जबलपुर। हिंदुस्तान को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए लाखों सपूतों ने अपना बलिदान दिया. इनमें से कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने न केवल अपना बलिदान दिया बल्कि अपने बलिदान से स्वतंत्रता की ऐसी चिंगारी को जन्म दिया जो बाद में अंग्रेजों के लिए आग बन गई. ऐसे ही कुछ नाम जुड़े हैं मध्यप्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से. गोंडवाना साम्राज्य के राजा शंकर शाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह ने हंसते-हंसते देश की आजादी के लिए दर्दनाक मौत को गले लगा लिया था. ईटीवी भारत आपको इन्हीं ही शौर्य गाथा के बारे में बताने जा रहा है.
गोंड वंश के वीर सपूतों की कहानी
गौरवशाली गढ़ मंडला का गोंडवाना साम्राज्य, आज भी संस्कारधानी गोंडवाना शासकों की वीरता और उनके द्वारा किए गए कार्यों से समृद्ध है. ठीक ऐसे ही दो वीर इस वंश के रहे हैं. तोप के सामने किसी को जिंदा बांधकर उसके चीथड़े उड़ा देना अंग्रेजों के लिए नई बात नही थी, लेकिन मौत के सामने भी अपनी कविताओं के जरिए लोगों में क्रांति की भावना भरना संभवत इन्हीं के लिए संभव था. गोंड वंश के राजा शंकरशाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह ने उस समय अंग्रेजों के खिलाफ विगुल फूंक दिया था, जब कई बड़ी-बड़ी रियासतें घुटने टेक चुकीं थीं. जबलपुर में अंग्रेजों की पकड़ लगातार बढ़ती जा रही थी, अंग्रेज चाहते थे कि जबलपुर से पूरे महाकौशल में ईस्ट इंडिया कंपनी का वर्चस्व फैलाया जाए, लेकिन राजा शंकर शाह को यह मंजूर नहीं था.
कविता के जरिए छेड़ी थी विद्रोह की आग
सन् 1857 ई. में जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजिमेंट का कमाण्डर क्लार्क बहुत क्रूर था. वह छोटे राजाओं, जमीदारों और जनता को बहुत परेशान करता था. यह देखकर गोंडवाना जो वर्तमान में जबलपुर के नाम से जाना जाता है, वहां के राजा शंकरशाह ने उसके अत्याचारों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. राजा और राजकुमार दोनों अच्छे कवि थे. उन्होंने कविताओं द्वारा विद्रोह की आग पूरे राज्य में सुलगा दी. लेकिन यह बात अंग्रेजों को नागवार गुजरी और उन्होंने राजा शंकरशाह और उनके बेटे को घेरने की योजना बनाई.
अंग्रेजों ने अपने गुप्तचर के जरिए यह जानने की कोशिश की कि शंकर शाह अंग्रेजों के खिलाफ कौन सी रणनीति बना रहे हैं. उसके बाद अंग्रेजों ने 14 सितंबर की रात को शंकर शाह के महल को चारों ओर से घेर लिया. राजा की तैयारी अभी अधूरी थी, अत: धोखे के चलते राजा शंकरशाह और उनके 32 वर्षीय पुत्र रघुनाथ शाह बन्दी बना लिए गए. जबलपुर शहर में अब भी वह स्थान है, जहां पिता-पुत्र को मृत्यु से पूर्व बंदी बनाकर रखा गया था.
अंग्रेजों ने शंकर और रघुनाथ शाह को तोप से उड़ाया
18 सितंबर 1857 को दोनों को अलग-अलग तोप के मुंह पर बांध दिया गया. मृत्यु से पूर्व उन्होंने अपनी प्रजा को एक-एक छन्द सुनाया. पहला छन्द राजा ने सुनाया और दूसरा उनके पुत्र ने. छन्द पूरा होते ही जनता में राजा और राजकुमार की जय के नारे गूंज उठे. इससे अंग्रेज डर गए, और तोप में आग लगवा दी. भीषण गर्जना के साथ चारों ओर धुआं भर गया था, और महाराजा शंकर शाह और राजकुमार रघुनाथ शाह वीरगति को प्राप्त हो गए.
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शहादत के बाद विद्रोह की आग भड़की
इतिहासकार आनंद राणा के अनुसार, राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने अंग्रेजों की दर्दनाक मौत को हंसते-हंसते स्वीकार कर लिया था, लेकिन अंग्रेजों के सामने झुकना पसंद नहीं किया. 1857 में हुई इस घटना के बाद पूरे गोंडवाना साम्राज्य में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू हो गई. शंकर और रघुनाथ शाह के बलिदान ने लोगों के मन में अंग्रेजों के खिलाफ एक ऐसी चिंगारी को जन्म दे दिया, जो बाद में शोला बन गई.