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जबलपुर लोकसभा सीट पर कांटे की टक्कर, राकेश-कमलनाथ की प्रतिष्ठा दांव पर

बीजेपी-कांग्रेस आंकड़ों के हिसाब से यहां जबलपुर लोकसभा सीट पर एक ही स्थिति में हैं, जिससे मुकाबला रोचक हो गया है. जबलपुर से कमलनाथ कैबिनेट में दो मंत्री तरुण भनोट और लखन घनघोरिया हैं, जबकि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ये यहां से पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं.

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Published : Mar 16, 2019, 2:29 PM IST

डिजाइन फोटो

जबलपुर। लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही बीजेपी-कांग्रेस ने कमर कस ली है. अब सियासी दल उन चेहरों की तलाश कर रहे हैं, जो फतह हासिल कर सकें. इसके लिये कांग्रेस और बीजेपी कार्यालयों में गहन मंथन जारी है.

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पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव ने जबलपुर लोकसभा सीट का समीकरण बदलकर रख दिया है. यही वजह है कि जबलपुर लोकसभा सीट रोचक और खास हो चुकी है. साल 2018 के अंत में हुये विधानसभा चुनाव में जबलपुर लोकसभा सीट की आठ सीटें जबलपुर पश्चिम, जबलपुर उत्तर, जबलपुर कैंट, पाटन, बरगी, सिहौर, जबलपुर पूर्व, पनागर में से 4 पर बीजेपी तो 4 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी.

मतलब एक तरह से बीजेपी-कांग्रेस आंकड़ों के हिसाब से यहां एक ही स्थिति में हैं, जिससे मुकाबला रोचक हो गया है. जबलपुर से कमलनाथ कैबिनेट में दो मंत्री तरुण भनोट और लखन घनघोरिया हैं, जबकि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ये यहां से पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं.

इस लोकसभा सीट पर अब तक हुये चुनावों की आंकड़े-
साल 1957 में हुये पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते सेठ गोविंद दास जबलपुर के पहले सांसद बने थे. साल 1957-1971 तक कांग्रेस ने यहां लगातार जीत दर्ज की. लेकिन अपातकाल के बाद 1977 में हुये चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव ने कांग्रेस से ये सीट छीन ली. उन्होंने कांग्रेस के रवि मोहन दास को शिकस्त दी थी. इस तरह जबलपुर सीट पर गैर कांग्रेसी दल ने कब्जा जमाया था.

इंदिरा गांधी की मौत के बाद मिली थी जीत
साल 1980 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने जोरदार वापसी की. कांग्रेस की मुंदर शर्मा ने यहां जीत दर्ज की. लेकिन साल 1982 में हुए उपचनाव में बीजेपी ने यहां पहली बार अपना खाता खोला. पार्टी के बाबूराव परांजपे ने यह सीट कांग्रेस से छीनी थी. लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में बनी लहर से यह सीट फिर से कांग्रेस के खाते में चली गयी. इस चुनाव में कांग्रेस के अजय नारायण मुशरान ने पार्टी का झंडा बुलंद किया था.

श्रवण भाई पटेल के बाद नहीं जीत पाया कोई कांग्रेसी
साल1991 में हुये चुनाव में ये सीट कांग्रेस के खाते मे चली गई और श्रवण भाई पटेल ने कांग्रेस के टिकट पर यहां से जीत दर्ज की, जो जबलपुर में कांग्रेस की आखिरी जीत साबित हुई. लेकिन 1996 के चुनाव से बीजेपी ने अपनी जीत का जो सिलसिला शुरू किया, उसे वह साल 2014 तक बदस्तूर जारी रखे है. फिलहाल प्रदेश में पार्टी की कमान संभाल रहे राकेश सिंह पिछले तीन चुनावों से लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस ने यहां प्रत्याशियों को बदला लेकिन हर बार मुंह की खानी पड़ी.

