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Sagar Siddhivinayak एमपी के सागर में भी है सिद्धिविनायक मंदिर, बुंदेलों और मराठों की दोस्ती की शानदार निशानी

बुंदेलखंड में मराठों का इतिहास 400 साल पुराना है. ये वो दौर था,जब महाराजा छत्रसाल की जान बाजीराव पेशवा ने चरखारी के युद्ध में मोहम्मद बंगस खान से बचाई थी. वैसे तो बुंदेलखंड में पहले से मराठा थे, लेकिन छत्रसाल और बाजीराव पेशवा के साथ युद्ध लड़ने के बाद काफी संख्या में यहां मराठा बस गए. इसी दौर में सागर की लाखा बंजारा झील के किनारे गणेश मंदिर बनाया गया. इस गणेश मंदिर की खासियत यह है कि, यह मंदिर मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर से मिलता जुलता है. (siddhivinayak temple Mumbai) इसका वास्तु सिद्धिविनायक मंदिर जैसा ही है. सागर में रहने वाले मराठा परिवारों ने मिलकर करीब 35 साल की मेहनत से मंदिर बनाया था. मंदिर के निर्माण में वहीं सामग्री उपयोग में लाई गई थी, जो बड़े-बड़े किले को बनाने के लिए उपयोग में लाई जाती थी. मंदिर को सिद्धिविनायक सर्वेश्वर गणेश के नाम से जाना जाता है. (Ganesh Chaturthi News) (Friendship Of Bundelas And Marathas) (Ganesh Temple Sagar) (Siddhivinayak Sarveshwar Ganesh)

Sagar Siddhivinayak Ganesh Temple
सागर सिद्धिविनायक मंदिर
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Published : Sep 9, 2022, 7:12 PM IST

सागर। ये कहानी सोलहवीं शताब्दी के उस दौर की है जब सागर में कई मराठा परिवार बस गए थे. सागर में बसे मराठा परिवार अपनी संस्कृति और धार्मिक आस्था से जुड़े रहना चाहते थे. यहां पर ज्यादातर मराठी भोसले और शिंदे परिवार के लोग थे. सभी लोगों ने तय किया कि सागर में एक ऐसा गणेश मंदिर बनाया जाए, जो मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर जैसा हो. सागर के 11 मराठा परिवारों ने मिलकर मंदिर को बनाने का बीड़ा उठाया और 1603 ई. में मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया. मंदिर मजबूत रहे, कई सालों तक महिमा बनी रहे इसलिए तय किया गया कि, मंदिर उसी सामग्री से बनाया जाएगा जिस सामग्री से किले का निर्माण किया जाता था. कहा जाता है कि मंदिर की मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी. मंदिर का निर्माण 1603 ई. से शुरू होकर 35 सालों में यानी कि 1638 ई. में पूरा हो पाया था.

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सागर सिद्धिविनायक गणेश

मंदिर का वास्तु मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर जैसा: मंदिर प्रबंधक गोविंद दत्तात्रेय आठले बताते हैं कि, सागर झील किनारे के मंदिर और मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर का वास्तु शास्त्र एक समान है. मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में गणपति अष्टकोणीय गर्भ गृह में विराजे हैं. सागर के गणेश घाट के मंदिर में भी भगवान गणेश अष्टकोणीय गर्भ ग्रह में विराजमान हैं. मान्यता है कि, गणेश मूर्ति गोल गुंबद में स्थापित करने से संकट आता है. इसलिए गणेश मंदिर की गोल गुंबद नहीं बनाई जाती है. भगवान गणेश के विराजने के लिए सबसे अच्छा अष्टकोण का गर्भ ग्रह माना जाता माना जाता है.

Sagar Siddhivinayak Ganesh Temple
सागर सिद्धिविनायक गणेश
किले की तरह मजबूत बनाने में लगे 35 साल: मंदिर के प्रबंधक के मुताबिक, मंदिर के निर्माण में दाल,चावल,गेहूं, चना, तेल, गोंद,गुड, चूना और रेत को मिलाकर मसाला तैयार किया गया था। तब सीमेंट की व्यवस्था ना होने के कारण बड़े भवन और किले इसी तरह के मसाले से बनाए जाते थे। मंदिर को बनाने में इसी वजह से 35 साल का समय लगा था. (Friendship Of Bundelas And Marathas)
Sagar Siddhivinayak Ganesh Temple
सागर सिद्धिविनायक मंदिर

Indore Ganesh Utsav यहां 130 साल से अनंत है चतुर्दशी का झांकी महोत्सव, जोरो-शोरो पर चल रही तैयारियां

