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जबलपुर के रैन बसेरा का ईटीवी भारत ने किया रियलिटी चेक, दिखा सुविधाओं का अभाव - etv bharat

मुसाफिरों के लिए कड़ाके की ठंड में रात गुजारने के लिए जबलपुर में करीब 6 रैन बसेरा बनाए गए हैं. लेकिन ये रैन बसेरे कितने कारगर हैं इसको जानने के लिए ईटीवी भारत ने शहर के पुराने बस स्टैंड के आश्रय स्थल का रियलिटी चेक किया.

reality check of ran basera of jabalpur
ईटीवी भारत का रियलिटी चेक
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Published : Jan 16, 2020, 4:07 PM IST

जबलपुर। शहर में 6 रैन बसेरे हैं. ईटीवी भारत ने जबलपुर के पुराने बस स्टैंड के रैन बसेरा का जायजा लिया. इस रैन बसेरे में 20 कमरे हैं, जिसके कुछ कमरों में यात्री ठहरे हुए थे, वहीं कुछ कमरों को लोगों ने स्थायी रूप से सात सौ रुपए प्रति महीने में लिया हुआ है.

ईटीवी भारत का रियलिटी चेक
बता दें कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि सड़क पर खुले में सोने वाले लोगों को रैन बसेरे में लेजाकर उनके रात गुजारने का इंतजाम करवाया जाए. वहीं जब शहर के रैन बसेरा का दौरा किया गया था तो उसकी हलात चरमराई हुई थी. रैन बसेरा में दस पलंग थे. लेकिन सिर्फ एक पर ही यात्री सो रहा था. बाकी पलंग खाली पड़े हुए थे.रैन बसेरे की देखरेख करने वाले नगर निगम के कर्मचारी का कहना है कि यहां रोज रात में नगर निगम की टीम सड़क पर सोने वाले लोगों को लाती है और लोग रात गुजारने के बाद सुबह चले जाते हैं. रजिस्टर में तो लोगों की एंट्री का रिकॉर्ड मिला पर मौके पर कोई नहीं मिला.नगर निगम के पुराने बस स्टैंड का रैन बसेरा शहर के बीचों-बीच है. यहां आसपास ही सैकड़ों लोग सड़कों पर सोते हैं, लेकिन बावजूद इसके इन्हें रैन बसेरे में सोने की जगह नहीं मिल पाती हैं. वही रैन बसेरे की गंदगी और उसकी जर्जर हालत इस बात की ओर भी इशारा करती है की मुफ्त की सेवा में सुविधा की गारंटी नहीं देती है. बता दें कि केवल एक रैन बसेरे का हाल ऐसा नहीं है, बल्कि शहर के दूसरे रैन बसेरों में भी कुछ इसी तरीके की स्थिति है.

जबलपुर। शहर में 6 रैन बसेरे हैं. ईटीवी भारत ने जबलपुर के पुराने बस स्टैंड के रैन बसेरा का जायजा लिया. इस रैन बसेरे में 20 कमरे हैं, जिसके कुछ कमरों में यात्री ठहरे हुए थे, वहीं कुछ कमरों को लोगों ने स्थायी रूप से सात सौ रुपए प्रति महीने में लिया हुआ है.

ईटीवी भारत का रियलिटी चेक
बता दें कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि सड़क पर खुले में सोने वाले लोगों को रैन बसेरे में लेजाकर उनके रात गुजारने का इंतजाम करवाया जाए. वहीं जब शहर के रैन बसेरा का दौरा किया गया था तो उसकी हलात चरमराई हुई थी. रैन बसेरा में दस पलंग थे. लेकिन सिर्फ एक पर ही यात्री सो रहा था. बाकी पलंग खाली पड़े हुए थे.रैन बसेरे की देखरेख करने वाले नगर निगम के कर्मचारी का कहना है कि यहां रोज रात में नगर निगम की टीम सड़क पर सोने वाले लोगों को लाती है और लोग रात गुजारने के बाद सुबह चले जाते हैं. रजिस्टर में तो लोगों की एंट्री का रिकॉर्ड मिला पर मौके पर कोई नहीं मिला.नगर निगम के पुराने बस स्टैंड का रैन बसेरा शहर के बीचों-बीच है. यहां आसपास ही सैकड़ों लोग सड़कों पर सोते हैं, लेकिन बावजूद इसके इन्हें रैन बसेरे में सोने की जगह नहीं मिल पाती हैं. वही रैन बसेरे की गंदगी और उसकी जर्जर हालत इस बात की ओर भी इशारा करती है की मुफ्त की सेवा में सुविधा की गारंटी नहीं देती है. बता दें कि केवल एक रैन बसेरे का हाल ऐसा नहीं है, बल्कि शहर के दूसरे रैन बसेरों में भी कुछ इसी तरीके की स्थिति है.
Intro:जबलपुर में रैन बसेरों में नहीं मिली लोग सड़क पर सोने वाले नहीं पहुंच पा रहे रैन बसेरे तक रेन बसेरे की कमरों पर लोगों का कब्जा गंदगी से सराबोर रैन बसेरों में रहने को तैयार नहीं है सड़क पर सोने वाले लोग


Body:जबलपुर में छह रैन बसेरे हैं लेकिन इन रैन बसेरों में जिन लोगों को सुविधा मिलनी चाहिए वे लोग नहीं पहुंच पाते हमने जबलपुर के पुराने बस स्टैंड कि रैन बसेरा का जायजा लिया इस रेन बसेरे में 20 कमरे हैं इनमें कुछ कमरों में तो कुछ यात्रियों के हुए थे वही कुछ कमरे स्थाई रूप से लोगों ने ले रखे हैं क्योंकि यहां मात्र ₹700 में महीने भर के लिए कमरा मिल जाता है वही मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में आदेश दिया था कि सड़क पर खुले में सोने वाले लोगों को रैन बसेरे में ले जाकर रात गुजारने का इंतजाम करवाया जाए हमने रेन बसेरे की इसी हिस्से का दौरा किया यहां लगभग 10 पलंग थे लेकिन मात्र एक पलंग पर एक यात्री सो रहे थे बाकी पलंग खाली पड़े हुए थे रेन बसेरे की देखरेख करने वाले नगर निगम के कर्मचारी का कहना है कि यहां रोज रात में नगर निगम की टीम सड़क पर सोने वाले लोगों को लाती है और लोग रात गुजारने के बाद सुबह चले जाते हैं लेकिन रजिस्टर में तो इन लोगों के एंट्री मिली पर मौके पर कोई नहीं मिला नगर निगम का पुराने बस स्टैंड का रेन बसेरा शहर के बीचों-बीच है और यहां आसपास ही सैकड़ों लोग सड़कों पर सोते हैं लेकिन इसके बावजूद इन्हें रेन बसेरे में सोने की जगह नहीं मिल पाती वही रैन बसेरे की गंदगी और उसकी जर्जर हालत इस बात की ओर भी इशारा करती है की मुफ्त की सेवा में सुविधा की गारंटी नहीं है


Conclusion:यह केवल एक रेन बसेरे का हाल हो ऐसा नहीं है बल्कि शहर के दूसरे रैन बसेरों में भी कमोबेश इसी तरीके की स्थिति है ठंड और बारिश के मौसम में खुले आसमान के नीचे रात को गुजारना किसी सजा से कम नहीं है और इसलिए हमारे समाज की है जिम्मेवारी है कि हम लोगों को कम से कम रात गुजारने की जगह दें लेकिन सरकारी लापरवाही के चलते हैं यहां तक कोई पहुंच ही नहीं पाता
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