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Pitru Paksha 2022: इस बार ऐसे करें पितरों का तर्पण, जानें श्राद्ध तिथियां, पौराणिक कथा, पूजा विधि और नियम

इस साल पितृपक्ष 10 सितंबर से शुरू हो रहा है. पहले दिन पूर्णिमा को दिवंगत हुए पूर्वजों का तर्पण किया जाता है. श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक 16 दिनों तक चलता है. मान्यता है कि पितृपक्ष में कुछ खास बातों का इस दौरान ध्यान रखा जाए तो पूर्वजों का भरपूर आशीर्वाद मिलता है. वहीं, कुछ बातें ऐसी भी हैं जिनका ध्यान नहीं रखा जाए तो पूर्वजों की नाराजगी का सामना भी करना पड़ सकता है. Pitru Paksha 2022, Pitru Paksha start date, shradh 2022 niyam

Pitru Paksha 2022
पितृपक्ष 2022 के नियम
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Published : Sep 9, 2022, 7:21 PM IST

भोपाल। भारत में सनातन धर्म में जहां धर्म में जहां मानव सेवा का विशेष उल्लेख किया गया है, तो वहीं पितृपक्ष के दौरान पितरों की सेवा का भी वर्णन किया गया है. मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान व्यक्ति श्रद्धा भाव से पितरों के निमित्त श्राद्ध करता है तो उससे खुश होकर पितर उसे खुशहाल जीवन का भी आशीर्वाद प्रदान करते हैं. हर वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या को समाप्त हो जाता है. इस दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कार्य किए जाते हैं. पितृपक्ष में श्राद्ध वाले दिन कौवा व गाय को विशेष रूप से भोजन कराया जाता है. ऐसा कहा जाता है, कि कौवा व गाय के जरिए हमारे पितरों तक यह भोजन जाता है. कुछ मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज कौवा के रूप में धरती पर आते हैं. Pitru Paksha 2022

पितृपक्ष को लेकर मान्यता: हिंदू कैलेंडर के अनुसार पितृपक्ष हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या को समाप्त हो जाता है. इस साल पितृपक्ष 10 सितंबर 2022 दिन शनिवार से शुरू होकर 25 सितंबर 2022 को समाप्त हो जाएगा. इस दिन से आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि शुरू हो जाएगी. ऐसा कहा जाता है, कि इस दौरान पितरों की पूजा-अर्चना करने से उनकी विशेष कृपा हम पर बनी रहती है. पितृपक्ष को सोलह श्राद्ध, महालय पक्ष या अपर पक्ष के नाम से भी पुकारा जाता है. श्राद्ध के दिन अपने पूर्वजों का तर्पण करने के बाद ब्राह्मण या जरूरतमंद लोगों को भोजन कराते है या फिर उन्हें दक्षिणा देते हैं. हिंदू ग्रंथ के अनुसार पितृपक्ष के प्रारंभ होते ही सूर्य कन्या राशि में प्रवेश कर जाता है. इस दौरान पूरी श्रद्धा के साथ पितरों को याद करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती हैं. हिंदू धर्म में ऐसा कहा जाता है, कि पितृ के खुश रहने पर ही सभी देवी-देवता प्रसन्न में रहते हैं, अन्यथा उनकी प्रसन्नता प्राप्त नहीं होती हैं. Pitru Paksha start date

पितृपक्ष में लेते हैं ये संकल्प: पितृपक्ष श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन से पहले अलग-अलग चीजों के लिए 16 ग्राम निकाला जाता है, जिसमें गाय की अग्रासन और कौवे के अग्रासन (giving food to animals in pitru paksha) को प्रमुख माना गया है. मान्यता है कि कौआ आपके संदेश को पितरों तक पहुंचाने का काम करता है. खाने में खीर की अहमियत होती है, इसलिए मीठी खीर बनाना जरूरी है. भोजन के पूर्व ब्राह्मण संकल्प भी करता है. जो व्यक्ति श्राद्ध मनाता है, उसके हाथ में जल देकर संकल्प किया जाता है कि वह किसके लिए श्राद्ध कर रहा है. उनके नाम, परिवार का नाम, गोत्र, तिथि, स्थान आदि का नाम लेकर संकल्प किया जाता है. भोजन के बाद ब्राह्मण को उनकी क्षमता के अनुसार कपड़े और दक्षिणा भी दी जाती है.

