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Swami Swaroopanand Saraswati: जगतगुरू शंकराचार्य को आज दी जाएगी समाधि, जानिए कौन होगा अगला उत्तराधिकारी

हिंदू धर्म गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को सोमवार को लगभग शाम 4:00 बजे समाधि दी जाएगी. शंकराचार्य 99 साल के थे. द्वारका की शारदा पीठ और ज्योर्तिमठ बद्रीनाथ के शंकराचार्य ने 2 सितंबर को ही अपना 99 वां जन्मदिन मनाया था. Shankaracharya Passes Away

Shankaracharya Passes Aaway
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का निधन
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Published : Sep 12, 2022, 7:22 AM IST

Updated : Sep 12, 2022, 11:09 AM IST

नरसिंहपुर। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का लंबी बीमारी के बाद रविवार को स्वामी का निधन हो गया. उन्होंने नरसिंहपुर जिले में परमहंसी झोतेश्वर में अंतिम श्वांस ली. सोमवार को लगभग शाम 4:00 बजे तक उन्हें समाधि दी जाएगी. वह नरसिंहपुर जिले के आश्रम में ही रह रहे थे. द्वारका की शारदा पीठ और ज्योर्तिमठ बद्रीनाथ के शंकराचार्य ने 2 सितंबर को ही अपना 99 वां जन्मदिन मनाया था. पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह समेत कई नेताओं ने उनके निधन पर शोक जताया है.

Shankaracharya Passes Aaway
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का निधन

2 सितंबर को मनाया था अपना 99वां जन्मदिन: झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की निधन की सूचना के बाद आश्रम में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी. शंकराचार्य ने 9 दिन पहले 2 सितंबर को अपना 99वां जन्मदिन मनाया था. निधन की खबर से उनके शोकाकुल है. आश्रम में लोग अंतिम दर्शन के लिए पहुंचने लगे. भारी पुलिस बल भी तैनात है. वीआईपी लोगों का आना शुरू हो गया है.

Shankaracharya Passes Aaway
शिष्यों के साथ स्वर्गीय शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती

मध्य प्रदेश में जन्म, काशी में ली थी वेद-वेदांग और शास्त्रों की शिक्षा : शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्यप्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में पिता धनपति उपाध्याय और मां गिरिजा देवी के यहां हुआ. माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा. 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं, इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली. यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी.

Narsinghpur मणिदीप आश्रम से शंकराचार्य को पालकी पर सवार कर भक्त ले गये गंगा कुंड स्थल, यहीं होंगे अंतिम दर्शन

दो मठों के शंकराचार्य थे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती: हिंदुओं को संगठित करने की भावना से आदिगुरु भगवान शंकराचार्य ने 1300 वर्ष पहले भारत के चारों दिशाओं में चार धार्मिक राजधानियां (गोवर्धन मठ, श्रृंगेरी मठ, द्वारका मठ एवं ज्योतिर्मठ) बनाईं. जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य हैं. शंकराचार्य का पद हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है, हिंदुओं का मार्गदर्शन एवं भगवत् प्राप्ति के साधन आदि विषयों में हिंदुओं को आदेश देने के विशेष अधिकार शंकराचार्यों को प्राप्त होते हैं.

Shankaracharya Passes Aaway
स्वामी सदानंद व अविमुक्तेश्वरानंद बन सकते हैं उत्तराधिकारी

महाराज के निधन के बाद कौन होगा उत्तराधिकारी: ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रमुख शिष्य दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती व अविमुक्तेश्वरानंद हैं. ऐसा माना जा रहा है कि इन्हें महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा जा सकता है. यह जानकारी शंकराचार्य आश्रम, परमहंसी गंगा क्षेत्र, झोतेश्वर के पंडित सोहन शास्त्री ने दी है. स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज का जन्म नरसिंहपुर के बरगी नामक ग्राम में हुआ. पूर्व नाम रमेश अवस्थी था. वह 18 वर्ष की आयु में शंकराचार्य आश्रम खिंचे चले आए. ब्रह्मचारी दीक्षा के साथ ही इनका नाम ब्रह्मचारी सदानंद हो गया. बनारस में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा दंडी दीक्षा दिए जाने के बाद इन्हें दंडी स्वामी सदानंद के नाम से जाना जाने लगा. सदानंद गुजरात में द्वारका शारदापीठ में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में कार्य संभाल रहे हैं. वहीं अविमुक्तेश्वरानंद नंद सरस्वती जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में हुआ. पूर्व नाम उमाकांत पांडे था. छात्र जीवन में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रनेता भी रहे. वह युवावस्था में शंकराचार्य आश्रम में आए. ब्रह्मचारी दीक्षा के साथ ही इनका नाम ब्रह्मचारी आनंद स्वरूप हो गया. बनारस में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा दंडी दीक्षा दिए जाने के बाद इन्हें दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के नाम से जाना जाने लगा. वह उत्तराखंड बद्रिकाश्रम में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में ज्योतिषपीठ का कार्य संभाल रहे हैं. Swami Sadanand Saraswati Maharaj, Swami Avimukteshwarananda

