जबलपुर। परिवार कल्याण एव स्वास्थ विभाग में कार्यरत डॉक्टरों को तीन साल तक सेवा देने पर इनसर्विस उम्मीदवार का लाभ दिये जाने, तथा मेडिकल चिकित्सा विभाग में कार्यरत डॉक्टरों को इसका लाभ नहीं दिये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी. याचिका में कहा गया था कि काउसिलिंग पूर्व सरकार ने भर्ती नियम में संशोधन किया है, परीक्षा के दौरान यह नियम प्रभावी नहीं था. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने तीन साल तक सेवा देने वाले सभी डॉक्टरों को इनसर्विस का लाभ देने निर्देश जारी किए हैं.
याचिकाकर्ता डॉ आकाश गुप्ता सहित अन्य की तरफ से दायर की गयी याचिकाओं में कहा गया था कि वह मेडिकल कॉलेज तथा जिला अस्पताल में मेडिकन ऑफिसर के रूप में सेवा प्रदान कर रहें है. पीजी कोर्स के लिए इनसर्विस उम्मीदवारों के लिए 30 प्रतिशत सीटें आरक्षित सीट रहती हैं. इसके अलावा एक साल सेवा देने पर दस अंक अतिरिक्त दिेए जाते हैं. इसके साथ ही तीन साल तक अधिक सेवाकाल का लाभ दिया जाता है.
याचिका में कहा गया था कि प्रीजी कोर्स में दाखिले के लिए उन्होंने इन सर्विस उम्मीदवार के तौर पर परीक्षा दी थी. परीक्षा के रिजल्ट में उन्हें अच्छे अंक प्राप्त हुए. काउंसिलिंग के पहले चिकित्सा शिक्षा विभाग ने नियमों में संशोधन करते हुए सिर्फ ग्रामीण व दूरगामी क्षेत्रों में तीन साल तक सेवा देने वाले उम्मीदवारों को इनसर्विस उम्मीदवार मानने का आदेश जारी कर दिया. याचिका में कहा गया था कि 21 सितम्बर से प्रीपीजी कोर्स के लिए काउंसिलिंग शुरू हुई है, जबकि परीक्षा के आयोजन के समय ऐसा कोई नियम नहीं था. सरकार ने कोर्स शुरू होने के बाद नियमों में बदलाव किया है जो नहीं किया जा सकता है. याचिका की सुनवाई के बाद कोर्ट ने तीन साल तक सेवा देने वाले सभी डॉक्टरों को इनसर्विस का लाभ देने निर्देश जारी किए हैं.
नर्मदा से 300 मीटर दूर हुए निर्माण का मामला: मप्र हाईकोर्ट में नर्मदा नदी के तीन सौ मीटर के दायरे में हुए अवैध निर्माण को चुनौती देते हुए याचिका दायर की गयी थी. याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने नदी क्षेत्र में दूरी निर्धारित करने के संबंध में राज्य सरकार से जवाब मांगा था. सरकार की तरफ से टाउन एंड कंट्री के नोटिफिकेशन का हवाला देते हुए कहा गया कि निर्माण के लिए नर्मदा तट से तीन सौ मीटर निर्धारित की है.इस मामले में चीफ जस्टिस रवि विजय मलिमठ व जस्टिस विशाल मिश्रा की डबल बेंच नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में अगली सुनवाई करेगी.
दयोदय सेना केंद्र ने लगाया था आरोप: दयोदय सेवा केन्द्र ने नर्मदा नदी के तीन सौ मीटर दायरे में अवैध रूप से निर्माण कार्य किए जाने का आरोप लगाते हुए नर्मदा मिशन की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. वहीं पूर्व मंत्री व भाजपा नेता ओमप्रकाश धुर्वे ने डिण्डौरी में बिना अनुमति नर्मदा नदी के लगभग पचास मीटर के दायरे में बहुमंजिला मकान बनाया हुआ है इसे भी चुनौती दी गयी थी. इसके अलावा एक अवमानना याचिका सहित तीन अन्य संबंधित मामले को लेकर याचिकाएं दायर की गयी थीं. मामले की पूर्व सुनवाई के दौरान नगर निगम की ओर से पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया था कि जबलपुर में साल 2008 के बाद नर्मदा नदी के तीन सौ मीटर दायरे में तिलवाराघाट, ग्वारीघाट, जिलहेरीघाट, रमनगरा, गोपालपुर, दलपतपुर, भेड़ाघाट में कुल 75 अतिक्रमण पाये गये हैं. जिसमें से 41 निजी भूमि, 31 शासकीय भूमि तथा 3 आबादी भूमि में पाये गये है। हाईकोर्ट ने 1 अक्टूबर 2008 के बाद नर्मदा नदी के तीन सौ मीटर दायरे हुए निर्माण को हटाने के आदेश दिये थे. कोर्ट ने अवैध निर्माण के हटाने की वीडियोग्राफी करने के आदेश देते हुए अधिवक्ता मनोज शर्मा को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था.
अधिकतम या सामान्य जलभराव से हो दूरी: पूर्व में हुई सुनवाई दौरान कोर्ट कमिश्नर ने न्यायालय को बताया कि व्यक्तिगत सर्वे कर तैयार की गई रिपोर्ट हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में जमा करा दी गई है. जिसके बाद बेंच ने सभी पक्षकारों को उसकी कॉपी उपलब्ध कराने के निर्देश दिये थे. याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से बताया गया कि नदी के अधिकतम जल भराव क्षेत्र से तीन सौ मीटर दूरी निर्धारित है, जबकि अनावेदक की तरफ से कहा गया कि अधिकतम जल भराव नहीं, सामान्य जल भराव क्षेत्र से दूरी निर्धारित है. इस संबंध में हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा था.