सागर/जबलपुर। सागर के बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में इलाज करा रहे ब्लैक फंगस के 27 मरीजों की हालत शनिवार रात को अचानक बिगड़ गई थी. इन मरीजों को हिमाचल की एक मेडिसन कंपनी से मंगाए गए एंफोटैरेसिन बी इंजेक्शन लगाए गए थे. इसके बाद से मरीजों में उल्टी आना और चक्कर आना जैसे गंभीर रिएक्शन दिखाई दिए थे. हालांकि तुरंत इलाज मिलने और डॉक्टरों की सक्रियता से किसी भी मरीज की जान नहीं गई थी. इसके बाद रविवार रात को रिएक्शन करने वाले इंजेक्शन की जगह पर सरकार की तरफ से एंफोटेरिसन बी के 200 इंजेक्शन भेजे गए हैं. बीएमसी प्रबंधन ने बताया कि पहले भेजे गए इंजेक्शन अलग फार्मूले और कम गुणवत्ता वाले थे.
पहले CORONA मरीजों की जान से खिलवाड़, अब BLACK FUNGUS के रोगियों की जान ले रही सरकार
रेड पैकिंग में असली, ब्लू में कम गुणवत्ता वाला इंजेक्शन
यहां आपको जो रेड पैकिंग में दिखाई दे रहा है वह एंफीटैरिसन-बी का असली इंजेक्शन है जिसकी पहले मेडिकल कॉलेज में सप्लाई की गई थी. इसके साथ ब्लू पैकिंग में दिखाई दे रहा दूसरा एंफीटैरिसन-बी का वह इंजेक्शन है जो बद्दी की एफी फार्मा कंपनी से खरीदा गया है. इस ब्लू इंजेक्शन के लगाए जाने से मरीजों में रिएक्शन देखा जा रहा है. जिसमें उल्टी, दस्त, तेज बुखार, चक्कर आना जैसी समस्याएं सामने आ रही हैं.
बद्दी के इंजेक्शन कीमत कम, ज्यादा रिएक्शन
मध्यप्रदेश में ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों को देखते हुए इसके इलाज में काम आने वाले एंफोटरइसिन-बी इंजेक्शन की कमी हो गई थी. बड़ी मुश्किल से मरीजों को लगभग 7000 रु कीमत चुकाने के बाद इंजेक्शन हासिल हो रहे थे. जिसके बाद सरकार ने हिमाचल प्रदेश के बद्दी में नई फार्मा कंपनी एफी के बनाए हुए एंफोटैरिसन -बी इंजेक्शन खरीदने का फैसला किया. इनकी कीमत महज 345 रुपए है. 25 हजार इंजेक्शन का ऑर्डर किया गया है, जिसकी पहली खेप में 12 हजार 240 इंजेक्शन बीते शुक्रवार को विशेष विमान से इंदौर पहुंचे थे. जिसके बाद भोपाल से इन्हें प्रदेश के बड़े अस्पतालों में जहां ब्लैक फंगस के मरीजों का इलाज किया जा रहा है वहां भेजा गया है.
जबलपुर में भी सामने आ चुका है ऐसा ही मामला
जबलपुर के सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में भी 50 मरीजों को भी एंटी फंगल एंफीटैरिसन बी इंजेक्शन लगने से रिएक्शन हुआ था. हालांकि डॉक्टर्स और अस्पताल प्रबंधन की सक्रियता के चलते स्थिति तुरंत ही नियंत्रण में आ गई. सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज अस्पताल के 3 वार्डों में ब्लैक फंगस के 50 से ज्यादा मरीजों का इलाज चल रहा है. इन मरीजों को भी सरकारी सप्लाई से आया हुआ एम्फोटेरिसिन-बी (एफी कंपनी बद्दी) नाम का इंजेक्शन लगाया गया था. इसके बाद ज्यादातर मरीजों को ठंड लगी. वहीं कुछ लोगों को उल्टी और सर दर्द की शिकायत हुई. साथ ही बुखार भी आ गया. इसके तुरंत बाद अस्पताल के डॉक्टर वार्ड में पहुंचे और स्थिति को नियंत्रण करने के लिए सभी मरीजों को रिएक्शन रोकने वाली दवाइयां दी गईं. इसके तरुंत बाद इंजेक्शन का इस्तेमाल रोक दिया गया. अस्पताल प्रबंधन ने उन्हें भेज गए सभी इंजेक्शन सील कर दिए है.
इंजेक्शन सप्लाई करने वाली कंपनी की जांच हो
कोरोना काल के दौरान जहां कई लोग नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाए जाने की वजह से अपनी जान गंवा चुके है, वहीं अब ब्लैक फंगस के इलाज में रिएक्शन करने वाले इंजेक्शन की सप्लाई उनके लिए एक नई मुसीबत साबित हो रही है. वहीं जिन अस्पतालों में इन इजेक्शन के प्रयोग से मरीजों को रिएक्शन हुआ है वहां के डॉक्टर इन इंजेक्शन और इन्हें सप्लाई करने वाली कंपनी की जांच चाहते हैं. हिमाचल की एफी फार्मा नाम की जिस कंपनी ने ये इंजेक्शन सप्लाई किए हैं उस पर कार्रवाई की मांग भी की जा रही है. सवाल यह भी हैं कि सरकार को यह आइडिया किसने और क्यों दिया कि एंफीटैरिसन बी इंजेक्शन एफी फार्मा से खरीद जाए. पहली खेप में ही 25 हजार इंजेक्शन क्यों मंगाए गए. क्या इन इजेक्शनों की सप्लाई से पहले जांच की गई थी, क्या इसके दोषियों को सजा मिलेगी.