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स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

सिवनी है जन्मभूमि और ननिहाल: जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज की जन्मभूमि और ननिहाल दोनों ही सिवनी जिले में हैं. महाराज के ब्रह्मलीन होने की खबर से लोगों में शोक की लहर है. शंकराचार्य के एक भाई रामरक्षा उपाध्याय भी थे जो एसएएफ में छिंदवाड़ा में रहे हैं. स्वामी जी के नाती संतोष उपाध्याय जो सिवनी क्षेत्र के सोमवारी में रहते हैं. उन्होंने बताया कि महाराज नौ वर्ष की उम्र में घर से निकलकर बनारस पहुंच गए थे. यहां पर उनकी मुलाकात गुरु महेश्वरानंद जी महाराज से हुई थी. उन्होंने उनसे सन्यास की दीक्षा ली थी. करपात्री महाराज, महर्षि महेश योगी उनके गुरुभाई थे. महाराज के एक और भक्त जेएल मिश्रा ने बताया कि बाद में उनकी भेंट ब्रम्हानंद सरस्वती जी महाराज (जोशी मठ जिसे अब द्वारका पीठ के नाम से जाना जाता है के शंकराचार्य थे) से हुई. ब्रम्हानंद जी ने उन्हे दंड सन्यास की दीक्षा दी.

नेहरु-गांधी परिवार के करीबी थे Shankaracharya Swaroopanand Saraswati, सोनिया गांधी ने किया था आश्रम का उद्घाटन

गांधी से प्रभावित होकर कूदे थे आजादी के संग्राम में: स्वामी स्वरूपानंद जी महात्मा गांधी से प्रभावित होकर 1942 में आजादी के आंदोलन में कूद गए थे. इस दौरान वे बनारस और नरसिंहपुर की जेल में दो बार बंद भी हुए थे. गौहत्या के विरोध में कोलकाता में आंदोलन करते हुए उन्होंने लाठियां भी खाईं थीं.

हिंदुओं की घर वापसी के लिए भी थे खासे सक्रिय: स्वामी स्वरूपानंद ने झारखंड में मनोहरपुर के पास एक आश्रम बनाया था. जहां पर उन्होंने मिशनरियों के द्वारा किए जा रहे धर्मांतरण का विरोध किया था. उन्होंने अपने प्रयासों से लगभग दो लाख लोगों को वापस हिंदु धर्म में जोड़ा था. वे 1972 में जोशीमठ और 1980 में द्वारका मठ के शंकराचार्य घोषित हुए थे.

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विश्व के सबसे बड़े स्फटिक शिवलिंग की स्थापना कराई

विश्व के सबसे बड़े स्फटिक शिवलिंग की स्थापना कराई: भले स्वामी जी के शिष्य पूरे देश में हैं लेकिन उनका सिवनी से लगाव हमेशा रहा है. उन्होंने जिले के दिघौरी में विश्व के सबसे बड़े स्फटिक शिवलिंग स्थापना कराकर मंदिर का निर्माण कराया था. जिसमें वर्ष 2002 में स्फटिक शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की गई थी. जगद्गुरु शंकराचार्य का ननिहाल सिवनी के ही कातलबोड़ी गांव में है. अपनी मां की जन्मभूमि में भी उन्होंने मातृधाम के मंदिर का निर्माण कराया था. इस मंदिर को हूबहू कोलकाता के काली मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है. नरसिंहपुर में गोटेगांव में मंदिर का निर्माण 1983 में कराया गया था, जिसमें उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी आईं थी.

