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ओलंपियन सीता का दर्दः 2011 में देश को कांस्य पदक दिलाने वाली रीवा की बेटी रेहड़ी लगाने को मजबूर, पढ़ें यह रिपोर्ट - Rewa Sita Sahu accused Jyotiraditya Scindia

रीवा की बेटी ने ग्रीस के एथेंस स्पेशल ओलिम्पिक 2011 में देश के लिए दो कांस्य पदक जीते थे. आज उसका परिवार रोज रोटी के लिए भी मोहताज है. मेडल जीतने के बाद सिंधिया ने 5 लाख रुपये के साथ पक्का मकान और दुकान देने की घोषणा की थी, लेकिन सीता साहू ने कहा कि उसे अभी तक मदद नहीं मिली है.

Rewa Sita Sahu accused Jyotiraditya Scindia
सीता साहू और ज्योतिरादित्य सिंधिया
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Published : Apr 20, 2022, 10:54 PM IST

रीवा। एमपी की दिव्यांग बेटी और देश का नाम रोशन करने वाली सीता साहू का परिवार रोटी के लिए मोहताज है. एक समय देश को कांस्य पदक दिलाने वाली सीता साहू कई सालों से अपने परिवार का पेट पालने के लिए समोसा का व्यापार कर रही थी. अब सरकार ने उसके इस सहारे को भी छीन लिया है. सीता साहू ने समोसे के ठेले को हटा दिया है. अब मजबूरी में परिवार के लिए शादी, विवाह, पार्टी में कुकिंग का ऑर्डर लेकर पेट पालने को मजबूर है.

सीता साहू और ज्योतिरादित्य सिंधिया

मंदबुद्धि दिव्यांग कैसे कर रही गुजारा: धोबिया टंकी के पास साहू मोहल्ले में रहने वाली सीता साहू ने अपनी रफ्तार से दुनिया को चौंकाते हुए भारत को कांस्य पदक दिलाया था. वह आज समोसे बेचकर अपनी जिंदगी गुजार रही है. मंदबुद्धि दिव्यांग कोटे से एथेंस स्पेशल ओलिम्पिक-2011 में देश के लिए दो कांस्य पदक जीते थे. सरकारी वादे आज 11 वर्ष पूरे हो जाने के बाद भी अधूरे ही रह गए, जिससे अब उसे अपनी जिंदगी गुजर बसर करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.

आर्थिक संकट से जूझ रही सीता: रीवा की बेटी ने ग्रीस के एथेंस में आयोजित प्रतियोगिता में कदमों के सहारे अपनी चमक बिखेरते हुए दुनिया को बस में कर लिया था. अब वह खुद बेबस होकर समोसे बेचकर अपना और परिवार का पेट पाल रही है. सीता साहू ने साल 2011 में ग्रीस के एथेंस मे दौड़ प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता था. इसके बाद पूरी दुनिया उसकी रफ्तार की कायल हो गई थी.

rewa olympics bronze medalist
ओलंपिक में मिला कांस्य पदक

सरकार वादा भूली: ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांस्य पदक विजेता सीता साहू को 5 लाख रुपये के साथ पक्का मकान और दुकान देने की घोषणा की थी. 10 साल बीत जाने के बाद भी रुपये तो मिल गए, लेकिन मकान और दुकान का अभी कोई पता नहीं है. इस संबंध में कई बार उन्होंने नगर निगम का विस्तार से भी बातचीत की. बावजूद इसके उन्हें मकान व दुकान नहीं मिल पाया है. सीता साहू और उनके परिवार के लोगों का आरोप है कि घोषणा करने के बाद सरकार खुद किया गया वादा भूल जाती है.

5वीं कक्षा तक पढ़ी है सीता: कांस्य पदक विजेता सीता साहू बचपन से ही मंदबुद्धि थी. उसकी शिक्षा और दीक्षा मंदबुद्धि स्कूल में हुई. सीता साहू ने 5वीं तक ही पढ़ाई की. पढ़ाई में रुचि न होने के चलते स्कूल के शिक्षकों ने उसे खेल के लिए प्रेरित किया. स्कूल के दिनों में ही सीता की प्रतिभा निकल कर सामने आई. सीता दौड़ में सबसे तेज निकली, जिसके बाद वर्ष 2011 के ग्रीस में आयोजित एथेंस ओलंपिक प्रतियोगिता में सीता का चयन हुआ.