क्या है पूजा विधि: पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध करने और तर्पण देने का विशेष महत्व होता है. पितरों का तर्पण करने का मतलब उन्हें जल देना होता है. इसके लिए प्रतिदिन सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर तर्पण की सामग्री लेकर दक्षिण की ओर मुंह करके बैठ जाएं. सबसे पहले अपने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प लेकर दोनों हाथ जोड़कर अपने पितरों को ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करें. खासकर नदी के किनारे तर्पण करना विशेष महत्व रखता है. इस दौरान अपने पितरों को नाम लेते हुए उसे जमीन में या नदी में प्रवाहित करें. साथ ही अपने पितरों से सुख समृद्धि का आशीर्वाद भी प्राप्त करें.

किस दिन किसका करें श्राद्ध: यदि किसी व्यक्ति को अपने पूर्वजों की तिथि का पता नहीं है, तो वह अमावस्या के दिन श्राद्ध कर सकता है और अपनी क्षमता के अनुसार एक या एक से अधिक ब्राह्मणों को भोजन करा सकता है. कई विद्वानों का यह भी मानना ​​है कि जिनकी अकाल मृत्यु हो गई हो या जिनकी मृत्यु विष या दुर्घटना से हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन करना चाहिए.

पितृ पक्ष में सात्विक भोजन: पितृपक्ष के दौरान पूरे 15 दिनों तक घर में सात्विक माहौल होना चाहिए. इस दौरान घर में मांसाहारी भोजन नहीं बनाना चाहिए. हो सके तो इन दिनों लहसुन और प्याज का सेवन भी नहीं करना चाहिए. वही, पितृपक्ष में श्राद्धकर्म करने वाले व्यक्ति को पूरे 15 दिनों तक बाल और नाखून नहीं कटवाने चाहिए. साथ ही इन लोगों को ब्रह्मचार्य का पालन भी करना चाहिए. मान्याता है कि पितृपक्ष के दौरान पूर्वज पक्षी के रूप में धरती पर आते हैं. इसलिए उन्हें सताना नहीं चाहिए. ऐसा करने से पूर्वज नाराज हो जाते हैं. पितृपक्ष में पशु-पक्षियों की सेवा करनी चाहिए. shradh 2022 niyam

September 2022 Festival List: इस महीने के व्रत त्योहार- गणेश, पितृपक्ष और शारदीय नवरात्रि के अलावा जानिए क्या है खास

पितृपक्ष में मांगलिक कार्य वर्जित: पौराणिक ग्रंथों में पितृपक्ष के दौरान सिर्फ मांसाहारी हीं बल्कि कुछ शाकाहारी चीजों वर्जित मानी जाती हैं. इन दिनों लौकी, खीरा, चना, जीरा और सरसों का साग खाने से परहेज करें. पितृपक्ष में किसी भी तरह का मांगलिक कार्य नहीं करनी चाहिए. शादी, मुंडन, सगाई और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य पितृपक्ष में वर्जित माने जाते हैं. पितृपक्ष के दौरान शोकाकुल का माहौल होता है. इसलिए इन दिनों कोई भी शुभ कार्य करना अशुभ माना जाता है.

पितृपक्ष की तिथियों का महत्व: पितृपक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है, जिस तिथि पर जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई है, उसी तिथि पर उस व्यक्ति का श्राद्ध किया जाता है. अगर, मृत्यु की तिथि के बारे में जानकारी नहीं होती है, तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति का श्राद्ध अमावस्या तिथि पर किया जाता है. इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है. पितरों के श्राद्ध के दिन अपने यथाशक्ति के अनुसार ब्राह्मणों को भोज खिलाकर दान पुण्य करें. इसके अलावा भोजन को कौओं और कुत्तों को भी खिलाएं.