रामटेक तक रेल लाइन का किया था समर्थन: महाराज स्वामी स्वरूपानंद ने श्रीधाम से लेकर रामटेक तक रेललाइन का समर्थन भी किया था. तत्कालीन नरसिंहराव सरकार के रेलमंत्री माधवराव सिंधिया से मुलाकात भी की थी. जिसके बाद सर्वे की घोषणा भी हुई थी. आंखों का विश्वस्तरीय अस्पताल जो श्रीधाम में है उसे सिवनी में खोलना चाहते थे. वर्ष 2005-06 में जब श्रीधाम का मंदिर और आश्रम बना था, उस समय चारों पीठों के शंकराचार्य और तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी आए थे.
Shankaracharya Passes Away, Today Samadhi at Paramhansi Ganga ashram, Shankaracharya swaroopanand seoni connection, Paramhansi Ganga Ashram Narsinghpur

नरसिंहपुर। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का लंबी बीमारी के बाद रविवार को स्वामी का निधन हो गया. उन्होंने नरसिंहपुर जिले में परमहंसी झोतेश्वर में अंतिम श्वांस ली. सोमवार को लगभग शाम 4:00 बजे तक उन्हें समाधि दी जाएगी. वह नरसिंहपुर जिले के आश्रम में ही रह रहे थे. द्वारका की शारदा पीठ और ज्योर्तिमठ बद्रीनाथ के शंकराचार्य ने 2 सितंबर को ही अपना 99 वां जन्मदिन मनाया था. पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह समेत कई नेताओं ने उनके निधन पर शोक जताया है.

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शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का निधन

2 सितंबर को मनाया था अपना 99वां जन्मदिन: झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की निधन की सूचना के बाद आश्रम में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी. शंकराचार्य ने 9 दिन पहले 2 सितंबर को अपना 99वां जन्मदिन मनाया था. निधन की खबर से उनके शोकाकुल है. आश्रम में लोग अंतिम दर्शन के लिए पहुंचने लगे. भारी पुलिस बल भी तैनात है. वीआईपी लोगों का आना शुरू हो गया है.

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शिष्यों के साथ स्वर्गीय शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती

मध्य प्रदेश में जन्म, काशी में ली थी वेद-वेदांग और शास्त्रों की शिक्षा : शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्यप्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में पिता धनपति उपाध्याय और मां गिरिजा देवी के यहां हुआ. माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा. 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं, इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली. यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी.

Narsinghpur मणिदीप आश्रम से शंकराचार्य को पालकी पर सवार कर भक्त ले गये गंगा कुंड स्थल, यहीं होंगे अंतिम दर्शन

दो मठों के शंकराचार्य थे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती: हिंदुओं को संगठित करने की भावना से आदिगुरु भगवान शंकराचार्य ने 1300 वर्ष पहले भारत के चारों दिशाओं में चार धार्मिक राजधानियां (गोवर्धन मठ, श्रृंगेरी मठ, द्वारका मठ एवं ज्योतिर्मठ) बनाईं. जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य हैं. शंकराचार्य का पद हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है, हिंदुओं का मार्गदर्शन एवं भगवत् प्राप्ति के साधन आदि विषयों में हिंदुओं को आदेश देने के विशेष अधिकार शंकराचार्यों को प्राप्त होते हैं.

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स्वामी सदानंद व अविमुक्तेश्वरानंद बन सकते हैं उत्तराधिकारी

महाराज के निधन के बाद कौन होगा उत्तराधिकारी: ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रमुख शिष्य दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती व अविमुक्तेश्वरानंद हैं. ऐसा माना जा रहा है कि इन्हें महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा जा सकता है. यह जानकारी शंकराचार्य आश्रम, परमहंसी गंगा क्षेत्र, झोतेश्वर के पंडित सोहन शास्त्री ने दी है. स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज का जन्म नरसिंहपुर के बरगी नामक ग्राम में हुआ. पूर्व नाम रमेश अवस्थी था. वह 18 वर्ष की आयु में शंकराचार्य आश्रम खिंचे चले आए. ब्रह्मचारी दीक्षा के साथ ही इनका नाम ब्रह्मचारी सदानंद हो गया. बनारस में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा दंडी दीक्षा दिए जाने के बाद इन्हें दंडी स्वामी सदानंद के नाम से जाना जाने लगा. सदानंद गुजरात में द्वारका शारदापीठ में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में कार्य संभाल रहे हैं. वहीं अविमुक्तेश्वरानंद नंद सरस्वती जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में हुआ. पूर्व नाम उमाकांत पांडे था. छात्र जीवन में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रनेता भी रहे. वह युवावस्था में शंकराचार्य आश्रम में आए. ब्रह्मचारी दीक्षा के साथ ही इनका नाम ब्रह्मचारी आनंद स्वरूप हो गया. बनारस में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा दंडी दीक्षा दिए जाने के बाद इन्हें दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के नाम से जाना जाने लगा. वह उत्तराखंड बद्रिकाश्रम में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में ज्योतिषपीठ का कार्य संभाल रहे हैं. Swami Sadanand Saraswati Maharaj, Swami Avimukteshwarananda

