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panchayat election 2021 सरपंच के लिए लगी लाखों की बोली, उन्हीं चुनावों में खर्च की सीमा तय नहीं

मध्यप्रदेश में होने जा रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव(Madhya Pradesh panchayat election 2021)में सरपंच पदों की नीलामी की खबरें भी आ रही हैं. हाल ही में अशोकनगर जिले में एक सरपंच पद की 44 लाख में नीलामी होने का मामला सामने आ चुका है. बावजूद इसके राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव में होने वाले प्रचार, प्रसार के खर्च की कोई सीमा तय नहीं (no expenditure limit)की है.

panchayat expenditure limit
चुनावों में आयोग ने तय नहीं की खर्च की सीमा
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Published : Dec 20, 2021, 5:42 PM IST

सागर। मध्यप्रदेश में होने जा रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव(panchayat election 2021)में सरपंच पदों की नीलामी की खबरें भी आ रही हैं. हाल ही में अशोकनगर जिले में एक सरपंच पद की 44 लाख में नीलामी होने का मामला सामने आ चुका है. बावजूद इसके राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव में होने वाले प्रचार, प्रसार के खर्च की कोई सीमा तय नहीं (no expenditure limit)की है. जिसका सीधा मतलब है कि पंच,सरपंच, जनपद सदस्य और जिला पंचायत सदस्य चुनाव जीतने के लिए मनमाना पैसा खर्च कर सकते हैं, जबकि नगरीय निकाय चुनाव, विधानसभा और लोकसभा चुनाव में होने वाले खर्च पर चुनाव आयोग सख्ती से नजर रखता है.

चुनावों में आयोग ने तय नहीं की खर्च की सीमा
44 लाख में नीलाम हुआ सरपंच का पदअशोकनगर जिले के चंदेरी विकासखंड की ग्राम पंचायत भटोली में सौभाग सिंह नाम के शख्स ने 44 लाख में सरपंच पद की बोली जीत ली और ग्रामीणों ने उसे निर्विरोध अपना सरपंच चुन लिया. हालांकि यह चुनावी प्रक्रिया नहीं थी, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि अब सौभाग सिंह के खिलाफ कोई भी सरपंच पद के लिए पर्चा नहीं भरेगा. जिसके बाद उसे चुनावी प्रक्रिया में भी निर्विरोध सरपंच चुन लिया जाएगा, लेकिन सवाल उठता है कि अगर सौभाग सिंह का फॉर्म निरस्त हो गया तब ऐसी स्थिति में क्या होगा. इसका ग्रामीणों के पास कोई जवाब नहीं था. ग्रामीणों ने 44 लाख रुपए गांव के मंदिर (जहां सरपंच पद की बोली लगाई गई) और गांव के विकास में खर्च किए जाने का फैसला भी कर लिया है.खास बात यह है कि अभी तक इस मामले में जिला प्रशासन और निर्वाचन आयोग ने कोई कदम नहीं उठाया है.पंचायत चुनाव में खर्च की सीमा तय नहीं?संवैधानिक व्यवस्था के तहत राज्य निर्वाचन आयोग ही पंचायत चुनाव संपन्न कराता है. इसके लिए आचार संहिता भी तय होती है, लेकिन खास बात यह है कि यहां खर्च की कोई सीमा तय नहीं होती है.जबकि लोकतंत्र में ग्राम पंचायत सबसे छोटी इकाई होती है इस हिसाब से चुनाव खर्च भी सबसे कम होना चाहिए, लेकिन राज्य निर्वाचन आयोग ने खर्च से संबंधित कोई दिशा निर्देश नहीं दिए हैं. इसका सीधा मतलब है कि पंच और सरपंच के अलावा जनपद सदस्य और जिला पंचायत सदस्य जैसे प्रतिष्ठा पूर्ण चुनाव लड़ने वाले लोग चुनाव जीतने के लिए पानी की तरह पैसा बहाते हैं जिसकी कोई निगरानी नहीं होती. दूसरे चुनावों से क्यों अलग है खर्च की सीमा का नियम?राज्य निर्वाचन आयोग ने नगरीय निकाय चुनाव के लिए खर्च की सीमा तय की है. नगर परिषद,नगर पालिका ,नगर निगम पार्षद, महापौर सभी पदों के लिए खर्च की सीमा तय की गई है. इन चुनावों में खर्च की निगरानी के लिए पर्यवेक्षक भी नियुक्ति किए जाते हैं. जो सोशल मीडिया से लेकर दूसरे तमाम माध्यम से चुनाव में होने वाले खर्चे पर पैनी नजर रखते हैं. कई बार निर्धारित सीमा से ज्यादा खर्च करने पर आयोग प्रत्याशी के खिलाफ कार्रवाई भी करता है और चुनाव भी रद्द किया जा सकता है, लेकिन लोकतंत्र की सबसे छोटी और मजबूत इकाई ग्राम पंचायत के चुनावों में खर्च की सीमा तय नहीं होने से पंच, सरपंच, जनपद और जिला पंचायत के पद को हासिल करने के लिए उम्मीदवार बेतहाशा खर्च करते हैं. सौभाग सिंह इसी का एक उदाहरण है.

