सागर। ये कहानी सोलहवीं शताब्दी के उस दौर की है जब सागर में कई मराठा परिवार बस गए थे. सागर में बसे मराठा परिवार अपनी संस्कृति और धार्मिक आस्था से जुड़े रहना चाहते थे. यहां पर ज्यादातर मराठी भोसले और शिंदे परिवार के लोग थे. सभी लोगों ने तय किया कि सागर में एक ऐसा गणेश मंदिर बनाया जाए, जो मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर जैसा हो. सागर के 11 मराठा परिवारों ने मिलकर मंदिर को बनाने का बीड़ा उठाया और 1603 ई. में मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया. मंदिर मजबूत रहे, कई सालों तक महिमा बनी रहे इसलिए तय किया गया कि, मंदिर उसी सामग्री से बनाया जाएगा जिस सामग्री से किले का निर्माण किया जाता था. कहा जाता है कि मंदिर की मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी. मंदिर का निर्माण 1603 ई. से शुरू होकर 35 सालों में यानी कि 1638 ई. में पूरा हो पाया था.
मंदिर का वास्तु मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर जैसा: मंदिर प्रबंधक गोविंद दत्तात्रेय आठले बताते हैं कि, सागर झील किनारे के मंदिर और मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर का वास्तु शास्त्र एक समान है. मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में गणपति अष्टकोणीय गर्भ गृह में विराजे हैं. सागर के गणेश घाट के मंदिर में भी भगवान गणेश अष्टकोणीय गर्भ ग्रह में विराजमान हैं. मान्यता है कि, गणेश मूर्ति गोल गुंबद में स्थापित करने से संकट आता है. इसलिए गणेश मंदिर की गोल गुंबद नहीं बनाई जाती है. भगवान गणेश के विराजने के लिए सबसे अच्छा अष्टकोण का गर्भ ग्रह माना जाता माना जाता है.
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ऐसे पूरी होती है मनोकामना: पुजारी जगदीश तिवारी बताते हैं कि, ये प्राचीन मंदिर "सिद्धिविनायक सर्वेश्वर गणेश" के नाम से जाना जाता है. इसका वास्तु ऐसा है कि कोई भी व्यक्ति कितना परेशान थका हुआ और निराश मन से आता है उसे मंदिर में बैठकर विशेष ऊर्जा मिलती है. मनोकामना के लिए भगवान गणेश को सिंदूर चढ़ाया जाता है. गणेश चतुर्थी या बुधवार के दिन पीले वस्त्र में एक नारियल, सुपारी, सिक्का, हल्दी की गांठ, मूंग और दूर्वा को बांधकर भगवान को अर्पित कर सच्चे मन से मनोकामना मांगे तो जरूर पूरी होती है.(Ganesh Chaturthi News) (Ganesh Temple Sagar)