उज्जैन। धार्मिक नगरी उज्जैन में भी गणेश चतुर्थी पर्व बड़े हर्ष उल्लास के साथ शुरू हो गया है. मुम्बई में अष्ठ विनायकों की तरह अवंतिका नगरी उज्जयिनी में भी षड (6) विनायक स्थापित हैं. सभी की स्थापना अलग अलग मान्यता अनुसार की गई है. शहर से 7KM दूर चिंतामन, इच्छामन और सिद्धिविनायक रूप में गणेश विराजमान हैं. कहते हैं वनवास के दौरान प्रभु राम ने इस स्थान पर चिन्तामन, माता सीता ने सिद्धिविनायक और लक्ष्मण ने इच्छामन गणेश की स्थापना करने के लिए प्रार्थना की. जहां गणेश एक साथ तीन रूप में विराज मान हुए और तभी से ये स्थान तीर्थ के रूप में जाना गया.
सबसे पहले गणेश जी को न्योता: इस मंदिर में हर रोज हजारों श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. एक और खास बात यह है कि कोई भी शुभ कार्य शुरू करने से पहले श्रद्धालु पहला निमंत्रण कार्ड भगवान गणेश को देने पहुंचते हैं. यहां पाती के लगन लिखाने और विवाह की अनूठी परंपरा बिना मुहूर्त के करवाई जाति हैं. गणेश चतुर्थी का पर्व संयोग से बुधवार से शुरू हो गया है ऐसे में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है.
उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं श्रद्धालु: उज्जैन से 7 km की दूरी पर स्थित मंदिर में भगवान गणेश, चिंतामन, इच्छामन और सिद्धिविनायक के तीन रूप में विराजमान हैं. हर रोज श्रद्धालु यहां सिद्धि प्राप्ति, चिंता से मुक्ति सहित अपनी मनोकामना लिए प्रार्थना करने पहुंचते हैं. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि भाद्रपद माह की चतुर्थी से 10 दिन तक भगवान के जन्मोत्सव के रूप में पर्व को मनाया जाता है. कोविड के 2 साल बाद प्रतिबंध हटने के चलते बड़ी संख्या में इस वर्ष भक्तों के पहुंचने का अनुमान है. आज बुधवार को अल सुबह 4 बजे ब्रह्म मुहूर्त में पूजा पाठ हुई. अभिषेक के बाद दोपहर 12 बजे जन्म के समय विशेष महाआरती की गई. यहां गणेश को तीन पत्तों वाली दूर्वा चढ़ाने का महत्व है. मोदक व मोतीचूर के लड्डू भगवान को प्रसाद के रूप में अर्पित करते हैं. मनोकामना के लिए श्रद्धालु मंदिर में मन्नत का धागा बांधते हैं. उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं व तरह तरह से भगवान को मनाने का प्रयास करते हैं.
बिना मुहूर्त के विवाह: उज्जैन के प्रसिद्ध षड विनायकों में से एक चिंतामन गणेश मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य के शासन काल में हुआ. जहां पाती के लगन लिखाने और विवाह करने की अनूठी परंपरा है. कहते हैं जिनके लगन नहीं निकल रहे वो चिंतामन गणेश आकर बिना मूहर्त के विवाह कर सकते हैं. यहां किसी मुहूर्त की जरूरत नहीं होती. जिनके विवाह में बाधा आती है वे यहां आकर भगवान गणेश को मनाते हैं. जब विवाह तय हो जाता है तो इसी मंदिर में आकर फेरे लेते हैं. हर मंगल कार्य से पहले देश विदेश से श्रद्धालु प्रथम पूज्य गणेश जी को कार्ड देकर न्योता देते हैं. Reign of king Vikramaditya
वनवास के दौरान श्री राम ने किया पहला पूजन: कहते हैं भगवान राम ने वनवास के दौरान यहां भगवन गणेश का आव्हान किया और स्वयंभू गणेश तीन रूप में विराजमान हुए. मान्यता ये भी है की जब घना जंगल हुआ करता था तब वनवास के दौरान माता सीता को प्यास लगी, आस पास कोई नदी तालाब नहीं होने से लक्ष्मण ने पूर्व दिशा में बाण जमीन में मारा और पानी निकाला. जिससे माता सीता की प्यास बुझी. जो आज एक बॉवड़ी के रूप में मौजूद है. वहीं प्रभु राम, माता सीता और लक्षमण ने भगवान गणेश से सिद्धि, चिंता मुक्ति व इच्छा की कामना की तो भगवान तीनों रूप में प्रकट हुए. जिसके बाद से मंदिर में हजारों भक्त पहुंचते हैं. श्रद्धालु आज भी मंदिर की बावड़ी के जल से भगवान का अभिषेक करते हैं और मिट्टी घर ले जाते हैं.
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