बीजेपी का उम्मीदवार तय, कांग्रेस कर रही माथापच्ची
हालांकि पिछले साल के अंत में हुये विधानसभा चुनाव में मिली जीत से लबरेज कांग्रेस पिछले ढाई दशक से बीजेपी का किला बन चुकी इस सीट को भेदने का लगातार दावा कर रही है, जबकि दूसरी तरफ बीजेपी एक बार फिर यहां कांग्रेस को छठवीं बार पटखनी देने के मूड में है. इस बार यहां से बीजेपी के राकेश सिंह का लड़ना तय माना जा रहा है, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी पर अब तक सहमति नहीं बना पायी है.

जबलपुर। लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही बीजेपी-कांग्रेस ने कमर कस ली है. अब सियासी दल उन चेहरों की तलाश कर रहे हैं, जो फतह हासिल कर सकें. इसके लिये कांग्रेस और बीजेपी कार्यालयों में गहन मंथन जारी है.

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पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव ने जबलपुर लोकसभा सीट का समीकरण बदलकर रख दिया है. यही वजह है कि जबलपुर लोकसभा सीट रोचक और खास हो चुकी है. साल 2018 के अंत में हुये विधानसभा चुनाव में जबलपुर लोकसभा सीट की आठ सीटें जबलपुर पश्चिम, जबलपुर उत्तर, जबलपुर कैंट, पाटन, बरगी, सिहौर, जबलपुर पूर्व, पनागर में से 4 पर बीजेपी तो 4 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी.

मतलब एक तरह से बीजेपी-कांग्रेस आंकड़ों के हिसाब से यहां एक ही स्थिति में हैं, जिससे मुकाबला रोचक हो गया है. जबलपुर से कमलनाथ कैबिनेट में दो मंत्री तरुण भनोट और लखन घनघोरिया हैं, जबकि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ये यहां से पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं.

इस लोकसभा सीट पर अब तक हुये चुनावों की आंकड़े-
साल 1957 में हुये पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते सेठ गोविंद दास जबलपुर के पहले सांसद बने थे. साल 1957-1971 तक कांग्रेस ने यहां लगातार जीत दर्ज की. लेकिन अपातकाल के बाद 1977 में हुये चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव ने कांग्रेस से ये सीट छीन ली. उन्होंने कांग्रेस के रवि मोहन दास को शिकस्त दी थी. इस तरह जबलपुर सीट पर गैर कांग्रेसी दल ने कब्जा जमाया था.

इंदिरा गांधी की मौत के बाद मिली थी जीत
साल 1980 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने जोरदार वापसी की. कांग्रेस की मुंदर शर्मा ने यहां जीत दर्ज की. लेकिन साल 1982 में हुए उपचनाव में बीजेपी ने यहां पहली बार अपना खाता खोला. पार्टी के बाबूराव परांजपे ने यह सीट कांग्रेस से छीनी थी. लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में बनी लहर से यह सीट फिर से कांग्रेस के खाते में चली गयी. इस चुनाव में कांग्रेस के अजय नारायण मुशरान ने पार्टी का झंडा बुलंद किया था.

श्रवण भाई पटेल के बाद नहीं जीत पाया कोई कांग्रेसी
साल1991 में हुये चुनाव में ये सीट कांग्रेस के खाते मे चली गई और श्रवण भाई पटेल ने कांग्रेस के टिकट पर यहां से जीत दर्ज की, जो जबलपुर में कांग्रेस की आखिरी जीत साबित हुई. लेकिन 1996 के चुनाव से बीजेपी ने अपनी जीत का जो सिलसिला शुरू किया, उसे वह साल 2014 तक बदस्तूर जारी रखे है. फिलहाल प्रदेश में पार्टी की कमान संभाल रहे राकेश सिंह पिछले तीन चुनावों से लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस ने यहां प्रत्याशियों को बदला लेकिन हर बार मुंह की खानी पड़ी.

बीजेपी का उम्मीदवार तय, कांग्रेस कर रही माथापच्ची
हालांकि पिछले साल के अंत में हुये विधानसभा चुनाव में मिली जीत से लबरेज कांग्रेस पिछले ढाई दशक से बीजेपी का किला बन चुकी इस सीट को भेदने का लगातार दावा कर रही है, जबकि दूसरी तरफ बीजेपी एक बार फिर यहां कांग्रेस को छठवीं बार पटखनी देने के मूड में है. इस बार यहां से बीजेपी के राकेश सिंह का लड़ना तय माना जा रहा है, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी पर अब तक सहमति नहीं बना पायी है.

