सागर। राष्ट्रीय बाघ परियोजना के अंतर्गत बाघों को बचाने की मुहिम अभ्यारण्य में शुरू हो गई है. नौरादेही में बाघों का कुनबा 10 तक पहुंच गया है, (Nauradehi Tigers Reserve) लेकिन अभ्यारण्य में घास के मैदान का उचित रखरखाव ना होने के कारण अभ्यारण्य की फूड साइकिल गड़बड़ा गई है. (Tigers Reserve Grassland Management) ऐसे में शाकाहारी जंगली जानवरों की कमी होने के कारण बाघों की खुराक के लिए बाहर से शाकाहारी जंगली जानवर बुलाने पड़ रहे हैं. हालांकि वन विभाग का कहना है कि, टाइगर रिजर्व के प्रस्ताव के बाद नौरादेही अभ्यारण्य में तमाम जरूरी आवश्यकताएं पूरी किए जाने का काम किया जा रहा है. (Nauradehi Tiger Reserve)
विशाल आकार और बसाहट के चलते बिगड़ी फूड साइकिल: नौरादेही अभ्यारण्य मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा अभ्यारण है. यह 3 जिलों में 1197 वर्ग किमी में फैला है. इस अभ्यारण्य में बसाहट होने के कारण कई तरह की परेशानियां सामने आ रही है. खासकर अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व में बदलने के प्रस्ताव के बाद इन दिक्कतों को दूर करना जरूरी हो गया है. नौरादेही अभ्यारण्य में इंसानी आबादी और पालतू पशुओं का आवागमन होने के कारण यहां पर घास के मैदान पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं. जंगल के भीतर रहने वाली इंसानी आबादी अपने पालतू पशुओं को इन मैदानों में चरने के लिए भेज देती है. घास के मैदान का उचित रखरखाव ना होने के कारण अभ्यारण्य में शाकाहारी जानवरों की कमी हो गई है. वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय बाघ परियोजना के अंतर्गत 2018 से यहां बाघों को बसाने का काम शुरू किया गया है और बाघों की संख्या 10 पहुंच गई है, लेकिन बाघों के लिए फूड साइकिल गड़बड़ होने के कारण पर्याप्त भोजन हासिल नहीं हो पा रहा है.
फूड साइकिल के लिए क्यों जरूरी है घास के मैदान: जंगलों में बाघ जैसे ही मांसाहारी जानवर होते हैं. वहां शाकाहारी जंगली जानवरों का भी होना जरूरी है, क्योंकि मांसाहारी जानवर शाकाहारी जानवर को खा कर अपना जीवन यापन करते हैं. किसी भी जंगल में शाकाहारी जानवरों की संख्या तब भी अधिक हो सकती है जब जंगल में शाकाहारी जानवरों के लिए पर्याप्त घास हो. जंगल के शाकाहारी जानवर घास खाते हैं और बाघ जैसे मांसाहारी जानवर शाकाहारी जानवरों को खाते हैं. इस तरह जंगल की फूड साइकिल बनी रहती है, लेकिन नौरादेही अभ्यारण्य का क्षेत्रफल काफी ज्यादा और इंसानी आबादी का हस्तक्षेप होने के कारण यहां की फूड साइकिल गड़बड़ा गई है. यहां पर शाकाहारी जानवरों की भारी कमी हो गई है, ऐसी स्थिति में अभ्यारण्य प्रबंधन को दूसरे जंगलों से शाकाहारी जानवर बुलाने पड़ रहे हैं.
जानकारों की राय: वन और वन्य जीवों के लिए काम करने वाली प्रयत्न संस्था के संयोजक अजय दुबे का कहना है कि, "मप्र में नौरादेही अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व बनाने का प्रस्ताव लंबित है. नौरादेही अभ्यारण्य में इस वक्त जरूरी है कि वहां पर घास के मैदान का प्रबंधन बेहतर किया जाए. इससे शाकाहारी जंगली जानवर बढ़िया तरीके से रह सके. यदि आप टाइगर रिजर्व बनाएंगे, तो टाइगर के लिए फूड साइकिल उपलब्ध होना जरूरी है, इसमें कोई व्यावधान नहीं आना चाहिए. शाकाहारी जानवरों के लिए घास का मैदान रहना बहुत जरूरी है. नौरादेही अभ्यारण में सबसे बड़ी समस्या ये है कि, जो आसपास के गांव के देसी पशु हैं, वह अभ्यारण्य के घास के मैदान में चरते हैं. उनको अभ्यारण के मैदान में जाने से रोका जाए, जिससे घास के मैदान को नुकसान ना हो. अभ्यारण्य का घास का मैदान वहां के जंगली पशुओं के लिए है. नौरादेही अभ्यारण्य में अगर ग्रास लैंड मैनेजमेंट बेहतर किया जाएगा तो बढ़िया टाइगर रिजर्व बनेगा."
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जिम्मेदारों की दलील: सागर वन वृत्त के मुख्य वन संरक्षक अमित दुबे का कहना है कि, "टाइगर रिजर्व बनाने के लिए जो आवश्यकताएं हैं, वह पूरी करने का काम किया जा रहा है. जैसे कि बाघों के लिए भोजन के लिए हिरण, चीतल, सांभर जैसे जानवरों को व्यवस्था की जा रही है. घास के मैदान जरूरी होंगे. उसको पिछले कुछ वर्षों से हम विकसित कर रहे हैं. इसके साथ आधारभूत सुविधाओं के अलावा वन अमला और कुछ संसाधनों की जरूरत होगी. सारी चीजें धीरे-धीरे समय के साथ मजबूत की जा रही हैं, जिससे टाइगर रिजर्व बनने के बाद कोई परेशानी ना हो."