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MP में पुरानी तकनीक से निखरेंगी स्मार्ट सिटीज! सुर्खी, चूना, फलों के मिश्रण से फिर जिंदा हो रही बावड़ियां, ऐतिहासिक धरोहर

सागर स्मार्ट सिटी लिमिटेड (sagar smart city project) ने शहर की ऐतिहासिक बावड़ियों को नया स्वरूप देने की कवायद शुरु कर दी है. यह बावड़ियां आज से 400 से 500 साल पहले बनाई गई थीं. खास बात यह है कि इन बावड़ियों को सुर्खी, चूना, गुड़, उड़द और बेल के फल के विशेष मसाले से तैयार किया जा रहा है. (Historical buildings will be renovated in Sagar)

sagar smart city project
सागर की बावड़ियां का जीर्णोद्धार
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Published : Feb 14, 2022, 4:33 PM IST

सागर। मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी स्मार्ट सिटी योजना (sagar smart city project) में 100 शहरों को चुना गया है, जिसमें एक मध्यप्रदेश का सागर भी शामिल है. जिसके तहत सागर शहर की ऐतिहासिक विरासत को सजाने और संवारने का जिम्मा सागर स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने उठाया है. शहर की ऐतिहासिक बावड़ियों को नया स्वरूप दिया जा रहा है जो आज से 400 से 500 साल पहले बनाई गई थीं. खास बात ये है कि इन बावड़ियों को उसी पद्धति से निखारा जा रहा है, जिस पद्धति से इनको तैयार किया गया था. करीब 500 साल पहले ऐतिहासिक इमारतों को सुर्खी, चूना, गुड़, उड़द और बेल के फल के विशेष मसाले से तैयार किया जाता था. आज इन बावड़ियों का संरक्षण इसी मसाले से हो रहा है क्योंकि ये मसाले इमारतों को टिकाउ बनाती हैं.

सागर में बावड़ियां को संजाने और सवारने की कवायद तेज

रखरखाव के अभाव में लुप्त होने की कगार पर पहुंच गईं हैं बावड़ियां

बुंदेलखंड में हमेशा पानी की समस्या रही है. पानी की समस्या को देखते हुए यहांं बड़े पैमाने पर तालाब और बावड़ियों का निर्माण किया गया था. जल संरक्षण के मामले में बावड़ियों का अपना एक अहम स्थान है. सागर में चार बावड़िया हैं जिनका उपयोग जल स्रोत के रूप में होता है. लेकिन रखरखाव के अभाव और पुरानी हो जाने से इनकी हालत खस्ता हो गई है और यह लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं. ऐसी स्थिति में सागर शहर को स्मार्ट सिटी मिशन में शामिल किए जाने के बाद सागर स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने हेरिटेज कंजर्वेशन के तहत इन बावड़ियों के संरक्षण और निखारने का बीड़ा उठाया है.

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ऐतिहासिक तरीके से हो रहा है संरक्षण

इसमें सबसे खास बात यह है कि बावड़ियों को मूल स्वरूप में लाने के लिए संरक्षण और जीर्णोद्धार की वही पद्धति अपनाई गई है, जो इनके निर्माण के समय पर अपनाई गई थी. करीब 4 सौ से 500 साल पुरानी ये बावड़िया हैं. इसके बारे में पहले रिसर्च की गई और इसमें लगाई गई सामग्री यानि मटेरियल की टेस्टिंग की गई. जिससे पता चला कि इन बावड़ियों को सुर्खी और चूने के मसाले से तैयार किया गया था. इसलिए इनके संरक्षण और जीर्णोद्धार में भी उसी पद्धति को अपनाया जा रहा है.

