सागर। नगर निगम सागर के लिए महापौर प्रत्याशी तय करने में बीजेपी पिछड़ गई है और कमलनाथ ने मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है. जोकि पिछले 4 दिनों से प्रचार-प्रसार और जनसंपर्क में जुटी हुई हैं। सागर नगर निगम की महापौर पद की सीट सामान्य महिला के लिए आरक्षित है, सत्ताधारी दल बीजेपी में टिकट पाने की होड़ लगी हुई है. टिकट की होड़ में मुख्य मुकाबला सक्रिय महिला नेता और पुरुष नेताओं की पत्नियों के बीच में हो रहा है. कांग्रेस द्वारा दमदार प्रत्याशी घोषित किए जाने के कारण कई दावेदार तो निष्क्रिय हो गए हैं. लेकिन कई दावेदार ऐसे हैं, जो भविष्य की राजनीति को लेकर अभी भी मैदान में हैं. वही पार्टी का कहना है कि पार्षद हो या महापौर सबका टिकट पार्टी द्वारा कराए गए सर्वे के आधार पर तय होगा.
सामान्य महिला सीट होने के कारण ब्राह्मण दावेदारों की चमक सकती है किस्मत: सत्ताधारी दल भाजपा से सागर नगर निगम के महापौर पद का प्रत्याशी कौन होगा, इस पर कांग्रेस के प्रत्याशी घोषित होने के बाद अटकलें लगना शुरू हो गई हैं. दरअसल सागर ब्राह्मण और जैन मतदाता बाहुल्य वाला शहर है. कांग्रेस ने पहले ही जैन महिला को प्रत्याशी घोषित कर एक तरह से भाजपा को मजबूर कर दिया है कि वह ब्राह्मण प्रत्याशी के लिए टिकट दे. क्योंकि विधानसभा चुनाव में 1985 से बीजेपी लगातार जैन प्रत्याशी को ही टिकट देती आ रही है और बीजेपी की तरफ से पिछली छह विधानसभा चुनाव से जैन प्रत्याशी चुनाव जीते आ रहे हैं. वहीं मौजूदा विधायक भी जैन समाज से हैं, ऐसी स्थिति में ब्राह्मण नेता और मतदाता निराशा ना हों, भाजपा ब्राह्मण उम्मीदवार को मैदान में उतार सकती है और समीकरण भी इसी पक्ष में नजर आ रहे हैं.
नेताओं की पत्नियों और सक्रिय महिला नेताओं में घमासान: भाजपा से महापौर का टिकट हासिल करने के लिए शहर के क्षत्रिय-ब्राह्मण नेताओं में होड़ मची हुई है. खासकर पुरुष ब्राह्मण नेता अपनी पत्नियों को टिकट दिलाने के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ वह महिलाएं हैं, जो पार्टी में खुद सक्रिय हैं. ऐसी स्थिति में पार्टी पशोपेश में हैं, क्योंकि जो पुरुष नेता अपनी पत्नी के लिए टिकट मांग रहे हैं वह जनाधार वाले और पार्टी के सक्रिय पदाधिकारी भी हैं. वहीं दूसरी तरफ वे महिलाएं महापौर का टिकट मांग रही हैं, जो पार्टी में खुद सक्रिय हैं और पदाधिकारी या पूर्व पार्षद रह चुकी हैं. एक तरफ मांग उठ रही है कि पुरुष नेताओं की पत्नियों की जगह सक्रिय महिला नेता को टिकट देना चाहिए, लेकिन पार्टी को डर है कि ऐसे में वो पुरुष नेता नाराज ना हो जाएं जो शहर में जनाधार रखते हैं.
पति की सक्रियता के आधार पर दावेदार पत्नियां -
ऋतु श्याम तिवारी: सागर महापौर पद के लिए भाजपा की तरफ से रितु श्याम तिवारी की दावेदारी भी सामने है. श्याम तिवारी भाजपा के सक्रिय नेता हैं, संघ और पार्टी की गतिविधियों में लगातार सक्रिय रहते हैं. सागर के भाजयुमो के जिला अध्यक्ष भी रह चुके हैं. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश सह मंत्री रह चुके हैं. इसके अलावा सागर भाजपा के दो बार जिला उपाध्यक्ष और तीसरी बार जिला महामंत्री बने हैं. एक सक्रिय ब्राह्मण नेता के तौर पर श्याम तिवारी अपनी पत्नी रितु के लिए टिकट की दावेदारी कर रहे हैं.
प्रतिभा अनिल तिवारी: स्वामी विवेकानंद विश्व विद्यालय के संस्थापक कुलपति अनिल तिवारी अपनी पत्नी प्रतिभा के लिए टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. अनिल तिवारी भाजपा और समाज सेवा में सक्रिय हैं. इसके साथ ही संघ और गायत्री परिवार से उनके करीबी रिश्ते हैं. कोरोना काल में समाज सेवा के अलावा शहर की सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक गतिविधियों में लगातार सक्रिय रहने वाले अनिल तिवारी भाजपा के कद्दावर नेता के तौर पर जाने जाते हैं. वहीं आर्थिक रूप से मजबूत नेता के तौर पर भी उनकी पहचान हैं. अनिल तिवारी की पत्नी प्रतिभा तिवारी की बात करें तो प्रतिभा तिवारी का मायका भी भाजपा और संघ से जुड़ा हुआ है. प्रतिभा तिवारी के भाई अनुराग प्यासी मध्य प्रदेश भाजपा के बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक हैं.
