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यहां सत्य है शिव का स्वरूप, परमात्मा से मिलन के लिए दूर-दराज से आते हैं संत-महात्मा!

सत्य ही शिव है और शिव ही सत्य है, पुराणों में भगवान शिव का महत्व कुछ इसी तरह से वर्णित है. जिनकी कृपा से जीवन-मरण से मुक्ति मिल जाती है. ऐसा ही एक शिव मंदिर है, जहां साधु-महात्मा का सीधा कनेक्शन परमात्मा से होता है. लिहाजा, दूर दराज से साधु महात्मा यहां तप करने के लिए आते हैं.

पांडव निर्मित शिव मंदिर
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Published : Jul 21, 2019, 6:18 PM IST

आगर। सुसनेर से 10 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर लाल रंग के एक ही पत्थर से बना पंचदेहरिया महादेव मंदिर अपने साथ सदियों का इतिहास समेटे हुए है. जिसका निर्माण अज्ञातवास के दौरान भीम ने एक पत्थर को तराश कर किया था. ऐसी मान्यता है कि जुए में सब कुछ हारने के बाद वनवास पर निकले पांडव इसी स्थान पर अज्ञातवास के दिन काटे थे, लिहाजा शिव की साधना के लिए भीम ने एक लाल पत्थर को काटकर मंदिर और उसी शिला से एक शिवलिंग का निर्माण किया था. जिसे पंचदेहरिया महादेव का नाम देते हुए शिव की आराधना की थी. आज भी इस मंदिर को पांडव कालीन पंचदेहरिया महादेव मंदिर कहा जाता है. यहां पूजा-पाठ करने से सबकी मनोकामना पूरी हो जाती है.

पांडव निर्मित शिव मंदिर

इसी मंदिर के पास ही पांडवों ने रहने के लिए कई गुफाएं भी बनाई थी, समय के साथ श्रद्धालुओं की आस्था के अनुरूप मंदिर को नए स्वरूप में बदल दिया गया, वर्तमान में मंदिर के बाहरी हिस्से पर सीमेंट का प्लास्टर किया जा रहा है, पर अंदर से देखने में गर्भ गृह व आस पास छोटी-छोटी गुफाएं एक ही पत्थर से बनी हुई लगती हैं. यहां पर पांचों पांडवों की कुटिया आज भी मौजूद है, पर भीम की एक अलग ही कुटिया बनी हुई है. इस मंदिर का उल्लेख शिवपुराण में भी मिलता है. ज्योतिषाचार्य पंडित बालाराम व्यास बताते हैं कि औरंगजेब ने इस मंदिर पर आक्रमण किया था, औरंगजेब के वार से शिवलिंग में तीसरे नेत्र जैसी आकृति उभर आई थी, जिसे कई बार जोड़ने का प्रयास किया गया, पर सफलता नहीं मिली, अंततः उसे तीसरा नेत्र मानकर पूजा जाने लगा.

पहाड़ी पर बने होने के चलते इस मंदिर के आसपास का वातावरण बेहद शांत रहता है, जिसके चलते दूर-दराज से साधु-महात्मा यहां साधना के लिए आते रहते हैं, यहां रोजाना महामृत्युंजय का जाप होता है. भले ही सदियों पहले इस मंदिर की स्थापना हुई थी, पर आज भी इस मंदिर का महत्व कम नहीं है क्योंकि यहां तो शिव ही सत्य है और सत्य ही शिव है.

आगर। सुसनेर से 10 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर लाल रंग के एक ही पत्थर से बना पंचदेहरिया महादेव मंदिर अपने साथ सदियों का इतिहास समेटे हुए है. जिसका निर्माण अज्ञातवास के दौरान भीम ने एक पत्थर को तराश कर किया था. ऐसी मान्यता है कि जुए में सब कुछ हारने के बाद वनवास पर निकले पांडव इसी स्थान पर अज्ञातवास के दिन काटे थे, लिहाजा शिव की साधना के लिए भीम ने एक लाल पत्थर को काटकर मंदिर और उसी शिला से एक शिवलिंग का निर्माण किया था. जिसे पंचदेहरिया महादेव का नाम देते हुए शिव की आराधना की थी. आज भी इस मंदिर को पांडव कालीन पंचदेहरिया महादेव मंदिर कहा जाता है. यहां पूजा-पाठ करने से सबकी मनोकामना पूरी हो जाती है.