rewa olympics bronze medalist
सर्टिफिकेट के साथ सीता

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समोसे के व्यापार से चलता है सीता का घर: सीता के पिता पुरुषोत्तम साहू का विगत वर्ष निधन हो गया था. जिससे उसके परिवार की माली स्थित खराब होती गई. परिवार में दो भाई और दो बहन हैं. जिसमें सीता की एक बहन और एक भाई का विवाह हो चुका है. सीता साहू का पुश्तैनी व्यवसाय है. पहले उसके पिता धोबिया टंकी में समोसे की दुकान संचालित करते थे. पिता के देहांत के बाद उनका यह व्यवसाय उनके दोनों बेटे और सीता ने संभाला, लेकिन बीते दिनों नगर निगम के द्वारा उनकी दुकान को हटा दिया गया. दुकान हटाये जाने की वजह से उनके व्यापार में अच्छा खासा असर हुआ है, जिसकी वजह से अब सीता के परिवार को काफी मुश्किलों से गुजरना पड़ रहा है.

रीवा। एमपी की दिव्यांग बेटी और देश का नाम रोशन करने वाली सीता साहू का परिवार रोटी के लिए मोहताज है. एक समय देश को कांस्य पदक दिलाने वाली सीता साहू कई सालों से अपने परिवार का पेट पालने के लिए समोसा का व्यापार कर रही थी. अब सरकार ने उसके इस सहारे को भी छीन लिया है. सीता साहू ने समोसे के ठेले को हटा दिया है. अब मजबूरी में परिवार के लिए शादी, विवाह, पार्टी में कुकिंग का ऑर्डर लेकर पेट पालने को मजबूर है.

सीता साहू और ज्योतिरादित्य सिंधिया

मंदबुद्धि दिव्यांग कैसे कर रही गुजारा: धोबिया टंकी के पास साहू मोहल्ले में रहने वाली सीता साहू ने अपनी रफ्तार से दुनिया को चौंकाते हुए भारत को कांस्य पदक दिलाया था. वह आज समोसे बेचकर अपनी जिंदगी गुजार रही है. मंदबुद्धि दिव्यांग कोटे से एथेंस स्पेशल ओलिम्पिक-2011 में देश के लिए दो कांस्य पदक जीते थे. सरकारी वादे आज 11 वर्ष पूरे हो जाने के बाद भी अधूरे ही रह गए, जिससे अब उसे अपनी जिंदगी गुजर बसर करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.

आर्थिक संकट से जूझ रही सीता: रीवा की बेटी ने ग्रीस के एथेंस में आयोजित प्रतियोगिता में कदमों के सहारे अपनी चमक बिखेरते हुए दुनिया को बस में कर लिया था. अब वह खुद बेबस होकर समोसे बेचकर अपना और परिवार का पेट पाल रही है. सीता साहू ने साल 2011 में ग्रीस के एथेंस मे दौड़ प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता था. इसके बाद पूरी दुनिया उसकी रफ्तार की कायल हो गई थी.

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सरकार वादा भूली: ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांस्य पदक विजेता सीता साहू को 5 लाख रुपये के साथ पक्का मकान और दुकान देने की घोषणा की थी. 10 साल बीत जाने के बाद भी रुपये तो मिल गए, लेकिन मकान और दुकान का अभी कोई पता नहीं है. इस संबंध में कई बार उन्होंने नगर निगम का विस्तार से भी बातचीत की. बावजूद इसके उन्हें मकान व दुकान नहीं मिल पाया है. सीता साहू और उनके परिवार के लोगों का आरोप है कि घोषणा करने के बाद सरकार खुद किया गया वादा भूल जाती है.

5वीं कक्षा तक पढ़ी है सीता: कांस्य पदक विजेता सीता साहू बचपन से ही मंदबुद्धि थी. उसकी शिक्षा और दीक्षा मंदबुद्धि स्कूल में हुई. सीता साहू ने 5वीं तक ही पढ़ाई की. पढ़ाई में रुचि न होने के चलते स्कूल के शिक्षकों ने उसे खेल के लिए प्रेरित किया. स्कूल के दिनों में ही सीता की प्रतिभा निकल कर सामने आई. सीता दौड़ में सबसे तेज निकली, जिसके बाद वर्ष 2011 के ग्रीस में आयोजित एथेंस ओलंपिक प्रतियोगिता में सीता का चयन हुआ.

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