आगर। मालवा के कलाकार आधुनिकता के उस दौर में अपनी पहचान खोती नजर आ रही है. पिछले कुछ सालों तक शहर में मिट्टी के दीए, बर्तन सहित खिलौनों की खूब ब्रिक्री होती थी, लेकिन जब से बाजार में आधुनिकता ने अपना एकाधिकार जमाया है, इनकी कला का कोई मोल नहीं रह गया है. ऐसा लगता है कि इनकी कला को ग्रहण लग गया है. बावजूद इसके मालवा के कलाकार आज भी इसे सिर्फ रस्म नहीं, बल्कि पूंजी मानकर जीवन का अंधेरा दूर कर रहे हैं.
बाजार में फैंसी वस्तुओं की ब्रिक्री बढ़ने से भले ही मिट्टी के उत्पादनों की ब्रिक्री प्रभावित हुई हो, लेकिन इन कलाकारों हौसला अब भी बरकरार है. परम्परा को जीवित रखे ये लोग दीए, मूर्ति ओर खिलौने बनाने में जूटे हुए हैं. यह कलाकार विदेशी वस्तुओं के बीच अपनी कला को जिंदा रखने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं.
आगर के जामुनिया रोड पर रहने वाले कुम्हार हेमराज और लक्ष्मीनारायण ने बताया कि उनका परिवार सदियों से मिट्टी के दीपक बनाते आ रहा है. बाजार में भले ही आधुनिक बर्तनों ने अपना जोर जमाया हो, लेकिन पुराने लोग आज भी मिट्टी के ही दीए खरीदते हैं.