सागर। मध्यप्रदेश में होने जा रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव(panchayat election 2021)में सरपंच पदों की नीलामी की खबरें भी आ रही हैं. हाल ही में अशोकनगर जिले में एक सरपंच पद की 44 लाख में नीलामी होने का मामला सामने आ चुका है. बावजूद इसके राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव में होने वाले प्रचार, प्रसार के खर्च की कोई सीमा तय नहीं (no expenditure limit)की है. जिसका सीधा मतलब है कि पंच,सरपंच, जनपद सदस्य और जिला पंचायत सदस्य चुनाव जीतने के लिए मनमाना पैसा खर्च कर सकते हैं, जबकि नगरीय निकाय चुनाव, विधानसभा और लोकसभा चुनाव में होने वाले खर्च पर चुनाव आयोग सख्ती से नजर रखता है.

चुनावों में आयोग ने तय नहीं की खर्च की सीमा
44 लाख में नीलाम हुआ सरपंच का पदअशोकनगर जिले के चंदेरी विकासखंड की ग्राम पंचायत भटोली में सौभाग सिंह नाम के शख्स ने 44 लाख में सरपंच पद की बोली जीत ली और ग्रामीणों ने उसे निर्विरोध अपना सरपंच चुन लिया. हालांकि यह चुनावी प्रक्रिया नहीं थी, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि अब सौभाग सिंह के खिलाफ कोई भी सरपंच पद के लिए पर्चा नहीं भरेगा. जिसके बाद उसे चुनावी प्रक्रिया में भी निर्विरोध सरपंच चुन लिया जाएगा, लेकिन सवाल उठता है कि अगर सौभाग सिंह का फॉर्म निरस्त हो गया तब ऐसी स्थिति में क्या होगा. इसका ग्रामीणों के पास कोई जवाब नहीं था. ग्रामीणों ने 44 लाख रुपए गांव के मंदिर (जहां सरपंच पद की बोली लगाई गई) और गांव के विकास में खर्च किए जाने का फैसला भी कर लिया है.खास बात यह है कि अभी तक इस मामले में जिला प्रशासन और निर्वाचन आयोग ने कोई कदम नहीं उठाया है.पंचायत चुनाव में खर्च की सीमा तय नहीं?संवैधानिक व्यवस्था के तहत राज्य निर्वाचन आयोग ही पंचायत चुनाव संपन्न कराता है. इसके लिए आचार संहिता भी तय होती है, लेकिन खास बात यह है कि यहां खर्च की कोई सीमा तय नहीं होती है.जबकि लोकतंत्र में ग्राम पंचायत सबसे छोटी इकाई होती है इस हिसाब से चुनाव खर्च भी सबसे कम होना चाहिए, लेकिन राज्य निर्वाचन आयोग ने खर्च से संबंधित कोई दिशा निर्देश नहीं दिए हैं. इसका सीधा मतलब है कि पंच और सरपंच के अलावा जनपद सदस्य और जिला पंचायत सदस्य जैसे प्रतिष्ठा पूर्ण चुनाव लड़ने वाले लोग चुनाव जीतने के लिए पानी की तरह पैसा बहाते हैं जिसकी कोई निगरानी नहीं होती. दूसरे चुनावों से क्यों अलग है खर्च की सीमा का नियम?राज्य निर्वाचन आयोग ने नगरीय निकाय चुनाव के लिए खर्च की सीमा तय की है. नगर परिषद,नगर पालिका ,नगर निगम पार्षद, महापौर सभी पदों के लिए खर्च की सीमा तय की गई है. इन चुनावों में खर्च की निगरानी के लिए पर्यवेक्षक भी नियुक्ति किए जाते हैं. जो सोशल मीडिया से लेकर दूसरे तमाम माध्यम से चुनाव में होने वाले खर्चे पर पैनी नजर रखते हैं. कई बार निर्धारित सीमा से ज्यादा खर्च करने पर आयोग प्रत्याशी के खिलाफ कार्रवाई भी करता है और चुनाव भी रद्द किया जा सकता है, लेकिन लोकतंत्र की सबसे छोटी और मजबूत इकाई ग्राम पंचायत के चुनावों में खर्च की सीमा तय नहीं होने से पंच, सरपंच, जनपद और जिला पंचायत के पद को हासिल करने के लिए उम्मीदवार बेतहाशा खर्च करते हैं. सौभाग सिंह इसी का एक उदाहरण है.
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