तर्पण के दौरान करें क्षमा याचना: पितरों के तर्पण के दौरान क्षमा याचना अवश्य करें. किसी भी कारण हुई गलती या पश्चाताप के लिए आप पितरों से क्षमा मांग सकते हैं. पितरों की तस्वीर पर तिलक कर रोजाना नियमित रूप से संध्या के समय तिल के तेल का दीपक अवश्य प्रज्वलित करें, साथ ही अपने परिवार सहित उनके श्राद्ध तिथि के दिन क्षमा याचना कर गलतियों का प्रायश्चित कर अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं.

श्राद्ध में ये काम करेंगे तो जल्द प्रसन्न होंगे पूर्वज: श्राद्ध में बनने वाले व्यंजनों में पूर्वजों की पसंद और नापसंद का खास ध्यान रखना चाहिए. पिता का श्राद्ध पुत्र द्वारा करना शास्त्र सम्मत है. पुत्र की अनुपस्थिति में पत्नी श्राद्ध कर सकती है. घर पर भोजन करने आने वाले ब्राह्मण को सोने, चांदी, कांसे और तांबे के बर्तनों में भोजन परोसना उत्तम बताया गया है. श्राद्ध वाले दिन पितर स्तोत्र और पितृ गायत्री मंत्र का जाप किया जाता है. दक्षिण में मुख करके यह पाठ करने चाहिए. श्राद्ध वाले दिन दक्षिण दिशा में मुख करके जल, काले तिल और जौ से अर्घ्य देना चाहिए. गाय, कुत्ते और कौए को ग्रास देना चाहिए. घर पर आए भिखारी या पशु को बिना कुछ खिलाए भी नहीं भेजना चाहिए.

पितृपक्ष की पौराणिक कथा: पौराणिक कथा के अनुसार, श्राद्ध को लेकर महाभारत के योद्धा कर्ण के बारे में एक कथा प्रचलित है. जिसमें कहा गया है कि जब कर्ण की मृत्यु होने के बाद उनकी आत्मा स्वर्ग लोक में पहुंची तो वहां पर उन्हें भोजन में खाने के लिए ढेर सारा सोना और सोने से बने आभूषण दिए गए. तब कर्ण की आत्मा को कुछ समझ में नहीं आया। तब कर्ण की आत्मा ने देवराज इंद्र से पूछा कि उन्हें खाने में सोने की चीजें क्यों दी जा रही है.

कर्ण के सवाल के जवाब में देवराज इंद्र ने बताया की तुमने अपने जीवन काल में सोना ही दान किया था. कभी भी अपने पूर्वजों को खाना की चीजों का दान उन्हें नहीं दिया इस कारण से तुम्हें भी सोना ही खाने को दिया गया. इस पर कर्ण ने कहा कि मुझे अपने पूर्वजों के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था इसलिए उन्हें कुछ भी दान नहीं कर पाया. तब स्वर्ग से कर्ण को अपनी गलती सुधारने के लिए मौका दिया गया और उन्हें दोबारा 16 दिनों के लिए वापस पृथ्वी पर भेजा गया। इसके बाद 16 दिनों तक कर्ण ने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उन्हें भोजन अर्पित किया. तब से इसी 16 दिनों को पितृ पक्ष कहा जाने लगा.

पितृपक्ष पक्ष की तिथियां: पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक का समय पितरों को याद (shradh 2022 dates) करने के लिए माना गया है. पितृपक्ष में सबसे पहला श्राद्ध पूर्णिमा से शुरू होता है. इस दिन पहला श्राद्ध कहा जाता है, जिन पितरों का देहांत पूर्णिमा के दिन हुआ हो, उनका श्राद्ध पूर्णिमा तिथि के दिन करते हैं.

- 10 सितंबर दिन शनिवार, पूर्णिमा का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 11 सितंबर दिन रविवार, प्रतिपदा का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 12 सितम्बर दिन सोमवार, द्वितीया का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 13 सितंबर दिन मंगलवार, तृतीया का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 14 सितंबर दिन बुधवार, चतुर्थी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 15 सितंबर दिन गुरुवार, पंचमी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 16 सितंबर दिन शुक्रवार, षष्ठी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 17 सितंबर दिन शनिवार, सप्तमी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 18 सितंबर दिन रविवार, अष्टमी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 19 सितंबर दिन सोमवार, नवमी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 20 सितंबर दिन मंगलवार, दशमी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 21 सितंबर दिन बुधवार, एकादशी का श्राद्ध तर्पण.
- 22 सितंबर दिन गुरुवार, द्वादशी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 23 सितंबर दिन शुक्रवार, त्रयोदशी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 24 सितंबर दिन शनिवार, चतुर्दशी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 25 सितंबर दिन रविवार, अमावस्या का श्राद्ध एवं तर्पण.

