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Navratri Special 2022: सागर की ऐतिहासिक दुर्गा स्थापना, पुरव्याऊ टौरी में 1905 साल से स्थापित हो रही 'माई', जानिये खासियत

सागर के पुरव्याऊ टौरी में पिछले 118 सालों से मां दुर्गा देवी की स्थापना की जा रही है. 1905 में इसकी शुरुआत स्व. हीरा सिंह राजपूत ने की थी. आज उनकी चौथी पीढ़ी इस परंपरा को उसी श्रद्धा और भक्ति के साथ निभा रही है. 1905 में परिवहन के साधन काफी कम होने के कारण स्थापना के समय देवी जी को कंधे पर उनके भक्त लाते थे और फिर उनकी स्थापना की जाती थी. आज भी इसी तरीके से दुर्गा देवी कि स्थापना की जाती है. (Navratri Special 2022) (Historical Goddess Gurga worship of Sagar) (Purvyau Tauri Durga Pooja famous story)

Navratri Special 2022
सागर की ऐतिहासिक दुर्गा स्थापना
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Published : Sep 28, 2022, 12:40 PM IST

सागर। बुंदेलखंड की लोककला और संस्कृति अपने आप में अनूठी है. अपनी परंपराओं और संस्कृति को सहेजने के मामले में बुंदेलखंड के लोग हमेशा तत्पर रहते हैं. इसी सिलसिले में सागर के पुरव्याऊ वार्ड में पिछले 118 सालों से मां दुर्गा देवी की स्थापना की जा रही है. वैसे तो 1905 में इसकी शुरुआत स्व. हीरा सिंह राजपूत ने की थी जो स्वयं मूर्तिकार और संस्थापक थे. लेकिन कालांतर में लोग जुड़ते गए और आज इस परम्परा को पूरे सागर शहर ने सहेज कर रखा है और आगे भी बढ़ाते जा रहे हैं. आज स्वर्गीय हीरा सिंह राजपूत की चौथी पीढ़ी इस परंपरा को उसी श्रद्धा और भक्ति के साथ निभा रही है जो 118 साल पहले शुरू की गई थी.

भक्तों के कंधों पर होती है दुर्गा मां की स्थापना और विसर्जन

खुद बनाई मूर्ति और 1905 में की स्थापना: सागर के पुरव्याऊ टौरी पर रहने वाले हीरा सिंह राजपूत काफी सजग और सांस्कृतिक व्यक्ति थे. गुलामी की जंजीरों में जकड़े भारत के धार्मिक और सामाजिक जागरण को महत्वपूर्ण मानते थे. इसी मनोकामना के साथ उन्होंने 1905 में मां दुर्गा की स्थापना की परिकल्पना की. स्व. हीरा सिंह राजपूत ने स्वयं मां दुर्गा की मूर्ति महिषासुर मर्दिनी के रूप में बनाई और स्थापना की. 1905 में परिवहन के साधन काफी कम होने के कारण स्थापना के समय देवी जी को कंधे पर उनके भक्त लाते थे और फिर उनकी स्थापना की जाती थी. जय माई-जय माई के जय कारों के साथ लोग हर्षोल्लास से परंपरा से जुड़ते गए और आज इतिहास बन गया.

Navratri Special 2022
सागर की ऐतिहासिक दुर्गा स्थापना

संस्थापक स्व. हीरा सिंह राजपूत की चौथी पीढ़ी भी निभा रही है परंपरा: 1905 में जब स्व. हीरा सिंह राजपूत ने खुद मूर्ति बनाकर मां दुर्गा की स्थापना पुरव्याऊ टौरी पर की थी. तब उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि वह एक ऐसी शुरुआत करने जा रहे हैं, जो उनके बाद भी उनकी ही नहीं, बल्कि सारे सागर शहर की पहचान बनेगी. आज स्व. हीरा सिंह राजपूत के परिवार की चौथी पीढ़ी उनकी दी सौगात को निभाने के लिए दिन रात मेहनत करती है. उनके परिवार के लोग भले ही देश के अलग-अलग कोनों में नौकरी और व्यवसाय के सिलसिले में पहुंच गए हों. लेकिन नवरात्रि के अवसर पर दुर्गा स्थापना के लिए समय पर सागर पहुंच जाते हैं और मूर्ति बनाने से लेकर मूर्ति की स्थापना का काम करते हैं. पुरव्याऊ टोरी के सभी लोग दुर्गा स्थापना से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं और हर तरह से सहयोग करते हैं.

