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कुपोषण की जंग में प्रदेश सरकार की योजनाएं फेल, आंकड़ों ने खोल दी पोल - malnutrition

बच्चों में कुपोषण दूर करने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग कई योजना चला रहा है और आंकड़े चौंकाने वाले हैं. हालात ये हैं कि 6 हजार 541 बच्चों को सप्ताह में 6 दिन पोषण आहार दिया जा रहा है, फिर भी नहीं सुधर रहे हैं हालात.

कुपोषण का बढ़ रहा ग्राफ
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Published : Nov 21, 2019, 8:42 AM IST

Updated : Nov 21, 2019, 9:56 AM IST


आगर मालवा। मध्यप्रदेश में बच्चों में कुपोषण दूर करने के लिए प्रदेश सरकार कई योजनाएं चल रही है, लेकिन सुसनेर विकासखंड में ये योजनाएं जमीनी स्तर पर कितनी लागू हो रही है, इसकी जिम्मेदार अधिकारियों को खबर तक नहीं है. अगर नतीजों पर गौर करें तो तथ्य चौंकाने वाले सामने आए हैं. हालात ये हैं कि विकासखंड के अतंर्गत 182 आंगनबाड़ी केंद्र हैं, जिनमें पिछले छह महीने से 5 साल के बच्चों की संख्या 12 हजार 984 है. इनमें से 6 हजार 541 बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें पोषण आहार भोजन विभाग देता है. इसके बावजूद इनमें से 2 हजार 346 बच्चे कुपोषित और 264 बच्चे अतिकुपोषित शासकीय आकड़ों में दर्ज हैं. इस तरह से कुल 2 हजार 610 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.

कुपोषण का बढ़ रहा ग्राफ

खास बात ये है कि बच्चों को कुपोषण से दूर करने के लिए विभाग बड़े-बड़े दावे करता है और लाखों रुपए भी खर्च कर रहा है, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात है. अब गौर करने वाली बात ये है कि विभाग की ओर से जो भोजन बच्चों को दिया जाता है, उसके मुताबिक 12 से 15 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा और 500 के लगभग कैलोरी होनी चाहिए, लेकिन पिछले एक साल में विभाग ने एक बार भी इस बात की जांच नहीं करवाई है. बच्चों को जो पोषण आहार के नाम पर दिया जा रहा है, उसमें प्रोटीन और कैलोरी की निर्धारित मात्रा कितनी है.

क्या कहते हैं आंकड़े ?

साल 2018-19 में 148 बच्चे भर्ती किये गये, इनमें से 119 बच्चे कुपोषण और 29 अति कुपोषण के शिकार थे.
2019-20 के 5 महीनों में 122 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें 86 कुपोषित बच्चे और 36 अतिकुपोषित थे.
लिहाजा ये आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि महिला एवं बाल विकास विभाग कुपोषण को दूर करने के लाख दावे कर रहा हो, लेकिन नतीजा कुछ और ही दिख रहा है.

सुसनेर अस्पताल के कुपोषण वार्ड में भर्ती बच्ची की मां गुर्जरबाई ने बताया कि उनकी बेटी का पेट बढ़ता ही जा रहा है. उसे यहां भर्ती किए हुए काफी समय हो चुका है, लेकिन उसके बाद भी हालत में सुधार नहीं हो पा रहा है. उन्होंने बताया कि पिछले साल भी उनके एक बेटे की मौत ठीक से आहार और उपचार नहीं मिलने से हो गई थी.

वहीं महिला एवं बाल विकास विभाग की परियोजना अधिकारी मनीषा चौबे अपने विभाग की नाकामियों को छिपाते हुए कहती है कि विभाग द्वारा कुपोषण को दूर करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और विभागीय सुविधाओं और सेवाओं में कोई कमी नहीं है, जबकि अधिकारी ने खुद माना कि पिछले 1 साल से पोषण आहार का लैब टेस्ट नहीं करवाया है.


आगर मालवा। मध्यप्रदेश में बच्चों में कुपोषण दूर करने के लिए प्रदेश सरकार कई योजनाएं चल रही है, लेकिन सुसनेर विकासखंड में ये योजनाएं जमीनी स्तर पर कितनी लागू हो रही है, इसकी जिम्मेदार अधिकारियों को खबर तक नहीं है. अगर नतीजों पर गौर करें तो तथ्य चौंकाने वाले सामने आए हैं. हालात ये हैं कि विकासखंड के अतंर्गत 182 आंगनबाड़ी केंद्र हैं, जिनमें पिछले छह महीने से 5 साल के बच्चों की संख्या 12 हजार 984 है. इनमें से 6 हजार 541 बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें पोषण आहार भोजन विभाग देता है. इसके बावजूद इनमें से 2 हजार 346 बच्चे कुपोषित और 264 बच्चे अतिकुपोषित शासकीय आकड़ों में दर्ज हैं. इस तरह से कुल 2 हजार 610 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.

कुपोषण का बढ़ रहा ग्राफ

खास बात ये है कि बच्चों को कुपोषण से दूर करने के लिए विभाग बड़े-बड़े दावे करता है और लाखों रुपए भी खर्च कर रहा है, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात है. अब गौर करने वाली बात ये है कि विभाग की ओर से जो भोजन बच्चों को दिया जाता है, उसके मुताबिक 12 से 15 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा और 500 के लगभग कैलोरी होनी चाहिए, लेकिन पिछले एक साल में विभाग ने एक बार भी इस बात की जांच नहीं करवाई है. बच्चों को जो पोषण आहार के नाम पर दिया जा रहा है, उसमें प्रोटीन और कैलोरी की निर्धारित मात्रा कितनी है.

क्या कहते हैं आंकड़े ?

साल 2018-19 में 148 बच्चे भर्ती किये गये, इनमें से 119 बच्चे कुपोषण और 29 अति कुपोषण के शिकार थे.
2019-20 के 5 महीनों में 122 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें 86 कुपोषित बच्चे और 36 अतिकुपोषित थे.
लिहाजा ये आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि महिला एवं बाल विकास विभाग कुपोषण को दूर करने के लाख दावे कर रहा हो, लेकिन नतीजा कुछ और ही दिख रहा है.

सुसनेर अस्पताल के कुपोषण वार्ड में भर्ती बच्ची की मां गुर्जरबाई ने बताया कि उनकी बेटी का पेट बढ़ता ही जा रहा है. उसे यहां भर्ती किए हुए काफी समय हो चुका है, लेकिन उसके बाद भी हालत में सुधार नहीं हो पा रहा है. उन्होंने बताया कि पिछले साल भी उनके एक बेटे की मौत ठीक से आहार और उपचार नहीं मिलने से हो गई थी.

वहीं महिला एवं बाल विकास विभाग की परियोजना अधिकारी मनीषा चौबे अपने विभाग की नाकामियों को छिपाते हुए कहती है कि विभाग द्वारा कुपोषण को दूर करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और विभागीय सुविधाओं और सेवाओं में कोई कमी नहीं है, जबकि अधिकारी ने खुद माना कि पिछले 1 साल से पोषण आहार का लैब टेस्ट नहीं करवाया है.

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Last Updated : Nov 21, 2019, 9:56 AM IST
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