भोपाल। भारत में सनातन धर्म में जहां धर्म में जहां मानव सेवा का विशेष उल्लेख किया गया है, तो वहीं पितृपक्ष के दौरान पितरों की सेवा का भी वर्णन किया गया है. मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान व्यक्ति श्रद्धा भाव से पितरों के निमित्त श्राद्ध करता है तो उससे खुश होकर पितर उसे खुशहाल जीवन का भी आशीर्वाद प्रदान करते हैं. हर वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या को समाप्त हो जाता है. इस दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कार्य किए जाते हैं. पितृपक्ष में श्राद्ध वाले दिन कौवा व गाय को विशेष रूप से भोजन कराया जाता है. ऐसा कहा जाता है, कि कौवा व गाय के जरिए हमारे पितरों तक यह भोजन जाता है. कुछ मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज कौवा के रूप में धरती पर आते हैं. Pitru Paksha 2022

पितृपक्ष को लेकर मान्यता: हिंदू कैलेंडर के अनुसार पितृपक्ष हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या को समाप्त हो जाता है. इस साल पितृपक्ष 10 सितंबर 2022 दिन शनिवार से शुरू होकर 25 सितंबर 2022 को समाप्त हो जाएगा. इस दिन से आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि शुरू हो जाएगी. ऐसा कहा जाता है, कि इस दौरान पितरों की पूजा-अर्चना करने से उनकी विशेष कृपा हम पर बनी रहती है. पितृपक्ष को सोलह श्राद्ध, महालय पक्ष या अपर पक्ष के नाम से भी पुकारा जाता है. श्राद्ध के दिन अपने पूर्वजों का तर्पण करने के बाद ब्राह्मण या जरूरतमंद लोगों को भोजन कराते है या फिर उन्हें दक्षिणा देते हैं. हिंदू ग्रंथ के अनुसार पितृपक्ष के प्रारंभ होते ही सूर्य कन्या राशि में प्रवेश कर जाता है. इस दौरान पूरी श्रद्धा के साथ पितरों को याद करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती हैं. हिंदू धर्म में ऐसा कहा जाता है, कि पितृ के खुश रहने पर ही सभी देवी-देवता प्रसन्न में रहते हैं, अन्यथा उनकी प्रसन्नता प्राप्त नहीं होती हैं. Pitru Paksha start date

पितृपक्ष में लेते हैं ये संकल्प: पितृपक्ष श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन से पहले अलग-अलग चीजों के लिए 16 ग्राम निकाला जाता है, जिसमें गाय की अग्रासन और कौवे के अग्रासन (giving food to animals in pitru paksha) को प्रमुख माना गया है. मान्यता है कि कौआ आपके संदेश को पितरों तक पहुंचाने का काम करता है. खाने में खीर की अहमियत होती है, इसलिए मीठी खीर बनाना जरूरी है. भोजन के पूर्व ब्राह्मण संकल्प भी करता है. जो व्यक्ति श्राद्ध मनाता है, उसके हाथ में जल देकर संकल्प किया जाता है कि वह किसके लिए श्राद्ध कर रहा है. उनके नाम, परिवार का नाम, गोत्र, तिथि, स्थान आदि का नाम लेकर संकल्प किया जाता है. भोजन के बाद ब्राह्मण को उनकी क्षमता के अनुसार कपड़े और दक्षिणा भी दी जाती है.