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भक्तों के कंधों पर होती है देवी मां की स्थापना और विसर्जन

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महिषासुर मर्दिनी के रूप में होती है मां दुर्गा की स्थापना: पुरव्याऊ टोरी पर पिछले 118 सालों से स्थापित होने वाली मां दुर्गा की स्थापना में साज सज्जा का तरीका भले ही बदल गया हो, लेकिन मूर्ति आज भी उसी स्वरूप में बनाई जाती है, जिस स्वरुप में पहली बार 1905 में बनाई गई थी. मां महिषासुर मर्दिनी के रूप में मां देवी की स्थापना की जाती है. इसके अलावा भगवान गणेश, महालक्ष्मी, मां सरस्वती और भगवान कार्तिकेय भी दुर्गा जी के साथ होते हैं.

Navratri Special 2022
सागर की ऐतिहासिक दुर्गा स्थापना

कंधे पर सवार होकर शहर में घूमने के बाद होता है मां दुर्गा का विसर्जन: 1905 में जब मां दुर्गा की स्थापना की गई थी. तब परिवहन के साधन न होने के कारण मां दुर्गा को भक्त कंधे पर ले जाकर स्थापित करते थे. नवरात्रि के बाद मां दुर्गा के भक्त उनको कंधे पर बिठाकर पहले पूरे शहर का भ्रमण कराते थे, फिर विसर्जित करते थे. आज आवागमन के साधन हो गए हैं और नवरात्रि का पर्व आधुनिकता के दौर में नए-नए परिवर्तन ला रहा है. लेकिन पुरव्याऊ टौरी की मां दुर्गा की स्थापना और विसर्जन आज भी उसी स्वरूप में किया जाता है. दशहरे के दिन जब मां का विसर्जन किया जाता है तो भक्त उन्हें कंधों पर ले जाकर पहले पूरे शहर का भ्रमण कराते हैं. जय माई-जय माई के जय कारों के साथ शहर के प्रमुख मार्गों से होते हुए विसर्जन के लिए ले जाते हैं. देर रात तक मां के दर्शन के लिए शहर के लोगों का तांता लगा रहता है.
(Navratri Special 2022) (Historical Goddess Gurga worship of Sagar) (Purvyau Tauri Durga Pooja famous story) (Sagar Gurga Establishment on devotees shoulders)

भक्तों के कंधों पर होती है दुर्गा देवी की स्थापना और विसर्जन

सागर। बुंदेलखंड की लोककला और संस्कृति अपने आप में अनूठी है. अपनी परंपराओं और संस्कृति को सहेजने के मामले में बुंदेलखंड के लोग हमेशा तत्पर रहते हैं. इसी सिलसिले में सागर के पुरव्याऊ वार्ड में पिछले 118 सालों से मां दुर्गा देवी की स्थापना की जा रही है. वैसे तो 1905 में इसकी शुरुआत स्व. हीरा सिंह राजपूत ने की थी जो स्वयं मूर्तिकार और संस्थापक थे. लेकिन कालांतर में लोग जुड़ते गए और आज इस परम्परा को पूरे सागर शहर ने सहेज कर रखा है और आगे भी बढ़ाते जा रहे हैं. आज स्वर्गीय हीरा सिंह राजपूत की चौथी पीढ़ी इस परंपरा को उसी श्रद्धा और भक्ति के साथ निभा रही है जो 118 साल पहले शुरू की गई थी.