पांडव निर्मित शिव मंदिर

इसी मंदिर के पास ही पांडवों ने रहने के लिए कई गुफाएं भी बनाई थी, समय के साथ श्रद्धालुओं की आस्था के अनुरूप मंदिर को नए स्वरूप में बदल दिया गया, वर्तमान में मंदिर के बाहरी हिस्से पर सीमेंट का प्लास्टर किया जा रहा है, पर अंदर से देखने में गर्भ गृह व आस पास छोटी-छोटी गुफाएं एक ही पत्थर से बनी हुई लगती हैं. यहां पर पांचों पांडवों की कुटिया आज भी मौजूद है, पर भीम की एक अलग ही कुटिया बनी हुई है. इस मंदिर का उल्लेख शिवपुराण में भी मिलता है. ज्योतिषाचार्य पंडित बालाराम व्यास बताते हैं कि औरंगजेब ने इस मंदिर पर आक्रमण किया था, औरंगजेब के वार से शिवलिंग में तीसरे नेत्र जैसी आकृति उभर आई थी, जिसे कई बार जोड़ने का प्रयास किया गया, पर सफलता नहीं मिली, अंततः उसे तीसरा नेत्र मानकर पूजा जाने लगा.

पहाड़ी पर बने होने के चलते इस मंदिर के आसपास का वातावरण बेहद शांत रहता है, जिसके चलते दूर-दराज से साधु-महात्मा यहां साधना के लिए आते रहते हैं, यहां रोजाना महामृत्युंजय का जाप होता है. भले ही सदियों पहले इस मंदिर की स्थापना हुई थी, पर आज भी इस मंदिर का महत्व कम नहीं है क्योंकि यहां तो शिव ही सत्य है और सत्य ही शिव है.

Intro:आगर। शिव और उनके मंदिरों के बारे में कई किस्से इतिहास में दर्ज हैं। लेकिन आगर जिलें के सुसनेर से 10 किमी दूर पहाड़ी पर स्थित पंचदेहरिया महादेव मंदिर का इतिहास बहुत ही अद्भुत है। पांडवों द्वारा निर्मित यह मंदिर लाल रंग के एक ही पत्थर से बना हुआ है और इसी पत्थर को काटकर शिवलिंग का निर्माण किया गया था। कहा जाता है कि औरंगजेब ने इस मंदिर पर भी हमला किया था। जिसका निशान आज भी मौजूद है, श्रद्धालु इस इस स्थान को शिवजी के तीसरें के रूप में मानकर पूजा करते आ रहे है। इस मंदिर का उल्लेख शिव पुराण में भी मिलता है, कई सालों से साधं संत यहा तपस्या करते आ रहे है।Body:इस मंदिर से जुड़ा इतिहास...
- ऐसी मान्यता है कि जुएं में सबकुछ हारने के बाद वनवास पर गए पांडवों ने अपना अज्ञातवास यहां पर काटा था। यहां शिव की साधना के लिए भीम ने एक लाल पत्थर को काटकर एक मंदिर और उसी शिला से एक शिवलिंग का निर्माण किया था। पांडवों ने इस मंदिर को पंचदेहरिया महादेव का नाम देते हुए यहां शिव की आराधना की थी। इसी कारण आज भी इस मंदिर को पांडवकालीन पंचदेहरिया महादेव मंदिर कहा जाता है।
- मंदिर के पास ही पांडवों ने रहने के लिए कुछ गुफाएं भी बनाई थी। समय के साथ श्रद्धालुओं की आस्था के अनुरूप मंदिर को नए स्वरूप में बदला गया है। वर्तमान में मंदिर के बाहरी हिस्से पर सीमेंट का प्लास्टर हो रहा है, किंतु अंदर से देखने पर गर्भगृह व आसपास छोटी-छोटी गुफाएं एक ही पत्थर पर बनी हुई दिखाई देती है। यहां पर पांच पांडवों की कुटिया आज भी मौजूद है। भीम की एक अलग ही कुटिया बनी हुई है।

