निर्माण बंद हो गया. जिसके कारण इसे बुनने वाले कुशल कारीगरों को महीनों घर पर ही बैठना पड़ा. हालांकि अब धीरे-धीरे तस्वीर बदलने लगी है. निर्माण सेंटर पर कारीगर जुटने लगे हैं और पहले की तरह यहां पंजे से दरियां आकार लेने लगी है.

1996 में हुई थी सेंटर की स्थापना

जोबट के इंदिरा आवास क्षेत्र में हस्तशिल्प और हथकरघा विकास निगम ने इस सेंटर की स्थापना 1986 में की थी.शुरुआत में स्थानीय लोगों को दरी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया. कुशल होने पर सेंटर पर ही कच्चा माल मुहैया कराया और यहां निर्माण कार्य शुरू हो गया. देखते ही देखते पंजा दरी निर्यात होने लगी और अपनी खूबियों के कारण इसने पहचान बनाई.

5-6 कारीगरों का सेंटर में आना शुरू

पंजा दरी बनाने वाले क्षेत्र में करीब 100 कुशल करीगर हैं.लॉकडाउन से पहले इनमें से 20-25 नियमित रूप से सेंटर पर आकर दरियां बना रहे थे. वहीं कुछ लोग घर से काम कर रहे थे. लॉकडाउन के बाद सेंटर बंद हो गया. इस कारण इस अवधि में एक भी दरी आकार नहीं ले सकी. कारीगर अलखसिंह और गुल सिंह कहते हैं कि जनजीवन सामान्य हो रहा है. सेंटर पर 5-6 कारीगर हर दिन जुटना शुरू हो गए हैं. पूरे उत्साह के साथ दरियों का निर्माण किया जा रहा है. खेती-किसानी का करने के बाद अन्य कारीगर भी यहां काम करना शुरु कर देंगे. फिलहाल जितनी दरियों का निर्माण हो रहा है.उन्हें निगम के एम्पोरियम में भेजा जा रहा है.

इस तरह पड़ गया पंजा दरी नाम

कारीगर हाथों से दरी का निर्माण करते हैं. सूत को दबाकर दरी का आकार देने के लिए जिस औजार का इस्तेमाल होता है. वह पंजेनुमा होता है. इस कारण कालांतर में इस दरी का नाम पंजा दरी पड़ गया. पंजा दरी की खूबी यह है कि यह लंबे समय तक उपयोग की जा सकती है. मजबूती के कारण खराब नहीं होती. इस कारण ही लोग इसे खरीदना पसंद करते हैं.

एक दरी के लिए मिलते 24 रुपये

पंजा दरी सेंटर के प्रबंधक चैनसिंह चौहान बताते है कि आमतौर पर एक दरी 18 वर्गफीट की बनाई जाती है. यानि 3 बाई 6 की साइज में. कारीगर को 25 रुपये प्रति वर्गफीट की दर से भुगतान मिलता है. एक कारीगर एक से दो दिन में एक दरी बना लेता है. इसके लिए उसे 450 रुपये भुगतान किया जाता है. दरी की बिक्री निगम के एम्पोरियम के जरिए होती है. डिमांड मिलने पर आपूर्ति की जाती है. कई लोग सीधे सेंटर से भी दरी खरीदकर ले जाते हैं. प्रबंधक चौहान के अनुसार एक दरी का विक्रय 80-85 रुपये प्रति वर्गफीट की दर से होता है. यानी एक दरी करीब 1500 रुपये में बिकती है.

अलीराजपुर। जोबट को देशभर में पहचान दिलाने वाली पंजा दरी के निर्माण कार्य को कोरोना महामारी के कारण गंभीर नुकसान पहुंचा . लाकडाउन लगते ही दरी का निर्माण बंद हो गया. जिसके कारण इसे बुनने वाले कुशल कारीगरों को महीनों घर पर ही बैठना पड़ा. हालांकि अब धीरे-धीरे तस्वीर बदलने लगी है. निर्माण सेंटर पर कारीगर जुटने लगे हैं और पहले की तरह यहां पंजे से दरियां आकार लेने लगी है.

1996 में हुई थी सेंटर की स्थापना

जोबट के इंदिरा आवास क्षेत्र में हस्तशिल्प और हथकरघा विकास निगम ने इस सेंटर की स्थापना 1986 में की थी.शुरुआत में स्थानीय लोगों को दरी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया. कुशल होने पर सेंटर पर ही कच्चा माल मुहैया कराया और यहां निर्माण कार्य शुरू हो गया. देखते ही देखते पंजा दरी निर्यात होने लगी और अपनी खूबियों के कारण इसने पहचान बनाई.

5-6 कारीगरों का सेंटर में आना शुरू

पंजा दरी बनाने वाले क्षेत्र में करीब 100 कुशल करीगर हैं.लॉकडाउन से पहले इनमें से 20-25 नियमित रूप से सेंटर पर आकर दरियां बना रहे थे. वहीं कुछ लोग घर से काम कर रहे थे. लॉकडाउन के बाद सेंटर बंद हो गया. इस कारण इस अवधि में एक भी दरी आकार नहीं ले सकी. कारीगर अलखसिंह और गुल सिंह कहते हैं कि जनजीवन सामान्य हो रहा है. सेंटर पर 5-6 कारीगर हर दिन जुटना शुरू हो गए हैं. पूरे उत्साह के साथ दरियों का निर्माण किया जा रहा है. खेती-किसानी का करने के बाद अन्य कारीगर भी यहां काम करना शुरु कर देंगे. फिलहाल जितनी दरियों का निर्माण हो रहा है.उन्हें निगम के एम्पोरियम में भेजा जा रहा है.

इस तरह पड़ गया पंजा दरी नाम

कारीगर हाथों से दरी का निर्माण करते हैं. सूत को दबाकर दरी का आकार देने के लिए जिस औजार का इस्तेमाल होता है. वह पंजेनुमा होता है. इस कारण कालांतर में इस दरी का नाम पंजा दरी पड़ गया. पंजा दरी की खूबी यह है कि यह लंबे समय तक उपयोग की जा सकती है. मजबूती के कारण खराब नहीं होती. इस कारण ही लोग इसे खरीदना पसंद करते हैं.

एक दरी के लिए मिलते 24 रुपये

पंजा दरी सेंटर के प्रबंधक चैनसिंह चौहान बताते है कि आमतौर पर एक दरी 18 वर्गफीट की बनाई जाती है. यानि 3 बाई 6 की साइज में. कारीगर को 25 रुपये प्रति वर्गफीट की दर से भुगतान मिलता है. एक कारीगर एक से दो दिन में एक दरी बना लेता है. इसके लिए उसे 450 रुपये भुगतान किया जाता है. दरी की बिक्री निगम के एम्पोरियम के जरिए होती है. डिमांड मिलने पर आपूर्ति की जाती है. कई लोग सीधे सेंटर से भी दरी खरीदकर ले जाते हैं. प्रबंधक चौहान के अनुसार एक दरी का विक्रय 80-85 रुपये प्रति वर्गफीट की दर से होता है. यानी एक दरी करीब 1500 रुपये में बिकती है.

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