ऐसे तैयार होता है मसाला

सागर के नागेश्वर मंदिर पर स्थित बावड़ी के संरक्षण का काम देख रहे इंजीनियर अपूर्व तिवारी ने कहा कि रिसर्च और मटेरियल टेस्टिंग के बाद हमें इनके मसाले का पता चलाा. इस मिश्रण को तैयार करने के लिए सुर्खी और चूना में गुड़, उड़द की दाल, बेल का फल और जूट भी मिलाया जाता है. खास बात यह है कि मिश्रण सीमेंट से कई गुना मजबूत होता है और इससे तैयार की जाने वाली इमारतें 100 सालों तक जस की तस खड़ी रहती हैं. जबकि सीमेंट से बनी इमारतों की उम्र ज्यादा से ज्यादा 75 से 90 साल तक होती है. (Historical buildings will be renovated in Sagar)

सागर। मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी स्मार्ट सिटी योजना (sagar smart city project) में 100 शहरों को चुना गया है, जिसमें एक मध्यप्रदेश का सागर भी शामिल है. जिसके तहत सागर शहर की ऐतिहासिक विरासत को सजाने और संवारने का जिम्मा सागर स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने उठाया है. शहर की ऐतिहासिक बावड़ियों को नया स्वरूप दिया जा रहा है जो आज से 400 से 500 साल पहले बनाई गई थीं. खास बात ये है कि इन बावड़ियों को उसी पद्धति से निखारा जा रहा है, जिस पद्धति से इनको तैयार किया गया था. करीब 500 साल पहले ऐतिहासिक इमारतों को सुर्खी, चूना, गुड़, उड़द और बेल के फल के विशेष मसाले से तैयार किया जाता था. आज इन बावड़ियों का संरक्षण इसी मसाले से हो रहा है क्योंकि ये मसाले इमारतों को टिकाउ बनाती हैं.

सागर में बावड़ियां को संजाने और सवारने की कवायद तेज

रखरखाव के अभाव में लुप्त होने की कगार पर पहुंच गईं हैं बावड़ियां

बुंदेलखंड में हमेशा पानी की समस्या रही है. पानी की समस्या को देखते हुए यहांं बड़े पैमाने पर तालाब और बावड़ियों का निर्माण किया गया था. जल संरक्षण के मामले में बावड़ियों का अपना एक अहम स्थान है. सागर में चार बावड़िया हैं जिनका उपयोग जल स्रोत के रूप में होता है. लेकिन रखरखाव के अभाव और पुरानी हो जाने से इनकी हालत खस्ता हो गई है और यह लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं. ऐसी स्थिति में सागर शहर को स्मार्ट सिटी मिशन में शामिल किए जाने के बाद सागर स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने हेरिटेज कंजर्वेशन के तहत इन बावड़ियों के संरक्षण और निखारने का बीड़ा उठाया है.

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ऐतिहासिक तरीके से हो रहा है संरक्षण

इसमें सबसे खास बात यह है कि बावड़ियों को मूल स्वरूप में लाने के लिए संरक्षण और जीर्णोद्धार की वही पद्धति अपनाई गई है, जो इनके निर्माण के समय पर अपनाई गई थी. करीब 4 सौ से 500 साल पुरानी ये बावड़िया हैं. इसके बारे में पहले रिसर्च की गई और इसमें लगाई गई सामग्री यानि मटेरियल की टेस्टिंग की गई. जिससे पता चला कि इन बावड़ियों को सुर्खी और चूने के मसाले से तैयार किया गया था. इसलिए इनके संरक्षण और जीर्णोद्धार में भी उसी पद्धति को अपनाया जा रहा है.

ऐसे तैयार होता है मसाला

सागर के नागेश्वर मंदिर पर स्थित बावड़ी के संरक्षण का काम देख रहे इंजीनियर अपूर्व तिवारी ने कहा कि रिसर्च और मटेरियल टेस्टिंग के बाद हमें इनके मसाले का पता चलाा. इस मिश्रण को तैयार करने के लिए सुर्खी और चूना में गुड़, उड़द की दाल, बेल का फल और जूट भी मिलाया जाता है. खास बात यह है कि मिश्रण सीमेंट से कई गुना मजबूत होता है और इससे तैयार की जाने वाली इमारतें 100 सालों तक जस की तस खड़ी रहती हैं. जबकि सीमेंट से बनी इमारतों की उम्र ज्यादा से ज्यादा 75 से 90 साल तक होती है. (Historical buildings will be renovated in Sagar)

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