जबलपुर। लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही बीजेपी-कांग्रेस ने कमर कस ली है. अब सियासी दल उन चेहरों की तलाश कर रहे हैं, जो फतह हासिल कर सकें. इसके लिये कांग्रेस और बीजेपी कार्यालयों में गहन मंथन जारी है.
पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव ने जबलपुर लोकसभा सीट का समीकरण बदलकर रख दिया है. यही वजह है कि जबलपुर लोकसभा सीट रोचक और खास हो चुकी है. साल 2018 के अंत में हुये विधानसभा चुनाव में जबलपुर लोकसभा सीट की आठ सीटें जबलपुर पश्चिम, जबलपुर उत्तर, जबलपुर कैंट, पाटन, बरगी, सिहौर, जबलपुर पूर्व, पनागर में से 4 पर बीजेपी तो 4 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी.
मतलब एक तरह से बीजेपी-कांग्रेस आंकड़ों के हिसाब से यहां एक ही स्थिति में हैं, जिससे मुकाबला रोचक हो गया है. जबलपुर से कमलनाथ कैबिनेट में दो मंत्री तरुण भनोट और लखन घनघोरिया हैं, जबकि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ये यहां से पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं.
इस लोकसभा सीट पर अब तक हुये चुनावों की आंकड़े-
साल 1957 में हुये पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते सेठ गोविंद दास जबलपुर के पहले सांसद बने थे. साल 1957-1971 तक कांग्रेस ने यहां लगातार जीत दर्ज की. लेकिन अपातकाल के बाद 1977 में हुये चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव ने कांग्रेस से ये सीट छीन ली. उन्होंने कांग्रेस के रवि मोहन दास को शिकस्त दी थी. इस तरह जबलपुर सीट पर गैर कांग्रेसी दल ने कब्जा जमाया था.
इंदिरा गांधी की मौत के बाद मिली थी जीत
साल 1980 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने जोरदार वापसी की. कांग्रेस की मुंदर शर्मा ने यहां जीत दर्ज की. लेकिन साल 1982 में हुए उपचनाव में बीजेपी ने यहां पहली बार अपना खाता खोला. पार्टी के बाबूराव परांजपे ने यह सीट कांग्रेस से छीनी थी. लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में बनी लहर से यह सीट फिर से कांग्रेस के खाते में चली गयी. इस चुनाव में कांग्रेस के अजय नारायण मुशरान ने पार्टी का झंडा बुलंद किया था.
श्रवण भाई पटेल के बाद नहीं जीत पाया कोई कांग्रेसी
साल1991 में हुये चुनाव में ये सीट कांग्रेस के खाते मे चली गई और श्रवण भाई पटेल ने कांग्रेस के टिकट पर यहां से जीत दर्ज की, जो जबलपुर में कांग्रेस की आखिरी जीत साबित हुई. लेकिन 1996 के चुनाव से बीजेपी ने अपनी जीत का जो सिलसिला शुरू किया, उसे वह साल 2014 तक बदस्तूर जारी रखे है. फिलहाल प्रदेश में पार्टी की कमान संभाल रहे राकेश सिंह पिछले तीन चुनावों से लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस ने यहां प्रत्याशियों को बदला लेकिन हर बार मुंह की खानी पड़ी.
बीजेपी का उम्मीदवार तय, कांग्रेस कर रही माथापच्ची
हालांकि पिछले साल के अंत में हुये विधानसभा चुनाव में मिली जीत से लबरेज कांग्रेस पिछले ढाई दशक से बीजेपी का किला बन चुकी इस सीट को भेदने का लगातार दावा कर रही है, जबकि दूसरी तरफ बीजेपी एक बार फिर यहां कांग्रेस को छठवीं बार पटखनी देने के मूड में है. इस बार यहां से बीजेपी के राकेश सिंह का लड़ना तय माना जा रहा है, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी पर अब तक सहमति नहीं बना पायी है.