शिखा अर्पित पांडे: सागर जिला भाजयुमो के अध्यक्ष रहे अर्पित पांडे भी अपनी पत्नी शिखा के लिए टिकट मांग रहे हैं. जहां तक अर्पित पांडे की बात करें, तो खुद भाजयुमो के जिला अध्यक्ष रहे हैं और उनके पिता रामअवतार पांडे संघ और भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं. राम अवतार पांडे सागर नगर निगम में पार्षद, एमआईसी सदस्य और सागर भाजपा के नगर अध्यक्ष, जिला उपाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर उन्होंने भूमिका निभाई है. सामाजिक कार्यों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं.
पार्टी में सक्रिय महिला दावेदार -
प्रतिभा चौबे: जहां तक उन महिलाओं की बात करें, जो पार्टी में खुद सक्रिय हैं. वह भी महापौर पद के लिए दावेदारी जता रही हैं. सागर नगर निगम में पार्षद के रूप में सेवाएं दे चुकी प्रतिभा चौबे लगातार 20 साल से सागर विधानसभा एवं नगरी निकाय चुनावों में संयोजक के तौर पर काम कर चुकी हैं. महिला मोर्चा में नगर मंत्री के अलावा कई महत्वपूर्ण दायित्व को संभाला है. फिलहाल प्रतिभा चौबे भाजपा महिला मोर्चा की जिला उपाध्यक्ष हैं. उनकी खुद सक्रियता के कारण एक मजबूत दावेदार के तौर पर देखी जा रही हैं.
संध्या भार्गव: संध्या भार्गव महिला मोर्चा की जिला अध्यक्ष हैं. ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट देने की सुगबुगाहट के चलते संध्या भार्गव ने भी अपनी दावेदारी मजबूती से पेश की है. संध्या भार्गव खुद संगठनात्मक गतिविधियों में सक्रिय रहती हैं. स्थानीय स्तर पर और सामाजिक स्तर पर एक जाना पहचाना चेहरा हैं. सागर नगर निगम के महापौर पद के प्रत्याशी के तौर पर उनका नाम भी सुर्खियों में हैं.
मेघा दुबे: सागर नगर निगम की पार्षद रह चुकी मेघा दुबे, महापौर पद के लिए दावेदारी कर रही हैं. मेघा दुबे संगठन और सामाजिक स्तर पर खुद सक्रिय रहती हैं. पार्टी और संघ की गतिविधियों में इनकी सक्रियता बनी रहती है. महापौर पद के लिए पार्टी की तरफ से टिकट के लिए दावेदारी कर रही हैं.
सर्वे के आधार पर तय होगा प्रत्याशी का नाम: भाजपा में टिकट को लेकर मची मारामारी पर विधायक शैलेंद्र जैन का कहना है कि यह असामान्य नहीं है. जो पार्टी सत्ता पक्ष में होती है, उसके कार्यकर्ताओं की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही होती हैं. वहीं भाजपा परिवार का आकार भी बहुत बढ़ गया है, तो हर व्यक्ति की इच्छाएं होती हैं. लेकिन ईटीवी के माध्यम से मैं सभी दावेदारों से कहना चाहता हूं कि, अभी तक महापौर के मामले में सर्वे के आधार पर टिकट देने की परंपरा है. पिछली बार भी जो टिकट दिया गया था, मुख्यमंत्री ने मुझे स्वयं सर्वे रिपोर्ट बताई थी. इस बार महापौर के साथ-साथ पार्षद पद के प्रत्याशी का चयन भी सर्वे के आधार पर होगा.
निष्पक्षता के आधार पर सर्वे: जिस प्रत्याशी के विषय में जनमानस होगा और जनता का विचार जिसके पक्ष में होगा, उसको प्राथमिकता के आधार पर टिकट दिया जाएगा, हम लोगों ने यही तय किया है. एक सीट पर अनेक दावेदार हैं, बाकी लोगों को निराशा हासिल हो सकती है. लेकिन उन्हें यह स्वीकार करना होगा कि पार्टी ने निष्पक्षता के आधार पर सर्वे कराया है, अगर उनका नंबर नहीं आया है, तो इसका मतलब है कि उनके परिश्रम में कोई कमी रह गई है. अगली बार फिर वह मेहनत करेंगे और प्रभु और जनता की इच्छा होगी, तो टिकट जरूर मिलेगा. क्योंकि प्रजातंत्र में जनता ही जनार्दन है और उसकी इच्छा के विपरीत जाना उचित नहीं हैं.