जबलपुर। कोरोना संक्रमण की इस महामारी के बीच मरीजों को नकली रेमडीसिविर इंजेक्शन लगाने वाले सिटी अस्प्ताल के संचालक सरबजीत सिंह मोखा को एसआइटी ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है. उनके खिलाफ रासुका के तहत कार्रवाई भी की जा रही हो, लेकिन इस.कार्रवाई को लेकर जिला प्रशासन सवालों के घेरे में आ गया है. मोखा के खिलाफ हो रही कार्यवाही पर जिला प्रशासन और कलेक्टर पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लग रहा है. इंजेक्शन की कालाबाजारी करने और नकली इंजेक्शन खरीदने के मामले में जबलपुर कलेक्टर ने करीब 12 से ज्यादा लोगो पर रासुका की कार्यवाही की है. कलेक्टर पर आरोप ये है कि पर इस पूरी कार्रवाई के दौरान दोहरे मापदंड अपनाए गए है.
मोखा पर मेहरबानी क्यों?
- नकली रेमडीसिविर इंजेक्शन केस में फंसे सिटी हॉस्पिटल के संचालक सरबजीत सिंह मोखा पर 3 माह का रासुका लगाया गया है.
- जबकि आरोपियों पर 6 माह के लिए रासुका लगाया गया है. कलेक्टर के द्वारा इस दोहरे मापदंड अपनाते हुए की जा रही कार्यवाही से जिला प्रशासन और कलेक्टर संदेह के घेरे में आ गए हैं.
- सरबजीत सिंह मोखा पर धारा 252/21,धारा 274, 275, 308, 420, 120 बी आपदा प्रबंधन और महामारी एक्ट के तहत मामला दर्ज करते हुए एसपी के प्रतिवेदन पर कलेक्टर ने तीन माह का रासुका लगाया है और उन्हें जेल भेज दिया गया है.
- फिलहाल सरबजीत सिंह मोखा कोरोना पॉजिटिव हैं और अपने ही हॉस्पिटल में एडमिट हैं. पुलिस का कहना है कि उनके ठीक होने के बाद पूछताछ की जाएगी जिससे कि और भी कई खुलासे होंगे.
राष्ट्र की सुरक्षा पर हो खतरा तब लगती है रासुका
कानून के जानकार बताते हैं कि 1980 में लागू किया गया रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) उस स्थिति में लगाया जाता है जब उस व्यक्ति से राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा हो या फिर समाज मे उसके द्वारा कोई ऐसा कृत्य किया जा रहा हो जिससे कि समाज का एक बड़ा वर्ग प्रभावित हो रहा है. तब ऐसा करने वाले व्यक्तियों पर रासुका लगाया जाता है.
'रासुका' में दोहरा मापदंड क्यों
सिटी अस्प्ताल के संचालक सरबजीत सिंह मोखा पर लगे रासुका के मामले पर हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सत्येंद्र ज्योतिषी ने सवाल उठाया है,उंन्होने कहा है कि नकली रेमडीसिविर इंजेक्शन से जुड़े मामले में अभी तक 10 से ज्यादा लोगो पर रासुका लगाया गया है,सभी को 6 माह के लिए जेल भेजा गया. लेकिन, जिला प्रशासन ने सरबजीत सिंह मोखा को लाभ दिया है और उस पर 6 माह की जगह 3 माह का रासुका लगाया गया. यह कार्रवाई सवाल खड़ा करती है. इस मामले में जब ईटीवी भारत ने कलेक्टर से बात करनी चाही तो उन्होंने कन्नी काट ली.
कांग्रेस ने की जांच की मांग
कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना ने इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की है,उन्होंने कहा कि नकली इंजेक्शन में सिर्फ सिटी अस्प्ताल ही नही बल्कि कई अन्य अस्पतालों के रिकॉर्ड भी सामने आए है,उंन्होने इस पूरे मामले में मध्यप्रदेश पुलिस की कार्यवाही पर भी सवाल खड़े किए है. वहीं पूर्व मंत्री जालम सिंह पटेल ने भी कहा है कि इस मामले की जांच के लिए प्रदेश सरकार को केंद्र की मदद लेते हुए मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश करनी चाहिए. पटेल ने आरोप लगाया कि सरबजीत को बचाने के लिए कई नेता कोशिश में लगे हुए हैं.
RSS के प्रांत प्रचार के हॉस्पिटल पर भी लगे आरोप
जबलपुर के निजी अस्पतालों में शामिल आरएसएस के पूर्व प्रान्त प्रचारक और नर्मदा सेवा यात्रा के संयोजक डॉ जितेंद्र जामदार के हॉस्पिटल पर भी लूट के आरोप लगे हैं. यहां एक मरीज के पैर में फ्रैक्चर होने पर हॉस्पिटल ने आयुष्मान योजना के तहत मरीज का इलाज करने की बात तो कही लेकिन पैर में रॉड डालने के लिए 40 हजार रुपए जमा करने को कहा. अस्पताल के सीएमओ सुजय मिश्रा ने आयुष्मान योजना पर सवाल खड़े करते हुए कह दिया कि योजना में आने वाली सामग्री रद्दी होती है हम उसका उपयोग करके अपने अस्पताल की छवि खराब नहीं करेंगे. यदि आपको आयुष्मान योजना से इलाज करवाना है तो मेडिकल या विक्टोरिया हॉस्पिटल चले जाओ. इस मामले में NSUI ने अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया और अस्पताल की मान्यता रद्द करने की मांग की है. इस मामले में एक ऑडियो भी वायरल हो रहा है.
अस्पतालों को सरकार का संरक्षण?
सिटी हॉस्पिटल के संचालक सरबजीत सिंह मोखा जहां जबलपुर के वीएचपी के जिलाध्यक्ष रहे हैं वहीं जामदार हॉस्पिटल के संचालक डॉक्टर जितेंद्र जामदार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के करीबी बताए जाते हैं. जामदार वर्तमान में प्रदेश की कोविड सलाहकार समिति के सदस्य भी हैं. ऐसे में कांग्रेस सवाल उठा रही है कि क्या जबलपुर के अस्पतालों को सरकार का संरक्षण मिला हुआ है.