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जैन समाज ने निकाला मौन जुलूस, आचार्यश्री विद्यानंद महाराज को दी भावांजलि - 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन

सुसनेर में जैन समाज के लोगों ने दिगम्बर मुनी विद्यानंद महाराज के देवलोकगमन  पर मौन जुलूस निकालकर भावांजली दी. विद्यानंद महाराज की 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भागीदारी निभाई थी.

आचार्यश्री विद्यानंद महाराज को दी भावांजलि
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Published : Sep 22, 2019, 9:10 PM IST

आगर-मालवा। सुसनेर जैन समाज ने दिगम्बर मुनी विद्यानंद महाराज के देवलोकगमन पर मौन जुलूस निकालकर भावांजली दी. जुलूस त्रिमूर्ति मंदिर पहुंचा जहां दर्शन सागरजी महाराज ने सभा को संबोधित किया, इस दौरान जैन समाज के लोगों ने अपने प्रतिष्ठान बंद रखे.

आचार्यश्री विद्यानंद महाराज को दी भावांजलि

मौन जुलूस की शुरूआत सराफा बाजार स्थित पार्श्वनाथ बड़ा जैन मंदिर से की गई. जो शुक्रवारीया बाजार, हाथी दरवाजा, सांई तिराहा, डाक बंगला रोड से होते हुएं इंदौर-कोटा राजमार्ग स्थित त्रिमूर्ति मंदिर पहुंचा, यहां पर आचार्य श्री विद्यानंदजी महाराज के चित्र पर दीप प्रज्वलित कर दो मिनट का मौन रखकर भावांजलि अर्पित की गई.

दर्शन सागरजी महाराज ने कहा कि इस दुनिया में जो आया है, वो अमर नहीं रहेगा, वह किसी न किसी दिन इस दुनिया से जाएगा ही, लेकिन जो अच्छा काम कर रहा है. विद्यानंदजी महाराज ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया था. वह पहले संत थे जिन्होंने सबसे पहले राष्ट्रसंत की उपाधी प्राप्त की थी, इसके अलावा उन्होंने अष्टापद की यात्रा भी की थी. उन्होंने 75 दिक्षाएं दी, जिसमें 57 मुनि और18 छुल्लक शामिल हैं.

आगर-मालवा। सुसनेर जैन समाज ने दिगम्बर मुनी विद्यानंद महाराज के देवलोकगमन पर मौन जुलूस निकालकर भावांजली दी. जुलूस त्रिमूर्ति मंदिर पहुंचा जहां दर्शन सागरजी महाराज ने सभा को संबोधित किया, इस दौरान जैन समाज के लोगों ने अपने प्रतिष्ठान बंद रखे.

आचार्यश्री विद्यानंद महाराज को दी भावांजलि

मौन जुलूस की शुरूआत सराफा बाजार स्थित पार्श्वनाथ बड़ा जैन मंदिर से की गई. जो शुक्रवारीया बाजार, हाथी दरवाजा, सांई तिराहा, डाक बंगला रोड से होते हुएं इंदौर-कोटा राजमार्ग स्थित त्रिमूर्ति मंदिर पहुंचा, यहां पर आचार्य श्री विद्यानंदजी महाराज के चित्र पर दीप प्रज्वलित कर दो मिनट का मौन रखकर भावांजलि अर्पित की गई.

दर्शन सागरजी महाराज ने कहा कि इस दुनिया में जो आया है, वो अमर नहीं रहेगा, वह किसी न किसी दिन इस दुनिया से जाएगा ही, लेकिन जो अच्छा काम कर रहा है. विद्यानंदजी महाराज ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया था. वह पहले संत थे जिन्होंने सबसे पहले राष्ट्रसंत की उपाधी प्राप्त की थी, इसके अलावा उन्होंने अष्टापद की यात्रा भी की थी. उन्होंने 75 दिक्षाएं दी, जिसमें 57 मुनि और18 छुल्लक शामिल हैं.

Intro:आगर-मालवा। दिगम्बर जैन समाज के मुनिराज आचार्यश्री विद्यानंदजी महाराज के देवलोकगमन हाेने पर रविवार को सुसनेर जैन समाजजनो ने अपने- अपने प्रतिष्ठान बंद रखकर, शहर में मौन जुलूस निकालकर त्रिमूर्ति मंदिर में आचार्यश्री को भावांजलि अर्पित की।Body:त्रिमूर्ति मंदिर में अाचार्य श्री दर्शन सागरजी महाराज ने श्रद्धांजलि सभा को सम्बोधित करते हुएं कहां कि इस दुनिया में जो आया है वो अमर नहीं रहेगा, वह किसी न किसी दिन इस दुनिया से जाएगा ही, किन्तु जो अच्छा काम कर रहा है। उसे हमेशा याद किया जाता है। और जो बूरा काम करता है उसे कोई याद नहीं करता है। ऐसे ही आचार्य मुनिराज श्री विद्यानंदजी महाराज थे। जिन्होने अपने कार्यो की उपलब्धि से सबसे पहले राष्ट्रसंत की उपाधी प्राप्त की थी। साथ ही अष्टापद की यात्रा की थी। उन्होने 75 दिशाएं दी। जिसमें 57 मुनियांे और 18 छुल्लक शामिल है। 1942 में भारत छाेडो आंदोलन में भी भाग लिया था।Conclusion:मौन जुलूस की शुरूआत नगर के सराफा बाजार स्थित पार्श्वनाथ बडा जैन मंदिर से की गई। जो नगर के प्रमुख मार्गाे शुक्रवारीया बाजार, स्टेट बैंक चौराहा, हाथी दरवाजा, पुराना बस स्टेण्ड, पांच पुलिया, सांई तिराहा, डाक बंगला रोड से होते हुएं इंदौर-कोटा राजमार्ग स्थित त्रिमूर्ति मंदिर पहुंचा जहां पर आचार्य श्री विद्यानंदजी महाराज के चित्र पर द्विप प्रज्ववलित कर दो मिनट का मौन रखकर भावांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर बडी संख्या में समाजन उपस्थित थे।

विज्युअल- मौन जुलूस में शामिल समाजजन।
समाजजनों काे सम्बोधित करते हुएं आचार्य श्री दर्शनसागरजी महाराज।
दौ मिनट का मौन रखकर भावांजलि अर्पित करते हुएं समाजजन।
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