क्या है पूजा विधि: पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध करने और तर्पण देने का विशेष महत्व होता है. पितरों का तर्पण करने का मतलब उन्हें जल देना होता है. इसके लिए प्रतिदिन सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर तर्पण की सामग्री लेकर दक्षिण की ओर मुंह करके बैठ जाएं. सबसे पहले अपने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प लेकर दोनों हाथ जोड़कर अपने पितरों को ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करें. खासकर नदी के किनारे तर्पण करना विशेष महत्व रखता है. इस दौरान अपने पितरों को नाम लेते हुए उसे जमीन में या नदी में प्रवाहित करें. साथ ही अपने पितरों से सुख समृद्धि का आशीर्वाद भी प्राप्त करें.

किस दिन किसका करें श्राद्ध: यदि किसी व्यक्ति को अपने पूर्वजों की तिथि का पता नहीं है, तो वह अमावस्या के दिन श्राद्ध कर सकता है और अपनी क्षमता के अनुसार एक या एक से अधिक ब्राह्मणों को भोजन करा सकता है. कई विद्वानों का यह भी मानना ​​है कि जिनकी अकाल मृत्यु हो गई हो या जिनकी मृत्यु विष या दुर्घटना से हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन करना चाहिए.

पितृ पक्ष में सात्विक भोजन: पितृपक्ष के दौरान पूरे 15 दिनों तक घर में सात्विक माहौल होना चाहिए. इस दौरान घर में मांसाहारी भोजन नहीं बनाना चाहिए. हो सके तो इन दिनों लहसुन और प्याज का सेवन भी नहीं करना चाहिए. वही, पितृपक्ष में श्राद्धकर्म करने वाले व्यक्ति को पूरे 15 दिनों तक बाल और नाखून नहीं कटवाने चाहिए. साथ ही इन लोगों को ब्रह्मचार्य का पालन भी करना चाहिए. मान्याता है कि पितृपक्ष के दौरान पूर्वज पक्षी के रूप में धरती पर आते हैं. इसलिए उन्हें सताना नहीं चाहिए. ऐसा करने से पूर्वज नाराज हो जाते हैं. पितृपक्ष में पशु-पक्षियों की सेवा करनी चाहिए. shradh 2022 niyam

September 2022 Festival List: इस महीने के व्रत त्योहार- गणेश, पितृपक्ष और शारदीय नवरात्रि के अलावा जानिए क्या है खास

पितृपक्ष में मांगलिक कार्य वर्जित: पौराणिक ग्रंथों में पितृपक्ष के दौरान सिर्फ मांसाहारी हीं बल्कि कुछ शाकाहारी चीजों वर्जित मानी जाती हैं. इन दिनों लौकी, खीरा, चना, जीरा और सरसों का साग खाने से परहेज करें. पितृपक्ष में किसी भी तरह का मांगलिक कार्य नहीं करनी चाहिए. शादी, मुंडन, सगाई और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य पितृपक्ष में वर्जित माने जाते हैं. पितृपक्ष के दौरान शोकाकुल का माहौल होता है. इसलिए इन दिनों कोई भी शुभ कार्य करना अशुभ माना जाता है.

पितृपक्ष की तिथियों का महत्व: पितृपक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है, जिस तिथि पर जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई है, उसी तिथि पर उस व्यक्ति का श्राद्ध किया जाता है. अगर, मृत्यु की तिथि के बारे में जानकारी नहीं होती है, तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति का श्राद्ध अमावस्या तिथि पर किया जाता है. इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है. पितरों के श्राद्ध के दिन अपने यथाशक्ति के अनुसार ब्राह्मणों को भोज खिलाकर दान पुण्य करें. इसके अलावा भोजन को कौओं और कुत्तों को भी खिलाएं.

तर्पण के दौरान करें क्षमा याचना: पितरों के तर्पण के दौरान क्षमा याचना अवश्य करें. किसी भी कारण हुई गलती या पश्चाताप के लिए आप पितरों से क्षमा मांग सकते हैं. पितरों की तस्वीर पर तिलक कर रोजाना नियमित रूप से संध्या के समय तिल के तेल का दीपक अवश्य प्रज्वलित करें, साथ ही अपने परिवार सहित उनके श्राद्ध तिथि के दिन क्षमा याचना कर गलतियों का प्रायश्चित कर अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं.

