ग्वालियर। मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग को राहत देते हुए हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में मेडिकल ऑफिसर पद के लिए 3 महीने पहले लगाई गई साक्षात्कार की रोक को हटा लिया है. अब नए सिरे से मेडिकल ऑफिसर पदों के लिए भर्ती हो सकेगी और उनके इंटरव्यू भी किए जा सकेंगे.
मेडिकल ऑफिसर इंटरव्यू से रोक हटाई
चिकित्सक रौनक शर्मा की याचिका पर हाईकोर्ट ने मेडिकल अधिकारियों के 576 पदों को भरने के लिए उनके साक्षात्कार पर 27 सितंबर को रोक लगा दी थी.लेकिन मौजूदा दौर में कोरोना संक्रमण की आशंका को देखते हुए इस रोक को हाईकोर्ट ने हटा लिया है. मेडिकल ऑफिसर पद के लिए करीब 3000 पात्र प्रतिभागियों को आमंत्रित किया गया है. याचिकाकर्ता डॉक्टर रौनक शर्मा का कहना था कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग ने (high court lift ban on medical officer interviews ) 17 सितंबर को एक सूची जारी की थी. जिसमें कटऑफ के बाद इंटरव्यू के लिए चयनित लोगों के नाम शामिल किए गए थे . इसमें 60% से कम अंक वालों को चयन प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया था .याचिका में मेडिकल ऑफिसर पदों के लिए भर्ती में लिखित परीक्षा की भी मांग की गई है. लेकिन कोरोना संक्रमण को देखते हुए हाईकोर्ट ने MPPSC को फौरी राहत प्रदान की है. अदालत ने रोक को हटाते हुए अंतरिम आदेश पारित किया है .लेकिन डॉ रौनक शर्मा की याचिका पर अंतिम फैसला होना अभी बाकी है.
पीएससी परीक्षा 2019-20 को निरस्त करने की मांग
मध्य प्रदेश राज्य परीक्षा नियम 2015 में किए गए संशोधन को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में लगभग 4 दर्जन याचिकाएं दायर की गयी थी. याचिका में पीएससी परीक्षा 2019-20 को निरस्त करने की राहत चाही गयी है. याचिका पर मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट युगलपीठ को बताया गया कि संशोधित नियमों की समीक्षा कर उसमें सुधार किया गया है. अनुमति के लिए उसे कैबिनेट बैठक में रखा जाएगा. युगलपीठ ने याचिका पर अगली ((jabalpur hight cout news ))सुनवाई जनवरी के दूसरे सप्ताह में तय की है.
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याचिकाकर्ताओं की तरफ से दायर याचिकाओं में मध्य प्रदेश राज्य परीक्षा नियम 2015 में दिनांक 17 फरवरी 2020 को किये गये संशोधन की संवैधनिकता को चुनौती देते हुए पीएससी परीक्षा 2019 को निरस्त करने की राहत चाही गई है. याचिका में कहा गया था कि संशोधित नियम आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभियाथियों को अनारक्षित वर्ग में चयन से रोकते हैं.
हादसे के जिम्मेदारों पर दर्ज हो FIR
भोपाल के हमीदिया अस्पताल सहित प्रदेश के अन्य सरकारी अस्पतालों में बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों पर केस दर्ज करने की मांग की गई है. याचिका में मांग की गयी है कि हमीदिया अग्निकांड के लिए दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए, याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ और जस्टिस विजय शुक्ला की युगलपीठ को बताया गया कि जनकल्याणकारी राज्य होने के कारण दोषी अधिकारियों पर प्रकरण दर्ज करवाने की जिम्मेदारी सरकार की है. युगलपीठ ने अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब प्रस्तुत करने के निर्देश दिये हैं.
कोर्ट ने मांगा जवाब
नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉक्टर पी जी नाजपांडे की तरफ से ये याचिका दायर की गई थी. याचिका में कहा गया था कि 24 जून 2014 को सतना के सरकारी अस्पताल में हुए अग्नि हादसे में दस बच्चे घायल हुए थे, 1 बच्चों की मौत भी हो गई थी. जबलपुर स्थित मेडिकल कॉलेज में 23 अगस्त 2016 को हुए अग्नि हादसे में 7 बच्चे जख्मी हुए थे और 1 बच्चे की मौत हुई थी. भोपाल के हमिदिया अस्पताल में 8 नवम्बर 2016 को हुए अग्निकांड में 7 बच्चे जख्मी हुए थे और 10 बच्चो की मौत हुई. हमिदिया अस्पताल के पास पिछले 20 सालों से फायर सेफटी सार्टिफिकेट तक नहीं था. ऐसे में जिम्मेदारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच की जाए.
फ्लाई ओवर के लिए जबरन तोड़फोड़ पर रोक
फलाई ओवर के लिए नगर निगम द्वारा मनमाने तरीके से भूमि-अधिग्रहण किये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में लगभग तीन दर्जन याचिकाएं दायर की गयी हैं. याचिका पर मंगलवार को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ और जस्टिस विजय शुक्ला की युगलपीठ ने सुनवाई की. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की तरफ से बताया गया कि सरकार और नगर निगम की तरफ से एक तरफ हाईकोर्ट में कहा गया है कि आपसी समझौते के तहत कार्यवाही की जायेगी.लेकिन दूसरी तरफ जबरन तोड़फोड़ करने का लगातार प्रयास जारी है. युगलपीठ ने बिना सहमति के इस तरह की तोड़फोड़ करने पर रोक लगाते हुए सरकार को जवाब पेश करने के निर्देश दिये हैं. याचिका पर अगली सुनवाई 20 दिसम्बर को निर्धारित की है.