भक्तों के कंधों पर होती है दुर्गा मां की स्थापना और विसर्जन

खुद बनाई मूर्ति और 1905 में की स्थापना: सागर के पुरव्याऊ टौरी पर रहने वाले हीरा सिंह राजपूत काफी सजग और सांस्कृतिक व्यक्ति थे. गुलामी की जंजीरों में जकड़े भारत के धार्मिक और सामाजिक जागरण को महत्वपूर्ण मानते थे. इसी मनोकामना के साथ उन्होंने 1905 में मां दुर्गा की स्थापना की परिकल्पना की. स्व. हीरा सिंह राजपूत ने स्वयं मां दुर्गा की मूर्ति महिषासुर मर्दिनी के रूप में बनाई और स्थापना की. 1905 में परिवहन के साधन काफी कम होने के कारण स्थापना के समय देवी जी को कंधे पर उनके भक्त लाते थे और फिर उनकी स्थापना की जाती थी. जय माई-जय माई के जय कारों के साथ लोग हर्षोल्लास से परंपरा से जुड़ते गए और आज इतिहास बन गया.

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सागर की ऐतिहासिक दुर्गा स्थापना

संस्थापक स्व. हीरा सिंह राजपूत की चौथी पीढ़ी भी निभा रही है परंपरा: 1905 में जब स्व. हीरा सिंह राजपूत ने खुद मूर्ति बनाकर मां दुर्गा की स्थापना पुरव्याऊ टौरी पर की थी. तब उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि वह एक ऐसी शुरुआत करने जा रहे हैं, जो उनके बाद भी उनकी ही नहीं, बल्कि सारे सागर शहर की पहचान बनेगी. आज स्व. हीरा सिंह राजपूत के परिवार की चौथी पीढ़ी उनकी दी सौगात को निभाने के लिए दिन रात मेहनत करती है. उनके परिवार के लोग भले ही देश के अलग-अलग कोनों में नौकरी और व्यवसाय के सिलसिले में पहुंच गए हों. लेकिन नवरात्रि के अवसर पर दुर्गा स्थापना के लिए समय पर सागर पहुंच जाते हैं और मूर्ति बनाने से लेकर मूर्ति की स्थापना का काम करते हैं. पुरव्याऊ टोरी के सभी लोग दुर्गा स्थापना से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं और हर तरह से सहयोग करते हैं.

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महिषासुर मर्दिनी के रूप में होती है मां दुर्गा की स्थापना: पुरव्याऊ टोरी पर पिछले 118 सालों से स्थापित होने वाली मां दुर्गा की स्थापना में साज सज्जा का तरीका भले ही बदल गया हो, लेकिन मूर्ति आज भी उसी स्वरूप में बनाई जाती है, जिस स्वरुप में पहली बार 1905 में बनाई गई थी. मां महिषासुर मर्दिनी के रूप में मां देवी की स्थापना की जाती है. इसके अलावा भगवान गणेश, महालक्ष्मी, मां सरस्वती और भगवान कार्तिकेय भी दुर्गा जी के साथ होते हैं.

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सागर की ऐतिहासिक दुर्गा स्थापना

कंधे पर सवार होकर शहर में घूमने के बाद होता है मां दुर्गा का विसर्जन: 1905 में जब मां दुर्गा की स्थापना की गई थी. तब परिवहन के साधन न होने के कारण मां दुर्गा को भक्त कंधे पर ले जाकर स्थापित करते थे. नवरात्रि के बाद मां दुर्गा के भक्त उनको कंधे पर बिठाकर पहले पूरे शहर का भ्रमण कराते थे, फिर विसर्जित करते थे. आज आवागमन के साधन हो गए हैं और नवरात्रि का पर्व आधुनिकता के दौर में नए-नए परिवर्तन ला रहा है. लेकिन पुरव्याऊ टौरी की मां दुर्गा की स्थापना और विसर्जन आज भी उसी स्वरूप में किया जाता है. दशहरे के दिन जब मां का विसर्जन किया जाता है तो भक्त उन्हें कंधों पर ले जाकर पहले पूरे शहर का भ्रमण कराते हैं. जय माई-जय माई के जय कारों के साथ शहर के प्रमुख मार्गों से होते हुए विसर्जन के लिए ले जाते हैं. देर रात तक मां के दर्शन के लिए शहर के लोगों का तांता लगा रहता है.
(Navratri Special 2022) (Historical Goddess Gurga worship of Sagar) (Purvyau Tauri Durga Pooja famous story) (Sagar Gurga Establishment on devotees shoulders)

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