Intro:1974 में मात्र 25 साल के युवा शरद यादव को जबलपुर के लोगों ने बना दिया था सांसद शरद यादव की वजह से कांग्रेस के हाथ से निकली जबलपुर की सीट कांग्रेस अब तक नहीं लौटा पाई


Body:जबलपुर लोकसभा सीट कई मायनों में खास है दरअसल जबलपुर लोकसभा ने राष्ट्रीय राजनीति में शरद यादव जैसा बड़ा चेहरा दिया है

जबलपुर लोकसभा के चुनाव के तहत पर यदि नजर डाली जाए जबलपुर का पहला लोकसभा चुनाव पंडित सुनील कुमार पटेरिया ने जीता था और वे कांग्रेस से थे जबलपुर में कांग्रेस बहुत मजबूत पार्टी थी 1957 में कांग्रेस से ही सेठ गोविंददास खड़े हुए सेठ गोविंद दास जब तक जिंदा रहे जब तक कांग्रेस पार्टी से जबलपुर का नेतृत्व करते रहे 1957 1962 1967 और 19 71 में हुए लोकसभा चुनाव में सेठ गोविंद दास ने जीत हासिल की 1974 में सेठ गोविंद दास की मृत्यु हो गई उसी दौरान देश में आपातकाल लगाया गया था इसी आपातकाल का विरोध करने के लिए जबलपुर में बड़ा छात्र आंदोलन हुआ इस छात्र आंदोलन का नेतृत्व उस समय का 25 साल का एक युवा शरद यादव कर रहे थे सभी पार्टियों ने मिलकर शरद यादव को लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बना दिया शरद यादव के खिलाफ कांग्रेस के सेठ गोविंद दास के लड़के रवि मोहन खड़े हुए थे लेकिन वे जनता के उम्मीदवार शरद यादव से नहीं जीत पाए और शरद यादव ने एकतरफा जीत हासिल की 1977 में हुए चुनाव में एक बार फिर शरद यादव ने जीत हासिल की लेकिन 1980 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने बाजी मारी और मुंदर शरमा यहां से चुनाव जीते इसके बाद बाबूराव परांजपे ने यह सीट भारतीय जनता पार्टी के खेमे में पहुंचा दी लेकिन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के समय अजय नारायण मुशरान जबलपुर लोक सभा सीट पर खड़े हुए और कांग्रेस की लहर में उन्हें जीत हासिल हुई एक बार फिर पासा पलटा लालकृष्ण आडवाणी की राम मंदिर की रथ यात्रा ने बाबूराव परांजपे को जीत दिलवाई और 9 वीं लोकसभा में जबलपुर की सीट भारतीय जनता पार्टी के पास चली गई लेकिन 1991 में 10 वीं लोकसभा में श्रवण भाई पटेल ने जबलपुर में कांग्रेस के नेतृत्व में जीत हासिल की श्रवण भाई पटेल कांग्रेस के अंतिम सांसद थे जो जबलपुर से लोकसभा पहुंचे थे इसके बाद से हुए तमाम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार ही जीते रहे हैं बाबूराव परांजपे दो बार जीते 13वीं लोकसभा में पहली बार जबलपुर से महिला सांसद जय श्री बनर्जी जीते और 2004 से 2019 तक मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष राकेश सिंह लगातार तीसरी बार सांसद का चुनाव जीते हैं तब से यह सीट भारतीय जनता पार्टी के खेमे में ही जा रही है

जबलपुर बीते लगभग 25 सालों से भारतीय जनता पार्टी का गढ़ बन गया है लेकिन इस बार मध्य प्रदेश सरकार में जबलपुर के दो मंत्री शामिल हैं इसलिए बहुत भरोसे से नहीं कहा जा सकता कि आगे भी यह सीट भारतीय जनता पार्टी के पास ही रहेगी


Conclusion:बाइट ओम कोहली वरिष्ठ पत्रकार जबलपुर
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