सागर। एक खेत में एक ही फसल की 3000 से ज्यादा किस्में, यह अद्भुत नजारा देखकर आप भी चौंक जाएंगे. यह आपको सोचने को मजबूर कर देगा कि आखिर एक ही फसल की इतनी ज्यादा संख्या में किस्में क्यों बोई गई हैं. हम आपको को बताते हैं. इन दिनों सागर के क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र (Regional Agricultural Research Center) में अखिल भारतीय समन्वित अलसी अनुसंधान परियोजना के तहत शोध किया जा रहा है. जिसमें 3 हजार किस्म की अलसी बोई गई है. इसका उद्देश्य है किसानों को अलसी की फसल की तरफ आकर्षित करना. इसी प्रयोग के तहत सागर के कृषि अनुसंधान केंद्र में रिसर्च की जा रही है.
क्या है अखिल भारतीय समन्वित अलसी अनुसंधान परियोजना
अलसी उत्पादन के मामले में मध्यप्रदेश देश का अग्रणी राज्य है. प्रदेश में अलसी का कुल रकबा 1 लाख 38 हजार हेक्टेयर है. जिसका सालाना औसत उत्पादन 67 हजार मीट्रिक टन है. यह देश के कुल उत्पादन का 50 प्रतिशत है. सागर स्थित क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र प्रदेश का इकलौता केंद्र है, जहां पर अलसी की फसल पर रिसर्च किया जाता है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा संचालित अखिल भारतीय समन्वित अलसी अनुसंधान परियोजना (All India Integrated Linseed Research Project) कृषि अनुसंधान केंद्र सागर में 1987 से चलाई जा रही है. इस परियोजना के अंतर्गत फसल सुधार के साथ-साथ फसल के स्वास्थ्य प्रबंधन के प्रयोग भी किए जाते हैं. इसके अलावा तकनीक का विकास और नई प्रजातियों पर प्रयोग किया जाता है. अब तक इस केंद्र के माध्यम से 9 से ज्यादा प्रजातियां विकसित की जा चुकी है,जो प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भी लोकप्रिय हैं.
किसान कम करते हैं अलसी का उत्पादन
अलसी के बीज सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं. खास बात यह है कि अलसी की फसल में बीमारी नहीं लगती, लेकिन कटाई, गुढ़ाई और सफाई की बड़ी समस्या के कारण किसान धीरे-धीरे अलसी से दूर होता जा रहा है, और इसका कम उत्पादन किया जाता है. इस समस्या के निराकरण के लिए परियोजना के अंतर्गत कई कार्य किए गए हैं. खासकर कटाई, गढ़ाई और सफाई में टेक्नीक को बढ़ावा दिया गया है. इसके जरिए किसानों के बीच अलसी को फिर से लोकप्रिय बनाया जा रहा है.
अलसी की 3000 किस्में उगानें का यह है उद्देश्य
क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र में संचालित अखिल भारतीय समन्वित अलसी अनुसंधान परियोजना के वैज्ञानिक डॉ. डीके का कहना है कि छोटी तिलहनी फसलों जिनमें अलसी, तिल, कुसुम, राम तेल जैसी फसलें होती हैं इन्हें माइनर ऑयल सीड क्राप में लिया जाता है, क्योंकि इनका रकबा कम है. ये फसलें प्रचलन में भी कम हैं. इसके लिए भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने देश में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए एनबीपीजीआर के समन्वय से 24 करोड़ में एक परियोजना संचालित की है. जिसमें देश के प्रमुख 10 अनुसंधान केंद्रों में अलग-अलग जलवायु के हिसाब से अलसी पर अनुसंधान किया जा रहा है. इसी क्रम में सागर में भी एक ही खेत पर असली की 3 हजार किस्में उगाकर रिसर्च किया जा रहा है.
सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए अलसी पर अनुसंधान
परियोजना के वैज्ञानिक डॉ. डीके प्यासी बताते हैं कि वर्तमान में सागर के अलसी अनुसंधान केंद्र में सूखा प्रभावित कई क्षेत्र शामिल हैं. इन क्षेत्रों में अलसी की कौन-सी फसलें उगाई जा सकती हैं, उन को चिन्हित करने और मूल्यांकन का काम किया जा रहा है. यह भी शोध किया जा रहा है कि सिंचाई वाली जगहों उन्हीं फसलों को उगाने पर किस तरह के परिणाम होंगे. उन्होंने कहा इस परियोजना के माध्यम से असिंचित और सिंचित के बीच क्या अंतर होता है, इस सब की गणना कर हम एक डाटा तैयार करते हैं. इनके लक्षणों के आधार पर नई प्रजाति बनाने और फसल सुधार के हिसाब से भी काम किया जा रहा है. इन सभी विशेषताओं की पहचान करना और इसपर अनुसंधान करना ही इस प्रोग्राम का उद्देश्य है. यह भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किया गया कार्य है, जिसमें अलसी की 3000 किस्मों का मूल्यांकन किया जा रहा है. भविष्य में इन किस्मों की विशेषताओं और लक्षण के आधार पर इनका उपयोग किया जा सकेगा.
(Regional Agricultural Research Center in sagar) (promotion of oilseed crops) (3000 varieties of flaxseed in sagar)