एक ही पत्थर से बना है मंदिर और शिवलिंग

- ज्योतिषाचार्य पं. बालाराम व्यास के अनुसार वे बचपन से ही इस मंदिर में पंडित हैं और शिव उपासना करते आ रहे हैं। उनके पूर्वजों ने भी इस मंदिर में आराधना की है। वे बताते थे कि यह मंदिर एक विशाल लाल रंग के पत्थर के अंदर बना हुआ है, मंदिर के ऊपर का शिखर भी पत्थर से बना हुआ है। पांडवों ने अपने बल पर एक पत्थर के अंदर इस मंदिर का निर्माण किया था। जिस शिला से मंदिर बना है उसी से कटकर शिवलिंग का निर्माण भी हुआ है। बाद में इसमें जलधारी और पीतल से कुछ अन्य काम हुआ है। इस मंदिर का उल्लेख शिवपुराण में भी मिलता है।
औरंगजेब ने किया था वार, बन गया शिव का तीसरा नेत्र
- पंडित व्यास के अनुसार उनके पूर्वजों ने बताया था कि भारत पर आक्रमण कर कई मंदिरों को क्षतिग्रस्त करने वाले औरंगजेब ने भी यहां आक्रमण किया था। जिससे शिवलिंग खंडित हो गया था। औरंगजेब के शिवलिंग पर सीधे वार से शिवलिंग में तीसरे नेत्र जैसी आकृति उभर आई।
- उसके कई साल बाद बड़े- बड़े नगरों के कलाकारों ने इस खंडित हिस्से को जोड़ने का प्रयास किया। कलाकार इसको जोड़कर भी गए, किंतु कुछ समय बाद ही वह जुड़ा हुआ हिस्सा वापस टूटकर नीचे गिर जाता था। उन्होंने कई प्रकार के केमिकल लगाकर उस पत्थर को जोड़ा और दावा किया कि अब ये पत्थर कभी नहीं निकलेगा।
- आश्चर्य की बात ये है कि उनके मंदिर से बाहर निकलते ही ये पत्थर नीचे गिर गया। ऐसा एक बार नहीं करीब 20 बार हुआ। बाद में श्रद्धालुओं ने इस हिस्से को शिवजी का तीसरा नेत्र मानकर खाली छोड़ दिया। तब से आज जक शिवलिंग पर इस हमले का निशान मौजूद है।

संतों ने साधना कर बताया इस जगह का महत्व

- वर्तमान में यहां 35 गांव के लोग जुड़े हैं। बड़ी बात ये है कि यहां आपराधिक प्रवृत्ति बहुत कम हो गया है। पंडित बालाराम व्यास जी ने कहा कि मैं 20 वर्षाें से स्वयं बाबा की सेवा कर रहा हूं। मैं यहां महामृत्युंजय का जाप और अनुष्ठान कर रहा हूं। चित्रकूट के परम हंस आश्रम सती अनुसुईया से कुछ साल पहले शिवराम बाबा और स्वामी दयानंद सरस्वती जी महाराज जी आए। वे जब यहां साधना करने बैठे तो कुछ देर बात ही ध्यान से उठकर कहा कि पंडित जी यहां पर हमें बहुत अच्छा टॉवर मिल रहा है। साधना का नेटवर्क बहुत अच्छा है। इसके बाद उन्होंने यहां भी अपने आश्रम की एक शाखा का निर्माण किया है।Conclusion:श्रावणमास के चलते यह मंदिर दूर-दूर से आने वाले साधु-संतो और श्रृद्धालुओं की आस्था का केंद बना हआ है। यहां पर देश के अलावा- विदेश भी लोग दर्शन करने अा चुके है। इस धार्मिक स्थल को पर्यटन स्थल बनाए जाने की मांग को लेकर सुसनेरवासियों के द्वारा विगत चार सालों से जिलें की सबसे बडी कावड यात्रा सुसनेर के मनकामनेश्वर महोदव मंदिर से पंच देहरीया के लिए भी निकाली जा रही है। जिसमें करीब 20 हजार के लगभग श्रद्धालु शामिल होते है। साधु-संत यहा आकर पूरे श्रावणमास तपस्या करते है। ओंरगजेब के हमले वाले निशान को आज भी तीसरे नेत्र के रूप में पूजा जाता है। श्रावणमास के चलते पंडितों द्वारा सवा लाख महामत्युंज मंत्र का जाप भी चल रहा है।

चित्र एवं विज्युअल- पहाडी पर स्थित है पंडावकालीन पंचदेहरीया महादेव मंदिर।
पंचदेहरिया महादेव में शिव का तीसरा नेत्र दिखाते हुए पं. व्यास।
लाल रंग के एक ही पत्थर से निर्मित पंच देहरीया महोदव मंदिर।
मंदिर में विराजित शिवलिंग।
लाल रंग के एक ही पत्थर से बना हुआ है मंदिर।
बाईट- ज्योतिषाचार्य पंडित बालाराम व्यास, सुसनेर।
बाईट- स्वामी दयानंद सरस्वती जी महाराज, मंहत, चित्रकूट परम हंस सती अनुसईया आश्रम।
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