श्राद्ध में ये काम करेंगे तो जल्द प्रसन्न होंगे पूर्वज: श्राद्ध में बनने वाले व्यंजनों में पूर्वजों की पसंद और नापसंद का खास ध्यान रखना चाहिए. पिता का श्राद्ध पुत्र द्वारा करना शास्त्र सम्मत है. पुत्र की अनुपस्थिति में पत्नी श्राद्ध कर सकती है. घर पर भोजन करने आने वाले ब्राह्मण को सोने, चांदी, कांसे और तांबे के बर्तनों में भोजन परोसना उत्तम बताया गया है. श्राद्ध वाले दिन पितर स्तोत्र और पितृ गायत्री मंत्र का जाप किया जाता है. दक्षिण में मुख करके यह पाठ करने चाहिए. श्राद्ध वाले दिन दक्षिण दिशा में मुख करके जल, काले तिल और जौ से अर्घ्य देना चाहिए. गाय, कुत्ते और कौए को ग्रास देना चाहिए. घर पर आए भिखारी या पशु को बिना कुछ खिलाए भी नहीं भेजना चाहिए.

पितृपक्ष की पौराणिक कथा: पौराणिक कथा के अनुसार, श्राद्ध को लेकर महाभारत के योद्धा कर्ण के बारे में एक कथा प्रचलित है. जिसमें कहा गया है कि जब कर्ण की मृत्यु होने के बाद उनकी आत्मा स्वर्ग लोक में पहुंची तो वहां पर उन्हें भोजन में खाने के लिए ढेर सारा सोना और सोने से बने आभूषण दिए गए. तब कर्ण की आत्मा को कुछ समझ में नहीं आया। तब कर्ण की आत्मा ने देवराज इंद्र से पूछा कि उन्हें खाने में सोने की चीजें क्यों दी जा रही है.

कर्ण के सवाल के जवाब में देवराज इंद्र ने बताया की तुमने अपने जीवन काल में सोना ही दान किया था. कभी भी अपने पूर्वजों को खाना की चीजों का दान उन्हें नहीं दिया इस कारण से तुम्हें भी सोना ही खाने को दिया गया. इस पर कर्ण ने कहा कि मुझे अपने पूर्वजों के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था इसलिए उन्हें कुछ भी दान नहीं कर पाया. तब स्वर्ग से कर्ण को अपनी गलती सुधारने के लिए मौका दिया गया और उन्हें दोबारा 16 दिनों के लिए वापस पृथ्वी पर भेजा गया। इसके बाद 16 दिनों तक कर्ण ने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उन्हें भोजन अर्पित किया. तब से इसी 16 दिनों को पितृ पक्ष कहा जाने लगा.

पितृपक्ष पक्ष की तिथियां: पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक का समय पितरों को याद (shradh 2022 dates) करने के लिए माना गया है. पितृपक्ष में सबसे पहला श्राद्ध पूर्णिमा से शुरू होता है. इस दिन पहला श्राद्ध कहा जाता है, जिन पितरों का देहांत पूर्णिमा के दिन हुआ हो, उनका श्राद्ध पूर्णिमा तिथि के दिन करते हैं.

- 10 सितंबर दिन शनिवार, पूर्णिमा का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 11 सितंबर दिन रविवार, प्रतिपदा का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 12 सितम्बर दिन सोमवार, द्वितीया का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 13 सितंबर दिन मंगलवार, तृतीया का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 14 सितंबर दिन बुधवार, चतुर्थी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 15 सितंबर दिन गुरुवार, पंचमी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 16 सितंबर दिन शुक्रवार, षष्ठी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 17 सितंबर दिन शनिवार, सप्तमी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 18 सितंबर दिन रविवार, अष्टमी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 19 सितंबर दिन सोमवार, नवमी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 20 सितंबर दिन मंगलवार, दशमी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 21 सितंबर दिन बुधवार, एकादशी का श्राद्ध तर्पण.
- 22 सितंबर दिन गुरुवार, द्वादशी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 23 सितंबर दिन शुक्रवार, त्रयोदशी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 24 सितंबर दिन शनिवार, चतुर्दशी का श्राद्ध एवं तर्पण.
- 25 सितंबर दिन रविवार, अमावस्या का श्राद्ध एवं तर्पण.

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