ऐसे पूरी होती है मनोकामना: पुजारी जगदीश तिवारी बताते हैं कि, ये प्राचीन मंदिर "सिद्धिविनायक सर्वेश्वर गणेश" के नाम से जाना जाता है. इसका वास्तु ऐसा है कि कोई भी व्यक्ति कितना परेशान थका हुआ और निराश मन से आता है उसे मंदिर में बैठकर विशेष ऊर्जा मिलती है. मनोकामना के लिए भगवान गणेश को सिंदूर चढ़ाया जाता है. गणेश चतुर्थी या बुधवार के दिन पीले वस्त्र में एक नारियल, सुपारी, सिक्का, हल्दी की गांठ, मूंग और दूर्वा को बांधकर भगवान को अर्पित कर सच्चे मन से मनोकामना मांगे तो जरूर पूरी होती है.(Ganesh Chaturthi News) (Ganesh Temple Sagar)

सागर। ये कहानी सोलहवीं शताब्दी के उस दौर की है जब सागर में कई मराठा परिवार बस गए थे. सागर में बसे मराठा परिवार अपनी संस्कृति और धार्मिक आस्था से जुड़े रहना चाहते थे. यहां पर ज्यादातर मराठी भोसले और शिंदे परिवार के लोग थे. सभी लोगों ने तय किया कि सागर में एक ऐसा गणेश मंदिर बनाया जाए, जो मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर जैसा हो. सागर के 11 मराठा परिवारों ने मिलकर मंदिर को बनाने का बीड़ा उठाया और 1603 ई. में मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया. मंदिर मजबूत रहे, कई सालों तक महिमा बनी रहे इसलिए तय किया गया कि, मंदिर उसी सामग्री से बनाया जाएगा जिस सामग्री से किले का निर्माण किया जाता था. कहा जाता है कि मंदिर की मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी. मंदिर का निर्माण 1603 ई. से शुरू होकर 35 सालों में यानी कि 1638 ई. में पूरा हो पाया था.

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सागर सिद्धिविनायक गणेश

मंदिर का वास्तु मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर जैसा: मंदिर प्रबंधक गोविंद दत्तात्रेय आठले बताते हैं कि, सागर झील किनारे के मंदिर और मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर का वास्तु शास्त्र एक समान है. मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में गणपति अष्टकोणीय गर्भ गृह में विराजे हैं. सागर के गणेश घाट के मंदिर में भी भगवान गणेश अष्टकोणीय गर्भ ग्रह में विराजमान हैं. मान्यता है कि, गणेश मूर्ति गोल गुंबद में स्थापित करने से संकट आता है. इसलिए गणेश मंदिर की गोल गुंबद नहीं बनाई जाती है. भगवान गणेश के विराजने के लिए सबसे अच्छा अष्टकोण का गर्भ ग्रह माना जाता माना जाता है.

Sagar Siddhivinayak Ganesh Temple
सागर सिद्धिविनायक गणेश
किले की तरह मजबूत बनाने में लगे 35 साल: मंदिर के प्रबंधक के मुताबिक, मंदिर के निर्माण में दाल,चावल,गेहूं, चना, तेल, गोंद,गुड, चूना और रेत को मिलाकर मसाला तैयार किया गया था। तब सीमेंट की व्यवस्था ना होने के कारण बड़े भवन और किले इसी तरह के मसाले से बनाए जाते थे। मंदिर को बनाने में इसी वजह से 35 साल का समय लगा था. (Friendship Of Bundelas And Marathas)
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सागर सिद्धिविनायक मंदिर

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ऐसे पूरी होती है मनोकामना: पुजारी जगदीश तिवारी बताते हैं कि, ये प्राचीन मंदिर "सिद्धिविनायक सर्वेश्वर गणेश" के नाम से जाना जाता है. इसका वास्तु ऐसा है कि कोई भी व्यक्ति कितना परेशान थका हुआ और निराश मन से आता है उसे मंदिर में बैठकर विशेष ऊर्जा मिलती है. मनोकामना के लिए भगवान गणेश को सिंदूर चढ़ाया जाता है. गणेश चतुर्थी या बुधवार के दिन पीले वस्त्र में एक नारियल, सुपारी, सिक्का, हल्दी की गांठ, मूंग और दूर्वा को बांधकर भगवान को अर्पित कर सच्चे मन से मनोकामना मांगे तो जरूर पूरी होती है.(Ganesh Chaturthi News) (Ganesh Temple Sagar)

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