Shankaracharya Passes Aaway
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

सिवनी है जन्मभूमि और ननिहाल: जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज की जन्मभूमि और ननिहाल दोनों ही सिवनी जिले में हैं. महाराज के ब्रह्मलीन होने की खबर से लोगों में शोक की लहर है. शंकराचार्य के एक भाई रामरक्षा उपाध्याय भी थे जो एसएएफ में छिंदवाड़ा में रहे हैं. स्वामी जी के नाती संतोष उपाध्याय जो सिवनी क्षेत्र के सोमवारी में रहते हैं. उन्होंने बताया कि महाराज नौ वर्ष की उम्र में घर से निकलकर बनारस पहुंच गए थे. यहां पर उनकी मुलाकात गुरु महेश्वरानंद जी महाराज से हुई थी. उन्होंने उनसे सन्यास की दीक्षा ली थी. करपात्री महाराज, महर्षि महेश योगी उनके गुरुभाई थे. महाराज के एक और भक्त जेएल मिश्रा ने बताया कि बाद में उनकी भेंट ब्रम्हानंद सरस्वती जी महाराज (जोशी मठ जिसे अब द्वारका पीठ के नाम से जाना जाता है के शंकराचार्य थे) से हुई. ब्रम्हानंद जी ने उन्हे दंड सन्यास की दीक्षा दी.

नेहरु-गांधी परिवार के करीबी थे Shankaracharya Swaroopanand Saraswati, सोनिया गांधी ने किया था आश्रम का उद्घाटन

गांधी से प्रभावित होकर कूदे थे आजादी के संग्राम में: स्वामी स्वरूपानंद जी महात्मा गांधी से प्रभावित होकर 1942 में आजादी के आंदोलन में कूद गए थे. इस दौरान वे बनारस और नरसिंहपुर की जेल में दो बार बंद भी हुए थे. गौहत्या के विरोध में कोलकाता में आंदोलन करते हुए उन्होंने लाठियां भी खाईं थीं.

हिंदुओं की घर वापसी के लिए भी थे खासे सक्रिय: स्वामी स्वरूपानंद ने झारखंड में मनोहरपुर के पास एक आश्रम बनाया था. जहां पर उन्होंने मिशनरियों के द्वारा किए जा रहे धर्मांतरण का विरोध किया था. उन्होंने अपने प्रयासों से लगभग दो लाख लोगों को वापस हिंदु धर्म में जोड़ा था. वे 1972 में जोशीमठ और 1980 में द्वारका मठ के शंकराचार्य घोषित हुए थे.

Shankaracharya Passes Aaway
विश्व के सबसे बड़े स्फटिक शिवलिंग की स्थापना कराई

विश्व के सबसे बड़े स्फटिक शिवलिंग की स्थापना कराई: भले स्वामी जी के शिष्य पूरे देश में हैं लेकिन उनका सिवनी से लगाव हमेशा रहा है. उन्होंने जिले के दिघौरी में विश्व के सबसे बड़े स्फटिक शिवलिंग स्थापना कराकर मंदिर का निर्माण कराया था. जिसमें वर्ष 2002 में स्फटिक शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की गई थी. जगद्गुरु शंकराचार्य का ननिहाल सिवनी के ही कातलबोड़ी गांव में है. अपनी मां की जन्मभूमि में भी उन्होंने मातृधाम के मंदिर का निर्माण कराया था. इस मंदिर को हूबहू कोलकाता के काली मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है. नरसिंहपुर में गोटेगांव में मंदिर का निर्माण 1983 में कराया गया था, जिसमें उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी आईं थी.

रामटेक तक रेल लाइन का किया था समर्थन: महाराज स्वामी स्वरूपानंद ने श्रीधाम से लेकर रामटेक तक रेललाइन का समर्थन भी किया था. तत्कालीन नरसिंहराव सरकार के रेलमंत्री माधवराव सिंधिया से मुलाकात भी की थी. जिसके बाद सर्वे की घोषणा भी हुई थी. आंखों का विश्वस्तरीय अस्पताल जो श्रीधाम में है उसे सिवनी में खोलना चाहते थे. वर्ष 2005-06 में जब श्रीधाम का मंदिर और आश्रम बना था, उस समय चारों पीठों के शंकराचार्य और तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी आए थे.
Shankaracharya Passes Away, Today Samadhi at Paramhansi Ganga ashram, Shankaracharya swaroopanand seoni connection, Paramhansi Ganga Ashram Narsinghpur

Last Updated : Sep 12, 2022, 11:09 AM IST
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